विटामिन डी के स्रोत, फायदे और कमी से रोग | Vitamin D: Health benefits, foods in Hindi

Last Updated on October 20, 2019 by admin

विटामिन डी क्या है ? : Vitamin D in hindi

शरीर के लिए उपयोगी और महत्वपूर्ण एक अन्य पोषक तत्व विटामिन-डी के विषय में विवरण प्रस्तुत है। यह विटामिन ‘डी’ वसा में घुलनशील है। विटामिन्स कोई एक तत्व नहीं, बल्कि कई प्रकार के अलग-अलग तत्व होते हैं। ये एक प्रकार के कार्बनिक यौगिक होते हैं जो शरीर की वृद्धि और विकास के लिए उपयोगी होने से ज़रूरी होते हैं। यदि भोजन में इनकी संतुलित और पर्याप्त मात्रा से युक्त पदार्थ न हों तो शरीर विटामिन-हीनता से उत्पन्न होने वाले रोगों के लक्षणों से ग्रस्त हो जाएगा।

विटामिन डी अस्थियों (हड्डियों) के लिए विशेष रूप से उपयोगी और गुणकारी होता है अत: अस्थि-दौर्बल्य को दूर करने वाला पोषक तत्व है। शुद्ध विटामिन डी सफेद रंग का, गंध रहित, वसा में घुलने वाला और पानी में न घुलने वाला तत्व है जो अम्ल, क्षार, ताप व हवा के संपर्क में आने पर नष्ट नहीं होता। आइये जाने विटामिन डी क्या काम करता है –

विटामिन डी की शरीर के लिए उपयोगिता और इसके फायदे :

अस्थियों के लिए-विटामिन डी अस्थियों के निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । अस्थियां मजबूत हों, मजबूत रहे इसके लिए अस्थियों पर कैल्शियम जमने की प्रक्रिया (Calcification) का होना ज़रूरी होता है । विटामिन डी अस्थियों में केल्सिफिकेशन की प्रक्रिया में सहयोगी होता है जिससे अस्थियां मजबूत होती हैं। साथ ही विटामिन डी की मौजूदगी से आंतों में कैल्शियम व फासफोरस के अवशोषण को बढ़ावा मिलता है यानि यह विटामिन शरीर में कैल्शियम व फासफोरस का उचित उपयोग कराने में विशेष रूप से सहायक होता है। शरीर में विटामिन डी, कैल्शियम और फासफोरस-ये तीनों पदार्थ उपलब्ध होते हैं तो अस्थियों का विकास उत्तम ढंग से होता है। कहने का मतलब यह है कि विटामिन डी के मौजूद होने पर ही कैल्शियम और फासफोरस अपना कार्य ठीक से कर पाते हैं। केल्सिफिकेशन की क्रिया में सहयोगी होने के कारण विटामिन डी को ‘केल्सिफाइंग विटामिन’ भी कहा जाता है।

दांतों के लिए-विटामिन डी दांतों के लिए भी उपयोगी होता है अत: दांतों के विकास के लिए भी विटामिन डी का होना बहुत ज़रूरी होता है यानि कैल्शियम और फासफोरस के साथ ही विटामिन डी की उपस्थिति दांतों के निर्माण और मजबूती के लिए बहुत ज़रूरी है। विशेषकर शैशव और बाल्यकाल के समय विटामिन डी की उपलब्धि बहुत जरूरी होती है ताकि दांतों का ठीक से निर्माण हो सके और दांत मजबूत हो सकें।

विटामिन डी की प्राप्ति के स्रोत : Vitamin D foods – vegetables, Fruits and other sources

विटामिन डी वनस्पति-भोज्य पदार्थों में नहीं पाया जाता, इसकी उपस्थिति प्राणिज भोज्य पदार्थों में ही होती है।
☛ शाकाहारी अपने आहार में मलाई युक्त दूध, मक्खन, पनीर आदि को शामिल करके विटामिन डी प्राप्त कर सकते हैं।
☛ दूध विटामिन डी प्राप्त करने का अच्छा स्रोत है और विशेष बात यह है कि दूध में कैल्शियम और फासफोरस भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं।

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☛ सूर्य की किरणें भी विटामिन डी की अच्छी स्रोत हैं। सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से भी शरीर में विटामिन डी की कुछ मात्रा निर्मित होती है इसलिए विटामिन डी की प्राप्ति के लिए केवल आहार पर ही निर्भर न रहकर सूर्य के प्रकाश का सेवन भी करना चाहिए।

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☛ सूर्य की किरणें भी विटामिन डी की अच्छी स्रोत हैं। सूर्य के प्रकाश के प्रभाव से भी शरीर में विटामिन डी की कुछ मात्रा निर्मित होती है इसलिए विटामिन डी की प्राप्ति के लिए केवल आहार पर ही निर्भर न रहकर सूर्य के प्रकाश का सेवन भी करना चाहिए।

