विडंगादि लौह क्या है ? (What is Vidangadi Lauh in Hindi)
विडंगादि लौह टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग मोटापा, कृमि रोग, पीलिया, खून की कमी, सूजन आदी रोगों के उपचार में किया जाता है ।
विडंगादि लौह आयुर्वेद की एक जानी-मानी टॉनिक है, यह पाचन-अवशोषण को मजबूत कर कब्ज़ को दूर करती है ।
घटक और उनकी मात्रा :
- विडंग – 10 ग्राम,
- नागर मोथा – 10 ग्राम,
- हरड़ – 10 ग्राम,
- बहेड़ा – 10 ग्राम,
- आमला – 10 ग्राम,
- देवदारु – 10 ग्राम,
- पिप्पली – 10 ग्राम,
- पिप्पली मूल – 10 ग्राम,
- चव्य – 10 ग्राम,
- चित्रक मूल छाल – 10 ग्राम,
- काली मिर्च – 10 ग्राम,
- सोंठ – 10 ग्राम,
- उत्तम शतपुटी लोह भस्म – 120 ग्राम,
- गोमूत्र – एक लिटर
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- विडंग : कृमिघ्न (कृमिनाशक), दीपन, पाचन, रसायन ।
- नागर मोथा : अग्नि वर्धक, आम पाचक।
- त्रिफला : दीपक, पाचक, सारक, बल्य, रसायन।
- देवदारु : वात कफनाशक, शोथघ्न (सूजना नाशक), वेदनास्थापक (दर्द दूर करने वाली)।
- षडूषण : दीपक, पाचक, अग्निवर्धक, आमपाचक, अनुलोमक।
- लोह भस्म : बल्य, रक्तवर्धक, रसायना
- गोमूत्र : मेदनाशक, कफनाशक, आमनाशक, अनुलोमक, रसायन।
विडंगादि लौह बनाने की विधि :
सभी काष्टौषधियों का चूर्ण कर के रख लें । लोहे की कड़ाही में गोमूत्र डालकर पकायें जब गोमूत्र उबलने लगे तो उसमें लोह भस्म डाल दें, अग्नि थोड़ी मन्द कर दें और द्रव्य को चम्मच से चलाते रहें जब अवलेहवत् हो जाए तो कड़ाही को नीचे उतार कर उसमें काष्ठौषधियों का चूर्ण डालकर हिलाते रहें। औषधि ठण्डी होने तक गोली बनाने योग्य हो जाएगी, अब इसकी 150 मि.ग्राम की गोलियां बनवाकर धूप में सुखा कर रख लें।
विडंगादि लौह की खुराक (Dosage of Vidangadi Lauh)
एक से दो गोली, प्रातः भोजन के बाद।
अनुपान : तक्र, शीतल जल, अथवा रोगानुसार।
विडंगादि लौह के फायदे और उपयोग (Benefits & Uses of Vidangadi Lauh in Hindi)
विडंगादि लौह के कुछ स्वास्थ्य लाभ –
1). पीलिया रोग में विडंगादि लौह के इस्तेमाल से फायदा
याकृत पित्त का अवरोध होकर जब यह पित्त पित्तनलिका द्वारा आन्त्र में न जाकर रक्त में मिश्रित हो जाता है तो पित्त के तीक्ष्ण और अम्ल गुण के कारण शोण वर्तुली के कणों को नष्ट करता है फलस्वरूप रक्त में रक्त कणों की संख्या घट जाती है और पित्त (सीरम विल्लरुविन) की मात्रा बढ़ जाती है। अत: मूत्र, नेत्र, नख पीत वर्ण के हो जाते हैं ।
रक्त में पित्त की मात्रा जितनी अधिक होती है, पीतवर्ण उतना ही गहरा होता है। पित्त की उष्मा एवं तीक्ष्णता और रोग के विष के कारण यकृत वृद्धि हो जाती है तथा क्षुधानाश, दौर्वल्य, खुजली, बेचैनी (उत्कलेश), मन्द ज्वर, आदि लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं।
विडंगादि लौह एक दो गोली प्रात: और दोपहर को छाछ, मूली स्वरस, आमला स्वरस, कुम्हड़ा स्वरस अथवा किसी भी मीठे फल के रस के साथ देने से दो तीन दिवस में ही लाभ होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए दो सप्ताह तक औषधि सेवन करवाएँ।
सहायक औषधियों में – आरोग्य वर्धिनी वटी, कन्यालोहादि वटी, पुनर्नवादि मण्डूर में से किसी एक का सेवन करें।
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2). एनीमिया (खून की कमी) में लाभकारी है विडंगादि लौह का प्रयोग
एनीमिया रोग की चिकित्सा में विडंगादि लौह एक उत्तम औषधि है, इसके प्रयोग से एक सप्ताह में ही अग्निदीप्त होकर नवीन रक्त की उत्पत्ती प्रारम्भ हो जाती है। पूर्ण लाभ के लिए चालीस दिन तक औषधि सेवन करवाएँ ।
