संतोष (प्रेरक लघु कहानी) | Prerak Laghu Kahani

Last Updated on July 22, 2019 by admin

गौतमी नाम की एक स्त्री का बेटा मर गया। वह शोक से व्याकुल होकर रोती हुई महात्मा बुद्ध के पास पहुँची और उनके चरणों में गिरकर बोली, “किसी तरह मेरे बेटे को जीवित कर दो। कोई ऐसा मंत्र पढ़ दो कि मेरा लाल जी उठे।”

महात्मा बुद्ध ने उसके साथ सहानुभूति जताते हुए कहा, ”गौतमी, शोक मत करो। मैं तुम्हारे मृत बालक को फिर से जीवित कर दूंगा। लेकिन इसके लिए तुम किसी ऐसे घर से सरसों के कुछ दाने माँग लाओ, जहाँ कभी किसी प्राणी की मृत्यु न हुई हो।”

गौतमी को इससे कुछ शांति मिली, वह दौड़ते हुए गाँव में पहुँची और ऐसा घर ढूंढने लगी, जहाँ किसी की मृत्यु न हुई हो। बहुत हूँढ़ने पर भी उसे कोई ऐसा घर नहीं मिला। अंत में वह निराश होकर लौट आई और बुद्ध से बोली, “प्रभु, ऐसा तो एक भी घर नहीं, जहाँ कोई मरा न हो।”

यह सुनकर बुद्ध बोले, “गौतमी, अब तुम यह मानकर संतोष करो कि केवल तुम्हारे ऊपर ही ऐसी विपत्ति नहीं आई है, संसार में ऐसा ही होता है और ऐसे दुःख को लोग धैर्यपूर्वक सहते हैं।”

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