Last Updated on March 19, 2023 by admin
प्लूरिसी क्या है? (Pleurisy in Hindi)
फेफड़े और छाती की अन्दरूनी दोहरी परत को ढकने वाली पतली झिल्ली को प्ल्यूरा कहते हैं। अगर इस झिल्ली में किसी तरह का संक्रमण हो जाता है तो उसे प्लूरिसी रोग कहते हैं। इसकी दो सतहों के बीच द्रव्य की एक पतली सी परत बनी रहती है जो दोनों सतहों को चिकनाहट प्रदान करती है और फेफड़ों के कार्य करने की गति को सुचारू रूप से चालू करती है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके फेफड़े की झिल्लियां थोड़ी मोटी हो जाती है और इसमें पाई जाने वाली दोनों सतह एक-दूसरे से टकरानी लगती है। इन दोनों सतहों के बीच द्रव्य भरा रहता है जो इस रोग के कारण एक जगह ठहर जाता है और अपने स्थान से बाहर होकर जमा होने लगता है।
प्लूरिसी रोग के कारण :
प्लूरिसी का रोग अधिकतर न्यूमोनिया रोग हो जाने के कारण होता है। बाद में यह रोग गंभीर हो कर प्ल्यूरा का रूप ले लेता है। इस रोग के होने में वायरस का भी हाथ होता है। वायरस एक प्रकार के संक्रमण के कारण होता है।
प्लूरिसी रोग के लक्षण :
- सांस लेने के साथ दर्द होना प्ल्यूरिसी रोग का प्रमुख लक्षण होता है।
- जब इस रोग से पीड़ित व्यक्ति सांस लेता है तो प्ल्यूरिसी ग्रस्त बिन्दु में तीखा दर्द होने लगता है।
- इस रोग में बुखार चढ़ने के साथ-साथ कई अन्य रोग होने का अहसास भी होता है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के द्वारा प्ल्यूरिसी रोग का उपचार :
इस चित्र में दिए गए एक्यूप्रेशर बिन्दु के अनुसार रोगी के शरीर पर दबाव देकर प्ल्यूरिसी रोग का उपचार किया जा सकता है। रोगी को अपना इलाज किसी अच्छे एक्यूप्रेशर चिकित्सक की देख-रेख में करना चाहिए क्योंकि एक्यूप्रेशर चिकित्सक को सही दबाव देने का अनुभव होता है और वह सही तरीके से प्ल्यूरिसी रोग का उपचार कर सकता है।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)