Last Updated on April 6, 2020 by admin
नवायस लौह टैबलेट या चूर्ण के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक औषधि है । इस औषधि का विशेष उपयोग खून की कमी, यकृत एवं प्लीहा विकार के उपचार के लिए किया जाता है। नवायस लौह शरीर में रक्तधातु को बढाने के साथ-साथ बालों का झडना ,मोटापा व बवासीर जैसे रोगों के उपचार में उपयोगी है ।
घटक एवं उनकी मात्रा :
- सोंठ – 10 ग्राम,
- काली मिर्च – 10 ग्राम,
- पिप्पली – 10 ग्राम,
- हरीतकी – 10 ग्राम,
- वहेड़ा – 10 ग्राम,
- आमला – 10 ग्राम,
- नागर मोथा – 10 ग्राम,
- विडंग – 10 ग्राम,
- चित्रक मूल छाल – 10 ग्राम,
- उत्तम लोह भस्म – 90 ग्राम,
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- त्रिकटु : दीपन, पाचन, अग्निबर्धक, अनुलोमक।
- त्रिफला : दीपन, पाचन आमपाचक, बल्य, रसायन।
- नागर मोथा : दीपक, पाचक, आम पाचक, स्रोतोशोधक।
- विडंग : दीपन, पाचन, कृमिघ्न, रसायन।
- चित्रक : दीपन, पाचन, अग्निबर्धक।
- लोह भस्म : रक्तबर्धक, बल्य, रसायन।
काष्टौषधियों का वस्त्र पूत चूर्ण एवं लोह भस्म मिलाकर एक घण्टे तक सतत् खरल करवा कर सुरक्षित कर लें। गोलियां बनानी हो तो 20 ग्राम गोंद को पानी में घोलकर 250 मि.ग्रा. की गोलियां बनवा लें।
250 से 500 मि.ग्रा. (एक से दो गोली) प्रात: सायं, भोजन के बाद
अनुपान :
मधु , छाछ।
खून की कमी में नवायस लौह (चूर्ण) के प्रयोग से लाभ
खून की कमी (रक्ताल्पता /anemia) का मुख्य कारण मन्दाग्नि है। जाठराग्नि के मंद होने से भुक्तान्न का समयक् पाचन नहीं होता एवं समयक् पाचन के अभाव से रस रक्तादि धातुओं का उत्पादन कम होता है अतः शरीर में रक्ताल्पता हो जाती है। यह रक्ताल्पता ही ‘पाण्डु’ है।
नवायस चूर्ण अपने दीपन, पाचन, अग्निवर्धन एवं रक्त वर्धन गुणों के कारण पाण्डुरोग की महौषधि है। 250-500 मि.ग्रा. प्रातः सायं भोजन के बाद मधु, तक्र (छाछ) या जल से देने से इसका रोगी पर प्रभाव एक सप्ताह में ही परिलक्षित होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए इसका प्रयोग एक मण्डल (चालीस दिन) तक करवाना चाहिए ।
सहायक औषधियों में आरोग्य वर्धिनी वटी, मण्डूर वज्रवटक, योगराज, कन्यालोहादि वटी में से किसी एक का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
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बवासीर से आराम दिलाए नवायस लौह (चूर्ण) का सेवन
अपने दीपन, पाचन, अग्निवर्धन गुणों के कारण ‘नवायस चूर्ण’ बवासीर (अर्श) रोग की एक सफल औषधि है अग्निमान्ध ही तो अर्श रोग का मुख्य कारण है और इस महौषधि के सेवन से अग्नि उद्दीप्त होती है। रक्त वाहिनियों का स्रोतोरोध दूर होकर रक्त परिभ्रमण सुचारु रूप से होने लगता है अत: अंर्शाकुरों में अवरुद्ध रक्त भी स्रोतस खुल जाने के कारण अपने गन्तव्य की ओर अग्रसर होने लगता है फलस्वरूप अंर्शाकुरों का शोथ (सूजन) समाप्त हो जाता है और अंर्शाकुर सिकुड़ने लगते हैं।
गुद शोथ वेदना और खुजली (कण्डू) समाप्त हो जाते हैं । लोह भस्म के प्रभाव से पाण्डु एवं कृश्ता दूर होकर रोगी के बल, वर्ण की वृद्धि होती है।
250-500 मि.ग्रा. नवायस चूर्ण को प्रात: सायं भोजनोपरान्त तक्र के अनुपान से सेवन करवाना चाहिए, चिकित्सावधि चालीस दिन।
अर्श कुठार रस, कंकायणवटी ,रसांजन वटी में से किसी एक का सहायक औषधि के रूप में प्रयोग करवाना ठीक रहता है।
