Last Updated on April 25, 2021 by admin
आँख हमारे शरीर का महत्त्वपूर्ण अवयव है। यह नाजुक भी बहुत है। पर इसका गुण और चमत्कार इतना है कि दुनिया के बड़े-से-बड़े कैमरे से भी इसकी मिसाल नहीं दी जा सकती। यह एक अद्भुत चीज, रोशनी, को जन्म देती है। इस छोटी-सी आँख की बनावट की ओर ध्यान दें।
कोर्निया (Cornea) –
कोर्निया आँख के बिलकुल सामने गोल, यानी जिसके आर-पार बिलकुल आसानी से देखा जा सकता है। यह पुरानी पाई के (एक पैसे की 3 पाई होती थी। लगभग उस पाई के बराबर) आकार में गोल होती है।
पुतली (Pupil) –
कोर्निया के पीछे एक गोल सूराख दिखाई देता है। इसे “pupi” या “पुतली” कहते हैं। यह ठीक बीच में और बिलकुल गोल आकार की होती है।
इस सूराख के चारों ओर आइरिस-एक तरह का परदा होता है। तेज रोशनी में पुतली छोटी पड़ जाती है और अँधेरे में अधिक रोशनी जाने के लिए फैल जाती है।
लेंस (Lens) –
पुतली के पीछे लेंस होता है। यह बिलकुल पारदर्शक यानी Lens कोर्निया की तरह होता है; यानी इसके आर-पार देखा जा सकता है। इसके चारों ओर सिलियरी मसल्स होते हैं, जिनके कारण लेंस मोटा व पतला होता रहता है। यह थोड़ा-सा अंडे के आकार का, यानी Oval और पतली Fluid का होता है, जो एक झिल्ली के अंदर रहती है। इसे “लेंस कैप्सूल” कहते हैं। यह लेंस के आकार को बनाए रखता है। जब नजदीक देखते हैं तो लेंस मोटा हो जाता है, जब दूर देखते हैं तो पतला।
पुराने जमाने में, जब लिखने-पढ़ने इत्यादि का काम कम होता था तो अधिकतर लोगों का लेंस चपटा रहता था और इसके चारों ओर मांसपेशियाँ आराम करने की स्थिति में रहती थीं, पर अब यह अधिकतर थकी रहती हैं, क्योंकि बाहर तो दिन में थका होना स्वाभाविक ही है, पर घर पर भी शाम से रात्रि तक टेलीविजन की प्रभुता के कारण ये मांसपेशियाँ दिन से भी अधिक थकी रहती हैं। यदि इन मांसपेशियों पर हर समय इतना अधिक जोर पड़ेगा तो सिर में दर्द होना, ग्लोकोमा और नजर का कमजोर होना इत्यादि छोटी उम्र में ही शुरू हो जाता है।
एक्युअस हुमर (Aquous Humor) –
लेंस के आगे एक छोटा-सा हिस्सा (Anterior Chamber) होता है। यह लेंस के आगे और कोर्निया के पीछे होता है। इसमें तरल पदार्थ होता है, जिससे लेंस को खाना पहुँचता है। यह भी बिलकुल शीशे की तरह पारदर्शक होती है। इसका नाम एक्युअस हुमर (Aquous Humor) है। यह बिलकुल पानी जैसा पतला होता है।
लेंस के पीछे अंडे की सफेदी जैसी गाढ़ी वस्तु होती है, जिसे (Vitreous) विटरिअस कहते हैं। यह भी बिलकुल पारदर्शक होती है।
हम कैसे देखतें है ? :
हम जो कुछ देखते हैं वह नीचे लिखे मीडिया (Media) से होकर इनकी Image व किरणें गुजरती हैं।
- कोर्निया (Cornea)।
- एक्युअस हुमर (Aquous Humor)।
- लेंस (Lens)।
- विटरिअस (Vitreous)।
जब लेंस किन्हीं कारणों से, जैसे चोट लगने से या लगभग पचास वर्ष से ऊपर की आयु का होने से, धुंधला होने लगता है तो उसे केटरेक्ट का रोग कहते हैं। इससे उस आदमी को ठीक से दिखाई नहीं देता, देखने में बाधा पड़ने लगती है। फिर धीरे-धीरे जिस आँख में यह रोग होता है उसकी रोशनी बिलकुल नहीं के बराबर हो जाती है। इसका इलाज है। यदि इसकी शुरुआत हो या पचास वर्ष की आयु से ही होमियो की (Cineria Maritima) दिन में दो बार डालना शुरू कर दिया जावे तो केटरेक्ट का बनना रुक सकता है।
विटरिअस के पीछे रंगीन तह होती है। इसमें नर्वस टिस्सू भी मिला होता है, इसको रेटिना कहते हैं। यहाँ पर जो नर्वस टिस्सू होता है उसे राड्स (Rods) और कोंस (Cones) कहते हैं। इनके द्वारा पढ़ना और रंग इत्यादि का भेदभाव होता है। इस सतह पर ज्योति की लहरें नर्वस (Images Nervous Tissue) में बदल जाती हैं और मस्तिष्क में पीछे की ओर जो सेंटर होता है (Optical Center) वहाँ यह ऑप्टिक नर्व के द्वारा बिजली व रसायन की तरंग (Electro Chemical) बनकर पहुँचती है, और तब मनुष्य को दिखाई देता है।
यदि हमारी बाहरी सतह; जैसे कोर्निया लेंस (Cornea Lens) इत्यादि बिलकुल ठीक हों और आपटिक नर्व या मस्तिष्क में चोट लग जाए तो रोगी अंधा हो सकता है। यदि आपटिक नर्व अपना काम करना बिलकुल बंद कर दें, इसका इलाज भी नहीं के बराबर है; पर कोर्निया लेंस की खराबी आसानी से ठीक हो सकती है। कोर्निया खराब हो जाने से अंधे रोगी अच्छी कोर्निया चिपका देने से देख सकते हैं। केटरेक्ट (Cataract) का इलाज आसानी से हो जाता है।
