Last Updated on October 17, 2021 by admin
मिर्गी क्यों आती है ? इसके कारण :
मिर्गी मस्तिष्क के असंतुलन का प्रतिफल है। शरीर में स्थित विजातीय द्रव्य जब मस्तिष्क में पहुँचकर उसके कोशों पर दबाव डालते हैं, तब मिर्गी-रोग का दौरा पड़ता है। वस्तुतः यह स्वयं में कोई रोग न होकर रोग का एक लक्षण है। केन्द्रीय स्नायु-संस्थान से सम्बन्धित यह रोग मस्तिष्क में कोशिकाओं की खराबी, आनुवंशिक कारणों, पाचन-संस्थान की अनियमितता, मानसिक तनाव, सिर में चोट लगने, अप्राकृतिक जीवन-शैली एवं अनिद्रा या मद्यपान के कारण होता है।
मिर्गी से जुड़े कुछ तथ्य –
- यह आवश्यक नहीं है कि मिर्गी के मरीज के मस्तिष्क में स्थायी रूप से कोई विकृति आयी हो। मस्तिष्क को तरङ्गों में क्षणिक व्यवधान के कारण भी दौरों की स्थिति हो जाती है।
- यह आवश्यक नहीं है कि मिर्गी के मरीज मानसिक रूप से कमजोर हों।
- यह आवश्यक नहीं है कि मिर्गी के मरीज सदैव उग्र स्वभाव के हों।
- यह आवश्यक नहीं है कि दौरों के कारण मस्तिष्क में स्थायीरूप से विकृति आने की सम्भावना बढ़ जाय। यद्यपि कुछ लोगों की स्मरणशक्ति कमजोर हो जाती है परंतु यह दौरों का प्रतिप्रभाव है न कि मस्तिष्ककी खराबी।
- यह आवश्यक नहीं है कि मिर्गी का रोग सदैव आनुवंशिक रूप में ही प्राप्त हो। यद्यपि मिर्गी रोग के कुछ प्रकार, जो बाद में औषधियों के प्रयोग से ठीक हो जाते हैं, आनुवंशिक कारणों से भी होते हैं।
- यह आवश्यक नहीं है कि मिर्गी का रोग जल्दी ठीक ही न होता हो। इस रोग से ग्रस्त अनेक मरीज ठीक होते हुए तथा सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए देखे जाते हैं।
- सामान्यतः बेहोशी के दौरे अनेक कारणों से पड़ सकते हैं। अनेक शारीरिक व्याधियों के कारण पड़ने वाले दौरे जैसे–मधुमेह, लीवर या गुर्दे के काम न करने के कारण, सिर में चोट की वजह से, मस्तिष्क या उसकी झिल्ली में इन्फेक्शन यथा-मैनेन्जाइटिस या इन्सेफेलाइटिसका संक्रमण। खूनकी नलियोंकी बीमारी एवं ट्यूमर के कारण भी बेहोशी के दौरे पड़ सकते हैं। मिर्गी की बीमारी स्वयं में दौरों की एक प्रमुख वजह है।
आइये जाने मिर्गी कितने प्रकार के होते हैं और मिर्गी में दिखाई देने वाले लक्षणों के बारे में
मिर्गी के प्रकार और उनके लक्षण :
मिर्गी के दौरे कई रूप में हो सकते हैं-
(a) पेटिटमाल एपिलेप्सी-
कई बार थोड़ी देर के लिये केवल शून्य में ताकते रह जाना—इस प्रकारके दौरों का एक रूप है। ऐसा विशेषतः छोटे बच्चों में पाया जाता है। इस श्रेणी में पड़नेवाले दौरों को ‘एवसेंस सीजर्स’ भी कहा जाता है।
(b) ग्रैण्डमाल एपिलेप्सी-
कई बार पूरे शरीर में झटके पड़ना, बेहोशी आ जाना, मुँह से झाग आना या इस दौरान मल-मूत्र का विसर्जन हो जाना आदि लक्षण दिखते हैं। इस श्रेणीकी मिर्गी में पड़ने वाले दौरों को ‘टोनिक-ब्लोनिक सीजर्स’ भी कहा जाता है।
(c) फोकल एपिलेप्सी-
शरीरके किसी हिस्सेमें कुछ देरके लिये फड़कन होना तथा बादमें दूसरे स्नायुयों में फैलना।
(d) टेम्पोरल लोव एपिलेप्सी-
