Last Updated on June 17, 2021 by admin
हड्डियों का नरम पड़ जाना ही ऑस्टियोमलेशिया है। इसमें या तो विटामिन ‘डी’ की कमी से या दूसरे कारणों से हड्डियों में कैल्शियम और फॉस्फेट जमा नहीं हो पाते। हड्डियाँ पूरी ताकत न मिलने से दर्द करती रहती हैं और उनकी शक्ल-सूरत बिगड़ जाती है। जरा सा जोर उन्हें तोड़ डालता है जिससे स्थिति बदतर हो जाती है। समस्या का कारण ठीक-ठीक मालूम कर इलाज देने से ही यह रोग ठीक हो पाता है।
अस्थिमृदुता (ऑस्टियोमलेशिया) क्या है ?
यह बच्चों के सूखा रोग का ही वयस्क रूप है जो हड्डियों को नरम बना देता है। यह पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में अधिक होता है और अक्सर बीस से चालीस साल की उम्र में शुरू होता है।
ऑस्टियोमलेशिया रोग कब पैदा होता है ?
ऑस्टियोमलेशिया बहुत सी स्थितियों में पैदा हो सकता है।
- विटामिन ‘डी’ की कमी,
- आँतों की बीमारियाँ जिनमें आँतें विटामिन ‘डी’ को जज्ब नहीं कर पातीं,
- जिगर की बीमारियाँ जिनमें विटामिन ‘डी’ काम करने लायक सक्रिय घटक में नहीं बदल पाती,
- गुर्दे की बीमारियाँ जिनमें गुर्दे फॉसफोरस को पेशाब में बाहर फेंक देते हैं या विटामिन ‘डी’ को सक्रिय घटक में नहीं बदल पाते,
- गुर्दो का जवाब दे जाना,
- मिरगीरोधक दवाओं का लंबे समय तक लगातार सेवन ऑस्टियोमलेशिया पैदा करने वाले प्रमुख कारण हैं।
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विटामिन ‘डी’ की कमी कब और क्यों पैदा होती है ?
यह तो हमें सूर्य की रोशनी से ही मिल सकती है । बंद घरों में रहनेवालों और पर्दानशीं औरतों की यह किस्मत कहाँ कि आराम से सूरज की रोशनी भी ग्रहण कर सकें। ऊपर से यह निगोड़ा प्रदूषण, जो उसकी अल्ट्रावायलेट किरणों को हम तक पहुँचने से पहले ही रोक देता है। इससे हमारी चमड़ी जरूरत की विटामिन ‘डी’ नहीं बना पाती।
यों विटामिन ‘डी’ हमें बहुत-सी खाने-पीने की चीजों में भी मिलती है। दूध, मक्खन, मेवे इसके सबसे अच्छे प्राकृतिक स्रोत हैं। पर यह हमें खाना पकानेवाले तेल, घी, मक्खन और डबलरोटी में भी मिलती है क्योंकि सरकार की नीति है कि ये चीजें इससे संवर्धित करने के बाद ही बेची जाएँ।
लेकिन औरतों में गर्भावस्था और स्तनपान के समय विटामिन ‘डी’ की जरूरत भी चौगुनी हो जाती है। अक्सर यह पूरी नहीं हो पाती जिससे ऑस्टियोमलेशिया हो जाता है।
कई अच्छे संभ्रांत वर्ग के खाते-पीते लोगों में भी कभी-कभी विटामिन ‘डी’ की कमी हो जाती है, जब उनकी आँतें विटामिन ‘डी’ को ठीक से जज्ब नहीं करतीं।
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ऑस्टियोमलेशिया रोग में क्या-क्या तकलीफें होती हैं ? इसके लक्षण ?
- हड्डियों में लगातार दर्द रहता है।
- रीढ़ की हड्डियाँ दब जाती हैं।
- कूल्हों में भी बहुत दर्द होता है। इससे चलने-फिरने में दिक्कत होती है और व्यक्ति दर्द कम करने के लिए बहुत सँभल-सँभल कर चलता है।
- बचपन से ही रोग रहा हो तो पेट के निचले हिस्से (श्रोणि) की हड्डियाँ अपना प्राकृतिक ढाँचा गँवा देती हैं, जिससे रुग्ण महिला के माँ बनने पर सामान्य प्रसव में विघ्न आता है और सीजेरियन की जरूरत आ पड़ती है।
- मांसपेशियाँ भी कमजोर हो जाती हैं।
- हड्डियों का दर्द और यह कमजोरी कई मरीजों को बिस्तर या कुरसी से ही बाँध देती है। जरा सा जोर पड़ने पर यों भी हड्डियाँ टूट जाती हैं जिससे तकलीफें और बढ़ जाती हैं।
ऑस्टियोमलेशिया में कौन-कौन से जाँच-परीक्षण उपयोगी होते हैं ?
यह व्यक्ति-विशेष के मामले पर निर्भर करता है। लेकिन एक्स-रे करने पर पीड़ित अंगों की अस्थि-विकृतियाँ खुलकर सामने आ जाती हैं। तरह-तरह के ब्लड टेस्ट भी किए जाते हैं, ताकि पता लग सके कि मसला क्या है।
क्या ऑस्टियोमलेशिया रोग ठीक हो जाता है ?
हाँ, ठीक से निदान कर लेने के बाद यदि कारण को दूर किया जाए और पर्याप्त मात्रा में विटामिन ‘डी’ दी जाए तथा कैल्शियम की भी शरीर में पूर्ति की जाए तो छह से बारह हफ्तों में आराम आने लगता है और छह महीने में हड्डियों में पूरी मजबूती आ जाती है।
मिरगीरोधक दवा ले रहे मरीजों के लिए जरूरी है कि दवा के साथ-साथ वे विटामिन ‘डी’ की गोलियाँ भी लें, ताकि उनके शरीर में इसकी पूर्ति होती रहे।