परवल के औषधीय उपयोग और लाभ – Pointed gourd in Hindi

Last Updated on January 16, 2021 by admin

परवल क्या है ? (What is Pointed gourd in Hindi)

भगवान चरक ने तृष्णा निग्रहण एवं तृप्तिघ्न द्रव्यों में परवल (पटोल) की गणना की है। बीस श्लेष्म विकारों में तृप्ति नामक श्लेष्म रोग कहा गया है। इससे मनुष्य अपने को तृप्त (पेट भरे हुए) जैसा अनुभव करता है अथवा भोजन में अरूचि को तृप्ति नाम से कहा गया है । इस तृप्ति विकार को दूर करने वाले द्रव्य तृप्तिघ्न कहे जाते हैं। इसी प्रकार तृषा (प्यास) के कारणभूत दोष को शान्त करने के कारण परवल को तृष्णानिग्रहण कहा गया है।

प्राकृतिक वर्गीकरण के अनुसार परवल कोशातकी कुल (कुकुर्विटसी-Cucurbitaceae) की औषधि है। भाव प्रकाश निघन्टु में शाकवर्ग के अन्तर्गत तथा प्रियव्रत कृतद्रव्यगुण विज्ञान में ज्वरघ्न द्रव्यों के अन्तर्गत इसका वर्णन मिलता है।

परवल का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Pointed gourd in Different Languages)

Pointed gourd (Parwal) in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – पटोल, कुलक, राजीफल, बीजगर्भ
  • हिन्दी (Hindi) – परवल
  • गुजराती (Gujarati) – परवल
  • मराठी (Marathi) – परवल
  • बंगाली (Bangali) – पटोल
  • तामिल (Tamil) – कम्बुपुदालाई
  • तेलगु (Telugu) – कोम्मुपोटला
  • कन्नड़ (kannada) – कादू पडवल
  • मलयालम (Malayalam) – पटोलम्
  • अंग्रेजी (English) – प्वायंटेड गोर्ड (Pointed Gourd)
  • लैटिन (Latin) – ट्राइकोसैन्थस डायोका (Trichosanthes Dioica)

परवल की बेल कहां पाई या उगाई जाती है ? :

परवल की बेल उत्तरी भारी में गंगा के तटवर्ती प्रदेश, आसाम, बंगाल बिहार आदि स्थानों पर पाई जाती है।

परवल की बेल कैसी होती है ? :

  • परवल की बेल – परवल एक वर्षायु दीर्घ आरोही रोमश लता होती है।
  • परवल के पत्ते – परवल के पत्र आयताकार या हृदयाकार 3 इंच से 4 इंच लम्बे और 2 इंच चौड़े होते हैं। पत्र के दोनों तल प्रायः कर्कश होते हैं। पर्णवृन्त लगभग 3/4 इंच लम्बा होता है।
  • परवल के फूल – परवल के पुष्प एक लिंगी श्वेतवर्ण के होते हैं। नर एवं नारी पुष्प पृथक्-पृथक् पौधों पर होते हैं। पुंपुष्प युग्मदंडों पर एक एक निकलते हैं। स्त्री पुष्प एकल होते हैं।
  • परवल का फल – परवल का फल लम्बगोला, दोनों सिरों पर नुकीले 2-3 इंच लम्बे होते हैं। कच्चे फल श्वेताभ हरित एवं पकने पर लाल हो जाते हैं। फलों पर सफेद धारियां होती हैं।

परवल के प्रकार :

परवल की दो जातियां होती हैं। ग्राम्य एवं वन्य
ग्राम्य कृषि जन्य होता है तथा वन्य स्वयंजात या जंगली होता है। ग्राम्य, कृषिजन्य लता से प्राप्त फल तिक्त नहीं होता है इसे मीठा परवल (मीठा पटोल) कहते हैं। इसके फल का शाक बनाया जाता है। वन्य पटोल का पंचांग तिक्त होता है। इसे तिक्त या कड़वा परवल (कड़वा पटोल) कहते हैं। औषधि प्रयोग हेतु प्रायः यह ही काम में लाया जाता है।
इसकी एक छोटी जाति पटोलिका है जिसे लोक में परोरी कहते हैं। इसके गुणों में प्रायः समानता है। कई स्थानों पर इस पटोलिका के ग्रहण का निर्देश है।

