वेदों में नारी की महिमा और स्थान | Vedon me Nari ki Mahima

Last Updated on July 22, 2019 by admin

यदि हम स्त्रियों को सम्मान नहीं देंगे, तो नियति भी हमारा सम्मान नहीं करेगी।
हिन्दू धर्म का मूलाधार वेद हैं और वेद नारी को सर्वोच्च सम्मान प्रदान करते हैं। विश्व का अन्य कोई भी सम्प्रदाय, कोई भी अन्य दर्शन और आजकल के आधुनिक स्त्रीवादी भी इस उच्चता तक पहुँच नहीं पाए हैं।
तथापि, जिन्होनें वेदों के दर्शन भी नहीं किए, ऐसे कुछ रीढ़ की हड्डी विहीन बुद्धिवादियों-साम्यवादियों ने इस देश की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट- भ्रष्ट करने का जो अभियान चला रखा है, उसके तहत वेदों में नारी की अवमानना का ढोल पीटते रहते हैं। उनके इन निराधार आरोपों का उत्तर देने के लिए, आइए वेदों में नारी के स्वरुप की झलक देखें –

हिन्दू धर्म में नारी की महिमा

अथर्ववेद के मन्त्र
अथर्ववेद ११॥५॥१८
ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है। यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है।
कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें।

अथर्ववेद १४।१।६
माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल का उपहार दें। वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें।
जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हों तब सुयोग्य पति से विवाह करें।

अथर्ववेद १४।१।२०
हे पत्नी! हमें ज्ञान का उपदेश कर। वधू अपनी विद्वत्ता और शुभ गुणों से पति के घर में सब को प्रसन्न कर दे।

अथर्ववेद ७॥४६॥३
पति को संपत्ति कमाने के तरीके बता। संतानों को पालने वाली, निश्चित ज्ञान वाली, सस्रों स्तुति वाली और चारों ओर प्रभाव डालने वाली स्त्री, तुम ऐश्वर्य पाती हो। हे सुयोग्य पति की पत्नी, अपने पति को संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ।

अथर्ववेद ७॥४७॥१ ।
हे स्त्री! तुम सभी कर्मों को जानती हो। हे स्त्री! तुम हमें ऐश्वर्य और समृद्धि दो।

अथर्ववेद ७॥४७॥२ ।
तुम सब कुछ जानने वाली हमें धन-धान्य से समर्थ कर दो। हे स्त्री! तुम हमारे धन और समृद्धि को बढ़ाओ।

अथर्ववेद ७॥४८॥२
तुम हमें बुद्धि से धन दो।विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और घर में सुख़ लाती है।

अथर्ववेद १४।१।६४
हे स्त्री तुम हमारे घर की प्रत्येक दिशा में ब्रह्म अर्थात् वैदिक ज्ञान का प्रयोग करो।
हे वधू! विद्वानों के घर में पहुंच कर कल्याणकारिणी और सुखदायिनी होकर तुम विराजमान हो।

अथर्ववेद २॥३६॥५ ॥
हे वधू! तुम ऐश्वर्य की नौका पर चढ़ो और अपने पति को जो कि तुमने स्वयं पसंद किया है, संसार- सागर के पार पहुंचा दो।
हे वधू! ऐश्वर्य की अटूट नाव पर चढ़ और अपने पति को सफ़लता के तट पर ले चल।

अथर्ववेद १।१४।३
हे वर! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है।
हे वर! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षक है। यह बहुत काल तक तुम्हारे घर में निवास करे और बुद्धिमत्ता के बीज बोये।

अथर्ववेद २॥३६॥३
यह वधू पति के घर जा कर रानी बने और वहां प्रकाशित हो।

अथर्ववेद ११।१।१७
ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय(यज्ञ समान पूजनीय) हैं, ये प्रजा, पशु और अन्न देती हैं।
यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय, सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली और विद्वत्तापूर्ण हैं। यह समाज को प्रजा, पशु और सुख़ पहुँचाती हैं।

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