चर्मरोग नाशक मजीठ के फायदे, उपयोग और नुकसान – Health Benefit of Majith in Hindi

Last Updated on March 25, 2023 by admin

मजीठ के पौधे का सामान्य परिचय (majith in hindi)

“मजीठ” लता जाति की वनस्पति है जो समस्त पर्वतीय प्रदेशों में लगभग आठ हज़ार फीट की ऊंचाई तक पायी जाने वाली तथा हमेशा हरी रहने वाली वनस्पति है। इसकी अनेक शाखा-प्रशाखाएं होती हैं जो दूसरे पेड़ों पर लिपट कर चढ़ जाती है। इसका तना पतला और चतुष्कोणाकार, लालिमा लिये होता है। इसकी डालियां लम्बी लेकिन छोडे बडे आकार की विषम होती हैं। इसके पत्ते हृदयाकार, आगे की ओर तीक्ष्ण तथा 4-4 के जोड़े से लगते हैं जिनमें से 2 पत्ते बड़े और 2 छोटे होते हैं। पत्तों के ऊपर का तल खुरदरा और नीचे का भाग हल्का सा रूएंदार होता है। मजीठ के फूल हल्का पीलापन लिये हुए सफ़ेद रंग के होते हैं और छोटे छोटे तथा गुच्छों में लगे रहते हैं। इसके फल काले बैंगनी रंग के, मटर के दाने के बराबर होते हैं जिनमें दो बीज निकलते हैं। शरद ऋतु अर्थात् सितम्बरअक्टूबर में फूल और फल लगते हैं। इसकी जड़ शुरू में हल्की लाल भूरे रंग की होती है और तोड़ने पर अन्दर से लाल रंग की होती है।

मजीठ भारत, नेपाल, ईरान और अफगान में पाई जाती है। इसमें अफगानी मजीठ को सबसे उत्तम समझा जाता है।सभी प्रकार की भूमि और जलवायु इस फसल के लिए उपयुक्त होती है। अधिक वर्षा और आद्रता इस वनस्पति के लिए अच्छी होती है। मंजीठ की खेती इसकी जड़ों से निकले पौधों या बीजों द्वारा हो सकती है और इसका रोपण जुलाई माह की अच्छी वर्षा के उपरान्त किया जाता है तथा मौसम के अनुसार बार-बार पानी द्वारा सींच कर इसकी खेती की जाती है। इसे सहारा देने के लिए जल्दी बढ़ने वाले अन्य पौधे इसके साथ लगाये जाते हैं या बांस का मंडप बनाया जाता है। रोपण के 1 वर्ष बाद पत्तीयां और फल तोड़ने के बाद पुनः खाद आदि देते हैं तथा पांचवे वर्ष में मई माह में इसकी फैली हुई जड़ों को निकाल कर सुखा लिया जाता है।

अलग-अलग भाषाओं में मजीठ के नाम :

  • संस्कृत – मंजिष्ठा, विकसा, मंजूषा, हेमपुष्पी। 
  • हिन्दी – मजीठ, मंजीठ।
  •  मराठी – मंजिष्ठा। 
  • गुजराती – मजीठ। 
  • बंगला – मंजिष्ठा। 
  • तेलुगु – ताम्रवल्ली । 
  • तामिल – मंजिट्टी, शेवेली । 
  • कन्नड़ – मंजुष्ठा । 
  • मलयालम – मंजेट्टी । 
  • पंजाबी – मजीठ, खुरी । 
  • फ़ारसी – रूनास, रोदक। 
  • इंगलिश -इण्डियन मेडर (Indianmadder) । 
  • लैटिन – रुबिया कॉर्डिफोलिआ (Rubia Cordifolia)

मजीठ के औषधीय गुण (majith ke gun)

  • मजीठ मधुर, कड़वी, कषैली, स्वर तथा वर्ण को उत्तम करने वाली, भारी और गर्म है।
  • यह विष, कफ, शोथ, योनिरोग, आंख और कान के रोगों को नष्ट करने वाली है।
  • यह रक्तातिसार, चर्मरोग, रक्त विकार, विसर्प और प्रमेह को दूर करने वाली उत्तम औषधि है।

रासायनिक संगठन :

