Last Updated on March 14, 2021 by admin
लीला विलास रस क्या है ? (What is Lilavilas Ras in Hindi)
लीला विलास रस टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग अम्ल पित्त मिटाने, लिवर की जलन, पाचन क्रिया को सही करने तथा पित्त विकार को दूर करने हेतू किया जाता है।
घटक और उनकी मात्रा :
- शुद्ध पारद – 10 ग्राम,
- शुद्ध गंधक – 10 ग्राम,
- अभ्रक भस्म शत पुटी – 10 ग्राम,
- उत्तम ताम्र भस्म – 10 ग्राम,
- लोह भस्म शतपुटी – 10 ग्राम,
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- कजली : जन्तुघ्न (कृमिनाशक), योगवाही, रसायन।
- अभ्रक भस्म : बल्य, वात नाड़ी पोषक, मज्जाधातु पोषक, पित्तशामक ।
- ताम्र भस्म : यकृतोतेजक, याकृतपित्त स्रावक, पित्तशामक, शूलघ्न ।
- लोह भस्म : बल्य, रक्त वर्धक, रसायन।
- आंवला एवं बहेड़ा का स्वरस : पित्त शामक, कफ शामक, रसायन ।
- भृंगराज स्वरस : पाचक, पित्तशामक, केश्य (बाल बढ़ानेवाला), यकृत पोषक, रसायन।
लीला विलास रस बनाने की विधि :
कजली और तीनों भस्मों को पत्थर के खरल में डालकर प्रथम आंवले के स्वरस से एक दिन मर्दन करें, दूसरे दिन बहेड़े के क्वाथ से और तीसरे दिन भृंगराज के स्वरस से मर्दन करके 100 मि.ग्रा. की वटिकाएँ बनवा लें।
लीला विलास रस की खुराक (Dosage of Lilavilas Ras)
मात्रा : एक से दो गोली प्रातः सायं भोजन से पूर्व।
अनुपान : ठण्डा दूध, कद्दू स्वरस, आमले का स्वरस, आमले का मुरब्बा अथवा मिश्री के साथ।
लीला विलास रस के फायदे और उपयोग (Benefits & Uses of Lilavilas Ras in Hindi)
लीला विलास रस के कुछ स्वास्थ्य लाभ –
1). अम्ल पित्त में लीला विलास रस का उपयोग लाभदायक
तीक्ष्ण, उष्ण, अम्ल, कटु, विदाही अन्न के सेवन, चाय, काफी इत्यादि उष्ण पेयों के पीने से भोजन करके तुरन्त बाद मार्ग गमन अथवा अन्य कोई श्रम साध्य कार्य करने से, कुछेक औषधियों के सेवन से, पित्त विदग्ध हो जाता है उसके स्वभाविक अम्ल गुण में आवश्यकता से अधिक वृद्धि हो जाती है। अतः वह भुक्तान्न को अमाशय में ही अम्ल बना देता है, सामान्यतः अमाशय में भोजन मधुर होता है और ग्रहणी द्वार को पार करने के उपरान्त आन्त्र में जाकर अम्ल होता है। अत: रोगी को कण्ठ, आमाशय एव उदर में दाह होता है, अमाशय में वेदना, उत्कलेश, छर्दि, अम्लोद्गार, मुँह एवं दान्तों का अम्ल हो जाना, शिरोवेदना, हृद्दाह, छाती में जलन, इत्यादि लक्षण प्रकट हो जाते हैं। उपरोक्त सभी लक्षण अम्ल पित्त के है।
यह स्थिति यदि अधिक समय तक बनी रहें तो आमाशय या ग्रहणी में व्रणोत्पत्ती हो जाती है। जिससे भयानक वेदना, छर्दि (उल्टी) होती है । ग्रहणी व्रण में भोजन के पाचन काल में वेदना होती है। जिसे परिणाम शल कहते हैं। यदि इस समय भी उचित चिकित्सा नहीं मिले तो यह व्रण विदीर्ण हो जाते हैं। जिससे रक्त की उल्टी अथवा कृष्णमलोत्सर्ग होकर आत्यायिक स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
लीला विलास रस अम्ल पित्त की एक बहुपरीक्षित सफल औषधि है। पित्त में अत्यधिक अम्लता बढ़ जाने पर जब उद्गार आने पर ऐसा लगता है किसी ने शस्त्र से अन्न नलिका विदीर्ण कर दी हो, अथवा लगे जैसे कण्ठ में तेजाव भर दिया हो, इसका सफलता पूर्वक प्रयोग होता है ।
