जिगर में सूजन के कारण ,लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज | Enlarged liver – Symptoms ,Causes and Treatment

Last Updated on October 6, 2019 by admin

शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है जिगर (यकृत/लिवर ) :

जिगर(लिवर) मनुष्य के शरीर में सबसे बड़ी और उपयोगी ग्रंथि है। जिगर वक्षस्थल (छाती) में पसलियों के पीछे दाहिनी ओर स्थित होता है। जिगर की आकृति कुछ-कुछ त्रिकोण की तरह होती है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में जिगर(लिवर) का भार कुछ कम होता है। जिगर में गुणकारी पाचक रस पित्त की उत्पत्ति होती है। भोजन के आंतों में पहुंचने पर पित्त पाचन क्रिया में सहायता करता है।

आधुनिक परिवेश में महानगरों में विद्युत गति से दौड़ती जिंदगी में कार्य-व्यवसाय के कारण स्त्री-पुरुषों को समय पर भोजन का भी अवसर नहीं मिलता। प्रतिस्पर्धा के कारण एक नगर से दूसरे नगर में जाने, अनियमित भोजन करने, रात को देर तक जागने और बड़े-बड़े होटलों में उष्ण मिर्च-मसालों और अम्लीय रसों से बने व्यंजनों का सेवन करने से पाचन क्रिया विकृत होने पर शरीर के विभिन्न अंगों पर हानिकारक प्रभाव होता है।

दौड़-धूप की जिंदगी और भोजन की अनियमितता से जिगर (यकृत / लिवर ) और प्लीहा (तिल्ली) को बहुत हानि पहुंचती है। जिगर की विकृति से पूरे शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। एक बार जिगर में कोई विकृति होने पर, चिकित्सा में विलंब करने और भोजन में लापरवाही करने से जिगर की विकृति नियंत्रण से बाहर हो जाती है।

जिगर में शोथ (सूजन) होने से जिगर का आकार बढ़ जाता है। जिगर की वृद्धि का रोग किशोरावस्था में अधिक होता है। भोजन में उष्ण मिर्च-मसालों के खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में सेवन करने से शोथ की विकृति होती है। आइये जाने लिवर(जिगर) में सूजन क्यों होती है ?

जिगर (यकृत/लिवर ) के बढ़ने या सूजन के कारण : Enlarged Liver Causes in Hindi

☛ भोजन में अम्लीय तत्त्व अधिक होने से पाचन क्रिया की विकृति के साथ जिगर(लिवर)को हानि पहुंचती है।
☛ विभिन्न संक्रामक और लंबे समय तक चलने वाले रोगों के कारण पाचन क्रिया क्षीण हो जाती है और गरिष्ठ व वात विकार उत्पन्न किए जाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन किया जाता है तो जिगर की वृद्धि होती है।
☛ शराब, बीड़ी-सिगरेट, चाय, कॉफी का अधिक सेवन करने वाले जिगर वृद्धि से पीड़ित होते हैं।
☛ विषम ज्वर (मलेरिया), वात श्लैष्मिक ज्वर (फ्लू), आंत्रिक ज्वर, क्षयरोग में जिगर को बहुत हानि पहुंचती है।
☛ जीवाणुओं के संक्रमण से जिगर की वृद्धि होती है।
☛ यदि लंबे समय तक शरीर में रक्त की कमी से रक्ताल्पता अर्थात् एनीमिया की विकृति बनी रहे तो तो जिगर पर हानिकारक प्रभाव पड़ने से जिगर की वृद्धि होती है।
☛ चिकित्सकों के अनुसार जिगर(यकृत) में किसी कारण से शोथ होने से जिगर की वृद्धि होती है।
☛ जब किसी कारण से जिगर में अधिक रक्त संचार होने लगे तो उसके कारण भी जिगर की वृद्धि होती है।
जिगर (लिवर) वृद्धि में जिगर पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाता।

