पेप्टिक अल्सर के कारण ,लक्षण ,दवा और घरेलू इलाज | Stomach (Peptic) Ulcers: Symptoms, Causes, and Treatment in hindi

Last Updated on November 4, 2019 by admin

पेप्टिक अल्सर क्या है ? : Peptic Ulcer in Hindi

पेप्टिक अल्सर को आमाशय व्रण या बोलचाल की भाषा में पेट में फोड़ा भी कहा जाता है। पेप्टिक अल्सर इस नाम का उपयोग,आमाशय अथवा पक्वाशय (ग्रहणी) में होने वाले अल्सर (व्रण) के लिए किया जाता है।

छोटी आंत के प्रथम अंश को पक्वाशय कहते हैं। यह व्याधि अनियमित आहार-विहार करने, अनुचित खाद्य-पदार्थ खाने तथा मानसिक तनाव से पीड़ित रहने से उत्पन्न होती है। मानसिक तनाव और चिन्ता का प्रभाव आमाशय और पाचन संस्थान पर पड़ता है, उदर की मांस पेशियों में तनाव आ जाता है जिससे पाचक रस के स्राव (Secretion) में अवरोध हो जाता है और पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है।
मल विसर्जन ऐठन और दर्द के साथ होता है। कुछ समय बाद आमाशय या पक्वाशय (ड्यूडेनम) में छाला (घाव-अल्सर) हो जाता है जिसका आकार चौथाई इंच से ले कर एक इंच व्यास तक हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार इस व्याधि को उत्पन्न करने के कुछ कारण होते हैं।उष्ण प्रकृति होना, उष्ण प्रकृति के पदार्थों का लगातार सेवन करना, पित्त प्रकोप की स्थिति लम्बे समय तक – बनी रहना, अम्लपित्त (हायपरएसिडिटी) हो जाना,
भोजन में तीखे, तेज़ मिर्च मसालेदार, दाह करने वाले पदार्थों का सेवन करना, क्रोधी स्वभाव होना आदि कारणों से आमाशय में पित्त (एसिड) बढ़ जाता है और गैस्ट्रिक अल्सर (छाला या घाव) हो जाता है।

इसे पेप्टिक अल्सर भी कहते हैं। अल्सर होने पर जो दर्द (शूल) होता है वह अल्सर होने के परिणाम स्वरूप होता है अतः आयुर्वेद में इस शूल को ‘परिणाम शूल’ कहा गया है। इस व्याधि में दिन में दोपहर के समय या मध्य रात्रि में यह शूल उठता है। इस परिणाम शूल को, पित्तजन्य होने के कारण, पैत्तिक शूल भी कहते हैं।

चरक संहिता चिकित्सा स्थान के पन्द्रहवें अध्याय में बताया गया है कि यदि आमाशय में कफ की कमी हो जाए अर्थात् कफ के स्राव में कमी हो जाए और गर्म, तीखे व तेज़ मिर्च मसालेदार आहार के कारण आमाशय में पित्त की वृद्धि हो जाए जिससे जठराग्नि भड़क उठे और हायपरएसिडिटी की स्थिति बन जाए, साथ ही आमाशय में वायु प्रकोप होने से विक्षोभ की स्थिति बन जाए और ऐसे में आमाशय में आहार उपलब्ध न हो तो बढ़ी हुई जठराग्नि आमाशय में स्थित धातुओं को पचाने लगती है। ऐसी स्थिति में, रोगी को भोजन करने पर, राहत तो मिल जाती है पर भोजन के पचने के बाद फिर से दर्द होने लगता है। इस रोग को तीक्ष्णाग्नि या अत्यग्नि रोग भी कहते हैं।

पेप्टिक अल्सर के लक्षण : Peptic Ulcer Symptoms in Hindi

किसी रोग के लक्षणों से उस रोग की पहचान की जाती है। अल्सर रोग होने पर निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं-

☛ कभी कभी ऐसा भी होता है कि पेप्टिक अल्सर होते हुए भी रोगी को दर्द नहीं होता फिर भी इस रोग का पहला लक्षण यह है कि आमाशय के ऊपरी भाग में छाती की हड्डी के नीचे अधिजठर (Epigaster) भाग में पीड़ा या जलन का अनुभव होने लगता है। जब रोगी खाना खा लेता है तब यह पीड़ा या जलन होना बन्द हो जाता है लेकिन लगभग एक घण्टे के भीतर पीड़ा और जलन फिर होने लगती है। कुछ दिन तक यह बुरी स्थिति बनी रहती है लेकिन फिर कुछ सप्ताह तक कोई तकलीफ़ नहीं होती और फिर से यही स्थिति लौट आती है।
☛ पित्ताजीर्ण या पैत्तिक अम्ल पित्त वाला यह रोग तथा इसके उपद्रव के रूप में होने वाला परिणाम शूल 25 से 50 वर्ष की आयु के मध्य वाले व्यक्तियों को ज्यादातर होता है।
☛ अल्सर का प्रमुख लक्षण है पेट में दर्द होना जो तेज़ भी होता है और हलका भी। दर्द की तीव्रता कुछ बातों पर निर्भर रहती है यथा –
(1) पाचन क्रिया में काम आने वाले किस अंग में अल्सर हुआ है।
(2) अल्सर कितना बड़ा है।
(3) अल्सर जटिल अवस्था में है या नहीं। पेप्टिक अल्सर के अन्य लक्षण उलटी होना, जी मचलाना, मुंह में खट्टा पानी आना आदि हैं या नहीं।
(4) रोग की प्रखरता बढ़ाने वाले कारण अभी भी मौजूद हैं या नहीं।

