Last Updated on September 17, 2021 by admin
खसरा रोग बच्चों में होनेवाला बहुत ही संक्रामक और खतरनाक रोग है। जो मिक्सोवाइरस समूह (Myxoviruses group) के विषाणु द्वारा उत्पन्न होता है। विकासशील देशों में यह बीमारी मृत्युओं और बीमारी की जटिलताओं का एक बड़ा कारण है। यह रोग विश्व के प्राय: सभी स्थानों में होता (Epidemics) है। रोग की शुरुआत सर्दी जैसे लक्षणों से होती है। लेकिन इसमें शरीर में ददोरे उभरते हैं और गम्भीर जटिलताएँ भी पैदा होती हैं।
भारत में खसरा रोग की स्थिति :
भारत में यह रोग भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है। यहाँ 1991 में सात राज्यों में हए अध्ययन के अनुसार इस रोग से मृत्यु दर 4 प्रतिशत थी। सन् 1987 में दो लाख सैंतालीस हजार रोगियों की सूचनाएँ प्राप्त हुई थीं। लेकिन व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम के पश्चात् सन् 2001 में मात्र 51 हजार 700 सौ रोगियों की सूचनाएँ प्राप्त हुई।
खसरा रोग के कारण (Measles Causes in Hindi)
खसरा रोग क्यों होता है ?
जैसा कि शुरुआत में बतलाया गया है कि खसरा रोग विषाणुजन्य रोग है जो आर.एन.ए.’ पैरा मिक्सोवाइरस द्वारा होता है।
संक्रमण का स्रोत :
संक्रमण उत्पन्न करनेवाले विषाणु का स्रोत स्वयं खसरा रोग से ग्रसित रोगी होता है।
कैसे होता है खसरा रोग का संक्रमण (Infection) :
चूँकि रोग के विषाणु रोगी की नाक के स्राव गले एवं फेफड़ों में मौजूद रहते हैं। अत: रोगी जब छींकता है या बात करता है अथवा खाँसता है तो संक्रमणकारी विषाणु पास में मौजूद व्यक्तियों के शरीर में विषाणुयुक्त बिन्दुक (Droplet) द्वारा पहुँच जाते हैं। रोगी के उपयोग की वस्तुएँ जैसे – चम्मच, कप इत्यादि से भी बीमारी फैल सकती है।
रोगी, शरीर में ददोरे आने के 4 दिन पहले से लेकर ददोरे निकलने के 5 दिन पश्चात् तक संक्रमणकारी अर्थात् संक्रमण फैलाने में सक्षम होता है।
उद्भव काल (Incubation Period) संक्रमण के पश्चात रोग 10 से 14 दिनों के मध्य हो जाता है। संक्रमण के दस दिनों पश्चात् रोगी को बुखार आना शुरू हो जाता है और 14 दिनों पश्चात् ददोरे या दाने आना शुरू हो जाते हैं।
खसरा रोग के लक्षण (Measles Symptoms in Hindi)
खसरा रोग के क्या लक्षण होते हैं ?
