मासिक धर्म का दर्द इसके कारण, लक्षण और इलाज

Last Updated on December 27, 2021 by admin

मासिक धर्म में दर्द के लक्षण : masik dharm (period) me dard ke lakshan

इस रोग (डिसमेनोरिया) में स्त्रियों को मासिकधर्म (पीरियड्स) आने से 1-2 दिन पूर्व और आने के समय गर्भाशय पेडू और कमर में दर्द हुआ करता है । इसी स्थिति में रोगिणी को मासिक कम या अधिक मात्रा में भी आ सकता है । अनिद्रा, सिरदर्द और बेचैनी इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं।

नोट- जब जवान लड़कियों को प्रथम बार मासिक धर्म आता है तो भीतरी जननेन्द्रियों की ओर रक्त संचार तेज होकर वहाँ की रक्तवाहिनियां रक्त की अधिकता के कारण उभर और तन जाती हैं। इसी कारण पेडू, कमर, गर्भाशय, जांघों और पिडलियों में थोड़ा या बहुत दर्द होने लगता है किंतु 2-3 बार आ चुकने पर यह कष्ट स्वयं दूर हो जाते हैं।

मासिक धर्म में दर्द के कारण : masik dharm (period) me dard kyu hota hai iske karan

मासिक धर्म में दर्द के दो कारण होते हैं :
(A) जन्मजात दोष तथा गर्भाशय की रचना में भी विकार– गर्भाशय की गर्दन का लम्बा होना, गर्भाशय के मुख का छोटा होना, गर्भाशय की मांसपेशियों की कमजोरी, डिम्बाशय के तरल में कमी, स्नायविक संस्थान की दुर्बलता आदि ।
(B) गर्भाशय में असाधारण रूप से रक्त एकत्रितहो जाना जैसे–गर्भाशय का पीछे की ओर झुक जाना, गर्भाशय या उसकी झिल्ली, का उत्पन्न हो जाना इत्यादि ।

यदि जन्मजात दोष के कारण यह रोग हो तो महिला चिकित्सक द्वारा निरीक्षण कराने से इस रोग का पता चल जाता है। यदि डिम्बाशय में तरल की कमी होने के कारण यह रोग हो तो गर्भ ठहर जाने के बाद यह कष्ट स्वयं दूर हो जाता है । गर्भाशय में रक्त एकत्रित हो जाने पर मासिक होने के 1-2 दिन पूर्व तथा समाप्त होने के 1-2 दिन बाद तक दर्द होता रहता है । गर्भाशय के पुराने शोथ में भी मासिक धर्म आने के समय रक्त अधिक मात्रा में आता है तथा दर्द भी होता है और गर्भाशय से पानी आने का कष्ट भी होता है ।

डिम्बाशय में शोथ होने पर 1 या दोनों ओर उभार होता है, जिसको दबाने से मितली या कै होती है तथा दर्द भी होता है। गर्भाशय के अन्दर अस्थायी झिल्ली उत्पन्न हो जाने पर मासिकधर्म आने से 2-3 दिन पूर्व ही दर्द होने लगता है और स्राव आरम्भ हो जाने के बाद यह दर्द बढ़कर प्रसव-पीड़ा जैसा रूप धारण कर लेता है तथा जब तक यह अस्थायी झिल्ली निकल न जाए तब तक निरन्तर दर्द होता रहता है । स्नायविक कमजोरी के कारण यदि रोग उत्पन्न हुआ हो तो मासिक 1-2 दिन आकर बन्द हो जाता है और अत्यधिक दर्द होता है । इसके बाद काफी मात्रा में रक्त स्राव होकर गर्भाशय में ऐंठनयुक्त दर्द होने लगता है, जिसके कारण रोगिणी बहुत दुखी रहती है । प्रायः दिल की धड़कन बढ़ जाती है और बेहोशी छा जाने का कष्ट रहता है। कई बार सिर दर्द होकर सिर भी चकराता रहता है । आइये जाने period me pet dard ka gharelu ilaj,

मासिक धर्म के दर्द का घरेलू उपचार / इलाज : masik dharm me dard ke gharelu ilaj

1-अशोकारिष्ट- अशोकारिष्ट, अशोक घृत, रज:प्रवर्तनी वटी इत्यादि का सेवन इस रोग में अत्यन्त ही लाभप्रद है। ( और पढ़े – मासिक धर्म में होने वाले दर्द को दूर करते है यह 12 घरेलू उपचार )