आमलकी स्वरस (आवले का रस ) अथवा कूष्माण्ड स्वरस (कद्दू का रस) से दी गई प्रथम मात्रा ही अपना प्रभाव दिखाती है। उपरोक्त रसों के अभाव में नारियल जल, शीतल दुग्ध, आमले का मुरब्बा लिया जा सकता है। सामान्य अम्ल पित्त में भी इसका प्रयोग लाभ प्रद होता है।
दो-दो वटिकाएं प्रात: सायं भोजन से पूर्व देने से एक से दो सप्ताह में रोग से मुक्ति मिल जाती है। पुराने रोगियों अथवा व्रण युक्त रोगियों में चालीस दिनों तक प्रयोग करवाना चाहिए।
सहायक औषधियों में स्वर्ण सूत शेखर रस, अम्ल पित्तान्तक लोह, धात्री लोह, सप्तामृत लोह, अविपत्तिकर चूर्ण इत्यादि में किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है।
2). छर्दि (उल्टी) में लाभकारी है लीला विलास रस का प्रयोग
छर्दि एक व्यापक लक्षण है और स्वयं एक स्वतंत्र रोग भी. स्वतन्त्र छर्दि और अम्लवित जन्य छर्दि में लीला विलास रस का सफलता पूर्वक प्रयोग होता है। इसे कद्दू स्वरस, आमला स्वरस अथवा नारियल पानी के अनुपान में तत्काल वमन रुक जाता है।
मयूरपुच्छ मसी, छर्दिरिपु, कामदुधारस में से किसी एक की सहायता ली जा सकती है।
3). लिवर के दर्द में लाभकारी लीला विलास रस
परिणामशूल, अन्न द्रवशूल, पित्ताशय शूल एवं यकृत शूल पर लीला विलास रस एक अत्यन्त महत्वपूर्ण औषधि है। उपरोक्त शूलों पर इस महौषधि का शिघ्र प्रभाव परिलक्षित होता है। उपरोक्त अनुपानों के साथ इसका प्रयोग चालीस दिनों तक करवाने से व्रण भर जाते हैं। शूल शमन हो जाता है यकृत में यदि सूजन हो तो समाप्त हो जाती है, यकृत सुचारु रूप से कार्य करने लगता है। यकृत पित्त का उत्पादन निश्कासन उचित रीती से होने लगता है।
4). सर दर्द (शिरःशूल) मिटाता है लीला विलास रस
लीला विलास रस सर दर्द में भी बड़ी सफलता के साथ प्रयोग किया जा सकता है। जबकि सर दर्द का कारण पित्त की वृद्धि अथवा पित्त में अम्लत्व की वृद्धि हो, अन्य शूल जैसे वक्ष शूल, वृक्क शूल, उदर शूल प्रभृत्ति शूलों में लीलाविलास रस का प्रयोग नहीं होता।
सहायक औषधियों में स्वर्ण सूतशेखर रस, कामदुधा रस, प्रवाल पंचामृत, अम्ल पित्तान्तक लोह, अविपत्तिकर चूर्ण, सुधायष्टि (स्वकल्पित) की सहायता अवश्य लेनी चाहिए।
निदान परिवर्जन (रोग उत्पन्न करने वाले और उसे बढ़ावा देने वाले कारकों से बचना) के बिना किसी भी रोग की चिकित्सा में सफलता नहीं मिलती अतः यहाँ भी निदान परिवर्जन अनिवार्य रूप से करवाएँ।
5). पीलिया (पाण्डु) में लीला विलास रस से फायदा
लीला विलास रस पाण्डु रोग की उत्तम औषधि है । यह यकृत के कार्य को सुधार कर तथा नवीन रक्त की उत्पत्ति करके पाण्डु रोग का नाश करता है। विशेष रूप से जब पाण्डु के साथ साथ रोगी अम्लपित्त से भी पीड़ित हो तो, लीला विलास रस एक महत्त्वपूर्ण औषधि है। यकृत पित्त के रेचन से पित्त की विदग्धता को कम करके अम्ल पित्त और पाण्डु दोनों में लाभदायक है।
इसके सेवन से अग्नि की वृद्धि होती है। परन्तु पित्त की विदग्धता (अम्ल) कम होती है। तथा पित्तज लक्षणों यथा दाह, तृष्णा, क्षुधाल्पता, उत्कलेश (अम्लता के कारण कलेजे के पास मालूम होनेवाली जलन) का नाश होता है। इस औषधि का प्रयोग एक मास तक करवाना चाहिए।
सहायक औषधियों में सप्तामृत लोह, योग राज, मण्डूर वज्रवटक प्रभृति औषधियों का प्रयोग करें।