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हृदय रोग मिटाए नवायस लौह (चूर्ण) का उपयोग
स्रोतोरोध जन्य सभी हृदय रोगों का नवायस चूर्ण एक प्रभाव शाली औषधि है, विशेषतः स्थौल्य (मोटापा) युक्त हृदय रोगियों के लिए यह अतीव लाभदायक है। इसके सेवन से अग्निवर्धन होता है जिससे कफ एवं आम की उत्पत्ती बन्द हो जाती है । पूर्व संचित मेद और आम का ज्वलन होने लगता है। फलस्वरूप रक्तवाहिनियों के अवरोध खुलने लगते हैं। धमनियों में स्थिति स्थापकत्व पुनः प्रकट हो जाता है, रक्ताभिसरण सुचारु रूप से होने लगता है, जाठराग्नि वर्धन से धात्वाग्नियां भी प्रदीप्त हो जाती हैं तथा नवीन धातुओं के उत्पादन से हृदय को बल मिलता है। इस प्रकार नवायस चूर्ण हृदय रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है।
प्रभाकर वटी, हृदयार्णव रस, शंकर वटी, हृदय चिन्तामणि रस, योगेन्द्र रस, वृहद्वात चिन्तामणि रस इत्यादि में से किसी एक या दो का सहायक औषधि के रूप में अवश्य प्रयोग करवाना चाहिये।
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कुष्ठ रोग में नवायस लौह (चूर्ण) के सेवन से लाभ
त्वचा को कुत्सित करने वाले रोग कुष्ठ हैं और इन त्वक रोगों का मुख्य कारण है त्वचा में स्थित सूक्ष्म रक्त वाहिनियों का अवरोध, इस अवरोध के कारण त्वचा में भ्राजक (चमकानेवाला) पित्त का संचार सम्भव नहीं हो पाता अत: त्वचा आभा रहित (निःस्तेज) रुक्ष, खर, एवं स्फोटों पिडिकाओं से युक्त रुक्ष या सावी कण्डू (खुजली) युक्त, रक्ताभ, कृष्ण वर्ण की हो जाती है। रोम, भंगुर होकर गिरने लगते हैं, अथवा सफेद होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में नवायस चूर्ण 250-500 मि.ग्रा. की मात्रा में प्रात: सायं शीतल जल से सेवन करवाने से दो सप्ताह के भीतर त्वचा में परिवर्तन होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए छ: मास तक औषधि सेवन आवश्यक है।
सहायक औषधियों में व्योषाद्य चूर्ण, निम्बामलकी (स्वानुभूत) गंधक रसायन, आरोग्य वर्धिनी वटी, में से किसी एक प्रयोग भी अवश्यक करवायें।
पीलिया (कामला) में नवायस लौह (चूर्ण) का उपयोग लाभदायक
कोष्टाश्रित और शाखाश्रित दोनों प्रकार के पीलिया (कामला) में नवायस चूर्ण का उपयोग होता है। अपने कफ पित्त नाशक गुण के कारण यह यकृत पित्ताशय एवं पित्त नलिका के स्रोतस का शोधन करता है, रक्त बर्धक होने के कारण नवीन रक्त कणों के उत्पादन में सहायक होता है।
250-500 मि.ग्रा. प्रातः सायं भोजन के उपरान्त छाछ से सेवन करायें। आरोग्य वर्धिनी वटी दो गोली प्रात: सायं भोजन से पूर्व शीतल जल से दें। रात्री को सोते समय और प्रातः जागने पर एक चम्मच अविपत्तिकर चूर्ण शीतल जल से देने से दो तीन दिन में नेत्र, मूत्र, त्वक (त्वचा) का पीतत्व घट जाता है। पूर्ण लाभ के लिए तीन सप्ताह तक सेवन करवायें।
मोटापा (स्थौल्य) घटाने में लाभकारी नवायस लौह (चूर्ण)
नवायस चूर्ण मोटापा (स्थौल्य) की एक प्रभावशाली औषधि है। जठराग्निमान्द्य के कारण जब धात्वाग्नियां भी मन्द हो जाती है तो जिस धातु की अग्नि मन्द होती है उस धातु की वृद्धि हो जाती है और उसके आगे की धातुओं का ह्रास । यह स्थिति स्थौल्य में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