परवल की बेल का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Pointed gourd vine in Hindi)

प्रयोज्य अंग – पत्र, मूल, फल (पंचांग)

संग्रह एवं संरक्षण – पंचांग को छाया में सुखाकर मुख बंद पात्रों में अनार्द (सूखे) स्थान पर रखें।

वीर्य कालावधि – 1 से 2 वर्ष

सेवन की मात्रा :

  • स्वरस – 10 से 20 मिलि0
  • क्वाथ – 50 से 100 मिलि0
  • तिक्त फल चूर्ण (कड़वे फल का चूर्ण) – 125 से 250 मिग्रा0

रासायनिक संघटन :

  • फलों में प्रोटीन 2, वसा 0.3 काबाहाइड्रेट 2.2 तथा खनिज 0.5 प्रतिशत होते हैं।
  • पत्र में प्रोटीन 5.4, वसा 1.1, कार्बोहाइड्रेट 5.8 तथा खनिज द्रव्य 3 प्रतिशत होते हैं।
  • बीजों में 29.3 प्रतिशत एक गहरे रंग का रक्ताभ हरित तैल निकलता हें ।

परवल के औषधीय गुण (Dhataki ke Gun in Hindi)

  • रस – तिक्त (कड़वा)
  • गुण – लघु, रूक्ष
  • वीर्य – उष्ण
  • विपाक – कटु
  • दोषकर्म – त्रिदोष
  • प्रतिनिधि – तुरई

परवल का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Parwal in Hindi)

आयुर्वेदिक मतानुसार परवल के गुण और उपयोग –

  • आन्त्रिक ज्वर में परवल से निर्मित पटोलादिक्वाथ लाभप्रद पाया गया है। वाग्भटोक्त कलिंगादि अथवा पटोलादि क्वाथ का प्रयोग आन्तित्रक ज्वर में निश्चित रूप से लाभकारी सिद्ध हुआ है।
  • जीर्ण ज्वर में जब कफ पित्त का क्षय हो जाय और वायु की वृद्धि होकर त्रिक, पृष्ठ, कटि में जकड़न सी महसूस हो और साथ में विबन्ध हो तो अनुवासन बस्ति को उपयोग में लाना चाहिए। इस निर्मित्त पटोलादि बस्ति उपयोगी है ।
  • मसूरिका (चेचक ,छोटी माता) आदि विस्फोटक ज्वरों में भी परवल पत्र गिलोय मुस्तक आदि का क्वाथ उपयोगी कहा गया है।
  • परवल रोचन, दीपन, पाचन, तृष्णानिग्रहण, पित्तसारक, अनुलोमन और रेचन है।
  • यह कृमिघ्न होने से अरूचि, अग्निमांद्य, अजीर्ण, तृष्णा, अम्लपित्त, यकृतविकार, कामला, उदररोग, अर्श तथा कृमिरोगों में उपयोगी है।
  • अतिसार में परवल (पटोल) पत्र तथा विबन्ध में परवल मूल उपयोगी है। चक्रपाणिदत्त ने अतिसार में पटोलादिकषाय का वर्णन किया है।
  • आयुर्वेद में विशेषताया शिशुओं को आक्रान्त करने वाले तीन त्वग विकारों (त्वचा रोग) का वर्णन मिलता है- अहिपूतना, शृकुनिग्रह और चर्मदल। इनमें अहिपूतना बालक के मल मूत्र त्याग के पश्चात् भली प्रकार अंगों के साफ न होने पर होता है। इसमें गुदा पर कण्डू (खुजली) होती है और कण्डू होने पर खुजलाने से स्फोट बनकर स्राव होने लगता है। इसके पश्चात् वहां व्रण बन जाते हैं। इसमें नागकेशरादिलेप, रजन्यदिलेप के साथ में पटोलाद्य घृत (परवल से निर्मित) का सेवन लाभदायक कहा गया है।
  • कुष्ठघ्न (कुष्ठ रोग नाशक), रक्तशोधक, शोथहर (सूजन दूर करे), विषघ्न (विष प्रभाव हरने वाला) होने से ऐसे विकारों में यह लाभप्रद हुआ है।
  • भैषज्यरत्नावली के नेत्ररोगाधिकार में वर्णित पटोलादि घृत नेत्र, कान, मुखरोग आदि में लाभदायक कहा गया है।
  • इसके अतिरिक्त परवल वेदनास्थापन, व्रण शोधन व व्रणरोपण होने से शिरःशूल, व्रण आदि में उपयोगी है।

