Last Updated on November 30, 2019 by admin
मन शांत रखने का प्रभावशाली उपाय – कभी मन को खाली न रखा जाए :
दिमाग को शांत व कंट्रोल में रखने का पहला उपाय है मन को खाली न रखा जाए क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है जैसी कि अंग्रेज़ी में एक कहावत है – Empty mind is devils workshop. इसलिए या तो ‘ध्यानं निर्विषयं मनः‘ के अनुसार ‘ध्यान’ का अभ्यास कर मन को ‘निर्विषय’ यानी विचार रहित करके थोड़ी देर अमनी भावदशा (State of no mind) में रहना चाहिए जिसमें न सुख का अनुभव होता है और न दुःख का, क्योंकि सुख-दुःख का अनुभव मन को ही होता है। अब जब अमनी भाव दशा होने से, मन ही न रहा तो अनुभव कौन करे ? विचार चलने विचार होने का ही नाम मन है. विचार नहीं तो मन नहीं, मन नहीं तो अनुभव नहीं इसलिए अमनी भाव दशा में सुख या दुःख का अनुभव नहीं होता और जब.सुख-दुःख दोनों का अनुभव नहीं होता. तभी आनन्द का अनभव होता है ।
दर असल सुख एक अलग अनुभूति है और आनन्द अलग अनुभूति है हालाकि हम अतिशय सुख को ही आनन्द कहा और माना करते हैं जबकि आनन्द उस भावदशा को कहते हैं या कि कहना चाहिए जिसमें सुख-दुख दोनों ही नहीं होते। सुख-दुःख का सम्बन्ध मन से और सांसारिक जगत से है जबकि आनन्द का सम्बन्ध आत्मा से और आध्यात्मिक जगत से है।
अब या तो मन को निर्विषय यानी विचार रहित करके ‘ध्यान’ (Meditation) की स्थिति में प्रवेश किया जाए तो जितने देर तक इस स्थिति में रहा जाएगा उतनी देर तक मन ही नहीं रहेगा लिहाज़ा मन पर नियन्त्रण करने का सवाल ही पैदा नहीं होगा
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एकाग्रता से करें कार्य -यह उपाय दिमाग को ठंडा और शांत रखने में करेगा मदद :
मन शांत व नियंत्रित करने का दूसरा उपाय है जो भी काम कर रहे हों उसे मन की पूरी एकाग्रता से दत्त चित्त होकर करें तो मन काम में व्यस्त भी रहेगा जिससे इधर-उधर भटकेगा नहीं और काम भी कुशलता के साथ ठीक ढंग से किया जा सकेगा । मन में उच्चाटन (Absence of mind) रहेगा तो काम ठीक ढंग से नहीं किया जा सकेगा। मन पर नियन्त्रण करने का यह उपाय भी श्रेष्ठ है।
मन की शांति के लिए भगवान का नाम जप :
मन को नियंत्रित करने का प्रभावशाली उपाय है जप करना प्रभु के किसी भी नाम का, जो किसी भी भाषा का, किसी भी मान्यता का या किसी भी प्रकार का हो, उस नाम का मन ही मन निरन्तर जप करने से मन व्यस्त हो जाता है और बुरे विचार करने से बच जाता है। ‘तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु‘ के अनुसार मन अच्छे विचारों वाला ही बना रहे, ऐसा प्रयत्न होशपूर्वक करते रहना चाहिए । इससे मन पर नियन्त्रण बना रहेगा।
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बुरे विचारों से बचाव दिमाग को शांत व ठंडा रखेगा :
मन को शांत रखने के लिए बुरे विचारों को मन में आने ही न देना । विवेक से काम लेकर बुरे विचार को तत्काल भगा देना चाहिए, उस पर चिन्तन मनन करके उसे अपनी कम्पनी नहीं देना चाहिए।यहीं रोक लगा दी जाती रहे तो थोड़े समय बाद बुरे विचार आना बन्द हो जाता है और मन पर नियन्त्रण बना रहता है।