जिगर के बढ़ने (सूजन) के लक्षण : Enlarged Liver Symptoms in Hindi

✦ प्रारंभ में जिगर की वृद्धि रोगी का कुछ पता नहीं चल पाता धीरे-धीरे जिगर की वृद्धि अधिक होने पर पीड़ा और भारीपन की शिकायत होने लगती है।
✦ अधिक जिगर (लिवर) वृद्धि की स्थिति में रोगी को ज्वर भी हो सकता है।
✦ स्त्रियों में ऋतस्राव (मासिक धर्म) में अवरोध और शूल की अधिकता के लक्षण दिखाई देते हैं।
✦ जिगर वृद्धि के कारण रोगी शारीरिक रूप से निर्बल होता जाता है।
✦ जिगर वृद्धि से रोगी को अतिसार (दस्त) की विकृति होती है।
धीरे-धीरे रोगी के उदर काआकार बढ़ने लगता है। रक्त का निर्माण नहीं होने से शरीर में रक्ताल्पता बढ़ने लगती है।
✦ रोगी की त्वचा के रंग सफेद, पीला दिखाई देने लगता है।
✦ अरुचि की विकृति होती है। रोगी को भूख नहीं लगती।
✦ जी मिचलाने व उबकाई के लक्षण प्रकट होते हैं।
✦ शरीर में अकर्मण्यता और ज्वर के लक्षण भी प्रकट होते हैं।

जिगर के बढ़ने के प्रकार :

जिगर की वृद्धि तीव्र और जीर्ण दो रूपों में दिखाई देती है।

✧ तीव्र जिगर वृद्धि – तीव्र जिगर वृद्धि जिगर में प्रदाह के कारण होती है। इसमें जिगर में पीड़ा व भारीपन होता है। आकार बढ़ जाता है। कामला (पीलिया) व अजीर्ण के लक्षण दिखाई देते हैं। ज्वर भी हो जाता है। तीव्र जिगर वृद्धि अजीर्ण, प्रवाहिका, कोष्ठबद्धता और आंत्रिक ज्वर के कारण होती है। रोगी को वमन, सिर में दर्द और जिगर में पीड़ा के लक्षण दिखाई देते हैं।

✧ जीर्ण जिगर वृद्धि – जीर्ण जिगर वृद्धि लंबे समय तक रक्त के एकत्र होने से होती है। जिगर में रक्त संचय वृक्क, हृदय रोग व फुफ्फुस विकृति के कारण भी हो सकता है। जिगर की वृद्धि नाभि तक पहुंच सकती है। अजीर्ण के लक्षण अनुभव होते हैं। जलोदर, अर्श और प्लीहा वृद्धि भी होती है। शरीर के कुछ भागों में शोथ भी दिखाई देता है।

चिकित्सा :

जिगर वृद्धि के परीक्षण से उसकी उत्पत्ति का कारण जानने के बाद चिकित्सा का प्रारंभ किया जाना चाहिए। जिगर वृद्धि के कारण की पहले चिकित्सा कराने से जिगर वृद्धि का स्वयं निवारण हो जाता है। जिगर वृद्धि की चिकित्सा में विलंब नहीं करना चाहिए क्योंकि जिगर विकृति से पूरे शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। चिकित्सा के चलते रोगी को अपने भोजन पर पूरा नियंत्रण रखना आवश्यक होता है। भोजन के नियंत्रण के बिना कोई लाभ नहीं होता।

जिगर के बढ़ने (सूजन) का आयुर्वेदिक इलाज : Liver Enlargement Ayurvedic Treatment

जिगर वृद्धि में सबसे पहले रोगी को कोष्ठबद्धता निवारण के लिए औषधि देनी चाहिए। रोगी के स्वास्थ्य को देखते हुए इच्छाभेदी रस (गोली), अश्वकंचुकी रस, नाराच रस में से किसी एक औषधि को सेवन कराकर कोष्ठबद्धता को नष्ट किया जा सकता है।

1- पुनर्नवादि मण्डूर की 2-3 गोली गोमूत्र या जल के साथ सुबह-शाम सेवन कराने से जिगर शोथ तीव्र गति से नष्ट हो जाती है। इस औषधि से रक्ताल्पता, प्लीहा वृद्धि और कामला रोग में भी लाभ होता है।

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2- नवायस लौह 1-1 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम मधु, तक्र या गोमूत्र के साथ सेवन कराने से जिगर वृद्धि में बहुत लाभ होता है। जठराग्नि तीव्र होती है और रक्त वृद्धि होती है।

3- भोजनोपरांत रोगी को कुमार्यासव या लोहासव 15-20 मि.ली. मात्रा में, उतने ही जल में मिलाकर पिलाना चाहिए। जिगर वृद्धि में बहुत लाभ होता है।