परवल की सब्जी :

परवल मूल एवं परवल पत्र जहां औषधि रूप में प्रयुक्त होते हैं वहीं परवल के फल पथ्य रूप में सेवन किया जाता है। फल त्रिदोषशामक होने से सदा पथ्य कहा गया है। परवल फल का साग पौष्टिक एवं शुद्ध धातु उत्पादक है। लघु या शीघ्र पचने के कारण यह रोगियों के लिए सदा हितकारी हे। पथ्य रूप में सेवन के इसके दो प्रकार लिखे जा रहे हैं –

A). परवल फल को काटकर 16 गुने जल के साथ पकावें। उसमें पिप्पली, पीपलमूल, चव्य चित्रक, सोंठ कालीमिर्च, जीरा धनियां आदि मसाले एवं आवश्यकतानुसार नमक मिलाकर चतुर्थाश जल शेष रहने पर छान कर थोड़ी-थोड़ी देर में थोड़ा-थोड़ा पिलावें। यह हल्का, तृप्तिकारक दोषपाचक बल्य पथ्य है।

B). यदि रोगी के दोष विशेष प्रबल न हों तो परवल फल को छीलकर टुकड़े कर लें तथा वैसे ही (बिना घृत या तेल के) तबे पर भून लें और उसमें अन्दाज से नमक कालीमिर्च, जीरा, धनियां, तज्ञा अदरक डालकर जल के छींटे देकर मंद आंच पर रख दें। अच्छी तरह पक जाने पर उतारकर रोगी को थोड़-थोड़ा खिलावें। यह भी उत्तम हल्का पथ्य है।
यह फलपथ्य विशेषतः कास ज्वर, कृमि, तथा त्रिदोषज विकारों में हितकारी है।

रोगोपचार में परवल के फायदे (Benefits of Pointed gourd in Hindi)

1). व्रण (घाव) में फायदेमंद परवल पत्र का लेप

पहले परवल पत्र एवं नीम पत्र क्वाथ से व्रण को अच्छी तरह से धोवें इससे व्रण का शोधन होता है। इसके बाद परवल पत्र एवं नीम पत्र का कल्पक बनाकर व्रण पर बांधने से व्रण का रोपण (घाव भरना) होता है।

2). गुदा रोग में लाभकारी है परवल

गुददाह (गुदा में जलन) एवं गुदपाक (गुदा से निरंतर मवाद का स्राव होना) में परवल पत्र और मुलेठी के क्वाथ से गुद प्रक्षालन करने से लाभ होता है।

3). सूजन (शोथ) मिटाए परवल का उपयोग

  • परवल, मुलैठी, नीम की छाल, दारू हल्दी, सतौना, अडूसा और सारिवा सब समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर घृत के साथ मिलाकर लेप करने से पित्त जन्य शोथ दूर होता है।
  • परवल पत्र, त्रिफला, नीम की छाल और दारूहल्दी का क्वाथ गुग्गुल मिलाकर लेने से तृष्णाज्वर से युक्त पित्तजन्य शोथ दूर होता है।
  • परवल पत्र, हरड़, नीम की छाल, देवदारू, पुनर्नवा, कुटकी, गिलोय और सोंठ के क्वाथ में सेंधानमक मिलाकर पोने से सूतिका स्त्री का शोथ मिटता हैं

4). सर दर्द (शिरःशूल) में परवल का उपयोग लाभदायक

परवल मूल को पीसकर ललाट एवं शंख प्रदेश पर लेप करने से शिरःशूल शान्त होता है।

( और पढ़े – सिर दर्द के 41 घरेलू नुस्खे )

5). आग से जलने पर (अग्नि दग्ध व्रण) लाभकारी है परवल का प्रयोग

अग्निदग्ध व्रणों में परवल पत्र क्वाथ में शुद्ध साफ कपड़ा भिगोकर दग्ध स्थान पर रखने से जलन मिट कर व्रण का शोधन होता है।

