Last Updated on July 22, 2019 by admin
मांसाहार और शाकाहार के फायदे और नुकसान
हमेशा की तरह, इस बार भी सभी लोग ठाकुर अभ्युदय सिंह हाड़ा की हवेली में, ठीक समय पर उपस्थित हो गये थे। पं. चन्द्रदेव मंच पर बैठ गये तो ठाकुर साहब ने खड़े हो कर कहा- मैं सभी उपस्थित बन्धुओं की ओर से पण्डितजी से अनुरोध करता हूं कि वे अपना प्रवचन वहीं से शुरू करें जहां से पिछली बैठक में रोक दिया था।
पं. चन्द्रदेव बोले- पिछली बैठक में आयुर्वेद के उस पहलु पर चर्चा की गई थी जिसमें मांस के प्रयोग के बारे में विवरण दिया गया है। चर्चा की समाप्ति तक आप सबकी शंकाओं का युक्तियुक्त समाधान भी कर दिया गया था और एक तरह से उस बैठक की चर्चा का उचित समापन भी हो ही गया था इसलिए आज की बैठक में मांसाहार सम्बन्धी किसी नये मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। आप में से कोई बन्धु कोई मुद्दा पेश करना चाहें तो स्वागत है।
ठाकुर अभ्युदय सिंह बोले – पण्डितजी, मेरे विचार से अभी तक की चर्चा में शास्त्रीय और प्राचीन सभ्यता के आधार पर ही ज्यादा तर बातचीत हुई है। मेरा निवेदन है कि अब आधुनिक विज्ञान और मौजूदा माहोल के अनुसार मांस खाना उचित है या नहीं इस मुद्दे पर प्रकाश डालें हुकम।
तभी बाबू निताई बोस बोले- पण्डित जी, आमार बोंगला देश में, हाम बोंगाली मानुष, मछली खोता है और मछली तो जल तोरई है। इसे खोने से पाप नहीं होता। हाम बोकरा नही खोता, जल तोरई खोता है।
पं. चन्द्रदेव- बाबू मोशाय, मछली कोई वनस्पति नहीं, न शाक सब्ज़ी है जो उसे आप जल तोरई कह रहे हैं। उसके शरीर में मांस होता है, फल का गूदा नहीं। उस में भी जीव होता है तभी तो जल से बाहर निकालने पर वह तड़पती है, छटपटाती है, जबकि आप तोरई, लौकी या किसी भी फल को बेल या वृक्ष से अलग करें तो तोरई या फल न तो तड़पता है और न छटपटाता है। मछली का मांस उसकी हत्या किये बिना मिल नहीं सकता इसलिए मछली खाना उचित नहीं।
एक आगन्तुक- अच्छा पण्डितजी साहब, अण्डा खाने में तो हर्ज नहीं होना चाहिए क्योंकि आजकल ऐसे अण्डे भी मिलते हैं जो मुर्गा-मुर्गी के संयोग के बिना ही पैदा किये जाते हैं और उनमें जीव नहीं होता। जब जीव नहीं होता तो जीव हत्या भी नहीं मानी जाएगी। अण्डा पौष्टिक तत्वों वाला होता है और बहुत सस्ता भी फिर इसे खाने में क्या एतराज़ हो सकता है ?