पेप्टिक अल्सर के कारण : Peptic Ulcer Causes in Hindi

पेप्टिक अल्सर की स्थिति बनाने वाला एक कारण नहीं है कई कारण हैं जैसे –
☛ चाय, काफी, शराब, चटपटे तेज़ मिर्च मसालेदार व तले हुए पदार्थों का अत्यधिक सेवन करना ।
☛ मांसाहार और धूम्रपान करना आदि।
☛ आहार में प्रोटीन तत्त्व की कमी होना भी एक कारण होता है।
☛ ऐसा आहार विहार करना जिससे अजीर्ण, पित्त प्रकोप (एसिडिटी), अम्ल पित्त (हायपरएसिडिटी), क़ब्ज आदि व्याधियां लम्बे समय तक बनी रहें।
इन कारणों से आमाशय में पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (एसिड) अधिक मात्रा में बनते हैं। प्रकृति फिर भी यह कोशिश करती है कि आमाशय में, अन्य ग्रन्थियों से ‘म्यूकस’ नामक तत्त्व पैदा करके अम्ल की बढ़ी हुई मात्रा को बेअसर कर दे पर मनुष्य प्रकृति के इस सहयोग पर तब पानी फेर देता है जब वह खानपान सम्बन्धी लापरवाहियां और ग़लतियां करना बन्द नहीं करता। नतीजा यह होता है कि प्रकृति हार जाती है और मनुष्य के स्वास्थ्य का सन्तुलन बिगड़ जाता है।
☛ पेप्सिन और अम्ल के हानिकारक प्रभाव के फलस्वरूप अल्सर बन जाता है और व्यक्ति पेप्टिक अल्सर का शिकार हो जाता है।
☛ अल्सर का दूसरा प्रमुख कारण उन दवाओं का सेवन करना है जो सिर दर्द, जोड़ों और गठिया की बीमारियों के इलाज में सेवन की जाती हैं।
☛ उच्च रक्तचाप को नियन्त्रित करने वाली कुछ दवाओं का लम्बे समय तक सेवन करना भी अल्सर पैदा करने का एक कारण बन सकता है।
☛ तीसरा कारण सबसे ज्यादा साफ़ और प्रभावशाली सिद्ध होता है और यह कारण है व्यक्ति की मानसिक स्थिति । ऐसा कहा जाता है कि यदि दुःख या इससे उत्पन्न भावनाएं आसुओं द्वारा बाहर न निकलें तो फिर हृदय या शरीर के दूसरे अंगों को हानि पहुंचती है और नासूर होने की स्थिति बन जाती है अर्थात् यदि व्यक्ति लगातार मानसिक तनाव से पीड़ित बना रहे, ज़रा ज़रा सी बात पर क्रोध किया करे और इस स्थिति का भारी दबाव उसके दिलोदिमाग़ पर पड़ता रहे तो यह समझ लेना चाहिए कि वह पेप्टिक अल्सर को न्योता दे रहा है।
☛ मानसिक तनाव की स्थिति लगातार लम्बे समय तक बनी रहे तो आमाशय में अम्ल अधिक मात्रा में पैदा होने लगता है जिससे आमाशय की प्राकृतिक सन्तुलित स्थिति बिगड़ जाता है और पेप्टिक अल्सर बन जाता है।
☛ एक कारण और भी है वंशानुगत प्रभाव होना। कुछ व्यक्तियों के शरीर की प्रकृति ही ऐसी होती है कि उनके आमाशय में, अम्ल अधिक मात्रा में बनता है क्योंकि वंशानुगत प्रभाव से उनके आमाशय में अम्ल पैदा करने वाली कोशिकाएं अधिक होती हैं।
☛ इसी तरह कुछ व्यक्तियों के आमाशय में लाल रक्त कणों द्वारा ऐसे तत्व स्थापित होते हैं जो अल्सर बनने को रोकते हैं। जिन व्यक्तियों में इन तत्वों की कमी होती हैं उनमें अल्सर होने की सम्भावना अधिक होती है।

पेप्टिक अल्सर का आयुर्वेदिक उपचार और दवा : Peptic Ulcer Ayurvedic Treatment in Hindi