6). गंजापन (इन्द्रलुप्त) में लाभकारी परवल

परवल पत्र के स्वरस को शिर पर मलने से बाल उगने लगते हैं। इस हेतु परवल कडवा लेना चाहिए।

( और पढ़े – गंजेपन का घरेलू उपचार )

7). गुद भ्रंश ठीक करे परवल का प्रयोग

परवल पत्र मुलेठी और महुआ का क्वाथ बनाकर उसे ठंडा कर सिंचन करें।

8). इन्द्रविद्धा रोग में परवल पत्र के इस्तेमाल से लाभ

  • परवल पत्र एवं नीम पत्र क्वाथ से धोने से इन्द्रविद्धा (कमल बीज कोष जैसी छोटी-छोटी फुसियाँ) ठीक होती हैं।
  • परवल पत्र, आंवला और मूंग का क्वाथ बनाकर उसमें घृत डालकर पीने से इन्द्रविद्धा नामक रोग में लाभ होता है।

9). आलस्य मिटाए परवल का उपयोग

  • परवल, त्रिफला और नीम पत्र के क्वाथ से पैरों को धोवें। तथा इन्हीं का चूर्ण बनाकर पैरों पर लेप करें।
  • परवल पत्र, नीम छाल, काशीश तथा त्रिफला के कल्क का भी पैरों पर लेप करें। लेप करने से पहले पैरों को कांजी से धो लेवें।

10). एलर्जी (उत्कोठ) में लाभकारी है परवल का सेवन

परवल मूल, कुटकी, मंजीठ, वचा, नीम की छाल, त्रिफला और हल्दी का क्वाथ पीने से उत्कोठ रोग (एलर्जी) में लाभ होता हैं ।

( और पढ़े – एलर्जी के प्रकार, कारण ,लक्षण, बचाव और इलाज )

11). ज्वर मिटाए परवल का उपयोग

  • सामान्य ज्वर – परवल पत्र स्वरस का ज्वर के रोगी के शरीर पर मर्दन करने से दाह शान्त होता है।
    परवल पत्र और गिलोय का क्वाथ सामान्य ज्वर में लाभदायक है।
    परवल पत्र, बच और चिरायते का क्वाथ भी ज्वरहर है।
  • हारिद्र ज्वर – परवल पत्र, कुटकी, चिरायता, नीम की छाल, पुनर्नवा, हल्दी, गिलोय, खैरसार और पिप्पली का क्वाथ हारिद्रज्वर का नाश कर देता है।
  • पित्त ज्वर – परवल पत्र तथा इन्द्र जौ का क्वाथ मधु द्वारा मीठा करके पीने से कठिन पित्त ज्वर और प्यास तथा जलन को नष्ट करता है।
  • कफ ज्वर – डण्ठल सहित परवल के पत्र 3 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम क्वाथ बनाकर मधु मिश्रित कर प्रातः पिलावें। इसी प्रकार क्वाथ बनाकर सायंकाल पिलाने से कफ सरलता से गिरने लगता है, आम का पाचन होता है और धीरे धीरे ज्वर का शमन हो जाता है।
  • पित्त कफ ज्वर – परवल पत्र, नीम की छाल, आंवला, हरड़, मुलेठी, बहेड़ा और खिरेंटी का क्वाथ पीने से पित्त कफजन्य ज्वर नष्ट होता है।
    परवल पत्र और अदरख का क्वाथ बनाकर पिलानापित्तकफ ज्वर में लाभप्रद है।
    पटोलपत्र, कुटकी, नीम की छाल और हरड़ क क्वाथ बनाकर पिलाने से पित्तकफज्वर का शमन होता है।
  • वात कफ ज्वर – पटोल पत्र, सोंठ, इन्द्रजौ व पिप्पली का क्वाथ बातकफज्वर में लाभदायक हैं
  • विषम ज्वर – परवल पत्र, आंवला, हरड़े, बहेड़ा, नीम की छाल, द्राक्ष, अमलतास, अडूसा इनका क्वाथ मिश्री और शहद मिलाकर पीने से इकतरा ज्वर मिटता है
    परवल पत्र, कुटकी, मुलैठी, हरड़ और नागरमोथा का क्वाथ पिलाने से विषमज्वर में लाभ होता है।
  • जीर्ण ज्वर – परवल पत्र, अमलतास, कुटकी, त्रिफला, निशोथ के क्वाथ में यवक्षार मिलाकर पिलाना जीर्णज्वर में लाभदायक कहा गया है।
  • आन्त्रिक ज्वर – परवल, सारिवा, नागकरमोथा, पाठा, कुटकी क्वाथ हितकर है।

