Last Updated on January 29, 2023 by admin
पाचन तंत्र के कार्य :
हमारे द्वारा खाए गए पदार्थो में से पाचनतंत्र कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा को अवशोषण कर लेता है और शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंच देता है जिससे शरीर की प्रणालियां ठीक से काम करती है और विजातीय तत्व को शरीर से बाहर निकाल देती है। पाचनतंत्र में भौतिक (मैकेनिकल) व रासायनिक प्रक्रिया होती है। पाचन सम्बंधी भौतिक प्रकिया में भोजन को चबाना, भोजन को निगलना, भोजन को मथना या मिलाना व आंत्रों का सिकुड़ना व फैलना आदि क्रियाएं होती है। पाचन सम्बंधी रासायनिक प्रक्रिया में भोजन में पानी मिलाना, एन्जाइम रासायनिक प्रक्रिया को गतिशीलता प्रदान करती है, मुंह से पाचक रस का स्राव होता है जो भोजन में मिलकर जठरांत्र रस, पित्त व जिगर से उत्पन्न रस, अग्न्याशय रस व आंत्र रस मिलकर पच जाता है।
मुंह में पाचनक्रिया :
मुंह में पाचनक्रिया होने के दौरान भोजन को चबाया जाता है। चबाने की क्रिया में भोजन छोटे-छोटे कणों में टूट जाते हैं और लार के साथ मिल जाने पर इसे निगल लिया जाता है जहां से पाचनक्रिया शुरू होती है। कार्बोहाइड्रेट का अधिकांश पाचनक्रिया मुंह के भीतर ही पूरी हो जाती है।
पेट में पाचन-क्रिया :
मुंह में भोजन चबाने की क्रिया समाप्त होने के बाद यह ग्रासनली से होता हुआ पेट में पहुंचता है जहां अस्थाई रूप से इसका भण्डारन होता है। भोजन पेट में पहुंचने पर पेट में मौजूद हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन में मौजूद सूक्ष्म जीवों के विपरीत एक रक्षात्मक अवरोध (रुकावट) उत्पन्न करता है और प्रोटीन को फुला देता है ताकि भोजन आसानी से पच सके और पेप्सिन की क्रियाकलाप के लिए आवश्यक अम्ल बन सके। इसके बाद जठरांत्र रस भोजन में मौजूद प्रोटीन को विघटित करने वाले एन्जाइम पेप्सिन प्रोटीन को आंशिक रूप से पचाता है। यह रेनिन नामक एन्जाइम के जरिए दूध को भी पचाता है। पेट में कार्बोहाइड्रेट और वसा कम बदल पाती है। आधा पचा हुआ और पुरे रूप से मिश्रित भोजन आग रूपांतरण के लिए काइम नामक अर्थ-ठोस पिण्ड के रूप में क्षुदांत्र में प्रवेश करता है।
क्षुदांत्र में पाचनक्रिया :
भोजन के क्षुदांत्र के पहले भाग डुओडिनम में पहुंचते ही पित्ताशय से पित्त रस और अग्न्याशय से अग्न्याशय रस निकलकर डुओडिनम में आने लगता है। पित्त वसा का इमल्सीकरण करता है जो बाद में पूरी तरह पचकर क्षारीयता उपलब्ध कराकर अम्लता को उदासीन कर देता है। अग्न्याशय रस आंशिक रूप से पचे हुए प्रोटीन को प्रभावित करता है और इसे ऐमिनों अम्ल में पचे हुए कार्बोहाइड्रेट को साधारण शर्करा और इमल्सीकरण वसा को अम्ल व ग्लिसेरॉल में बदल देता है। इस तरह डुओडिनम में भोजन की पाचनक्रिया पूरी हो जाती है और इसका शेष क्षुदांत्र के अंतिम भाग इमिलयम (शेषांत्र) में पहुंचता है जहां भोजन के उपयोगी तत्वों को शरीर अवशोषित कर लेता है और बचा हुआ भाग बृहदांत्र में चला जाता है जहां से यह मल के रूप में मलाशय और गुदा से होकर बाहर निकल जाता है।
भोजन की अम्लता :
भोजन में कई प्रकार के अम्ल मौजूद होते हैं जिनमें से तीन सभी प्राकृतिक खाद्य पदार्थो में पाए जाते हैं- सिट्रिक, मैलिक और टार्टेरिक अम्ल। शरीर में उत्पन्न होने वाले कुछ अम्ल हानिकारक होते है- ऑक्जे़लिक, बैंन्जोइक, ब्यूटिरिक और यूरिक अम्ल। एक अन्य अम्ल होता है जिसे लैक्टिक अम्ल कहते हैं जो शरीर द्वारा उपयोग करने के बाद भी अपनी प्रकृति से एक रक्षात्मक अम्ल है। सिट्रिक अम्ल नींबू, संतरे, चकोतरे, काकबदरी (गूज़बेरी), अनार, टमाटर, मूली व अन्य सब्जियों में पाया जाता है। मौलिक अम्ल सेब, मटर, अंगूर व टमाटर में पाया जाता है। टर्टिरिक अम्ल अंगूर और थोड़ी मात्रा में अनन्नास में पाया जाता है। एसीटिक अम्ल सिरके और सोयासॉस में पाया जाता है तथा पाचनक्रिया के लिए हानिकारक होता है। ऑक्जेलिक अम्ल पालक, रेबंदचीनी, कोको, चाच और कालीमिर्च में पाया जाता है और यह उन व्यक्तियों के लिए हानिकारक होता हैं जिसके शरीर में यूनिक अम्ल का स्तर अधिक होता है।