उपरी उपायों के बाद अब हम कुछ अन्य उपाय, ‘ध्यान’ से सम्बन्धित, प्रस्तुत कर रहे हैं क्योंकि ध्यान की जो विधि अपने को अनुकूल लगे उसका बार-बार निरन्तर अभ्यास करते रहने से मन पर नियन्त्रण करना सरल हो जाता है।
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मन को कंट्रोल करने में मददगार है – यान्त्रिक मनोवृत्ति का त्याग :
मन पर नियन्त्रण करने में सबसे बड़ी बाधा है हमारी यान्त्रिक मनोवृत्ति। हम यन्त्र की भांति काम करने के आदी हो गये हैं और ज्यादातर काम आटोमेटिकली किया करते हैं। हमारा मन हमारे अवचेतन मन से इतना प्रभावित और संचालित होता है कि सोच विचार करने का हमारा ढंग भी आदतों के अनुसार ही होता है। हमारी पूरी दिनचर्या और आचार-विचार पर हमारे अवचेतन मन की पकड़ इतनी मज़बूत रहती है कि मन उसके खिलाफ कुछ कर ही नहीं पाता। अवचेतन मन पुराने संस्कारों से निर्मित होता है इसलिए जैसे उसके संस्कार होते हैं वैसी ही मनुष्य की मनोवृत्ति हो जाती है और वह उस मनोवृत्ति के अनुसार एक मशीन की तरह काम किया करता है। मशीन जो भी करती है वह एक निश्चित सिस्टम के अनुसार ही करती है और उस सिस्टम के विपरीत कुछ नहीं करती, कर सकती भी नहीं क्योंकि ‘कर्तु अकर्तुं अन्यथाकर्तुम्’ यानी करना, न करना और विपरीत करना, ये तीन लक्षण चैतन्य जीव के हैं जड़ पदार्थ के नहीं।
जड़ पदार्थ में गति नहीं होती बल्कि उसे गति देनी पड़ती है। आप एक पत्थर फेंकें। पत्थर खुद गति नहीं कर सकता, जड़ पदार्थ होने से, पर आप से गति पाकर पत्थर सनसनाता हुआ गति करता है। यह हुआ कर्तुं यानी गति । यह गति स्वयं पत्थर की नहीं होती बल्कि फेंकने वाले से मिली होती है इसीलिए पत्थर इस गति को रोक नहीं सकता क्योंकि जो खुदबखुद गति नहीं कर सकता वह गति को रोक भी नहीं सकता। यह हुआ अकर्तुं यानी गति न करना । एक बार पत्थर फेंक दिया जाए तो उसे अधबीच में रोक कर वापिस नहीं बुलाया जा सकता क्योंकि वापिस लौटना यानी विपरीत गति करना अन्यथा कर्तुं होता है जो कि चैतन्य जीवधारी ही कर सकता है जड़ पदार्थ नहीं कर सकता। मशीन भी अपने सिस्टम के अनुसार ही चल सकती हैं उसके विपरीत नहीं। यदि हम भी यन्त्र की भांति सारे काम काज करते हैं तो हम चैतन्य जीवात्मा नहीं रहे जड़ पदार्थ ही हो गये। ऐसी यान्त्रिक मनोवृत्ति के अनुसार आचरण करने वाले के लिए मन पर नियन्त्रण करना बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति का मन पुराने संस्कारों से इतना प्रभावित और नियन्त्रित रहता है कि उसके विपरीत करने का खयाल भी नहीं करता। ऐसी स्थिति में हमें बेजान और विचार हीन मशीन की तरह यन्त्रवत् नहीं बल्कि होश पूर्वक उचित सोच विचार करके ही काम करना होगा ताकि हम यान्त्रिक बन कर न रह जाएं बल्कि प्राणवान होने के नाते जैसा चाहें वैसा कर सकें और जाहिर है कि यदि हम विवेक से काम लेकर आचरण करेंगे तो वैसा ही चाहेंगे जो शुभ हो, हितकारी हो और कल्याणकारी हो। ऐसा चाहना और ऐसा आचरण करना तभी सम्भव हो सकेगा जब मन पर हमारा नियन्त्रण होगा।