रोग की तीन अवस्थाएँ होती हैं जिनके अलग-अलग लक्षण होते हैं –
1). ददोरे आने के पहले की अवस्था (Prodromol stage) : इसमें तेज सर्दी जुकाम जैसे लक्षण मिलते हैं। रोगी की नाक बहती है। ज्वर 39 डिग्री तक पहुँच जाते हैं। आँखें लाल हो जाती हैं और छींके भी आती हैं। बच्चा बहुत परेशान नजर आता है। उसे उल्टियाँ या दस्त हो सकते हैं।
रोगी के मुख के अन्दर की श्लेष्मा में नीले सफेद धब्बे दिखते हैं जिन्हें कॉप्लिक धब्बे (Koplik’s Spots) कहते हैं। ये 80 प्रतिशत बच्चों में पाए जाते हैं और खसरा रोग की प्रमुख पहचान इनसे की जाती है। यह अवस्था 3 से 4 दिन तक रहती है।
2). ददोरे आना (Eruptive Phase) : चौथे दिन धुंधले लाल रंग के ददोरे पहले बच्चे के चेहरे और कानों के पीछे गर्दन पर दिखलाई देते हैं, इसके पश्चात् ये गर्दन के निचले हिस्से, हाथ-पैर और शरीर में फैल जाते हैं। ये ददोरे 5-6 दिनों तक मौजूद रहते हैं फिर गहरे निशान छोड़कर गायब हो जाते हैं।
3). खसरा के बाद की अवस्था (Post measles stage) : बच्चे का वजन बहुत कम हो जाता है और वह कमजोर हो जाता है। यहाँ तक कि इसे संक्रामक बीमारियाँ जैसे क्षय रोग, दस्त लगने की शिकायतें इत्यादि हो जाती हैं। बच्चे की वृद्धि या बाढ़ रुक जाती है।
इलाज रोग का विशेष इलाज नहीं है। पैरासिटामोल वगैरह देते हैं। और जीवाणु प्रतिरोधी दवाएँ भी शिशु रोग विशेषज्ञ देते हैं।
खसरा रोग की जटिलताएँ (Measles Complications in Hindi)
कुपोषित बच्चों में खसरा खतरनाक जटिलताएँ उत्पन्न करता है। विशेषकर वे बच्चे जिनमें विटामिन ‘ए’ और प्रोटीन की कमी होती है, उन्हें श्वास नलिकाओं में सूजन, निमोनिया, अतिसार जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जिसके कारण रोगी बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। कुछ रोगियों में मस्तिष्क सम्बन्धी जटिलताएँ जैसे – मस्तिष्क शोथ, झटके आना (Convulsions) इत्यादि बीमारियाँ हो जाती हैं। और यदि तुरन्त उचित इलाज न किया तो इससे रोगी मर भी सकता है।
अत: इलाज के लिए शीघ्र शिशु रोग विशेषज्ञ या अनुभवी चिकित्सक को दिखलाना चाहिए ताकि रोग की जटिलताएँ उत्पन्न न हों।
खसरा रोग की रोकथाम और नियंत्रण (Prevention of Measles in Hindi)
खसरा रोग की रोकथाम कैसे करें ?
(अ) प्रारंभिक उपाय –
- खसरा के लक्षण मिलते ही बच्चे को अलग रखते हैं।
- बच्चे की आँखों को तेज प्रकाश से बचाते हैं।
- बच्चे के उपयोग की वस्तुएँ अन्य बच्चों को उपयोग के लिए नहीं देते हैं।
- नाक और गले के स्राव से युक्त कपड़ों और वस्तुओं को रोगाणुविहीन (विसंक्रमित) करते हैं। इसके लिए उन्हें उबालते हैं या दवा डालते हैं।
(ब) रोग का टीका (Vaccine) –
रोग के प्रसार रोकने एवं बच्चों को सुरक्षित रखने में टीका प्रभावशाली होता है। यह शिशु को 9 से लेकर 12 माह के मध्य लगवाया जाता है। इसकी एक मात्रा 15 वर्ष तक (95 प्रतिशत मामलों में) सुरक्षा प्रदान करती है। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि जिन बच्चों को खसरा एक बार होता है उन्हें फिर दुबारा जीवन में कभी यह रोग नहीं होता।
(स) इम्यूनोग्लोब्यूलिंस (Immunoglobulins) का उपयोग –
रोगी के सम्पर्क में आए बच्चे को इम्यूनोग्लोब्यूलिंस की मात्रा देकर उसे इस रोग से बचाया जा सकता है। क्योंकि ये बच्चों में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाते हैं साथ ही रोग कारक विषाणु को प्रभावहीन भी बनाते हैं। वैसे खसरा रोग के लिए टीकाकरण ज्यादा प्रभावी होता है।