सहायक औषधियों में – यकृदारिलोह, योगराज, नवायस चूर्ण, पुनर्नवादि मण्डूर में से किसी एक की योजना करें।
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3). मोटापा (स्थौल्य) दूर करने में विडंगादि लौह फायदेमंद
दो प्रकार के स्थूल व्यक्ति मिलते हैं, एक जो खूब खाते-पीते हैं और आराम से सोते हैं। ऐसे व्यक्तियों के स्थौल्य कारण, सन्तर्पण और सन्तर्पण जन्य मेद वृद्धि होता है। अत्यधिक भोजन खाने के कारण इनकी जठराग्नि मन्द हो जाती है। स्थिति अधिक दिन बनी रहे तो धात्वाग्नियां भी मन्द होने लगती है विशेष रूप से इन रोगियों की मेदोअग्नि मन्द हो जाती है। फलस्वरूप रस, रक्त एवं मांस अग्नियां सामान्य होने के कारण उपरोक्त रसादि धातुएँ भी सामान्य रहती है, मेदो अग्निमन्द से मेद धातु की वृद्धि होकर वह शरीर के मांसल भागों स्तन, स्फिग, उदर, जंघा, ग्रीवा में संग्रहित हो जाती है और उसके आगे की धातुओं अस्थि मज्जा और शुक्र में दुर्बलता आ जाती है।
व्यक्ति हष्टपुष्ट दिखता है परन्तु उसमें बल, वीर्य और उत्साह कम हो जाते हैं, उसे अधिक पसीना आता हैं, और पसीने में दुर्गंध होती है। चलने या काम करने पर श्वास में वृद्धि हो जाती है। चलते समय उसके उदर, स्तन, स्फिग हिलते हैं क्षुधा अधिक लगती है। रोगी खाता भी खूब है। सोता भी खूब परन्तु उसमें उत्साह और बल हीनता आ जाती है। वीर्य की कमी और मोटापे के कारण वह मैथुन में भी असमर्थ हो जाता है।
दूसरे प्रकार में रोगी का भोजन सामान्य से भी कम होता है परन्तु उसका शरीर भार बढ़ता ही जाता है। यह प्रायशः महिलाओं का रोग है। जो चुल्लिका ग्रंथी स्राव हीनता के कारण होता है। मुख्य कारण इसमें भी कफ वृद्धि ही होता है।
विडंगादि लौह मोटापे के इन प्रकारों में महत्त्वपूर्ण औषधि है। दो गोलियां प्रात: दो दोपहर भोजन के बाद मधु, छाछ अथवा उष्ण जल से दें।
दो मास में मेद कम होने लगेगा। पूर्ण लाभ के लिए कम-से-कम छ: मास तक औषधि सेवन करवाऐं। प्रात: पाँच से छ: किलोमीटर तक का भ्रमण और सरसों के तेल से मालिश करवाएँ।
सहायक औषधियों में – व्योषाद्य वटी, आरोग्य वर्धिनी वटी, अग्नि कुमार रस, में से किसी एक या दो औषधियों की योजना करें।
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4). धातुगत आम में विडंगादि लौह के सेवन से लाभ
कफ वर्धक आहार विहार के सेवन से इस समय ऐसे रोगी अधिक आते हैं जिनके रक्त में आम (लिपिड) की मात्रा आवश्यकता से अधिक होती है। ऐसे लोग हृदय घात, मस्तिष्क घात, ब्लड प्रेशर, धमनी संकीर्णता, इत्यादि के लिए उपयुक्त व्यक्ति समझे जाते हैं। इन्हें हाई रिस्क (अति संकट) रोगी कहा जाता है।
ऐसे रोगियों को विडंगादि लौह 250-500 मि.ग्रा. प्रात: दोपहर को सेवन करवाने से दो सप्ताह में ही लिपिड में कमी आने लगती है। तीन मास की चिकित्सा पर्याप्त होती है।
सहायक औषधियों में – नवक गुग्गुलु, व्योषाध वटी, आरोग्यवर्धिनी वटी, में से किसी एक का प्रयोग भी करवाएं। ध्यान रहे परहेज उतना ही आवश्यक है जितनी औषधि । आहार और श्रम एवं कर्म और आराम का सन्तुलन भी बना रहना आवश्यक है।
5). सूजन मिटाए विडंगादि लौह का उपयोग
व्यवसाय में प्राय: ऐसी महिलाएँ आती है जिनको गाड़ी में यात्रा करने कुर्सी पर पाँव लटका कर बैठने से पाँव में हल्की सी सूजन आ जाता है, प्रातः भ्रमण के उपरान्त उनके हाथ की अंगूठियें तंग हो जाती है। किसी उत्सव में जाने से हाथ और पाँव दोनों में हल्की सी सूजन हो जाती है । महिला स्वयं सूजन की शिकायत करती हे परन्तु उसके परिजनों को शोथ दिखाई नहीं देता। चिकित्सक भी भलीभाँति देखे तभी उसे शोथ का प्रमाण (दबाने से गड्ढा बनना) मिलता है। इसके अतिरिक्त रुग्ण कोई शारीरिक मानसिक कष्ट नहीं होता।