बैन्जोइक अम्ल आलूचे, आलूबुखारे और बेर में पाया जाता है। यूरिक अम्ल की अधिकता से पित्ताश्मरी रोग होता है और पित्ताश्मरी के रोगियों को इन अम्लों से युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। बैन्जोइक अम्ल डिब्बा बंद फलों, सेब के रस, सिरके और चटनियों में परिरक्षी के रूप में भी प्रयोग होता है।
ब्चूटिरिक अम्ल मक्खन और खट्टा पड़े वसा में पाया जाता है। यह पेट के लिए नुकसान दायक होता है और सुबह इससे अम्ल रक्तता (ऐसिडोसिस) बढ़ती है।
यूरिक अम्ल शरीर के अपशिष्ट उत्पादों में से एक है। मांसाहारी खाद्य पदार्थों से यूरिक अम्ल भारी मात्रा में पैदा होता है। पालक, फलियां, मटर, फूलगोभी व खूंभ में प्यूरीन पाया जाता है जो आग चलकर अधिक मात्रा में यूरिक अम्ल पैदा करता है। गाउटी आर्थराइटिस के रोगियों, मूत्राशय की पथरी वाले रोगियों को ये सब्जियां कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
भोजन की क्षारीयता :
जब हम खाना खाते हैं तो भोजन की पाचन के बाद कुछ अपशिष्ट पदार्थ बचा रह जाता है। अम्लता के शिकार रोगीयों को ताजे फल, दूध, सब्जी, दाल, फलियां एवं सतुलित भोजन करना चाहिए क्योंकि कार्बनिक अम्ल मौजूद होते हैं जिसे शरीर आसानी से प्रयुक्त कर लेता हैं और क्षारीय ट्रेस बच जाता है। ऐसे में अम्लता के रोगी को रसदार फलों का इस्तमाल न करें क्योंकि यह हानिकारक हो सकता है। आज के समय में मौजूद भोजन में केवल 40 प्रतिशत अनाज और 60 प्रतिशत फल व सब्ज का सेवन करना अम्ल-क्षार के बीच संतुलन बनाने का भौतिक नियम है।I
खराब पाचनतंत्र को सुधारने के घरेलू उपाय :
1. लौंग : लौंग 10 ग्राम, सौंठ 10 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम, पीपल 10 ग्राम और अजवायन 10 ग्राम को मिलाकर अच्छी तरह पीसकर इसमें एक ग्राम सेंधानमक मिलाकर लें। इस मिश्रण को एक स्टील के बर्तन में रखकर ऊपर से नींबू का रस डाल दें। जब यह सक्त हो जाए तो इसे छाया में सूखाकर 5-5 ग्राम की मात्रा में भोजन के बाद सुबह-शाम पानी के साथ लें। इससे पाचनक्रिया की गड़बड़ी दूर होती है।
2. अजवायन : अजवायन का रस या पुनर्नवा का रस या मकोऐ का रस एक तिहाई कप में पानी में मिलाकर भोजन के बाद प्रतिदिन लेने से पाचनक्रिया में सुधार आता है।
3. शुठी : पाचनक्रिया की गड़बड़ी होने पर शुठी के रस को एक तिहाई कप दूध में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम करें।
4. आम : रेशेदार आम गुणकारी व कब्जनाशक होता है। पाचनतंत्र की खराबी होने पर आम खाकर ऊपर से दूध पीने से आंतों को शक्ति मिलती है। 70 मिलीलीटर मीठे आम का रस 2 ग्राम सौंठ मिलाकर सुबह पीने से पाचनशक्ति बढ़ती है।
5. चांगेरी : अग्निमांद्य (पाचनक्रिया का मंदा होना) में चांगेरी के 8-10 पत्ते का काढ़ा बनाकर रोगी को देने से पाचनशक्ति ठीक होती है और भूख लगती है।
6. मूली :
- भोजन करने के बाद मूली खाने से पाचनक्रिया तेज होती है लेकिन ध्यान रखें कि भोजन करने से पहले कभी भी मूली नहीं खानी चाहिए।
- भोजन के साथ मूली और नींबू के रस से बने सलाद खाने से पाचनक्रिया तेज होती है।
7. ककोड़ा (खेखसा) : ककोडे की सब्जी से किसी को वात होता है तो सब्जी में लहसुन को मिलाकर खाना चाहिए। यह पाचनक्रिया की गड़बड़ी में बेहद लाभकारी होता है।
8. अदरक :
- 6 ग्राम अदरक बारीक काटकर थोड़ा-सा नमक लगाकर दिन में एक बार 10 दिनों तक लगातार भोजन से पहले खाने से हाजमा ठीक होता है और भूख बढ़ती है। इससे पेट की गैस कब्ज समाप्त होती है, मुंह का स्वाद ठीक होता है, भूख बढ़ेगी और गले में अटका बलगम निकलता है।
