Last Updated on July 24, 2019 by admin
हरे पत्तोंवाले शाक विटामिन्स व विभिन्न खनिज तत्त्वों से भरपूर होते हैं | इनमें पौष्टिक तत्त्व व रेशे भी अधिक होते हैं | ये एक बेहतर प्राकृतिक टॉनिक का कार्य करते हैं |
पालक (palak)Spinach :
★ पालक की भाजी रक्त की वृद्धि व शुद्धि करती है और हड्डियों को मजबूत बनाती है |
★ यह पेटसंबंधी बीमारियों में औषधि का कार्य करती है तथा आँतों में मल का संचय नहीं होने देती |
★ बुखार, पथरी, आँतों के रोग, कब्ज, रक्ताल्पता, रतौंधी, यकृत – विकार, पीलिया, बालों के असमय गिरने, प्रदर रोग आदि में यह लाभदायक है |
★ बच्चों की शारीरिक वृद्धि एवं पोषण में तथा गर्भिणी स्त्रियों के लिए यह बहुत उपयोगी है |
★ प्रतिदिन पालक के रस के सेवन से शरीर की शुष्कता व रक्त के विकार नष्ट होते हैं |
★ १०० ग्राम पालक के रस में १०० ग्राम गाजर का रस मिलाकर पीने से तेजी से रक्त की वृद्धि होती है व नेत्रज्योति बढ़ती है |
★ सूखा रोग में बच्चों को आधी कटोरी पालक का रस नियमित रूप से देना चाहिए |
इसे भी पढ़े : सब्जियां कैसे धोये ? How to wash fruit and vegetables
बथुआ bathua( मराठी में चाकवत भाजी )Lamb’s Quarters :
★ बथुआ पथ्यकर व उत्तम शाक है | यह आँखों के लिए विशेष हितकर है |
★ यह बल – वीर्य को बढ़ाता है, त्रिदोष ( वात, पित्त व कफ ) को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों को नष्ट करता है |
★ आमाशय व यकृत को शक्ति प्रदान करता है |
★ यह पाचनशक्ति को विकसित कर भूख बढ़ाता है |
★ इसके सेवन से मासिक धर्म की अनियमितता दूर होती है |
★ बवासीर में यह बहुत लाभदायी है |
★ कृमि, अम्लपित्त, अजीर्ण, मिर्गी, दमा, खाँसी, प्लीहावृद्धि आदि में भी लाभकारी है |
★ कब्ज की तकलीफ होने पर २ -३ दिन बथुए का रायता खाने से लाभ होता है |
मूली के पत्ते (Mooli Ke Patte) Radish Leaves :
★ ये रुचिकर, हलके, गर्म तथा पाचक होते हैं |
★ इनमें लौह तत्त्व (iron) पर्याप्त मात्रा में होता है |
★ ये यकृत, प्लीहा व गुर्दे के रोग, हिचकी, मूत्रसंबंधी विकार, उच्च रक्तचाप, मोटापा, बवासीर, खून की कमी व पाचन-संबंधी गड़बड़ियों में खूब लाभदायी हैं |
★ मूली के पत्तों का ५० ग्राम रस कुछ दिन लेना सूजन में फायदेमंद है |
इसे भी पढ़े : भोजन करते समय बैठने की सही विधि का ज्ञान क्या आपको है ..? |
मेथी(methi)Fenugreek :
★ मेथी की भाजी गर्म, पित्तवर्धक, सूजन मिटानेवाली व मृदु विरेचक होती है |
★ यह वायु, कफ व ज्वर नाशक है |
★ कृमि, पेट के रोग, संधिवात, कमरदर्द व शारीरिक पीड़ा में लाभदायी है |
★ पित्त-प्रकोप, अम्लपित्त व दाह में मेथी न खायें |
★ पेट में गैस की समस्या तथा गठिया व अन्य वातरोगों में नियमित रूप से इसका सेवन लाभकारी है |
★ प्रसव के बाद इसका सेवन विशेषरूप से करना चाहिए |
★ यह कब्ज को नष्ट करके उदर-रोगों से सुरक्षित रखती है |
★ ५० मि.ली. मेथी के पत्तों के रस में शहद मिला के कुछ दिन पीने से यकृत व पित्ताशय के विकारों एवं बहुमुत्रता में बहुत लाभ होता है |