विटामिन डी की कमी से होने वाले रोग : Vitamin D Deficiency Diseases in Hindi

✸ विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति के कारण शरीर द्वारा कैल्शियम और फासफोरस का अवशोषण नहीं हो पाता जिसका दुष्परिणाम होता है अस्थियों का कमजोर होना, दांत खराब और कमजोर होना ।
✸ शिशुओं के मामले में, इसका दुष्परिणाम यह होता है कि दांत देर से निकलते हैं और दांतों
की अच्छी रचना नहीं होती जैसे दांतों का सफेद और सुडौल न होना, दांतों पर मलिन और काले रंग का पदार्थ जमना जो दांतों को खराब, कमजोर और बदसूरत करता है ।
✸ विटामिन डी की कमी से बच्चों को रिकेट्स (Rickets) नामक रोग हो जाता है और प्रौढ़ आयु के स्त्री-पुरुषों को आस्टियोमलेशिया (osteomalacia) नामक रोग हो जाता है। इन दोनों रोगों के विषय में थोड़ा विवरण देना आपकी जानकारी के लिए जरूरी है।

(1) रिकेट्स – Vitamin D Deficiency and Rickets

विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति होने पर बच्चे के शरीर की अस्थियों में केल्शियम जमने की प्रक्रिया (Calcification) ठीक से नहीं हो पाती और बच्चे के शरीर की अस्थियां कमजोर होने लगती हैं, नरम होने लगती है जिससे मुड़ने लगती है। कलाई, घुटनों और एड़ियों की अस्थियों के अंतिम सिरे चौड़े हो जाते हैं। इस बीमारी की गंभीर स्थिति होने पर बच्चे की खोपड़ी की अस्थियां कोमल हो जाती है, माथा आगे को निकल आता है, पसलियां भी आगे निकल कर वक्राकार हो जाती हैं। इस लक्षण को ‘कबूतरी वक्ष’ (Pigeon Chest) कहते हैं। रीढ़ की हड्डियां भी वक्राकार हो जाती हैं जिससे बच्चा कुबड़े की तरह आगे की तरफ झुका हुआ रहता है।

चूंकि शरीर का सारा भार टांगों पर ही रहता है और विटामिन डी की कमी के कारण टांगों की हड्डियां कमजोर और नरम हो जाती हैं सो वे शरीर का भार नहीं उठा पाती और टेढ़ी हो जाती हैं। थोड़ा सा हिलने-डुलने पर दर्द होता है और बच्चा पीड़ा से व्याकुल हो जाता है। इस बीमारी को सुखिया या सूखा मैली कहते हैं जो विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति के कारण होती है।

इतने विवरण को पढ़ कर आप इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके होंगे कि अन्य पोषक तत्वों की तरह विटामिन डी की कमी या अनुपस्थिति होने पर शरीर की सामान्य वृद्धि और विकास की गति पर बुरा प्रभाव पड़ता है, हड्डियों के साथ ही मांसपेशियों का विकास भी ठीक से नहीं हो पाता । बच्चे का पेट ही पेट दिखाई देता है, वह चिड़चिड़ा, सुस्त, कमजोर और दुबला हो जाता है। प्रोटीन की कमी भी इस रोग के कारण होती है।

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(2) आस्टियोमलेशिया ( प्रौढ़ आयु में अस्थि दौर्बल्य) –

विटामिन डी की कमी के कारण प्रौढ़ आय में होने वाले रोग को अस्थि दौर्बल्य (Osteomalacia) कहते हैं या प्रौढ रिकेट्स भी कह सकते हैं । इस रोग में भी वैसी ही स्थिति होती है जैसी बच्चे की होती है। प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों के शरीर की अस्थियां कमजोर व नरम हो जाती हैं । इस रोग की आरंभिक स्थिति में दर्द होता है फिर रोग के बढ़ने के साथ चलने-फिरने और सीढ़ियां चढ़ने में तकलीफ और परेशानी होने लगती है। रीढ़ की हड्डी कमजोर हो जाने से कमर झुकने लगती है और मामूली चोट या दचका (Jerk) लगने से हड्डी टूटने की संभावना बढ़ जाती है।

महिलाओं में, विशेष कर गर्भावस्था के समय इस रोग के होने की संभावनाएं अधिक होती है क्योंकि गर्भस्थ शिशु के पर्याप्त विकास के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है अत: गर्भकाल के समय गर्भवती स्त्री को विटामिन डी की, सामान्य अवस्था की अपेक्षा, अधिक आवश्यकता होती है। इस काल में विटामिन डी की कमी होने पर आहार में लिये गये कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता । परिणामस्वरूप होने वाले डिकेल्सिफिकेशन (Decalcification) के कारण अस्थियां विकृत और कमजोर होने लगती हैं।

गर्भवती महिला के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु भी इससे प्रभावित होता है जिससे उसके शरीर का उचित विकास नहीं हो पाता और कभी-कभी घातक स्थिति भी बन जाती है। श्रोणि मेखला (Pelvis) के संकुचित हो जाने के कारण प्रसव के समय बहुत कष्ट होता है। कई बार ऐसा भी होता है कि प्रसव के बाद स्थिति सामान्य हो जाए, पर यदि विटामिन डी की कमी बनी रहे तो महिला की अगली गर्भावस्था के समय ये लक्षण गंभीरतम रूप में प्रकट होते हैं। तब महिला सीधे तनकर खड़े होने, चलने,सीढ़ियां चढ़ने आदि में बहुत कठिनाई और पीड़ा का अनुभव करती है तथा प्रसव के समय कई जटिलताएं पैदा होती हैं । गर्भवती महिला के आहार में विटामिन डी युक्त पदार्थों को पर्याप्त मात्रा में शामिल किया जाना बहुत ज़रूरी होता है।