- सौंठ, हींग और कालानमक का चूर्ण मिलाकर खाने से गैस की परेशानी दूर होती है। सौंठ व अजवायन के चूर्ण में नींबू का रस मिलाकर सुखा लें और नमक मिलाकर सेवन करें। यह चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से पाचनक्रिया, वायु विकार और खट्टी डकारों आदि की परेशानियां दूर होती है।
- यदि पेट फूलता हो, बदहजमी हो तो अदरक के टुकड़े देशी घी में सेंक करके स्वादानुसार नमक डालकर दिन में 2 बार सेवन करें। इस प्रयोग से पेट के समस्त सामान्य रोग ठीक होते हैं।
- अदरक के एक लीटर रस में 100 ग्राम चीनी मिलाकर पकाएं। जब मिश्रण कुछ गाढ़ा हो जाए तो उसमें लौंग का चूर्ण 5 ग्राम और छोटी इलायची का चूर्ण 5 ग्राम मिलाकर शीशी के बर्तन में भरकर रखें। यह एक चम्मच की मात्रा में गर्म दूध या पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पाचन संबधी सभी परेशानी ठीक होती है।
9. चुकन्दर : चुकन्दर का रस प्रतिदिन सेवन करने से पाचनक्रिया तेज होती है।
10. कालीमिर्च : ताजा पोदीना, खारिक, कालीमिर्च, सेंधानमक, हींग, द्राक्ष और जीरा इन सभी को मिलाकर चूर्ण बना लें और इसमें नींबू का रस मिलाकर चाटने से मुंह का फीकापन तथा वायु दूर होता है। यह अरूचि को दूर करके पाचनशक्ति को बढ़ता है।
11. गेहूं: गेहूं का आटा पानी डालकर गूंथे तथा एक घंटे तक रखा रहने दें। इसके बाद इसकी रोटियां बनाकर खाएं। यह रोटी शीघ्र ही पच जाती है।
12. लाल कचनार : लाल कचनार की 10 से 20 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा बनाकर दिन में 2 बार सेवन करने से पाचनक्रिया ठीक होती है।
13. पान : पान को चूसने पर लार की मात्रा अधिक निकलती है जिससे पाचनक्रिया में मदद मिलती है। यह पेट की बादी को मिटाने वाला उत्तेजक और ग्राही होता है। इससे आवाज साफ होती है और मुंह की दुर्गंध दूर होती है।
14. पालक : आधा गिलास कच्चे पालक का रस प्रतिदिन सुबह पीने से कुछ ही दिनों में कब्ज ठीक हो जाती है। पाचन संस्थान के रोगों में पालक की सब्जी खाना से लाभ मिलता है। पालक के पत्तों का काढ़ा पीने से पथरी पिघल जाती है।
15. करेला : करेले की सब्जी या रस पेट के दर्द व पाचनशक्ति में फायदेमंद है।
16. प्याज : प्याज का रस पीने से आंतों की क्रिया शक्ति बढ़ती है और दस्त साफ आता है।
17. सेब : सेब को आग पर सेंककर खाने से बिगड़ी हुई पाचनक्रिया ठीक होती है।
18. पिपरमिन्ट :
- पाचन सम्बंधी (पतले दस्त का आना, गैस, दर्द, अम्लपित्त) में लाभ देता है और पिपरमिंट खाने से आंत की मांसपेशियों में लचीलापन आता है और आंतों की सूजन व ऐंठन दूर होती है।
- पिपरमिन्ट के तेल की 2 बूंद 4 चम्मच पानी में मिलाकर पीने से पाचनक्रिया में सुधार होता है। पिपरमिन्ट तेल की 2 बूंद रूमाल पर डालकर सूंघने से पाचनक्रिया ठीक होती है।
19. कुचला : भुख न लगना या पाचनशक्ति कमजोर होना आदि में कुचले के बीजों को शुद्ध करके चूर्ण बनाकर लगभग एक ग्राम का आधा भाग शहद के साथ लें।
20. लता करंज : करंज 10 से 12 ग्राम रस में चित्रक के पत्तों का रस और कालीमिर्च व नमक को मिलाकर मंदाग्नि के रोग से पीड़ित रोगी को पिलाने से पाचनशक्ति तेज होती है।
21. अंगूर : अंगूर का रस आंतों की गति व क्रियाशीलता को बढ़ाता है और पाचनक्रिया को तेज करता है।
22. पंचकोल : 10-10 ग्राम छोटी पीपल, पीपला मूल, पंचकोल, चव्य, चित्रक, सौंठ को पीसकर और छानकर 5-5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ लेने भोजन जल्दी पचता है।
23. अतीस : 2 ग्राम अतीस के चूर्ण को एक ग्राम सौंठ या एक ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ शहद मिलाकर चटाने से पाचन की शक्ति बढ़ती है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)