Last Updated on July 22, 2019 by admin
एक बार पहाड़ी नदी पार करने की कोशिश में एक बूढे संन्यासी का पाँवफिसल गया। वह नदी की तेज धारा में बहने लगे। उनके शिष्य बदहवास से उनके पीछे भागने लगे। कुछ दूर जाकर नदी एक झरने में तब्दील होकर गहरी घाटी में गिरने लगी। शिष्यों को लगा कि अब घाटी से गुरु का शव ही बरामद होगा। लेकिन जब वे नीचे पहुँचे तो धीमी पड़ी जल-धार में से निकलकर संत मुसकराते हुए चले आ रहे थे।
उन्हें देखकर घबराया हुआ एक शिष्य बोला, “यह तो चमत्कार है, आपको कुछ नहीं हुआ? आपने खुद को सकुशल कैसे बचाया?”
संत ने कहा, “खुद को बचाने के लिए क्या करना था, मैं तेज धार को अपने अनुकूल नहीं कर सकता था, इसलिए खुद को ही उसके अनुकूल बना लिया। उसके बहाव में खुद को छोड़ दिया। उसके साथ बहता, उछलता, घूमता, गिरता मैं पानी के साथ गया और पानी के ही साथ वापस भी आ गया।”