12). चेचक (मसूरिका) में आराम दिलाए परवल का सेवन

परवल मूल तथा लाल चौलाई के क्वाथ में हल्दी तथा आंवला चूर्ण (हल्दी 500 मिग्रा0 आंवला 1 ग्राम) डालकर पीने से मसूरिका (चेचक ,छोटी माता), विरकोट, दाह रोमान्तिका, छर्दि (उल्टी) तथा ज्वर दूर होता है।

13). अतिसार में फायदेमंद परवल के औषधीय गुण

परवल के पत्ते, यव, धनिया का क्वाथ, ठंडाकर मधु एवं शक्कर मिलाकर पीने से छर्दि (उल्टी) एवं अतिसार मिटते हैं।

14). पेट दर्द (उदर शूल) दूर करने में परवल फायदेमंद

परवल पत्र, त्रिफला तथा नीम की छाल का क्वाथ बनाकर उसमें मधु डालकर पीने से पित्त श्लेष्मिक शूल, ज्वर, छर्दि और दाह का शमन होता है।

( और पढ़े – पेट दर्द के 41 देसी घरेलू उपचार )

15). अम्लपित्त मिटाता है परवल

परवल पत्र, गुडूची, नीम की छाल और त्रिफला का क्वाथ बनाकर उसमें मधु मिलाकर पीने से पित्त जन्य विकार और भयंकर अम्लपित्त का शमन होता है।

( और पढ़े – एसिडिटी के सफल 59 घरेलू उपचार )

16). प्रमेह में परवल के इस्तेमाल से फायदा

परवल पत्र, निम्ब की छाल, आंवला और गुडूची का क्वाथ पित्तजन्य प्रमेह को शान्त करता है।

17). कुष्ठ रोग मिटाता है परवल

परवल के पत्ते, खैर तथा नीम की छाल, त्रिफला तथा कालीवेंत का क्वाथ सेवन करने से कुष्ठरोग में लाभ होता है। इसके सेवन काल में तिक्तरस प्रधान द्रव्यों का सेवन अवश्य करना चाहिए।

18). उपदंश में परवल के इस्तेमाल से फायदा

  • परवल पत्र, नीम छाल, त्रिफला और गेलोय का क्वाथ उपदंश में उपयोगी है।
  • परवल पत्र, त्रिफला, नीम छाल, चिरायता, कत्था और विजयसार के क्वाथ में शुद्ध गूगल मिलाकर पीने से सब प्रकार के उपदंशों का शमन होता है। इस क्वाथ में गूगल , के स्थान पर त्रिफला चूर्ण मिलाकर क्वाथ सेवन का भी विधान है।

19). बाल रोग में परवल से लाभ

परवल पत्र, त्रिफला, नीम की छाल और हल्दी का क्वाथ थोड़ा, थोड़ा उचित मात्रा में पिलाने से बालक के विसर्प, विस्फोटक (चेचक के दाने) तथा ज्वर मिट जाता है।

20). मुख रोग में परवल का उपयोग लाभदायक

  • परवल पत्र, सोंठ, त्रिफला, इन्द्रायण, वायमाण, कुटकी, हल्दी, दारू हल्दी और गुर्च के क्वाथ में मधु मिलाकर मुख में रखने से मुख के समस्त रोग मिटते है।
  • परवल, नीम, जामुन, आम और चमेली की नवीन कोमल पत्तियों का कषाय बनाकर मुख में धर गण्डूष (कुल्ले) करने से मुख रोगों में लाभ होता है।

21). अग्निमांद्य मिटाए परवल का उपयोग

परवल, सोंठ और धनिया का क्वाथ कफ पित्त और अग्निमांद्य का शमन करता है इस क्वाथ के सेवन से खुजली, पामा, उदरशूल आदि रोगों का भी शमन होता है।