रोगी की धातुओं में रस रक्त और मांस सामान्य होती हैं । मेद धातु की अग्नि मन्द होने से मेद बढ़ कर उदर(पेट),जाँघ , स्तन, स्फिग इत्यादि स्थानों में संग्रहीत होने लगता है और आगे की धातुओं अस्थि, मज्जा और शुक्र का ह्रास होने लगता है। यही स्थिति स्थौल्य या मेदोरोग है।
नवायस चूर्ण 250-500 मि.ग्रा. की मात्रा में मधु से आलोडित कर चटाने, अथवा तक्र या उष्ण जल से सेवन करवाने से दो सप्ताह में शरीर का भार कम होने लगता है, पूर्ण लाभ के लिए निदान परिवर्जन (परहेज) के साथ छ: मास औषधि सेवन आवश्यक है ।
नवक गुग्गुलु, व्योषाधवटी, आरोग्य वर्धिनी वटी, विडंगादि लोह में से किसी एक या दो का सहायक औषधि के रूप में प्रयोग और प्रातः भ्रमण अत्यावश्यक होता हैं।
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श्वेत प्रदर रोग मिटाता है नवायस लौह (चूर्ण)
सन्तर्पण जन्य एवं अपतर्पण जन्य दोनों प्रकार के श्वेत प्रदर में नवायस चूर्ण का व्यवहार होता है। अपने दीपन, पाचन, कफ, पित्त शामक, प्रभाव से यह कफ और आम की उत्पत्ती को नियंत्रित करता है। शरीर में पूर्ण संचित कफ, मेद एवं आम का दहन करके, सन्तर्पण जन्य श्वेत प्रदर के मूल कफ का शोषण करके श्वेत प्रदर से मुक्ति दिलाता है, इसका रक्त बर्धक प्रभाव, रुग्ण की अशक्ति मिटा कर उसे सशक्त बनाता है।
अपतर्पण जन्य श्वेत प्रदर में रक्त वर्धन, बल वर्धन एवं धातुवर्धन गुणों के कारण नवीन धातुओं का उत्पादन करके रुग्णा में बल उत्साह की वृद्धि करता है। शरीर का कार्य दूर होने के साथ ही उसका श्वेत प्रदर भी निर्मूल हो जाता है। दोनों प्रकार की रुग्णाओं के लिए निदान परिवर्जन (परहेज) आवश्यक है।
तर्पण जन्य रुग्णाओं का अपतर्पण और अपतर्पण जन्य रुग्णाओं का संतर्पण करना रोग के मूल पर कुठाराघात के समान है।
बालों का झडना दूर करे नवायस लौह (चूर्ण) का उपयोग
अधुना सबसे अधिक रोगी केशों (बालों) की समस्या लेकर आते हैं। जिन में अधिकांशता महिलाएँ और उनमें अधिकता युवतियों की होती है। युवतियाँ पतली (त्वङ्गी) दिखने के लिए पौष्टिक पदार्थों का सेवन नहीं करती और यथा सम्भव व्यायाम भी करती हैं । फलस्वरूप पोषणाभाव के कारण, आहार का पोषण बालों तक नहीं पहुँचता और वह टूट कर गिरने लगते हैं । आधुनिक शैम्पू का प्रयोग बालों की रुक्षता को और बढ़ा देता है।
ऐसी परिस्थिति में नवायस चूर्ण 500 मि.ग्रा. मधु में आलोडित करके प्रातः सायं भोजन के बाद लेना चाहिए, तथा भृंगगराज तैल की मालिश, नित्य करनी , चाहिय, प्रथम दो सप्ताह में तो बाल गिरते रहेंगे परन्तु तीसरे सप्ताह से लाभ होने लगेगा छ: सप्ताह में बाल गिरना पूर्णता रुक जाता है। चिकित्सक को रुग्णा के सिर की त्वचा और अन्य अंगों की त्वचा का स्वयं निरीक्षण करना चाहिये यदि कोई त्वचा रोग उपस्थित हो तो, उसकी चिकित्सा भी करनी चाहिए।
- नवायस लौह (चूर्ण) लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- यह एक अत्यन्त सोम्य निरापद योग है। इसके सेवन से किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया की कदापि सम्भावना नहीं होती। इस योग की कार्मुकता (कर्मशीलता) लोह भस्म पर निर्भर करती है। अत: लोह भस्म कम-से-कम 100 पुटी लें और किसी विश्वस्नीय प्रतिष्ठान से खरीदें।
- भस्म सेवन में लेने वाले पूर्वोपाय इसमें भी लें।
- Baidyanath Navayas Lauh 10 GM / 40 TABS – Rs 85
- Patanjali Divya Navayas Lauh Powder 10 gm – Rs 30
- Dabur Navayas Lauh 5 gm – Rs 40
कहां से खरीदें :