दृष्टिहीनता या अंधापन (Blindness) के कारण :
भारत में अंधे होने का सबसे बड़ा कारण आँख के रोहे की बीमारी है, जिसे आँखें दुखना कहते हैं। रेटिना का रोग भी बहुत गंभीर होता है।
यह एक प्रकार की झिल्ली होती है जो कहीं पर से अलग हो जाती है; जैसे दीवार पर लगा हुआ कागज छूट जाता है। इसको डीटेचमेंट ऑफ रेटिना (Detachment of Retina) कहते हैं। इस बीमारी में केवल चमकीली चीजें दिखाई पड़ती हैं; फिर धुंधला दिखाई देता है और धीरे-धीरे रोशनी जाती रहती है। शल्य चिकित्सा द्वारा यह रोग काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।
Trachoma या रोहों से निम्नलिखित खराबी पैदा होती है –
- कोर्नियल अल्सर (Corneal Ulcer)।
- आइराइटिस (Iritis)।
- इरिडियो साइक्लाइटिस (Iridio Cyclitis)।
- थाइसिस ब्लवाई या अंधा हो जाना (Pthisis Bulbi)।
कोर्नियल अल्सर से आँख की सबसे बाहर की सतह पर जख्म हो जाता है। जब यह घाव अच्छा होता है तो कोर्निया के आर-पार ज्योति जाने की शक्ति जाती रहती है; क्योंकि इसकी सतह बजाय पारदर्शक के धुंधली हो जाती है। सतह को कम हानि पहुँचने पर इसकी सतह ऊँची-नीची होने के कारण एस्टिग्मेटिज्म (Astigmatism) का रोग हो जाता है, जिसका उपाय चश्मा लगाना है। पर यदि घाव गहरा हो जाता है तो अच्छा होने पर इस आँख से कुछ दिखाई नहीं देता है।
गत तीस-पैंतीस वर्षों के अंदर यह बीमारी सल्फा गोली और अन्य एंटीबायोटिक्स के कारण अब नहीं के बराबर रह गई है।
( और पढ़े – आंखों की देखभाल और सुरक्षा के घरेलू उपाय और टिप्स )
आँखों को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने के उपाय :
1). आँख को दिन में तीन या चार बार ठंडे पानी से, यानी ताजा पानी से (गरम पानी से कभी नहीं) धोना चाहिए। प्रातः जब धोएँ तो जरा-सा नमक के पानी से धोना अति लाभदायक है। आँख पर खूब छप्पा मारकर या ऐसे धोएँ, जिससे पानी आँख के संपर्क में आ जाए। आई ग्लास से धोना भी लाभदायक है।
2). बच्चों की आँख प्रातः अच्छी तरह धोना चाहिए। कीचड़ या आँख का मैल अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। प्रायः बच्चों में देखने में आता है कि इस क्रिया का ठीक से पालन न करने से कीचड़ आँख में जमा रहते हैं और सूख जाते हैं। फिर जब सूखे हुए कीचड़ को निकालने की कोशिश की जाती है तो पलक के बालों से खून निकलने लगता है और अंत में बाल गिरकर निकलना बंद हो जाते हैं। इससे आँख में बहुत भीषण रोग हो सकते हैं। यह पलकों का रोग ‘ब्लेफ्राइटिस’ कहलाता है।
3). सोकर उठने पर हर व्यक्ति की आँख में थोड़ा या अधिक कीचड़ होता है। कुछ लोगों की आँखों में दिन में काम करने से कीचड़ हो जाता है। यदि आँखें दिन में तीन या चार बार धो ली जाएँ तो यह मैल दूर हो जाता है। इससे आँखें स्वच्छ एवं स्वस्थ रहेंगी।
4). बाहर से आने पर आँखों को अवश्य धोना चाहिए, ताकि गर्द-गुबार का आँख पर असर न हो। यदि यह काम नियमपूर्वक किया जाए तो रोहे जैसे दूषित रोग, जिसके काफी भयंकर परिणाम होते हैं, बचा जा सकता है।
5). कभी भी कम रोशनी में नहीं पढ़ना चाहिए। ऐसा करते रहने से आँख की रोशनी कम होती है। अधिक तेज रोशनी, अधिक सिनेमा व टेलीविजन आदि देखना भी आँख के लिए हानिकारक है।
6). गरमी के मौसम में बहुत तेज धूप होती है। यह तेज धूप आँखों के लिए हानिकारक है। इससे बचाव के लिए अच्छा रंगीन चश्मा लगाकर ही धूप में निकलना चाहिए। कुछ लोग फैशन में शाम के समय भी ऐसे चश्मा लगाए रहते हैं। शाम के समय रंगीन चश्मा लगाकर देखने से आँखों पर जोर पड़ता है, जिससे आँखों की रोशनी पर प्रभाव पड़ता है और धीरे-धीरे रोशनी में कमी होती जाती है।
7). सुरमा लगाना भी हानिकारक है, क्योंकि प्रायः हर सुरमे में जस्त होता है। इसको सालों तक प्रयोग में लाने से जस्त से जहरीलापन हो सकता है।
8). कोई भी दवा, वह चाहे आँख में डालने की हो या लगाने की, जो लोग बसों में, सड़क के किनारे, रेल इत्यादि में बेचते हैं, उनसे दाम देकर या मुफ्त भी हरगिज नहीं लेना चाहिए। इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं। आँख का इलाज हमेशा आँखों के विशेषज्ञ डॉक्टरों से ही कराना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
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