Last Updated on August 7, 2019 by admin
स्वर्ग की देवसभा में देवराज ने किसी नरेश की दयालुता का वर्णन किया । एक देवता के मन में राजा की परीक्षा लेने की इच्छा हुई। वे पृथ्वी पर आये और राजासे ‘बोले-नरेश ! तू मुझे प्रतिदिन एक मनुष्य की बलि दे, नहीं तो मैं तेरे नगर के सभी मनुष्यों को मार डालूंगा ।
राजाने शान्त चित्त से कह दिया- जो कुछ होनेवाला हो, हो जाय । मैं जान-बूझकर किसी प्राणी की बलि नहीं हूँगा ।
देवता ने ऐसा दृश्य उपस्थित कर दिया जिससे प्रत्येक नगरवासी को आकाश में एक विशाल चट्टान दीखने लगी। लगता था कि चट्टान गिरनेवाली ही है और पूरा नगर उसके गिरने से ध्वस्त हो जायेगा। नगर के लोग राजा के पास गये और उन्होंने प्रार्थना की सम्पूर्ण नगर की रक्षा के लिये एक बलिदान दे देना चाहिये ।
राजाने स्थिरभाव से स्पष्ट कह दिया-जो होनेवाला हो, हो जाय । मैं जान-बूझकर किसी प्राणी को नहीं मारूंगा ।
नगर के लोगों ने अब परस्पर सलाह की । उन्होंने चंदा करके धन एकत्र किया और उससे मनुष्य की एक स्वर्ण मूर्ति बनवायी । अब उन लोगों ने यह घोषणा की जो कोई प्रसन्नता से अपने घर के किसी व्यक्ति को बलिदान के लिये देगा, उसे यह मूर्ति तथा और भी धन मिलेगा ।
एक लोभी व्यक्ति ने धन के लोभ से अपना पुत्र बलिदान के लिये दे दिया । जब उस लड़के को बलि देने के स्थानपर पहुँचाया गया तब वह हँस रहा था। राजा ने उससे हँसने का कारण पूछा । लड़का बोला-‘मेरे लिये आज परम मङ्गल का दिन है; क्योंकि एक मेरे प्राण जाने से पूरे नगर के लोगों की रक्षा हो जायगी ।
राजा को अपना कर्तव्य सूझ गया। उन्होंने लड़के को हटा दिया और स्वयं अपनी बलि देने को उद्यत हो गये । राजा की दयावृत्ति से देवता प्रसन्न हो गये। नगर पर गिरती शिला जो दीख रही थी, अदृश्य हो गयी। देवता ने राजा को आशीर्वाद दिया ।
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