कई बार मस्तिष्क के टेम्पोरल लोव या कान से सटे मस्तिष्क के भाग पर जब दौरे का केन्द्र या घाव होता है तो ऐसी हालत में दौरे के समय व्यक्ति अप्रत्याशित रूपसे व्यवहार करने लगता है। यथा-सभी के सामने कपड़े उतार देना या अन्य उलटी-सीधी हरकतें करने लगना। इस स्थितिमें कुछ लोगोंको उलटे-सीधे दृश्य दिखायी देते हैं। इस श्रेणीकी मिर्गी के मरीजों को अजीब-सी महक जैसे-जले चमड़े या रबड़ की महक का भी आभास होता है।
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स्थितियाँ जो दौरों को बढ़ाती हैं इनसे बचे :
कुछ ऐसी स्थितियाँ हैं, जो मिर्गी के मरीज के दौरों को बढ़ाती हैं।
1) नींद की कमी या अनिद्रा।
2) अल्कोहल का अधिक सेवन या काफी दिनों तक अत्यधिक अल्कोहल के सेवन के बाद अल्कोहल के सेवन में सहसा कमी करने का प्रयास।
3) कुछ औषधियों के प्रयोग भी दौरों को बढ़ाने में जिम्मेदार हैं –
- कोकीन का सेवन दौरों का कारण बन सकता है।
- एम्फेटामिन्स का अधिक सेवन हृदयाघात के साथ ही ‘टोनिक-क्लोनिक सीजर्स’का भी कारण बन सकता है।
- हेरोइन एवं नारकाटिक्स का दुरुपयोग मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी का कारण बन सकता है और इसका नतीजा मिर्गी के दौरों में वृद्धि हो सकता है।
- निकोटिन (तम्बाकूमें ) तथा कैफीन (कॉफ़ी, चाय, चॉकलेट आदि में) का अधिक सेवन भी मिर्गी के दौरों में वृद्धि कर सकता है।
- मिर्गी के मरीजों के लिये धूम्रपान भी घातक है। इससे दौरों में वृद्धि हो सकती है।
- कुछ अन्य दर्द-निवारक औषधियाँ या सर्दी, जुकाम, अनिद्रा तथा एलर्जीके संदर्भ में ली गयी दवाएँ भी यदा-कदा दौरोंको बढ़ाती हैं। अतः इन दवाओंके सेवनसे मरीजों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
4) मिर्गी की मरीज महिलाओं को उनके मासिक के समय दौरों के बढ़ने की आशंका रहती है।
5) मानसिक तनाव मिर्गी के मरीजों में दौरों की अभिवृद्धि का प्रमुख कारण है। तनाव मस्तिष्क की कार्य-प्रणाली को अनेक रूपों से प्रभावित करता है। तनाव के कारण चिन्ता, भय, क्रोध, अवसाद तथा निराशा में अभिवृद्धि होती है, नींद प्रभावित होती है तथा साँस की गति बढ़ती है। नतीजा होता है दौरों की वृद्धि।
6) खान-पान एवं आहार-विहार भी मिर्गी के मरीजों में दौरे पर नियन्त्रण या अभिवृद्धि का कारण हो सकता है। संयमित खान-पान, भोजन में कच्ची सब्जियों एवं फलों का अधिक प्रयोग तथा तले हुए एवं उत्तेजक खाद्य पदार्थों का त्याग भी मिर्गी के रोगी को लाभ दे सकते हैं। विटामिन ‘बी’ की कमी से कभी-कभी नवजात शिशुओं को दौरे पड़ने लगते । भोजन में खनिज तत्त्वों की कमी, विशेषतः सोडियम, कैल्सियम तथा मैग्नेसियम का अल्प स्तर मस्तिष्क की विद्युतीय तरंगों को प्रभावित कर सकता है तथा दौरे पड़ सकते हैं।
7) चन्द्रमा की स्थिति भी मिर्गी के दौरों के । संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चन्द्रमा मानव मस्तिष्क को प्रभावित करता है। पूर्णिमा के आस-पास पूर्णचन्द्र की स्थिति में शरीर में कफ का बाहुल्य होता है। तथा मिर्गीके मरीज, जिनकी प्रवृत्ति कफ की होती है, उन्हें पूर्णचन्द्र की स्थिति में दौरे आने की अधिक गुंजाइश होती है।