यदि हमारी चाहत अशुभ होगी, अहितकारी यानी हानिकारक और विनाशकारी होगी तो हमारा आचरण भी ऐसा ही होगा क्योंकि आचरण चाहत के अनुसार ही होता है । अब यदि हम आगा-पीछा, ऊंच-नीच और भला-बुरा सोचे-विचारे बिना सिर्फ मन की चाहत को महत्व दे कर गलत और हानिकारक आचरण करते हैं तो हम अपने मित्र नहीं, बल्कि शत्रु ही हुए। गलत और हानिकारक आचरण का परिणाम भी गलत और हानि कारक ही होगा और उस परिणाम को भोगने और विभिन्न प्रकार के कष्टों को भोगने के लिए हम विवश हो जाएंगे। इस तरह हमारा जीवन दुःख
विपत्ति और व्याधि से ग्रस्त एवं त्रस्त हो जाएगा। यह अपने आप से शत्रुता करना ही हुआ क्योंकि शत्रु भी हमारे साथ ऐसा ही करने की कोशिश करता है । इस उपाय पर गहराई से सोच विचार करें, अपने हित-अहित पर विचार करें और आटोमेशन से बचने की पूरी पूरी कोशिश करें और निरन्तर कोशिश करते रहें।
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सजगता के अभ्यास से मन को शांत और नियंत्रित करें :
मन की वृत्ति पर नियन्त्रण रखने का एक उपाय है, सजग रहने का अभ्यास करना। यह उपाय इतना सरल है कि एक बच्चा भी इसका उपयोग कर सकता है। यह अभ्यास दो तरह से किया जा सकता है।
होश पूर्वक आचरण करें –
सजगता के पालन का पहला तरीका है होश पूर्वक आचरण करने का। जो कुछ भी करें वह सजगता से करें, जानते समझते हुए करें, ध्यान पूर्वक करें और अहसास करते हए करें। मिसाल के तौर पर स्नान करने के मामले में, जब स्नान करें तब शरीर पर गिरने वाले जल का जो स्पर्श होता है, जो शीतलता प्राप्त होती है उसका अनुभव सजगता के साथ, अपना ध्यान केन्द्रित रख कर करें और इस अनुभूति का आनन्द लें। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जल्दी जल्दी पानी डाला और कौआ स्नान कर लिया। भोजन करें तो एक कौर को 32 बार चबाएं और आहार के स्वाद और इसके रस का सजगतापूर्वक अनुभव करें। इस तरह प्रत्येक कार्य सजग रह कर करें, यहां तक कि विचार भी करें तो अनजाने ही विचार न करते रहें कि विचारधारा की लहरों में बिना जाने समझे बहे चले जाएं। मन में जो विचार आये उसे भी साक्षी भाव से देखें, सजग रह कर विचार करें। यह तरीका है सजगता का, सजग सहकर आचार-विचार करने का, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
श्वास के आवागमन के प्रति सजग रहना –
दूसरा तरीका है श्वास के आवागमन के प्रति सजग रहने का। श्वास पेट से लें, सीने से नहीं और प्रति पल श्वास के अन्दर आने और बाहर जाने का अनुभव करते रहें। श्वास अन्दर आये तब अनुभव करें कि प्राणवायु के रूप में जीवनीशक्ति (Vital force) अन्दर आ रही है और जब श्वास बाहर जाए तब ऐसा अनुभव करें कि अन्दर की मलिन एवं दूषित वायु (Carbon dioxide) शरीर से बाहर जा रही है। इसका अनुभव जितने अधिक से अधिक समय तक कर सकें उतना करें। रात को सोते हुए हम ज्यादातर पेट से ही सांस लेते हैं, सीने से नहीं, इसलिए पेट से सांस लेना, स्वाभाविक ढंग सिद्ध होता है और इसीलिए जाग्रत अवस्था में भी सांस पेट से ही लेने का अभ्यास करना चाहिए। इससे धीरे धीरे ऐसा अनुभव