22). कब्ज (विबन्ध) दूर करने में परवल करता है मदद

परवल के कच्चे फलों का रस पिलाना हितकर है क्योंकि यह मृदुरेचक है।

23). विष रोग दूर करने में परवल फायदेमंद

परवल के फलों को जल के साथ पीस छानकर पिलाने से वमन होकर विष निकल जाने से विष प्रभाव कम हो जाता है।

24). वातरक्त में लाभकारी है परवल का प्रयोग

परवल पत्र, कुटकी, शतावर, त्रिफला और गिलोय के क्वाथ में खांड और शहद (क्वाथ ठंडा होने पर मिलावें) मिलाकर पीना वातरक्त में हितकारी है।)

25). विसर्प में परवल का उपयोग लाभदायक

  • परवल पत्र, नीम की छाल, दारूहल्दी, कुटकी, गिलोय, त्रायमाण एवं मुलैठी का क्वाथ पिलाने से विसर्प में लाभ होता है।
  • परवल पत्र, नीम छाल, पिप्पली, मैनफल और इन्द्र जौ का क्वाथ पिलने से वमन होकर विसर्प रोग शान्त होता है।

26). रक्तपित्त में परवल के इस्तेमाल से लाभ

परवल पत्र, चमेली पत्र, नीम की छाल, श्वेत चन्दन, लाल चन्दन और कमल के क्वाथ में शहद और मिश्री मिलाकर सेवन करने से रक्त पित्त में लाभ होता है।

27). नेत्ररोग ठीक करे परवल का प्रयोग

परवल पत्र, मूंग और आमला के क्वाथ में मधु मिलाकर पिलाने से पिल्ल नामक नेत्ररोग मिटता है। पिल्ल में आँखों से थोड़ा-थोड़ा कीचड़ बहता है।

परवल से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

क्वाथ –

  1. परवल, चन्दन, मूर्वा, कुटकी, पाठा, गुडूची, निम्ब की अन्तर छाल, धनिया, लाल चन्दन और पद्याख (लाल कमल) इन सब औषधियों का क्वाथ वमन, दाह से युक्त कफज्वर एवं खुजली को दूर करता है। -क्वा0 मणिमाला
  2. परवल पत्र, गिलोय, नागरमोथा, जवासा, नीम की छाल, पित्तपापड़ा, कुटकी, चिरायता, आंवला, हरड़े, बहेड़ा, अडूसा आदि औषधियों से निर्मित यह पटोलादि क्वाथ वात ज्वर को दूर करने वाला है। -यो० चिन्ता

शीत कषाय –

पत्र सहित परवल की लता 10 ग्राम और धनियां 10 ग्राम को जौकुट कर रात्रि में 250 मिलि0 जल मिलाकर रखा दें प्रातः मल छानकर उसमें आवश्यकतानुसार मधु मिलाकर पीने से जीर्ण ज्वर में आराम मिलता है। इसे आधा सुबह एवं आधा सायंकाल पिया जाय। इसे सुबह भिगोकर भी सायंकाल पिया जा सकता है।

चूर्ण –

परवल मूल, वायविडंग, त्रिफला 10-10 ग्राम कमीला 20 ग्राम नील का पञ्चांग या नील के बीज 30 ग्राम, निशोथ 40 ग्राम का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा से गोमूत्र के साथ सेवन करें। (चरक ने 4 तोला की मात्रा लिखी है जो आजकल बहुत ज्यादा है) जब इसके सेवन से विरेचन हो जाय तब मांड (चावल का पानी) पीकर 6 दिनों तक त्रिकटुयुक्त पकाया हुआ दूध पीवें। तदनन्तर पुनः चूर्ण का प्रयोग करें। इस प्रकार तब तक इसका प्रयोग चलता रहे जब तक उदररोग नष्ट न हो जाय। यह सब प्रकार के उदर रोगों में विशेषतः जलोदर में लाभप्रद है। पाण्डु कामला एवं शोथ की भी यह प्रशस्त औषधि है। -चरक चि0अ0

परवल के दुष्प्रभाव (Parwal ke Nuksan in Hindi)

मात्रा से अधीक सेवन उष्ण प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए हानिकर है।

दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए हरा एवं सूखा धनियां उपयोग का उपयोग हितकर है ।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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