यह तो हुई आहार संबंधी चर्चा यानि आहार के माध्यम से विटामिन डी के प्राप्त होने या न होने के परिणामों के बारे में बताया गया। अब विहार से संबंधित कुछ जरूरी बातों की चर्चा करते हैं । विहार के माध्यम से भी विटामिन डी की उपलब्धि शरीर को होती है। इसमें प्रमुख स्रोत है सूर्य का प्रकाश यानि सूर्य की किरणें ।

सूर्य की किरणों से मिलता है विटामिन डी : Vitamin D in Sunlight in Hindi

कई बार उन महिलाओं में विटामिन डी की कमी देखी जाती है जो अधिकांश समय सूर्य के प्रकाश से वंचित रहती हैं। परदे में रहने वाली महिलाएं या ऐसे घर में रहने वाली महिलाएं जहां सूर्य की किरणें सीधे नहीं पहुंचती विटामिन डी की कमी का शिकार बनी रहती हैं।

हमारे देश के अधिकांश परिवारों की महिलाएं निर्धनता, अशिक्षा, अज्ञानता और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण पोषक एवं संतुलित आहार से वंचित रहती हैं। वैसे भी शाकाहार में सेवन किये जाने वाले वानस्पतिक पदार्थों में विटामिन डी की मात्रा नगण्य होती है अत:सूर्य की किरणों से शरीर में विटामिन डी का निर्माण करना बहुत ज़रूरी हो जाता है।

शिशु को धूप में लिटा कर तेल की मालिश करने की रीति पुराने समय से चली आ रही है। इसके पीछे सही प्रयोजन है कि थोड़ी देर शिशु को सूर्य की किरणों से यह लाभ प्राप्त हो सके। महिलाओं को भी प्रतिदिन थोड़ी देर सूर्य की किरणों को अपने शरीर पर पड़ने देना चाहिए।

विटामिन डी की अधिकता से होने वाले रोग : Side Effects of Too Much Vitamin D in Hindi

यद्यपि भारत जैसे विकासशील देश में, जहां अधिकांश लोगों को ठीक से दो वक्त का भोजन ही नहीं मिलता, वहां विटामिन की उपलब्धि में अधिकता हो इसकी संभावना बहुत कम है । तथापि यह जानकारी देना, सावधानी की दृष्टि से, ज़रूरी है कि ऐसा आहार विहार न करें जिससे शरीर में विटामिन डी की अधिकता हो क्योंकि –
☛ इस विटामिन की अधिकता होने पर भूख कम होना ।
☛ पाचन संस्थान संबंधी विकार उत्पन्न होना ।
☛ सुस्तीव कमजोरी का अनुभव होना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।
☛ धमनियों, गुर्दो व फेफड़ों में कैल्शियम का जमाव (Calcification) होने लगता है जो शरीर और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तथा कभी-कभी घातक होता है।

विटामिन डी की दैनिक आवश्यक मात्रा : Daily Recommended Dose of Vitamin D in Hindi

इतने महत्वपूर्ण विटामिन के विषय में यह जानना ज़रूरी होगा कि दैनिक आहार-विहार में विटामिन डी की कितनी मात्रा प्राप्त करना ज़रूरी और हितकारी होगा। यद्यपि भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद (ICMR) के विशेषज्ञों द्वारा विटामिन डी की दैनिक आवश्यक मात्रा की सिफारिश नहीं की गई है क्योंकि सूर्य की किरणों की उपस्थिति से, इस विटामिन की पर्याप्त मात्रा शरीर में निर्मित होती है। फिर भी पोषक तत्वों के विशेषज्ञों के अनुसार,-
✸ शिशुओं और स्कूल जाने वाले बच्चों को, 10 माइक्रोग्राम यानि 400 अंतर्राष्ट्रीय इकाई (I.U.) ।
✸ बड़े बच्चों, युवा और प्रौढ़ आयु वालों को 5 माइक्रोग्राम (200 1.U.) विटामिन डी की मात्रा प्रतिदिन लेना पर्याप्त होता है।
✸ महिलाओं को गर्भकाल और शिशु को दूध पिलाने के दिनों में विटामिन डी की 10 माइक्रोग्राम मात्रा प्रतिदिन लेना चाहिए।

उष्ण कटिबंध (Tropical Countries) में इसकी लगभग आधी मात्रा सूर्य की किरणों से शरीर में निर्मित हो जाती है। किसी भी कारण से शरीर में विटामिन डी की कमी होने की जानकारी प्राप्त होने पर चिकित्सक के परामर्श के अनुसार आवश्यक समय तक उचित दवाइयों का सेवन करके और पथ्य आहारविहार का सेवन कर इस कमी को दूर किया जा सकता है।

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