2-उलटकम्बल- उलटकम्बल की जड़ का चूर्ण 2-3 ग्राम की मात्रा में मासिकधर्म आने के 4-5 दिन पहले से दिन में 2-3 बार खिलाना अत्यन्त लाभकारी है। अंग्रेजी में इस औषधि को ‘‘एब्रोमा अगेस्टा’ (Abroma Augusta)कहा जाता है। इससे मासिकधर्म अधिक आने को भी आराम आ जाता है और इसके प्रयोग से जवान स्त्रियों को गर्भ भी ठहर जाता है ।
कपास की जड़ का क्वाथ पिलाना भी लाभप्रद है।

3-धतूरा-धतूरा के पत्तों को पानी में उबालकर, उस क्वाथ से पेडू का सेंक करना भी अत्यन्त लाभकारी है। ( और पढ़े –मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करते है यह 19 घरेलू उपचार )

4-लाजवन्ती-लाजवन्ती का 3 ग्राम चूर्ण फांककर ऊपर से बताशों का शर्बत पिलाने से स्त्रियों का मासिक अधिक आना रुक जाता है।

5-इन्द्रायण-इन्द्रायण को पीसकर इसकी 6 ग्राम लुगदी योनि में रखने से 3 दिन में ऋतु स्राव खुलकर होने लगता है। | इन्द्रायण के बीज 4 ग्राम, काली मिर्च 6 नग दोनों को कूटकर 200 ग्राम जल में औटावें, 50 ग्राम शेष रह जाने पर उतार-छानकर पिलाये । इस प्रयोग से रजोदर्शन प्रारम्भ हो जाता है।

6-मूली- मूली के बीज और काले तिल 10-10 ग्राम लेकर 250 ग्राम पानी में औटावें । जब पानी चौथाई रह जाए तब उतारकर छान लें और इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से मासिकधर्म खुलकर आना प्रारंभ हो जाता है। ( और पढ़े – माहवारी में अधिक रक्त स्राव के 15 घरेलु उपचार)

7-सुहागा-कच्चा सुहागा 3 ग्राम, केसर 2 ग्रेन लें। दोनों को खरल में बारीक घोटकर प्रात:काल ठण्डे पानी के साथ देने से मासिकधर्म की अनियमितता का रोग नष्ट हो जाता है । (दूसरी खुराक देने की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है) मासिक धर्म के 2-3 दिन पूर्व इस प्रयोग को करने से मासिक धर्म नियत समय पर खुलकरआने लगता है।

8-धनिया – 20 ग्राम धनिये को 200 ग्राम पानी में औटावें जब । जब 50 ग्राम पानी शेष रह जाए तब उतार छानकर पीने से मासिक धर्म की अधिकता (अधिक रक्त आना) रुक जाता है ।

9- समुद्रसोख- समुद्रसोख 10 ग्राम को खूब बारीक पीसकर सुरक्षित रखें। इसे प्रातः 1 ग्राम की मात्रा में ठण्डे पानी से सेवन करने से 3-4 दिन में ही माहवारी का अधिक रक्त आना बन्द हो जाता है । सफल एवं अनुभूत योग है।

10-राई- राई 50 को बारीक पीसकर सुरक्षित रखें। इसे 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम बकरी के दूध से मासिकधर्म प्रारम्भ होने से 2-4 दिन पूर्व ही सेवन प्रारम्भ करायें । जब तक दवा खत्म न हो तब तक सेवन करते रहने से मासिक धर्म अधिक होने का रोग जड़ से नष्ट हो जाता है और जीवन में दुबारा नहीं होता है।

11-काशगरी – सफेदा काशगरी 10 ग्राम, लालगेरू 1 आम लें । दोनों को भली प्रकार मिलाकर शीशी में सुरक्षित रखलें । आवश्यकता पड़ने पर 2 ग्रेन (1 रत्ती) की मात्रा में बताशे में रखकर पिलाकर ऊपर से थोड़ा-सा दूध या पानी पिलाने से भी (मात्र 3 मात्राओं के प्रयोग से) मासिकधर्म अधिक आने के रोग को आश्चर्यजनक रूप से आराम आ जाता है।

12-मुलहठी- मुलहठी का छिलका उतारकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखलें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार चावल के धोवन (पानी) से 4-5 दिन सेवन कराने से मासिकधर्म की अधिकता का रोग नष्ट हो जाता है। ( और पढ़े –मुलेठी के फायदे व चमत्कारिक औषधीय प्रयोग )

13-राल- राल 6 ग्राम में 100 ग्राम दही में मीठा मिलाकर पिलाने से 3-4 दिन में ही मासिक धर्म की अधिकता का रक्त गायब हो जाती है ।