  • इसकी जड़ में रालयुक्त सत्व पदार्थ, गोंद, शर्करा, रंजक द्रव्य तथा चूने के योगिक पाये जाते हैं। 
  • रंजक द्रव्यों में पर्युरिन (Purpurin) ग्लूकोसाइड्स मंजिष्टिन वव गेरेनसिन (Manjisthin & Garancin), तथा अलिज़रिन व जेन्थीन (Xanthine) आदि पाये जाते हैं।

मजीठ का उपयोग (majith ke upyog)

मजिष्ठा का औषधीय उपयोग आयुर्वेदिक और युनानी चिकित्सा शास्त्र में विशेष रूप से वर्णित है।

  • आयुर्वेद में इसे मुख्यतः त्वचा सम्बन्धी विकारों हेतु उपयोगी कहा गया है
  •  युनानी चिकित्सा पद्धति में इसे लकवा, चक्कर, पीलिया, रक्ताल्पता तथा मूत्र संस्थान सम्बन्धी विकारों में उपयोगी बताया गया है।
  •  तिब्बत में इसे कैंसर रोधी औषधि बताया गया है।
  • इसका रूक्ष और गुरु गुण तथा तिक्त कषाय मधुर रस इसे कफ और पित्त का शमन करने वाली औषधि बनाता है, शरीर के अनेक संस्थानों पर इसका प्रभाव होने से यह अनेक रोगों में लाभ करती है।
  •  इसका उपयोग चर्मरोगों के अलावा रक्तविकार, कामला, पेशाब की रुकावट, पथरी, ऋतुस्राव के विकार, अनार्तव, शोथ, प्रमेह और रक्तातिसार में किया जाता है।
  •  इसके अलावा गर्भाशय संकोचन, गर्भाशय शोधन, पुराने बुखार, चेहरे पर झांई और त्वचा की मलिनता दूर करने आदि में इसका उपयोग होता है।
  • यह पुराने घाव की सूजन को कम कर घाव को भरने में सहायक होती है।

सेवन की मात्रा और विधि :

इसका उपयोग अल्प मात्रा में करना उचित होता है। चूर्ण की मात्रा 2-3 ग्राम और काढ़े की मात्रा 2 बड़े चम्मच दिन में तीन बार लेना चाहिए। आइए अब कछ विशिष्ट रोगों में इसके उपयोग पर चर्चा करते हैं ।

रोगों का उपचार में मजीठ के फायदे (majith ke fayde)

1. रक्तातिसार :  पतले दस्त के साथ मिले हुए खून आने की स्थिति को रक्तातिसार कहते हैं। ऐसे रोगी को निम्न औषधियां देने से लाभ होता है – बोल पर्पटी 5 ग्राम, कुटज घनवटी 10 ग्राम तथा मंजिष्ठादि चर्ण 20 ग्राम- सबको अच्छे से मिलाकर बराबर मात्रा की 30 पुड़ियां बना लें। एक-एक पुड़िया सुबह-शाम बिल्वावलेह के साथ दें।

2. शोथ(सूजन) :  यदि कफ और पित्त के प्रकोप से शरीर में शोथ (सूजन) उत्पन्न हो रहा हो तो -पुनर्नवा चूर्ण 50 ग्राम, गोखरू चूर्ण 50 ग्राम और मंजिष्ठादि चूर्ण 25 ग्राम- इनको मिलाकर इस मिश्रण की एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पुनर्नवाष्टक क्वाथ या पुनर्नवासव के साथ देने से शोथ में लाभ मिलता है।

3. मासिक धर्म की अनियमितता : लड़कियों में मासिक धर्म होने की शुरुआत के बाद प्रारम्भिक मासिक धर्मों में प्रायः अनियमितता देखी जाती है। ऐसे में मंजिष्ठादि चूर्ण 20 ग्राम व रजोदोषहर वटी की 40 गोलियों को अच्छे से कूट पीस कर मिला लें और इसकी 30 बराबर -बराबर मात्रा बना लें। एक-एक मात्रा सुबह-शाम अशोकारिष्ट के अनुपान के साथ देने से लाभ होता है ।

4. त्वचा रोग : 