होने लगेगा कि मन शान्त हो रहा है, नियन्त्रित हो रहा है। यह जरूरी नहीं कि हम काम से ध्यान हटा कर सांस के आने जाने पर ध्यान लगाए रखें, हम दत्तचित्त होकर काम करते हुए भी सांस के आने जाने का खयाल रख सकते हैं । सतत अभ्यास करने से थोड़े समय में यह कुशलता प्राप्त हो जाती है कि आप एकाग्रता से काम भी करते रहें और सांस के आने जाने को भी ध्यान में रख सकें। इस तरीके से हम हमारे मन को, पेट में सांस आने और जाने की प्रक्रिया का अनुभव करने का काम सौंप कर उसे अन्य विचारों में उलझने से बचा सकते हैं।
अच्छा अभ्यास हो जाने पर हमारा मन एक साथ, एक से अधिक आयामों पर ध्यान दे सकेगा।
मन को कंट्रोल करे ‘अनापान सति योग’ के अभ्यास से :
मन पर नियन्त्रण करने का एक उपाय ‘अनापान सति योग’ का अभ्यास करना भी है। बौद्ध दर्शन में इसका बहुत महत्व है। यह उपाय, जब भी अवकाश मिले तब, किया जा सकता है, विशेष कर रात को सोते समय इसका अभ्यास नींद न आने तक किया जा सकता है। यह उपाय भी सजगता से ही सम्बन्धित है। आपने शायद कभी खयाल किया हो कि सांस का भीतर जाना हमें ऊर्जा, जीवनी शक्ति और जीवन प्रदान करता है अतः यह जन्म और जीवन का प्रतीक है। इसी तरह बाहर जाती सांस मृत्यु का प्रतीक है क्योंकि बाहर गई सांस जब लौटती नहीं तभी मृत्यु घटित होती है। अब खयाल में लेने वाली बात यह है कि सांस भीतर आती है और जब वापिस बाहर की तरफ निकलती है तब इसके बीच एक क्षण के लिए या क्षण के अंश मात्र के लिए ठहरती है। ऐसे ही बाहर निकलने वाली सांस एक क्षण या क्षण के अंश के लिए ठहर जाती है फिर अन्दर आती है। यह जो ठहराव होता है, दो सांसों के बीच एक अत्यन्त अल्प अन्तराल होता है इस पर हम कभी ध्यान नहीं देते । सोने से पहले, सांस के अन्दर आते समय हमें ऐसा अनुभव करना चाहिए कि सांस के साथ हमारी पूरी चेतना, पूरी प्राण शक्ति अन्दर जा रही है यानी हम स्वयं अन्दर जा रहे हैं और सांस के बाहर आते समय हम बाहर आ रहे हैं। इस बिन्द पर भी ध्यान दें जो सांस के बाहर जाने और आने तथा भीतर आने और जाने के बीच एक क्षण या क्षणांश के लिए होता है।
इस उपाय से जहां मन पर नियन्त्रण होता है वहीं अनिद्रा रोग भी दूर होता है । नियमित रूप से, प्रतिदिन सोते समय, मन को एकाग्र कर, अपनी पूरी चेतना और सांस को सजगतापूर्वक एकाकार करके, सांस के आने जाने पर ही ध्यान बनाए रखें, कोई भी विचार आये भी, तो उसे कम्पनी न दे कर तत्काल भगा दें तो हम एकाग्रता और ध्यान करने की क्षमता प्राप्त कर सकेंगे, सोते समय विचारों के जाल में फंसने और चिन्ता-तनाव में उलझने से बच सकेंगे और थोड़े ही समय में, बिना नींद की गोली खाए, गहरी नींद में प्रवेश कर जाएंगे।
मन पर नियन्त्रण करने में सफल होने पर कई लाभ होते हैं, कई हानियों से बचाव होता है, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है और कई व्याधियों से बचाव होता है तथा जीवन में सुख, सम्पत्ति और सम्पन्नता का आविर्भाव होता है और दुःख, विपत्ति एवं विपन्नता से बचाव होता है।
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