अमावास्या के आस-पास बाल चन्द्र की स्थिति में सूर्य की ऊर्जा अधिक होने के कारण पित्त का बाहुल्य होता है तथा मिर्गी के वे मरीज जिनकी प्रवृत्ति पित्त की | होती है उन्हें इस समय दौरे आने की अधिक सम्भावना होती है। यही कारण है कि मिर्गीके मरीजों को अमावास्या तथा पूर्णिमा के दिनों में अधिक सतर्कता बरतने का परामर्श दिया जाता है। मिर्गी के मरीजों को शरीर के निम्नलिखित आवेगों को कभी नहीं रोकना चाहिये –
(क) भूख, (ख) प्यास, (ग) निद्रा, (घ) विश्राम, (ङ) शौच तथा (च) मूत्र-त्याग।
8) क़ब्ज़ अनेक रोगों की उत्पत्ति का मूल कारण है, मिर्गी के मरीज भी इसके अपवाद नहीं हैं।
9) मिर्गी के मरीज का नाभिचक्र संतुलित रहे, यह अत्यन्त आवश्यक है। मिर्गी के कई मरीजों को केवल नाभिचक्र को ठीक रखकर आराम पहुँचा है।
10) सोने, चाँदी तथा ताँबे का जल भी मिर्गी के दौरों को नियन्त्रित करने में लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसे बनाने का तरीका इस प्रकार है –
15 ग्राम सोना (सोनेका कोई जेवर भी जिसमें मीना न लगा हो, काम में लिया जा सकता है), 30 ग्राम चाँदी तथा 60 ग्राम ताँबा, 4 गिलास पानी में डालकर उबालें तथा दो गिलास पानी बचने पर उस जल का दिनभर में सेवन कर लें। यह जल नित्य बनाना है। खट्टी चीजोंका सेवन वर्जित है।
सामान्यतः दौरे की स्थिति में बेहोशी के कारण मरीज अपनी स्थिति से पूर्णरूप से अवगत नहीं हो पाता तथा बाद में किसी प्रत्यक्ष दर्शी के बताने पर या दौरे के पश्चात् कष्ट या कमजोरी के आधार पर ही उसे यह अनुभूति हो पाती है। प्रायः चिकित्सक भी अपने मरीज के दौरे को नहीं देख पाते; क्योंकि इसका समय निश्चित नहीं है।
मरीज के दौरे का विवरण :
एक चिकित्सक को अपने मरीज के संदर्भ में निम्नलिखित सूचना अवश्य एकत्र करनी चाहिये-यह सूचना किसी प्रत्यक्षदर्शी के माध्यम से ही मिल सकती है।
1) दौरे से पहले –
- क्या किसी कारण से नींद की कमी थी या कोई अप्रत्याशित मानसिक तनाव था?
- क्या मरीज को कोई अन्य बीमारी हुई थी ?
- क्या मरीज ने किसी विशेष औषधि, अल्कोहल या किसी नशे की दवाका सेवन किया था?
- दौरे के तुरंत पहले मरीज किस स्थिति में था-सोया हुआ, बैठा हुआ, खड़ा हुआ या तुरंत व्यायाम किया हुआ आदि।
2) दौरे के मध्य-
- दौरा कैसे शुरू हुआ?
- क्या दौरे की कोई पूर्व अनुभूति हुई?
- क्या इस दौरान आँख, मुँह, चेहरे, सिर या हाथ-पैर में कोई असंतुलन दृष्टिगत हुआ?
- क्या दौरे के समय मरीज बोलने या उत्तर देने में सक्षम था ?
- क्या दौरे के समय मल-मूत्र का अनजाने में विसर्जन हो गया था?
- क्या दौरे के कारण जीभ या अंदर का गालों का भाग कट गया था ?
- दौरे की स्थिति कितनी देर तक रही।
3) दौरे के बाद –
- क्या मरीज चकित एवं थका हुआ लग रहा था ?
- क्या आवाज असंतुलित थी?
- क्या सिर में दर्द की शिकायत कर रहा था?
