Last Updated on July 22, 2019 by admin
१-यदि रोगी के दाहिने या बाएँ, अगले या पिछले, नीचे या ऊपर के किसी अंग में स्वाभाविक और किसी अंग में विकार का रंग देखने में आये, तो रोगी की मृत्यु के चिह्न समझो।
२- यदि रोगी के मुख या शरीर के किसी और हिस्से में एक जगह स्वाभाविक और दूसरी जगह विकार का रंग दिखाई दे, तो मृत्यु के संकेत समझना।
३-यदि रोगी के शरीर में एक जगह प्रसन्नता और दूसरी जगह ग्लानि; एक अंग में रूखापन और दूसरे अंग में चिकनाई दीखे, तो रोगी मरेगा।
४-यदि रोगी के मुँह पर हठात् लहसन, तिल, झाँई या कोई फुन्सी प्रकट हो जाए, तो मृत्यु होगी।
५- यदि रोगी के नाखून, नेत्र, मुँह, मल-मूत्र और हाथ-पैरों में किसी तरह के विकार का रंग पैदा हो जाए अथवा एकाएक रंग खराब हो जाय या कई इन्द्रियाँ मारी जाएँ तो रोगी की मृत्यु समझो।
इसी तरह रोगी के शरीर में पहले न देखा हो ऐसा रङ्ग अकस्मात अथवा बिना कारण पैदा हो जाए, तो रोगी का मरण समझो।
६- यदि रोगी के दोनों होठ पके जामुन की तरह अत्यन्त नीले हो जाएँ, तो रोगी की मृत्यु समझो।
७-जिस मरने वाले के कण्ठ से एक अथवा अनेक तरह के वैकारिक स्वर निकलें, यानी रोगी जिस तरह सदा बोला करता था उसके विपरीत ऐसी बोली बोले, जैसी उसके कण्ठ से सुनी न गई हो तो वह नहीं बचेगा।
- हमने अपनी आँखों से देखा है कि एक मनुष्य रात को छत पर सोता-सोता कुत्ते की तरह भौंकने लगा और ३-४ दिन में मर गया। उसे कुत्ते वगैरा ने काटा न था।
८-जिसके शरीर से दिन-रात अनेक प्रकार के वृक्षों और वन के तरह-तरह के फूलों की सुगन्ध आती रहे, उसे ‘पुष्पित’ कहते हैं। वह एक वर्ष के भीतर निश्चय ही मर जाता है।
९-जिस प्राणी के शरीर से एक अथवा अनेक प्रकार की दुर्गन्ध निकले, वह भी ‘पुष्पित है। जिसके स्नान करने या न करने पर शरीर से कभी शुभ और कभी अशुभ गन्ध बिना कारण आए, उसे भी ‘पुष्पित’ कहते हैं। यानी जिसके शरीर में कभी चन्दन की या कभी फूलों की या मल-मूत्र अथवा मुर्दे की-सी गन्ध आए, उसको मृत्यु-मुख में समझो।
*एक सोलह वर्ष की जवान सुन्दरी के हाथों में दिन-रात में दो एक बार विष्ठा की-सी गन्ध कोई एक या दो साल से आने लगी। वह दुर्गन्ध हर समय नहीं रहती थी। खूब साबुन से हाथ धो लेने पर भी वह दुर्गन्ध एकाएक प्रकट हो जाती थी। वह स्त्री बिना किसी रोग के, चटपट मर गई।
१०- जिस प्राणी की देह में वियोनि की-सी, यानी पशु-पक्षी की-सी सुगन्ध या दुर्गन्ध स्थायी रूप से आयी हो, वह एक वर्ष नहीं जीता।
११- किसी मनुष्य के खूब अच्छी तरह स्नान कर लेने और चन्दन प्रभृति लगा लेने पर भी मक्खियाँ घेर लेती हैं, और किसी के शरीर के पास मक्खी, मच्छर, डाँस प्रभृति आते ही न जाने क्यों एक दम दूर हो जाते हैं; औरों के शरीर पर बैठते हैं, पर उसके शरीर पर नहीं बैठते-यदि ऐसी हालत हो तो समझना चाहिए कि उस मनुष्य के शरीर का रस खराब या मीठा हो गया है। पर रस के मीठे होने से मक्खी वगैरा जीव जब पीछा नहीं छोड़ते और बद-जायक़ा होने से नज़दीक नहीं आते, तो ये लक्षण भी मरण के हैं।