पं. चन्द्रदेव- आपकी बात का जवाब ठाकुर साहब के प्रश्न के उत्तर के साथ दिया जा सकता है। पहले ठाकुर साहब के प्रश्न का उत्तर देता हूं। विज्ञान की बातें एक तरफ़ा यानी एक पक्षीय होती हैं और वह सिर्फ़ भौतिक तत्वों का ही विश्लेषण कर सकता है। क्योंकि उसकी पहुंच स्थूल भौतिक तत्वों तक ही होती है। सूक्ष्म, आत्मिक, नैतिक और दार्शनिक बातें उसकी पहुंच से बाहर हैं, उसके विषय से बाहर हैं। किसी भी बात को उचित या अनुचित सिद्ध करने के लिए उसके दोनों पक्षों यानी वैज्ञानिक दृष्टि से, भौतिक पक्ष और दार्शनिक दृष्टि से,आध्यात्मिक पक्ष के पहलुओं पर विचार करना ज़रूरी होता है। मिसाल के तौर पर एक सर्जन यानी शल्य चिकित्सक किसी रोगी व्यक्ति के हृदय का आपरेशन करता है तो वह हृदय को तो देख सकता है पर यह नहीं समझ सकता कि इसकी धड़कन क्यों चल रही है। और अगर बन्द हो गई तो क्यों बन्द हो गई? धड़कन चल रही है तो कहेगा कि आदमी जिन्दा है, धड़कन बन्द हो गई तो कहेगा कि आदमी मर गया है। मनुष्य का मस्तिष्क उसके लिए एक ऐसा यन्त्र है जिसमें हज़ारों नसनाड़ियां और कोष दिखाई देते हैं। जैसे किसी इलेक्ट्रानिक यन्त्र में बारीक तारों का जाल होता है पर मनुष्य मस्तिष्क की रचना के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता। एक इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर यन्त्र के बारे में रत्ती-रत्ती बात जानता है, वह पूरा यन्त्र खोल कर उसके पुरजे-पुरजे अलग कर सकता है और वापिस फिटिंग भी कर सकता है पर सर्जन या फिज़ीशियन मस्तिष्क की पूरी रचना के बारे कुछ नहीं जानता। मस्तिष्क सोचता कैसे है, स्मृति और ज्ञान क्यों और कैसे धारण किये हुए है, इन बातों का अभी सर्जन या फिजीशियन के पास कोई जवाब नहीं है।
मान लीजिए,आपरेशन टेबल पर जो रोगी लेटा है वह कोई शायर है । शायर के दिल में हज़ारों अरमान होते हैं, रूमानी जज़बात होते हैं पर जब सर्जन उसके दिल की चीर फाड़ करता है तब उसे शायर के दिल में न तो कोई और नज़र आता है और न कोई ग़ज़ल ही दिखाई देती है।
कहने का मतलब यह है कि विज्ञान सिर्फ भौतिक तत्वों पर ही विचार कर सकता है, आध्यात्मिक तत्वों पर नहीं, इसलिए एकांगी है, एक पक्षीय है। एकांगी दृष्टिकोण, सम्पूर्ण नहीं हो सकता, निर्णायक नहीं हो सकता और सर्व सम्मत नहीं हो सकता।
( और पढ़े – अंडे खाने के नुकसान :अंडे की वह हकीकत जो आपसे छुपाई गई )
सिर्फ आधुनिक विज्ञान के मत के आधार पर ही मांसाहार करने का या न करने का निर्णय नहीं लिया जा सकता है। यह तो हुआ ठाकुर साहब के प्रश्न का उत्तर, अब मैं अण्डों के बारे में चर्चा करता हूं। अण्डे के विषय में हमें कुछ खास बातों पर विचार करना होगा। सबसे पहली बात तो यह है कि अण्डा निर्जीव होता ही नहीं और जो निर्जीव हो वह भी खाने योग्य नहीं होता। दूसरी बात यह कि अण्डा तुलनात्मक दृष्टि से सस्ता भी नहीं, महंगा ही पड़ता है और तीसरी खास बात यह है कि अन्य पदार्थों की तुलना में । अण्डा ज्यादा पौष्टिक तत्वों वाला सिद्ध नहीं होता। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अण्डा निरापद यानी हानिरहित आहार नहीं है।
अब इन चारों बातों को स्पष्ट करने के लिए बहुत विस्तार से चर्चा करना ज़रूरी है। जिसके लिए हमें काफी समय देना पड़ेगा लिहाज़ा इस मुद्दे पर अगली बैठक में चर्चा करेंगे, इस वक्त तो मांसाहार के विषय पर चर्चा करके इस विषय का समापन कर लेना उचित रहेगा।
एक व्यक्ति – पण्डितजी, मांस में पौष्टिक तत्व बताये जाते हैं जो हमारे शरीर को पोषण और बल प्रदान करते हैं फिर इसे खाने में क्या हर्ज़ है ?