14-नीम – हड़ताल गोदन्ती बढ़िया 25 ग्राम को नीम के पत्तों के रस में भली प्रकार खरल करके टिकिया बनालें । फिर नीम की पत्तियों की 60 ग्राम लुग्दी के मध्य में रखकर मिट्टी के प्यालों में बन्द करके 4 किलो उपलों की आग के मध्य में रखकर भस्म बना लें। यह गोदन्ती भस्म रजोधर्म की अधिकता, गर्भाशय से रक्तस्राव की रामबाण दवा है । इसके अतिरिक्त यह योग नाक, फेफड़ों, गुदा अथवा मूत्रमार्ग से रक्त आने में भी अत्यन्त ही लाभप्रद है।

15-पीपल- माहवारी की अधिकता में पीपल वृक्ष के कोमल पत्तों का रस पिलायें ।

16-गूलर – गूलर वृक्ष के फल का चूर्ण में खान्ड मिलाकर 2-3 ग्राम की मात्रा में दिन में 2-3 बार मासिकधर्म की अधिकता में सेवन करना लाभप्रद है।

17-केला –पके केलों में बनारसी आँवलों का रस खान्ड मिलाकर खाना मासिक धर्म की अधिकता में लाभप्रद है।

18-वासक- वासक का रस या पत्ती का चूर्ण 2-3 ग्राम पिलाते रहने से शरीर के किसी भी भाग से होने वाले रक्तस्राव में अत्यन्त उपयोगी है ।

19-बबूल- बबूल (कीकर) की छाल का क्वाथ बनाकर उससे इश करना मासिकधर्म की अधिकता में लाभकारी है।

20-आम – आम की गुठली की गिरी का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार पिलाना मासिकधर्म की अधिकता में लाभकारी है।

21-लोध – लोध के चूर्ण में खान्ड मिलाकर 8 रत्ती (1 ग्राम) दिन में 2-3 बार खिलाना मासिकधर्म की अधिकता में लाभकारी है।

22-जीरा- जीरा तथा इमली के बीज की गिरी को सममात्रा में लेकर चूर्ण बनालें । उसे 3 माशा की मात्रा में चावलों के पानी के साथ दिन में 2-3 बार खिलाना मासिकधर्म की अधिकता में अत्यन्त लाभकारी है।

23-कपास – कपास के पौधे की जड़ 6 माशा, गाजर के बीज 6 माशा, खरबूजा के बीज 4 माशा लें । इनका क्वाथ बनाकर पिलाना मासिक कम और दर्द से आने में लाभकारी है। अनुभूत योग है ।

24-कलमीशोरा – रेवन्द चीनी, कलमीशोरा 6-6 माशा, यवक्षार, जीरा 3-3 माशा पीसकर बराबर खान्ड मिला लें। इसे 3 से 6 माशा की मात्रा में सुबह-शाम गरम पानी से सेवन करने से प्रदरे कम व दर्द से आना नष्ट हो जाता है। । गन्धक आमलासार, काली जीरी 1-1 तोला, रसौत 3 माशा, एक्सट्रैक्ट बेलाडोना 3 माशा लें। सभी को मकोय के रस में खरल करके मटर के समान गोलियाँ बनालें । यह 1-1 गोली सुबह-शाम दूध या पानी से खाने से मासिक कम आना, अधिक आना, दर्द से आना, गर्भाशय से स्राव होना तथा प्रत्येक प्रकार के स्त्री (गुप्त) रोगों में रामबाण योग है।

25-पिप्पली- पिप्पली, मैनफल, यवक्षार, इन्द्रायण के बीज, मीठा कूठ और पुराना गुड़ सभी औषधियाँ अलग-अलग कूट पीसकर सममात्रा में लेकर गाय की दूध की सहायता से बत्तियाँ बना लें। शाम को 1-1 बत्ती गर्भाशय के मुख में रखें । मासिक खोलने में रामबाण प्रयोग है।
नोट-मासिक लाने वाली औषधियाँ मासिक आने से 5-7 दिन पूर्व प्रयोग करना प्रारम्भ कर दें तथा आने के दिनों में भी प्रयोग जारी रखें। योनि में रखने वाली बत्तियाँ मासिक आने से 3-4 दिन पहले रखनी आरम्भ की जाती है।

मासिक धर्म (पीरियड्स) में दर्द की दवा : masik dharm (period) me dard ki dawa

अशोकारिष्ट – प्रदरकम आने, थोड़े समय तक आने या देर से आने के लिए अशोकारिष्ट 2 तोला समान भाग जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार तथा हिंग्वाष्टक चूर्ण 3 से 5 माशा गरम जल से भोजन के साथ दिन में 2-3 बार खिलाना अत्यन्त ही लाभप्रद है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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