6). खून की कमी (कामला) मिटाए लीला विलास रस का उपयोग
लीला विलास रस अपने पित्तरेचक, रक्त वर्धक, पित्त शामक तथा अग्नि वर्धक गुणों के कारण कामला रोग की चिकित्सा में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके सेवन से स्रोतो रोध दूर होता है, याकृत पित्त का रेचन और आन्त्र गमन सुचारु रूप से होने से रक्त में पित्त की उपस्थिति कम हो जाती है अतः पीत नख, मूत्र, नेत्र, त्वचा, धीरे-धीरे सामान्य होने लगते हैं। नवीन रक्त उत्पन्न होने लगता है, रोगी में बल, उत्साह, हर्ष, एवं रक्त का संचार होने लगता है। रोग तो एक सप्ताह में ही समाप्त हो जाता है परन्तु रोग की पुनरावृत्ति न हो इसलिए एक मास तक इस औषधि का अवश्य प्रयोग करवाना चाहिए।
सहायक औषधियों में आरोग्य वर्धिनी वटी, पुनर्नवादि मंडूर, योगराज, पंचामृत जैसी औषधियों का प्रयोग भी करवाएं।
7). सफेद दाग (श्वित्र) में फायदेमंद लीला विलास रस का औषधीय गुण
लीला विलास रस सफेद दाग में अद्भुत कार्य करता है। इसके सेवन से रक्त में वृद्धि होती है, और मैलिनिन में भी वृद्धि होती है। त्वचा में स्थित सूक्ष्म रक्त वाहिनियों का अवरोध नष्ट होकर भ्राजक पित्त के सम्पूर्ण त्वचा में समान रूप से प्रवाहित होने का मार्ग प्रशस्त होने से श्वेत दाग धीरे-धीरे रक्त वर्ण के और अन्ततः सामान्य हो जाते हैं।
इस औषधि की दो वटिकाएं प्रात: सायं गोमूत्र 50 मि.लि. जल 50 मि.लि. के अनुपान से शीघ्र लाभ होता है । औषधि को पूर्ण पथ्य पालन के साथ छ: मास से एक वर्ष पर्यन्त सेवन करायें । मास में एक बार रोगी को स्नेहित (मालिश) करवाकर विरेचन भी अवश्य करवाएँ।
सहायक औषधियों में आरोग्य वर्धिनी वटी, विडंगाद्य वटी, नीलकण्ठ रस, मण्डूर वज्रवटक, इत्यादि में से किसी एक का प्रयोग भी करवाएं।
8). शीत पित्त में लीला विलास रस का उपयोग लाभदायक
शीत पित्त विशेष रूप से जीर्ण शीतपित्त के रोगियों में लीला विलास रस के प्रयोग से प्रभूत लाभ मिलता है इसका प्रयोग कम-से-कम चालिश दिनों तक अवश्य करवाना चाहिए । इसके प्रयोग से पूर्व रोगी को स्नेहित (मालिश) करवाकर विरेचन अवश्य करवा देना चाहिए।
सहायक औषधियों में विंडगाद्य वटी, आरोग्य वर्धिनी वटी, शिलागंधक वटी, हरिद्रा खण्ड, का प्रयोग भी करवाऐं।
आयुर्वेद ग्रंथ में लीला विलास रस के बारे में उल्लेख (Lilavilas Ras in Ayurveda Book)
रसोवलियॊमरविस्तु लोहं धात्र्यक्षनीर स्त्रिदिनं विमय ।
तदल्प घृष्टं मृदुमार्कवेण सम्मर्दयेदस्य हिरक्ति मात्रम्॥
हन्त्यम्ल पित्तं विविध प्रकारं लीला विलासो रस राज एषः ।
छर्दि सशूलाहृदयस्य दाहं निवारयेदेष न संशयोऽत्र ॥
दुग्धं सकूष्माण्डरस सधात्रीफलं समेतससितं भजेद्वा।
–भैषज्यरत्नावली (अम्लपिताधिकार 132-133)
लीला विलास रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ (Lilavilas Ras Side Effects in Hindi)
- लीला विलास रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
- लीला विलास रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- रसौषधियों और भस्मों के सेवन काल में लिए जाने वाले पूर्वोपाय भी अवश्य लेने चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
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