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4- रोहितक लौह 3-3 रत्ती मात्रा में दूध या मट्ठा के साथ सेवन कराने से जिगर और प्लीहा की वृद्धि नष्ट होती है।

5- यकृदारि लौह की 1-1 गोली सुबह-शाम गोमूत्र या जल के साथ सेवन करने से जिगर वृद्धि का पूरी तरह निवारण होता है। जिगर वृद्धि में ज्वर और शोथ की विकृति भी नष्ट होती है। इस लौह की गोली को खरल में पीसकर मधु मिलाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

6- जिगर-वृद्धि के कारण अतिसार होने पर जातीफलादि रस की 1-1 गोली सुबह-शाम जल के साथ सेवन कराने से बहुत लाभ होता है।

7- कर्पूर रस 2 रत्ती मात्रा में जल के साथ देने से अतिसार बंद हो जाते हैं।

8- जिगर-प्लीहारि लौह की 1-1 गोली सुबह-शाम गोमूत्र या मट्ठा के साथ सेवन करने से जीर्ण जिगर वृद्धि में बहुत लाभ होता है। पाण्डु, कामला और शोथ भी नष्ट होता है। ज्वर भी नष्ट होता है।

9- आरोग्यवर्द्धनी वटी की 1 से 2 गोली जल के साथ सुबह-शाम सेवन करने से जिगर वृद्धि में उत्पन्न निर्बलता, रक्त की कमी, पाण्डु, कामला आदि रोग विकार नष्ट होते हैं। कोष्ठबद्धता नष्ट होती है। अजीर्ण का निवारण होता है।

( और पढ़े – आरोग्यवर्धिनी वटी के फायदे )

10- मूली और मकोय का रस 10-10 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से जिगर वृद्धि में शोथ, जलन, पित्त वृद्धि और कामला रोग नष्ट होता है।

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11- रोहितकारिष्ट जिगर वृद्धि में बहुत लाभ पहुंचाता है। भोजनोपरांत 15-20 मि.ली. रोहितकारिष्ट लेकर, उसमें बराबर मात्रा में जल मिलाकर सेवन कराने से प्लीहा वृद्धि, अग्निमांद्य, वायु गोला में बहुत लाभ होता है।

12- जिगर वृद्धि से वमन विकृति होने पर सूतशेखर रस की 1-1 गोली सुबह-शाम अनार के रस या मधु के साथ सेवन कराएं। एलादि चूर्ण के सेवन से भी वमन बंद होती है। अमृतधारा, पुदीनहरा व नीबू की शिंकजी भी वमन विकृति को नष्ट कर देते हैं। आइये जाने जिगर (लिवर) सूजन में क्या खाना चाहिए ।

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जिगर के बढ़ने व सूजन में खान पान और सावधानियाँ :

⚫ जिगर वृद्धि में पाचन क्रिया अधिक क्षीण हो जाने से रोगी को अनाज से बने खाद्य पदार्थ का सेवन कराना चाहिए। घी, तेल व मक्खन के साथ निर्मित वसायुक्त खाद्य पदार्थ भी गरिष्ठ होने के कारण पच नहीं पाते। घी, तेल के कारण रोगी को अतिसार की विकृत होती है।
⚫ रोगी को उष्ण व तले हुए खाद्य पदार्थ बिल्कुल नहीं देने चाहिए।
⚫ चाय, कॉफी का सेवन भी बहुत हानि पहुंचाता है।
⚫ रोगी को हल्के तरल, सुपाच्य खाद्य पदार्थ ही देने चाहिए।
⚫ गन्ने का रस, नारियल का जल, तक्र, फलों का रस, सब्जियों का सूप, दाल-चावल की खिचड़ी, हरी सब्जियों का सलाद, घीया, तोरई, पालक, बथुआ, टमाटर की सब्जी सेवन करानी चाहिए।
⚫ ग्वारपाठे की सब्जी व ग्वारपाठे का रस जिगर वृद्धि के रोगी के लिए बहुत गुणकारी होते हैं।
⚫ जिगर वृद्धि में मूली के सेवन से रोगी को बहुत लाभ होता है।
⚫ सुबह-शाम रोगी को किसी पार्क में भ्रमण के लिए अवश्य निकलना चाहिए।
⚫ प्रातः की शीतल व शुद्ध वायु से रोगी को बहुत लाभ होता है।

(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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