विडंगादि लौह इस संलक्षण की एक सफल औषधि है । दिन में एक मात्रा केवल प्रातः मधु में मिलाकर चटा देने पर दो सप्ताह में ही पैरों की सूजन लुप्त हो जाती है।
सहायक औषधि की प्राय: आवश्यकता नहीं पड़ती, यदि आवश्यक हो तो आरोग्य वर्धिनी वटी, दो गोलियाँ प्रात: सायं देते हैं।
अन्य प्रकार के की सूजन जैसे – पैरों की सूजन, मुख की सूजन, सर्वाङ्ग सूजन में भी विडंगादि लौह से लाभ मिलता है। यह अग्नि को बढ़ा कर स्रोतोरोध को दूर करता है। रक्त की वृद्धि करता है और यकृत, प्लीहा तथा हृदय रोगों के मूलभूत कारण अग्निमान्द्य का नाश कर धात्वाग्नियों को प्रदीप्त करके सुचारु रक्त परिभ्रमण को सुनिश्चित करता है। अतः रोगी को सूजन से मुक्ति मिल जाती है।
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6). कृमि रोग में विडंगादि लौह का औषधीय गुण फायदेमंद
कृमि रोग से यहाँ तात्पर्य पुरीषज कृमियों से है। पुरीषज कृमियों की उत्पत्ती का कारण कफज आहार विहार होता है। कब्ज भी कृमि रोगों के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण करती है। विडंगादि लौह दो गोली प्रातः सायं सेवन कराने से कृमि रोगों में 10 दिन में ही लाभ परिलक्षित होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए इसे चालीस तक प्रयोग करवाना चाहिए। सहायक औषधियों में कृमि कुठार रस, कृमि मुग्दर रस, व्योषाद्य वटी, विडंगारिष्ट इत्यादि का प्रयोग भी करवायें।
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7). संक्षुभित आन्त्र संलक्षण (इरिटेटिव वाउल सिन्ड्रोम) में लाभकारी विडंगादि लौह
यह रोग ग्रहणी का ही रूप है। प्रातः काल रोगी को दो से चार पाँच बार शौच जाना पड़ता है। मल तरल अर्ध तरल पिच्छिल होता है एवं मल त्याग के लिए तुरन्त जाना पड़ता है। क्वचिद् मल के साथ आम भी निकलता है। इसके उपरान्त पूरा दिन रोगी को कोई भी कष्ट नहीं होता हाँ कभी-कभार कुछ अधिक खा लेने के कारण दूध, पत्तेदार भाजी अथवा अधिक तीखा खाने से रोगी को अतिसार हो जाता है जो सामान्य चिकित्सा से ठीक हो जाता है।
ऐसे रुग्णों को विडंगादि लौह की एक से दो गोली प्रात: और दोपहर के भोजन के बाद छाछ से देने से दो सप्ताह में रोग में लाभ होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए तीन से छ: मास तक औषधि प्रयोग की आवश्यकता होती है।
सहायक औषधियों में – शंखोदर रस, नृपति वल्लभ रस, ग्रहणी कपाट रस, प्रवाल पंचामृत, लोकनाथ रस, इत्यादि में से किसी एक या दो का आवश्यकतानुसार प्रयोग करवाना चाहिए।
आयुर्वेद ग्रंथ में विडंगादि लौह के बारे में उल्लेख (Vidangadi Lauh in Ayurveda Book)
विडंग मुस्ता त्रिफला देव दारु षडूषणैः।
तुल्यमात्रमयश्चूर्ण गोमूत्रेऽष्ठ गुणे पचेत्॥
गुंजा द्वयमिता कृत्वा वटी खादेद् दिने दिने।
कामला पाण्डु रोगार्ताः सुखंमापद्यतेऽचिरात्॥
-भैषज्यरत्नावली (पाण्डुरोगाधिकार 25-26)
विडंगादि लौह के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ (Varunadi Loh Side Effects in Hindi)
- विडंगादि लौह लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
- विडंगादि लौह को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- विडंगादि लौह “लोह भस्म” युक्त होने के कारण धातुओं की भस्मों के सेवन में लिए जाने वाले पूर्वोपाय इसमें भी लिए जाने चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)