Last Updated on September 24, 2019 by admin
गुरदे या मूत्रवाहक नली (यूरेटर) की पथरी एक खासा तकलीफदेह रोग है। इससे समय-असमय दोहरा कर देनेवाला जोरों का दर्द तो उठता ही है, साथ ही गुरदे की निकासी रुक जाने से गुरदों में इन्फेक्शन होने का डर भी बना रहता है, समय के साथ गुरदे के स्वस्थ ऊतक नष्ट होते जाते हैं और गुरदा बिलकुल बेकार भी हो सकता है। इसीलिए पथरी के इलाज में ढील बरतना कतई ठीक नहीं।
लेकिन पथरी यदि छोटी हो (आठ मिलीमीटर से कम) और रुकावट पैदा न कर रही हो या कुछ बड़ी भी हो, पर गुरदे के किसी कोने में पड़ी हो, तब यह जरूरी नहीं कि उसे ऑपरेशन से ही बाहर निकाला जाए। ऐसे में रोगी को डॉक्टर से समय-समय पर सलाह लेते रहना चाहिए और पथरी के खुद-ब-खुद बाहर आने का इंतजार करना चाहिए। इस स्थिति में नित्य ज्यादा मात्रा में पानी का सेवन करते रहना दवा का काम करता है। हर रोज कम-से-कम तीन से चार लीटर, यानी बारह से सोलह गिलास पानी लेते रहने से पथरी को बाहर की तरफ सरकने में मदद मिलती है।
यह जल-चिकित्सा छोटे आकार की पथरी के बहुत से मामलों में फलदायक साबित होती है। इसके लिए प्रायः एक साल तक इंतजार किया जा सकता है। इस बीच पथरी बढ़ानेवाली खानपान की चीजों पर भी पाबंदी लगा देनी चाहिए। यह सलाह आपका डॉक्टर आपकी मूत्रजाँच की रिपोर्ट को देखकर दे सकता है। एक बात और, जिस समय पथरी नीचे की ओर सरकती है उस समय दर्द उठना स्वाभाविक है। ऐसे में दर्द और ऐंठन मिटानेवाली दवा का इंजेक्शन लेना प्रायः जरूरी हो जाता है।
पर इन तमाम कोशिशों के बावजूद यदि पथरी अपनी जगह बनी रहे या आकार में बड़ी होती मालूम हो और डॉक्टर ऑपरेशन या लिथोट्रिप्सी की सलाह दे तो उसे टालते रहना ठीक नहीं।
पथरी निकल जाने के बाद भी प्रचुर मात्रा में पानी लेते रहें और खानपान में डॉक्टरी सलाह के मुताबिक परहेज बरतें। इससे दोबारा पथरी होने की आशंका नहीं रहती। अतः आजीवन यह सावधानियाँ बरतते रहना आवश्यक होता है।
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