चूँकि मिर्गीका रोग एक दिनमें ठीक नहीं होता, अतः इस के मरीजका पूर्ण विवरण, रोग एवं पारिवारिक वातावरण के विषय में जानकारी रखना आवश्यक है। इससे चिकित्सकों को तो मार्गदर्शन मिलता ही है, मरीज का आत्मविश्वास बढ़ता है एवं उसमें सुरक्षा की भावना भी बढ़ती है।
मिर्गी के मरीज के प्रति दायित्व :
चूँकि मिर्गी का मरीज दौरे के समय बेहोशी के कारण अपनी रोग-प्रतिरोधात्मक क्षमता का उपयोग अपने बचाव के लिये नहीं कर पाता, अत: इन मरीजों के प्रति लोगों का गम्भीर उत्तरदायित्व है। दौरे की स्थिति में –
- मरीजको करवट के बल लिटा दें।
- कपड़े तंग हों तो ढीले कर दें। यदि चश्मा लगा हो तो उतार दें।
- ध्यान रखें बेहोशी की हालत में मरीज बिस्तर से गिर न जाय या उसे किसी अन्य प्रकारसे शारीरिक चोट न आ जाय।
- यदि सम्भव हो तो एक रूमाल लपेटकर सावधानी से मरीज के दाँतोंके बीच फैंसा दें इससे दाँतों के नीचे उसकी जीभ पड़कर कट जाने का खतरा नहीं रहता। ऐसा करते समय यह ध्यान रखें कि किसी भी हालतमें आप अपनी उँगलियाँ मरीजके मुँह में न डालें; क्योंकि इन दौरों के समय मरीज अपने होशमें नहीं रहता तथा आपकी उँगलियाँ उसके दाँतों के बीच फँसकर जख्मी हो सकती हैं या कट सकती हैं। ध्यान रखें मरीज के मुँह या दाँतों के बीच कोई कड़ी चीज यथा चम्मच आदि न फैंसावें।
- दौरे के पश्चात् यदि मरीज को नींद आ रही हो तो उसे सोने दें।
- मरीज के चारों तरफ अनावश्यक भीड़-भाड़ नहीं होनी चाहिये। खिड़कियाँ, दरवाजे खोलकर ठंडी हवा आने दें।
- दौरे के समय मरीज के शरीर को दबाना, मुँहपर पानी के छींटे डालना, मुँह या नाक को बंद करना, लेटे हुए मुँह में पानी डालना या कुछ खाने को देना वर्जित है। इससे मरीज को नुकसान पहुँच सकता है।
- दौरे के मध्य कोई दवा आदि देना उचित नहीं है जबतक कि मरीज पूर्ण रूप से चैतन्य न हो जाय।
- प्रयास करें कि दौरे से उबरने के बाद मरीज के पास अधिक भीड़ न रहे। होश में आने पर अपने सामने अप्रत्याशित भीड़ देखकर मरीज का तनाव बढ़ता है।
- कभी-कभी दौरे एक के बाद एक आने लगते हैं तथा मरीज को साँस लेने में भी तकलीफ होने लगती है।
- दौरे के बाद ज्वर बढ़ सकता है-अधिकांशतः दौरे में स्नायुओं की गतिविधि बढ़ने के कारण ऐसा होता है। यदि यह ज्वर तीन घंटे से अधिक रहे तो किसी चिकित्सक की सलाह लें।
- मरीज के परिवारजनों, मित्रों एवं आसपास के लोगों को यथा सम्भव मरीज के संदर्भमें पूर्ण जानकारी होनी चाहिये।
- दौरे के उपरान्त मरीज को होश में लाने के लिये मानव-शरीर में तीन एक्यूप्रेशर विन्दु है, जिनपर उपचार देनेसे बेहोश व्यक्ति होश में आ जाता है तथा इसका कोई प्रतिप्रभाव भी नहीं है।
- नाक के नीचे गड्डे पर।
- पैरों के तलुवों पर बीचवाली अँगुलीकी सीधमें।
- कानों की लटकन पर दबाव दें।
इस विधि को प्रत्येक व्यक्ति को जानना चाहिये; क्योंकि इसके माध्यम से आप मिर्गी के मरीज को महान् कष्ट से बचा सकते हैं।
14. दौरे की स्थितिसे मरीज को उबारनेके लिये किसी अशोभनीय तरीके का प्रयोग न करें-यथा जूते हुँघाना आदि।
यद्यपि जीवन में प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में अवसाद से ग्रस्त होता है, तथापि सामान्य व्यक्तियों की तुलना में मिर्गी के मरीज अवसाद के अपेक्षाकृत अधिक शिकार होते हैं। अवसाद की अंतिम परिणति होती है आत्महत्या का प्रयास तथा मिर्गी के मरीज यह प्रयास करते हुए अधिक पाये जाते हैं।
यदि दौरे नियन्त्रित न हो रहे हों तो यथासम्भव मरीज को कोई भी वाहन न चलाना चाहिये, नदी में स्नान या स्वीमिंपुल में तैरने आदि से भी बचाना चाहिये तथा जहाँ तक हो सके अधिक भीड़-भाड़वाले स्थानों पर न जाना चाहिये। इस रोगसे ग्रस्त व्यक्तिके जीवनसे तनाव या घुटनको निकालने का प्रयास करना हम सभी का दायित्व है। तनाव एवं घुटन रहित वातावरण में इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है।