(1) एलादि चूर्ण – पेप्टिक अल्सर की आयुर्वेदिक दवा (peptic ulcer ayurvedic medicine)
इलायची छोटी, दालचीनी, तेजपात, वंश लोचन, हरड़, आंवला, चन्दन, धनिया, पीपलामूल- सब 25-25 ग्राम। इन सबको कूट पीस कर छान कर महीन चूर्ण करके, इसमें 250 ग्राम शक्कर पीस कर मिला कर, अच्छी तरह एक जान कर के शीशी में भर लें। आधा से एक छोटा चम्मच चूर्ण शहद में मिला कर सुबह शाम सेवन करने से पेप्टिक अल्सर ठीक होता है। आयुर्वेद शास्त्र में इस नुस्खे का नाम एलादि चूर्ण है।

(2) पीपल, हरड़ और निशोथ का छिलका- तीनों समान मात्रा में चूर्ण करके मिला लें। गुड़ की चाशनी बना कर इस चूर्ण को मिला कर अवलेह बना लें। इसे 1-1 चम्मच सुबह शाम दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

(3) सूत शेखर रस, कामदुधारस, शूल वज्रणी रस और शंख भस्म- सब 10-10 ग्राम मिला कर 40 पुड़िया बना लें। 1-1 पुड़िया सुबह शाम शहद के साथ लें।

(4) मुक्ताजेम 2-2 गोली सुबह शाम भोजन के बाद । पानी के साथ लें।

पेप्टिक अल्सर का घरेलू इलाज : Home Remedy For Peptic Ulcer in Hindi

1- मेथी दानें से पेप्टिक अल्सर का घरेलू इलाज –
1 गिलास पानी में 1 चम्मच मेथी के दानों को खूब उबालिए और ठंडा करके छान लें । अब इस पानी में 1 चम्मच शुद्ध शहद मिलाकर दिन में 1 बार रोज पीएं। यह उपाय पेप्टिक अल्सर को जड़ से खत्म कर देता है।

( और पढ़े – मेथी के फायदे व अदभुत 124 औषधीय प्रयोग )

2- आंवला से पेप्टिक अल्सर का इलाज –
2 चम्मच आंवले का चूर्ण, पीसी सोंठ और 2 चम्मच मिश्री पाउडर मिलाकर रात में 1 गिलास पानी में भिगो दें। नित्य सुबह इस पानी का सेवन करने से पेप्टिक अल्सर की समस्या खत्म हो जाएगी।

( और पढ़े – आंवला के 20 बेमिसाल फायदे )

3- मुलेठी से पेप्टिक अल्सर का घरेलू इलाज –
15 मिनट के लिए एक गिलास पानी में 1 छोटा चम्‍मच मुलेठी पाउडर डालकर छोड़ दें। अब इसे छान कर दिन में 3 बार पीएं। इसके लगातार सेवन से पेप्टिक अल्सर जड़ से खत्म हो जाता है।

( और पढ़े – मुलेठी के चमत्कारिक औषधीय प्रयोग और फायदे )

4- गुडहल से पेप्टिक अल्सर का घरेलू उपाय –
गुडहल की ताजी हरि पत्तियों को पीस कर इसका शरबत बना लीजिए । इस शरबत के रोजाना सेवन करने से पेप्टिक अल्सर रोग ठीक हो जाता है।

5- गाजर से पेप्टिक अल्सर का घरेलू इलाज –
पत्तागोभी और गाजर को बराबर की मात्रा में मिलाकर इसका जूस तैयार करिये । रोजाना दिन में 2 बार इस जूस का सेवन करें। इससे आपको अल्सर की बीमारी से छुटकारा मिल जाएगा । आइये जाने पेप्टिक अल्सर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं –

पेप्टिक अल्सर में आहार और परहेज : Diet in Peptic Ulcer in Hindi

1- ऊपर बताये गये. पेप्टिक अल्सर पैदा करने वाले, कारणों को तत्काल त्याग दें।
2- दर्द निवारक एनलजेसिक दवाएं और उच्च रक्तचाप के लिए दवाएं डॉक्टर से पूछे बिना न खाएं।
3- चिन्ता और मानसिक तनाव से बचें।
4- आहार-विहार को नियमित और सन्तुलित रखें।
5- आहार में कार्बोहाइड्रेट वाले पदार्थों का अति सेवन न करें और प्रोटीन तत्त्व की कमी न होने दें।
6- रोगी ज्यादा देर तक पेट खाली न रखें। 2-3 घण्टे के अन्तराल से दूध या फल खाते रहें।
7- अल्सर की तीव्र अवस्था में 3-4 घण्टे के अन्तर से सिर्फ दूध पीते रहें।
8- यदि कभी उलटी में खून आये तो तुरन्त चिकित्सक से परामर्श करें।
9- उपर्युक्त किसी भी नुस्खे से आराम न होता हो तो भी तुरन्त । चिकित्सक से परामर्श करें।

(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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