पं. चन्द्रदेव – मांस का निर्माण पौष्टिक तत्व युक्त आहार खाने से होता है तो मांस में
पौष्टिक तत्व तो होना ही है पर यह समझना भारी भ्रम है कि मांस खाने से शरीर को वे पौष्टिक तत्व निरापद रूप से मिल जाते हैं। जो मांस में होते हैं और बिना किसी हानि या व्याधि के, हमारा शरीर उसी तरह स्वस्थ और बलवान बना रहेगा जिस तरह शाकाहार करने पर बना रहता है। इसे ज़रा ठीक से समझ लें।
जहां तक पौष्टिक तत्वों से युक्त आहार का मामला है तो शाकाहार में एक से बढ़ कर एक पदार्थ उपलब्ध हैं जो शरीर को बल व पुष्टि प्रदान करने में सक्षम हैं और कमाल की बात यह है कि वे मांसाहार की तरह शरीर में कोई विकार और रोग पैदा नहीं करते।
आज जो नाना प्रकार के रोग सारी दुनिया में तेज़ी से बढ़ रहे हैं उसका प्रमुख कारण मांस, अण्डा और शराब का सेवन करना ही है। न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और आचरण भी मांसाहार और शराब का सेवन करने से खराब हो रहे हैं। अब तो विदेशी चिकित्सा वैज्ञानिक, शरीर -शास्त्री और स्वास्थ्य सम्बन्धी संस्थान भी अनुसन्धानों और परीक्षणों के आधार पर यह घोषित कर चुके हैं, कि मांस, अण्डा और शराब का सेवन करना कालान्तर में रोगकारी, धन और स्वास्थ्य का नाश करने वाला सिद्ध होता है। उनकी मान्यता भी यही हो गई है कि स्वस्थ और बलवान रहने के लिए मांस-मद्य की अपेक्षा शाकाहार का सेवन करना अधिक श्रेष्ठ और निरापद है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अपच, गैस ट्रबल,कोलेस्टेरोल बढ़ना, मोटापा बढ़ना, अम्लपित्त यानी हायपर-एसिडिटी जैसे रोग, मांस अण्डे खाने के ही दुष्परिणाम हैं।
( और पढ़े – मांसाहार खाने के नुकसान : अब तो विज्ञान भी मानता है मांसाहार हमारे लिये है हानिकारक )
यह तो हुई शारीरिक स्वास्थ्य की स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य की भी स्थिति ऐसी ही है। मांस, अण्डे और शराब का सेवन करने वालों में अनेक मानसिक विकार और दुर्गुण उत्पन्न हो जाते हैं। मांसाहारी और शराबी व्यक्ति की मानसिकता यानी मनोवृत्ति क्रूर, क्रोधी, विलासी, तामसी, कामुक, स्वार्थी, अत्याचारी, झगडालू आदि दुर्गुर्गों से युक्त हो जाती है इसीलिए संसार में इतनी चरित्र हीनता, भोग विलास, हिंसा, अत्याचार, व्यभिचार, बलात्कार, घृणा द्वेष आदि नाना प्रकार के दुर्गुण, विकार और कुकर्म बढ़ते जा रहे हैं। हमारी मनोवृत्ति और प्रकृति हमारे आहार-विहार और आचार-विचार से प्रभावित होती है और हमारे आचरण को प्रभावित करती रहती है इसलिए हमें अच्छा, सात्विक सुपाच्य आहार ही लेना। चाहिए। ऐसा आहार शाकाहार ही हो सकता है मांसाहार, अण्डा और शराब का सेवन करना कदापि नहीं।
मौलवी कबीर बख्श- माशा अल्लाह ! आपकी तकरीर लाजवाब है दिल पर असर करने वाली है लिहाज़ा मैं गोश्त अण्डे वगैरह खाना बन्द करने का अहद करता हूं। वाक़ई खुदा की काइनात में एक से बढ़ कर एक चीजें मौजूद हैं जो मुफ़ीद भी हैं और सेहतदां भी, जिन्हें स्तेमाल करके फ़ायदा उठाना चाहिए। ऐसी बेशक़ीमती नसीहत देने के लिए मैं आपका बहुत ही मश्कूर और ममनून हूं।
ठाकुर अभ्युदय सिंह- मैं भी मांसाहार छोड़ने का विचार कर ही रहा था हुकम, इसलिए मैं भी प्रतिज्ञा करता हूं कि अब जीवन में कभी भी मांस अण्डे नहीं खाउंगा। क्यों लालाजी, आपका क्या विचार है ?
सेठ तसल्लीराम- मेरा विचार यह है कि मेरा मांसाहार करने का तो खैर अब सवाल नहीं उठता, अब तो मैं अपने मांसाहारी मित्रों को भी समझा बुझा कर मांसाहार छुड़वाना शुरू करता हूं।
सेठ लल्लूमल – धनवाणी ! धनवाणी !! कतरी नीकी बात छे। असी बात सबका मन मा बठि जाए तो घणो आनन्द हुई जाए।