१२- रोगी के नेत्र बाहर निकल आएँ या भीतर को बैठ जाएँ, टेढ़े मेढ़े हो जाएँ, एक बड़ा और एक छोटा हो जाए, एक बन्द रहे और एक खुला रहे, अत्यन्त पानी बहे, निरन्तर खुले रहें या निरन्तर बन्द ही रहें, बारम्बार खुलें या बन्द रहें, दिन में सब चीजें सफेद दीखें या काली दीखें, अथवा नेत्र अंगार के समान काले, नीले, पीले, श्याम, लाल, हरे और सफेदइनमें से किसी एक रंग से अत्यन्त युक्त हों, तो रोगी को गतायु समझो।
१३- रोगी के बाल या रोएँ खींचने से उखड़ आएँ और रोगी के दर्द न हो, तो उसे गतायु समझो।
१४-अगर रोगी के पेट पर काली, नीली, लाल और सफ़ेद नसे दीखने लगें, तो रोगी को गतायु समझो।
१५-यदि रोगी के नाखूनों में मांस और खून न रहे और वे पकी हुई जामुन के समान हो जाएँ तो उसे गतायु समझो।
१६-यदि रोगी की उङ्गलियाँ पकड़ कर खींचने पर न चटखें, तो रोगी को गतायु समझो।
१७- जो रोगी आकाश को पृथ्वी के संघट्ट की तरह और पृथ्वी को आकाश की तरह शून्य देखता हो, वह बहुत जल्दी मरता है।
१८-जो रोगी हवा को मूर्तिमान देखता है और जलती आग जिसे नहीं दीखती, वह गतायु है।
१९-जो रोगी जल न होने पर भी जल का भ्रम करता है, अथवा स्थिर जल को चंचल समझता है, वह गतायु है।
२०- जो रोगी जाग्रत अवस्था में प्रेत और राक्षस-पिशाचों को देखता है अथवा अन्य प्रकार की अद्भुत चीजें देखता है, वह गतायु है।
२१- जो रोगी स्वाभाविक अग्नि को नीली, प्रभा-रहित, काली या सफ़ेद देखता है, वह सात रात जीता है।
२२- जो रोगी आकाश को बिना प्रकाश के प्रकाशित देखता है; आकाश में बादल नहीं हैं, पर उसे बादल दीखते हैं; आकाश में बादलों के होने पर बादल नहीं दीखते, आकाश में बादल नहीं हैं, पर रोगी को बिजली चमकती दीखती है, ऐसा रोगी नहीं जीता।
२३- जो रोगी निर्मल सूर्य और चन्द्रमा को काले कपड़े से लिपटे हुए बर्तन के
समान देखता है, वह नहीं बचता।
२४- जो प्राणी बिना ग्रहण के ही सूर्य और चन्द्रमा में ग्रहण देखता है, वह रोगी हो, चाहे निरोगी, बहुत दिन नहीं जीता।
२५- जो रात को सूर्य और दिन में चन्द्रमा को देखता है, तथा अग्निहीन वस्तुओं से धूआँ उठते देखता है तथा रात में आग को प्रभा-हीन देखता है, वह नहीं बचता।
२६-जो प्राणी प्रभा-हीन चीजों को प्रभा-युक्त और प्रभा-युक्तों को प्रभाहीन देखता है, वह नहीं बचता।
२७-जो रोगी दीखने वाली चीज़ों को नहीं देखता और न दीखने वाली चीज़ों को देखता है, वह नहीं बचता।
२८- जो रोगी सुगन्ध को दुर्गन्ध और दुर्गन्ध को सुगन्ध समझता है, वह नहीं बचता।
२९-जो रोगी अपनी उँगलियों से अपने कानों को बन्द करके अनाहत* शब्द को नहीं सुनता, वह नहीं बचता।
*दोनों कानों को हाथों से बन्द कर लेने पर जो ‘साँय-साँय’ शब्द सुनाई देता है, उसको ‘अनाहत शब्द’ या ‘ज्वाला शब्द’ कहते हैं। साधारण लोग उसे रावण की चिता की आवाज कहते हैं। डाक्टर उसे ‘खून बहने की आवाज Souffle कहते हैं।
३०-जिस रोगी के मुख में कोई रोग नहीं है, तो भी उसे मीठे-खट्टे प्रभृति रसों का स्वाद न मालूम हो अथवा असल रस का ज्ञान न हो, वह गतायु है।
३१-जो रोगी नरम चीज़ों को कड़ी, गरम को ठण्डी, चिकनी और खुरदरी और कड़ी को नरम, शीतल को गरम या खुरदरी को चिकनी समझता है, वह नहीं बचता।