  • त्वचा पर लाल या काले दाने, ब्यूची, दाद, खाज या खुजली की समस्याओं में मंजिष्ठ सर्वोत्तम औषधि है। महामंजिष्ठादि काढ़ा 2-2 चम्मच सुबह-शाम आधा कप पानी में मिलाकर दें तथा मंजिष्ठादि चूर्ण 20 ग्राम और निम्बादी चूर्ण 50 ग्राम मिला कर इसकी 1-1 छोटी चम्मच सुबह-शाम इस काढ़े के साथ दें। यह योग व्रण रोपण तथा पुराने घाव की चिकित्सा में भी उपयोगी है।
  • रसांजन, हल्दी, दारु हल्दी, दालचीनी, मंजिष्ठ, नीमपत्र, तेजपान, चव्य, दन्तीमूलसभी के समभाग चूर्ण को मिलाकर गरम पानी में मिलाकर घाव पर लेप करने से घाव जल्दी भरता है।

5. मोच : शरीर में चोट व मोच से आयी सूजन व दर्द की अवस्था में मंजिष्ठ और मुलेठी के समभाग चूर्ण को मिलाकर इसे शत धौतघृत (100 बार धुला हुआ घी) या कांजी मिलाकर लेप करने से बहुत लाभ होता है।

6. दाद :  जब शरीर पर लाल रंग के गोल बड़े चकत्ते हो जाए और उनमे खुजली चले तब इन पर मंजिष्ठ, त्रिफला, लाक्षा, हल्दी और गन्धक- समभाग लेकर सरसों के तेल में मिलाकर लेप करने से तुरन्त लाभ होता है।

7. विसर्प : इस रोग में त्वचा पर तेज़ी से शोथ(सूजन) फैलता है तथा तीव्र जलन व दर्द होता है। महामंजिष्ठादि घन वटी की 2-2 गोली महामंजिष्ठादि क्वाथ के साथ सुबह-शाम देने तथा कमलनाल, लाल चन्दन, खस की जड़ और मंजिष्ठ की जड़ को समभाग मिलाकर पानी में मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।

8. योनिकण्डू : इस व्याधि में महिलाओं को जननांग पर तीव्र खुजली और जलन होती है। ऐसे में महामंजिष्ठादि घन वटी की 2-2 गोली एवं महामंजिष्ठादि काढ़ा देने से लाभ होता है।

9. उपदंश व फिरंग : इनके रोगी को मंजिष्ठादि ताल सिन्दूर 5 ग्राम, महामंजिष्ठादि घन वटी 10 ग्राम, अष्टमूर्तिरसायन 5 ग्राम, सप्तविंशति गुग्गुलु 10 ग्राम- सबको मिलाकर 30 मात्रा बनाकर 1-1 मात्रा सुबह-शाम शहद के साथ देने तथा भोजन के बाद महामंजिष्टादि क्वाथ 10ml देने से लाभ होता है।

10. पायोरिया : लोध्र, खदिर, मंजिष्ठ और मुलेठी को तिल तैल में सिद्ध कर इस तेल का कुल्ला करने से इस रोग में लाभ होता है।

11. लूता विष (मकड़ी रोग) : हल्दी चूर्ण, दारु हल्दी, मजिष्ठ और नागकेशर -समभाग लेकर ठण्डे पानी में मिलाकर इस पर लेप करने से रोगी को लाभ मिलता है।

12. गर्भधारण:

  • मजीठ, मुलहठी, कूठ, त्रिफला, खांड, खरैटी, मेदा, महामेदा दुधी, काकोली, असगंध की जड़, अजमोद, हल्दी, दारूहल्दी, लाल चंदन सभी 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी में उबाल लें। इसके बाद एक रंग की गाय (जिस गाय के बछडे़ न मरते हो) का घी लगभग 2 किलो, दूध 8 किलो, शतावरी रस 8 किलो मिलाकर गर्म कर लें, फिर इसे 20 से 40 ग्राम लेकर गाय के दूध के साथ सेवन करें। इसके सेवन से बांझ स्त्री को भी पुत्र की प्राप्ति होती है।
  • मजीठ, मुलहठी, कूठ, हरड़, बहेड़ा, आमला, खांड, खिरेटी, शतावर, असगंध, असगंध की जड़, हल्दी, दारूहल्दी, प्रियंगु के फूल, कुटकी, कमल, कुमुदनी, अंगूर, काकोली, क्षीर काकोली, दोनों चंदन सभी 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर मिश्रण तैयार कर लें। इसके बाद इसमें 640 ग्राम गाय का घी, और 2.5 लीटर दूध मिलाकर गर्म करें। जब केवल घी मात्र ही शेष बचा रह जाए तो उसे उतारकर छान लें। इसे 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में रोजाना सेवन करने से बांझपन दूर हो जाता है और स्त्रियां गर्भधारण करने के योग्य हो जाती हैं।

