विज्ञान ने भी माना अदभुत है ध्यान की महिमा | Dhayan ke fayde

Last Updated on November 6, 2021 by admin

विज्ञान को अब समझ में आयी ध्यान की महिमा

  ध्यान सर्वोच्च मेधा, प्रज्ञा, दिव्यता तथा प्रतिभा रूपी अमूल्य सम्पत्ति को प्रकट करता है । मानसिक उत्तेजना, उद्वेग और तनाव की बडे- में-बडी दवा ध्यान है ।

जो लोग नियमित रूप से ध्यान करते हैं, उन्हें दवाइयों पर अधिक धन खर्च नहीं करना पडता । भगवद ध्यान से मन-मस्तिष्क में नवस्फूर्ति, नयी अनुभूतियाँ, नयी भावनाएँ, सही चिंतन-प्रणाली, नयी कार्यप्रणाली का संचार होता है ।

गुरु-निर्दिष्ट ध्यान से ‘सब ईश्वर ही है” ऐसी परम दृष्टि की भी प्राप्ति होती है । ध्यान की साधना सूक्ष्म दृष्टिसम्पन्न, परम ज्ञानी भारत के ऋषि-मुनियों का अनुभूत प्रसाद है । आज आधुनिक वैज्ञानिक संत-महापुरुषों की इस देन एवं इसमें छुपे रहस्यों के कुछ अंशों को जानकर चकित हो रहे हैं ।

वैज्ञानिकों के अनुसार ध्यान के समय आने-जानेवाले श्वास पर ध्यान देना हमें न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक विकारों से भी दूर रखता है । इससे तनाव व बेचैनी दूर होते हैं और रक्तचाप नियंत्रित होता है । पूज्य बापूजी द्वारा बतायी गयी श्वासो -श्वास की गिनती की साधना और ॐकार का प्लुत उच्चारण ऐसे अनेक असाधारण लाभ प्रदान करते हैं, साथ ही ईश्वरीय शांति एवं आनंद की अनुभूति कराते हैं,जो वैज्ञानिकों को भी पता नहीं है ।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक अध्ययन में पाया गया कि ध्यान के दौरान जब हम अपने हर एक श्वास पर ध्यान लगाते हैं तो इसके साथ ही हमारे मस्तिष्क के कॉर्टेक्स नामक हिस्से की मोटाई बढने लगती है, जिससे सम्पूर्ण मस्तिष्क की तार्किक क्षमता में बढोतरी होती है । अच्छी नींद के बाद सुबह की ताजी हवा में गहरे श्वास लेने का अभ्यास दिमागी क्षमता को बढाने का सबसे बिढया तरीका है ।

शास्त्रों द्वारा बतायी गयी दिनचर्या में प्रातः ३ से ५ का समय इस हेतु सर्वोत्तम बताया गया है । कई शोधों से पता चला है कि जो लोग नियमित तौर पर ध्यान करते हैं, उनमें ध्यान न करनेवालों की अपेक्षा आत्मविश्वास का स्तर ज्यादा होता है । साथ ही उनमें ऊर्जा और संकल्पबल अधिक सक्रिय रहता है । येल विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता का कहना है कि ‘ध्यान करनेवाले छात्रों का आई.क्यू लेवल (बौद्धिक क्षमता) औरों से अधिक देखा गया है ।

चार अवस्थाएँ

ध्यान से प्राप्त शांति तथा आध्यात्मिक बल की सहायता से जीवन की जटिल-से-जटिल समस्याओं को भी बडी सरलता से सुलझाया जा सकता है और परमात्मा का साक्षात्कार भी किया जा सकता है । चार अवस्थाएँ होती हैं : घन सुषुप्ति (पत्थर आदि), क्षीण सुषुप्ति (पेड-पौधे आदि), स्वप्नावस्था (मनुष्य, देव, गंधर्व आदि), जाग्रत अवस्था (जिसने अपने शुद्ध, बुद्ध, चैतन्य स्वभाव को जान लिया है) ।

संत तुलसीदासजी ने कहा : मोह निसाँ सबु सोवनिहारा । देखिअ सपन अनेक प्रकारा ।। (श्री रामचरित. अयो.कां. : ९२.१) ‘मैं सुखी हूँ, दुःखी हूँ” – यह सब सपना है । ‘मैं” का वास्तविक स्वरूप जाना तब जाग्रत । इसलिए श्रुति भगवती कहती है : उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।… (कठोपनिषद् : १.३.१४)
महापुरुष के पास जाओ और तत्त्वज्ञान के उपदेश से अपने में जाग जाओ ।

ध्यान माने क्या ? : dhyan kya hota hai

‘‘ध्यान माने क्या ?” हमारा मन नेत्रों के द्वारा जगत में जाता है, सबको निहारता है तब जाग्रतावस्था होती है, ‘हिता” नाम की नाडी में प्रवेश करता है तब स्वप्नावस्था होती है और जब हृदय में विश्रांति करता है तब सुषुप्तावस्था होती है । ध्यानावस्था न जाग्रतावस्था है, न स्वप्नावस्था है और न सुषुप्तावस्था है वरन् ध्यान चित्त की सूक्ष्म वृत्ति का नाम है ।

आधा घंटा परमात्मा के ध्यान में डूबने की कला सीख लो तो जो शांति, आत्मिक बल और आत्मिक धैर्य आयेगा, उससे एक सप्ताह तक संसारी समस्याओं से जूझने की ताकत आ जायेगी । ध्यान में लग जाओ तो अद्भुत शक्तियों का प्राकट्य होने लगेगा ।

ध्यान किसका करें और कैसे करें ? dhayan ki vidhi

प्राचीनकाल से आज तक असंख्य लोगों ने परमात्म-ध्यान का आश्रय लेकर जीवन को सुखी, स्वस्थ व समृद्ध तो बनाया ही, साथ ही परमात्मप्राप्ति तक की यात्रा करने में भी सहायता प्राप्त की । पूज्य बापूजी जैसे ईश्वर-अनुभवी, करुणासागर, निःस्वार्थ महापुरुष ही ईश्वर का पता सहज में हमें बता सकते हैं, हर किसीके बस की यह बात नहीं ।

ईश्वर का ध्यान हर समय कैसे बना रहे ?

‘‘भ… ग… वा… न… जो भरण-पोषण करते हैं, गमनागमन (गमनआगम न) की सत्ता देते हैं, वाणी का उद्गम-स्थान हैं, सब मिटने के बाद भी जो नहीं मिटते, वे भगवान मेरे आत्मदेव हैं । वे ही गोविंद हैं, वे ही गोपाल हैं, वे ही राधारमण हैं, वे ही सारे जगत के मूल सूत्रधार हैं – ऐसा सतत दृढ चिंतन करने से एवं उपनिषद् और वेदांत का ज्ञान समझ के आँखें बंद करने से शांति-आनंद, ध्यान में भी परमात्म- रस और हल्ले-गुल्ले में भी परमात्म-रस ! ‘ट्यूबलाइट, बल्ब, पंखा, फ्रिज, गीजर – ये भिन्न-भिन्न हैं लेकिन सबमें सत्ता विद्युत की है, ऐसे ही सब भिन्न-भिन्न दिखते हुए भी एक अभिन्न तत्त्व से ही सब कुछ हो रहा है । – ऐसा चिंतन-सुमिरन और प्रीतिपूर्वक ॐकार का गुंजन करें, एकटक गुरुजी को, ॐकार को देखें ।

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