३२-जो बिना घोर तप या योग-साधन के इन्द्रियों से न जाना जा सके, ऐसे पदार्थ या ऐसी बात को जान ले, या देख ले वह नहीं जीता।
३३-अगर ज्वर के रोगी के पूर्ण रूप सभी हों या बहुत ज्यादा हों, तो समझ लो कि रोगी नहीं बचेगा। इसी तरह और रोगों के होने के पहले, होने वाले रोग के सारे या अधिक पूर्णरूप* हों, तो मृत्यु होगी।
*सब रोगों के पहले पूर्वरूप होते हैं, पर सारे पूर्वरूप नहीं होते, कुछ होते हैं; कुछ नहीं होते। यदि सभी हों, तो बचना कठिन समझो।
३४-जो प्राणी स्वप्न में कुत्ते, गधे या ऊँट पर चढ़ कर दक्षिण दिशा को जाता है, वह ‘राजयक्ष्मा’ से मरता है।
३५-जो प्राणी स्वप्न में मरे हुए लोगों के साथ शराब पीता है, और उसे कुत्ते घसीटते हैं, वह घोर ज्वर से मरता है।
३६-जिस प्राणी को स्वप्न में लाल कपड़े, लाल फूलों की माला पहले, लाल शरीर वाली स्त्री हँसती-हँसती घसीटे, वह रक्त-पित्त से मरता है।
३७-जिस प्राणी के ज़ोर से दर्द चले, पेट में अफारा हो, शरीर दुर्बल हो और नाखून आदि का रंग और-का और हो जाय, वह गुल्म रोग से मरेगा।
३८- जो प्राणी स्वप्न में ऐसा देखे, मानो उसके हृदय में काँटों वाली दारुण बेल उगी है, वह गुल्म रोग से मर जाता है।
३९- जिस प्राणी की खाल या चमड़ी जरा छूने से फट जाए अथवा जिसके घाव भरें नहीं, वह कोढ़ी हो कर मरेगा।
४०-जो प्राणी स्वप्न में नंगा हो कर, सारे शरीर में घी लगा कर, ज्वाला-हीन आग में हवन करे और स्वप्न में जिसकी छाती में कमल पैदा हो, वह कोढ़ से मरेगा।
४१-जिस प्राणी के शरीर पर स्नान करने और चन्दन लगाने पर भी नीले रङ्ग की मक्खी बैठे, वह प्रमेह से मरेगा।
४२- जो प्राणी स्वप्न में चांडालों के साथ घी-तेल आदि पदार्थ पिये, वह ‘प्रमेह’ से मरेगा।
४३-जिसका ध्यान एक ओर लग जाए, जिसको बिना मिहनत के थकान मालूम हो, जी घबराने लगे, चित्त में भ्रम और बेचैनी हो, शरीर का बल नष्ट हो जाए-अगर ये सब लक्षण एक साथ ही हों, तो समझ लो कि वह उन्माद रोग से मरेगा।
४४- जिसको भोजन के पदार्थ बुरे मालूम हों, ज्ञान न रहे, उदर रोग हो, उसकी उन्माद रोग से मृत्यु होगी।
४५-जो प्राणी सदा नाराज़ रहे, चेहरे पर क्रोध बना ही रहे, भयभीत रहे, हँसता रहे, बार-बार बेहोश हो जाये, प्यास बहुत लगे, उसकी उन्माद से मृत्यु होगी।
४६- जो प्राणी स्वप्न में राक्षसों के साथ नाचता-नाचता पानी में डूब जाय, वह उन्माद से मरेगा।
४७-जिस मनुष्य को अँधेरा न होने पर भी अँधेरा दीखे, कहीं शब्द भी न होता हो, पर उसे तरह-तरह के गाने या दूसरी आवाजें सुनाई दें, वह मृगी रोग से मरेगा।
४८- जो मनुष्य स्वप्न में ऐसा देखे, मानो मैं नशे से मतवाला हो कर नाच रहा हूँ और भूत मेरा सिर नीचा करके मुझे ले जा रहे हैं, उसकी मृगी रोग से मृत्यु होगी।
४९- जाग्रत अवस्था में जिसकी ठोड़ी, गर्दन और दोनों आँखें रह जाएँ उसकी बहिरयाम नामक वात-रोग से मृत्यु होगी।
५०-जो प्राणी स्वप्न में तिलों के पदार्थ या पूरी, मालपुआ खाता है और जाग उठता है अथवा जागते ही वमन करता है और पूरी, मालपुआ ही निकलते हैं, वह नहीं बचता।
५१-जिस प्राणी की छाती से नीला या पीला या लाल कफ़ निकले, उसके जीवन में सन्देह है।
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