13. दस्त:

  • 1 ग्राम से 3 ग्राम मजीठ का पिसा हुआ चूर्ण रोजाना दिन में 3 बार खुराक के रूप में रोगी को पिलाने से काफी पुराने दस्त में आराम मिल जाता है।
  • मजीठ, पीपल, काकड़ासिंगी और नागरमोथा को अच्छी तरह बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, इसका 1-2 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चाटने से अतिसार (दस्त) का आना बंद हो जाता है।

14. हड्डी कमजोर होने पर:

  • 1 से 3 ग्राम मजीठ का पाउडर शहद के साथ सुबह-शाम खाने से हड्डी की मृदुता, हड्डी की कमजोरी आदि दूर हो जाती हैं।
  • मजीठ और मुलहठी को चावलों के पानी के साथ पीसकर लगाने से टूटी हुई हड्डी की सूजन और दर्द में लाभ होता है।
  • मजीठ और महुआ को खटाई के साथ पीसकर लेप करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है।
  • मजीठ, अर्जुन, मुलेठी और सुगन्धबाला का मिश्रित लेप करने से और इन्हीं औषधियों के काढ़े के सेवन से टूटी हड्डी जल्दी जुड़ जाती है। केवल मजीठ के साथ मुलहठी पीसकर लेप किया जाये तो भी दर्द एवं सूजन खत्म होती है।
  • 10-10 ग्राम मजीठ और महुआ को पानी में मिलाकर लेप करने से कमजोर हड्डी ठीक हो जाती है।

15. एडिसन: मजीठ का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से त्वचा पर उभरे दाग-धब्बे खत्म हो जाते हैं।

16. आमाशय का जख्म: 1 ग्राम से 3 ग्राम मजीठ के चूर्ण को खुराक के रूप में रोजाना दिन में 3 बार सेवन करने से आमाशय के जख्म के दर्द में आराम मिलता है।

17. पित्त की पथरी: मजीठ को कपड़े में छानकर 1 ग्राम रोजाना 3 बार खाने से सभी तरह की पथरियां गलकर निकल जाती है। इससे फायदा न होने पर ऑपरेशन करा सकते हैं।

18. विसर्प (छोटी फुंसियों का दल): मजीठ, पद्याख, खस की जड़, लाख, चंदन, मुलहठी और नीलकमल को दूध में पीसकर लेप करने से विसर्प रोग ठीक हो जाता है।

19. नाखून का रोग: 20 से 40 मिलीलीटर मजीठ (मंजिष्ठ) का काढ़ा बनाकर रोजाना 2 से 3 बार लेने से नाखून की खुजली का रोग दूर हो जाता है।

20. दाद: मजीठ को पीसकर शहद के साथ मिलाकर लगाने से सभी तरह के दाद और त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।

21. चेहरे के दाग-धब्बे: मजीठ की जड़ का काढ़ा 4 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम कुछ दिन नियमित रूप से पीने और जड़ को शहद में घिसकर दाग-धब्बों पर लगाते रहने से चेहरे पर निखार आ जाएगा।

22. जले हुए घाव: मजीठ की जड़ तथा चंदन को घी में घिसकर बने लेप को जले हुए अंग पर 2 से 3 बार लगाएं। इससे जलन शान्त होगी और घाव जल्दी भर जाएगा।

23. चूहे के काटने पर: मजीठ की जड़ तथा चंदन को घी में घिसकर बने लेप को चूहे के काटे अंग पर 2 से 3 बार लगाने से जहर का असर कम हो जाता है।

24. पथरी:

  • 2 ग्राम मजीठ की जड़ का चूर्ण 4 चम्मच पानी के साथ दिन में 3 बार कुछ सप्ताह तक सेवन करने से पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।
  • 10-10 ग्राम मजीठ, तिवर्सी के बीज, सफेद जीरा, सौंफ, आंवला, बेर की मींगी, शोधी हुई गंधक तथा मैनसिल को लेकर पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। यह 2 चुटकी चूर्ण रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ खाने से पथरी रोग में आराम मिलता है।

25. दांतों के रोग: इसकी जड़ को पीसकर मंजन की तरह सुबह-शाम प्रयोग करने से दांतों के रोगों में लाभ होता है।

26. सूजन: मजीठ की जड़ और मुलेठी को समान मात्रा में पानी में पीसकर लेप बना लें। इस तैयार हुए लेप को सूजन पर मालिश करने से सभी प्रकार की सूजन और दर्द में लाभ होता है।

27. हड्डी टूटने पर: मजीठ की जड़, महुए की छाल और इमली के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें, इसे गुनगुना गर्मकर टूटी हड्डी के ऊपर लगाएं और बांध लें।

28. त्वचा के रोग: मजीठ की जड़ को शहद में घिसकर चंदन की तरह पेस्ट बना लें, इस बने पेस्ट को सभी प्रकार के त्वचा विकारों पर नियमित रूप से 2 से 3 बार लगाने से आराम मिलता है।

29. सोरायसिस: मजीठ का काढ़ा 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम रोजाना पीते रहने से कुछ हफ्तों में सोरायसिस के रोग में पूरा आराम मिलेगा।

30. मासिक-धर्म की गड़बड़ी: मजीठ की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करने से मासिक-धर्म के सारी परेशानी दूर हो जाती है।

31. गर्भवती स्त्री का अतिसार (दस्त): मजीठ, मुलेठी और लोध्र को बराबर लेकर एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार रोगी को खिलाने से अतिसार (दस्त) और रक्तातिसार (खूनी दस्त) में आराम मिलता है।

मंजीठ से निर्मित आयुर्वेदिक दवा :

मंजीठ का उपयोग प्रमुख घटक द्रव्य के रूप में करते हुए बनाये जाने वाले दो योगों का परिचय प्रस्तुत है पहला है –

1. मंजिष्ठादि चूर्ण : 

घटक द्रव्य – मजीठ, हरड़, गुलाब के फूल और निसोत- सभी 25-25 ग्राम; सनाय 100 ग्राम; मिश्री 400 ग्राम।
विधि- सबको अलग-अलग कूट पीस कर मिला लें।

सेवन विधि – रात को सोते समय ठण्डे जल के साथ 1 चम्मच मात्रा लेनी चाहिए।

लाभ  – यह चूर्ण उदर विकार, रक्त विकार, त्वचा रोग,क़ब्ज़ आदि को दूर करता है। अति खट्टे, नमकीन व चटपटे पदार्थों का सेवन क़तई न करें तथा मधुर पदार्थों का सेवन भी कम करें।

2. महामंजिष्ठाद्यरिष्ट  : 

इस योग का फार्मूला वही है, जो मंजिष्ठादि क्वाथ में दिया गया है सिर्फ बनाने की विधि में थोड़ा सा फ़र्क है। सिद्ध योग संग्रह में इसका जो नुस्खा दिया गया है उसी को चिरस्थायी और गुणवृद्धि युक्त करने के लिए, शार्गंधर संहिता में बताई गई आसव अरिष्ट बनाने की विधि के अनुसार बना कर इसे महामंजिष्ठाद्यरिष्ट नाम दिया है।

दोनों का नुस्खा चूंकि एक समान है इसलिए दोनों योग के गुण, कर्म और प्रभाव एक समान ही हैं। किसी भी एक योग का सेवन करें, दोनों ही योग अति उत्तम हैं।

मंजीठ के नुकसान (majith ke nuksan)

  1. मंजिष्ठ की अल्प मात्रा ही लाभदायक है क्योंकि इसकी अधिक मात्रा मस्तिष्क में विकृति उत्पन्न कर भ्रम पैदा कर सकती है अतः इसका सीमित मात्र में ही उपयोग करना चाहिए।
  2. मंजीठ को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
  3. मंजीठ लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।

(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)

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