Last Updated on July 18, 2022 by admin
पुनरावर्तक का अर्थ होता है पुनः – पुनः आने वाला बुखार।
विभिन्न भाषाओं में नाम (Relapsing Fever)
- अंग्रेजी – रिलैपूसिंग फीवर।
- बंगाली – पुनराथोर्तक ज्वर
- कन्नड़ – हरलीदा ज्वर
- मलयालम – ओन्नरदन पनी
- मराठी – पुन: येणारा ताप
- उड़ीसा – पालीजर
- तमिल – मुराइ जुरम्
- अरबी – पुरावर्तक ज्वर
पुनरावर्तक ज्वर के लक्षण (Punaravartaka Jwara ke Lakshan)
- पुनावर्तक बुखार का तापमान तेजी से चढ़ता (100 डिग्री से 105 डिग्री फरेहनाहट) हैं जो कि 6-7 से दिन तक बना रहता है।
- कभी-कभी इसमें उन्माद (पागलपन) के भी लक्षण आ जाते और अचानक मरीज सामान्य हो जाता है।
- तापमान में कमी (न्यूनता), अत्यधिक पसीना या अतिसार, पहले जैसा हो जाता है।
- फिर दोबारा एक सप्ताह के अन्तर के बाद तापमान दुबारा तीन से चार दिन तक चढ़ता है। इसी ज्वर को पुनरावर्तक बुखार कहते है।
विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों से पुनरावर्तक ज्वर का उपचार (Punaravartaka Jwara ka Ilaj)
1. किराततिक्त : किरातक्ति की जड़, कटुकी प्रकन्द, मुस्तक मूल (जड़) और गूडूची तना आदि को मिलाकर काढ़ा बनाकर 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में 1 दिन में 3 बार लेने से पुनरावर्तक बुखार में आराम मिलता है।
2. मेथी : 10 से 20 ग्राम मेथी के अंकुरित बीजों को सुबह और शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार मिट जाता है।
3. घी : घी में लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम भुनी हुई हींग को किसी खाने वाली चीज के साथ खाने से पुनरावर्तक बुखार आना बन्द हो जाता है।
4. कुटकी : कुटकी का चूर्ण 3 से 4 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम शहद के साथ चाटने से जीर्णज्वर, शीतज्वर और कब्ज के साथ होने वाले बुखार ठीक हो जाते हैं।
5. इन्द्रायव : इन्द्रायव का भूना चूर्ण 1 से 4 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम शहद के साथ लेने से पर्यायिक बुखार नहीं चढ़ता हैं।
6. मैनफल : मैनफल की पेड़ की छाल का काढ़ा पीने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ मिलता है।
7. रसौत : लगभग चौथाई ग्राम से कम की मात्रा में रसौत को दिन में 3 बार खाली पेट या खाना खाने के 2 घण्टे बाद देने से लाभ होता है। ध्यान रहे कि सेवन के बाद चादर ओढ़कर सोएं। कुछ देर के बाद प्यास और घबराहट होगी पर चिन्ता की कोई बात नहीं करें लेकिन इसके बाद पानी न पीयें। पसीना निकलने के बाद कमजोरी महसुस होगी। 1 घण्टे बाद चावल के माण्ड या दूध का प्रयोग करना चाहिए।
8. लहसुन : लहसुन का मिश्रण 2 से 3 ग्राम घी के साथ खाली पेट सुबह सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में आराम मिलता है।
9. सिंगार : सिंगार के 7-8 पत्तों का रस अदरक के रस और शहद में मिलाकर सुबह और शाम लेने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
10. कचूर : कचूर, छोटी पीपल और दालचीनी के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ मिलता है।
11. गठिवन (बनतुलसी) : 20 से 80 मिलीलीटर बनतुलसी की जड़ का रस सुबह और शाम लेने से विषम बुखार ठीक हो जाता है।
12. भांट : भांट के पत्तों का चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद और सुगन्ध द्रव (लौंग या दाल चीनी) को मिलाकर तीसरे या चौथे बुखार में चटाने से लाभ होता है।
13. गिलोय : गिलोय के काढ़े मे शहद मिलाकर सुबह और शाम सविरा या विषम या पुनरावर्तक बुखार में देने से लाभ होता हैं।
14. बेल : बेल की जड़ (विल्व मूल) की छाल का काढ़ा सुबह और शाम लेने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
15. आक (मदार) : आक की जड़ की छाल का फांट (घोल) का सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार दूर होता है।
16. धतूरे : पुनरावर्तक बुखार में धतूरे के बीज का चूर्ण लगभग 1 ग्राम के चौथाई भाग से कम मात्रा से लेकर 1 ग्राम तक दही के साथ बुखार आने से पहले खिला दे तो बुखार दुबारा नहीं चढ़ता है। इस प्रयोग से पहले धतूरे के बीजों को लगभग 12 घण्टे तक गौ मूत्र में भिगोकर प्रयोग करें।
17. पित्तपापड़ा : पित्त पापड़ाका काढ़ा बनाकर 25 से 50 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से सविराम और अर्द्धविराम बुखार, जलन, प्यास भ्रम और आमाशयिक पीड़ा में आराम मिलता है।
18. तपझाड़ : तपझाड़ का साग खाने से विषम बुखार में लाभ होता हैं और भूख खुलकर लगती है।
19. नीम : नीम के तेल की 5 से 10 बूंदे सुबह और शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
20. सुगन्धबाला : आधे ग्राम से 1 ग्राम सुगन्धबाला चूर्ण को लेकर 1 ग्राम, मन:शिला, यशद भस्म और सूक्ष्म मात्रा में भांग या अफीम का मिलाकर पान के रस में छोटी-छोटी गोली बनाकर सुबह और शाम एक मात्रा सेवन करने से बुखार के कारण से होने वाली शारीरिक और मानसिक थकावट दूर होती है।
21. सिनुआर (निर्गुण्डी) :
- सिनुआर के पत्ते और हरीतकी को गाय के पेशाब में पीसकर सुबह और शाम सेवन करने से बुखार के साथ प्लीहा होने वाली वृद्धि में लाभ होता है।
- सिनुआर के पत्तों का रस, कुटकी और रसौत के साथ सुबह और शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
22. वेदमुश्क : वेदमुश्क की छाल का काढ़ा बनाकर 20 से लेकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में सुबह और शाम सेवन करने से बुखार और पैत्तिक बुखार में राहत मिलती है।
23. जलमाला (सुकूलबेन्त) : 5 से 10 ग्राम जलमाला की छाल को घोंटकर सुबह और शाम बुखार आने से पहले लेने से बुखार का ताप कम हो जाता है।
24. समुद्रफल : लगभग आधा ग्राम समुद्रफल, कालीमिर्च और तुलसी के पत्तों के रस से सुबह और शाम लेने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
25. महाबला : महाबला की जड़ और सोंठ का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम पीने से विषम बुखार में लाभ होता हैं।
26. गुलशकरी (जो बनमेथी के नाम से भी जाना जाता है) : गुलशकरी की जड़ और सोंठ का काढ़ा बनाकर खाने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
27. ममीरा (पीलीजड़ी) : लगभग आधा ग्राम ममीरा की जड़ को सुबह और शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में राहत मिलती है।
28. गावजबान : गावजबान की जड़ का चूर्ण 4 से 6 ग्राम रोजाना सुबह और शाम दूध के साथ-ही साथ 20 से 25 मिलीलीटर बराबर पानी के द्वारा सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।
29. कठगूलर : लगभग आधा ग्राम कठगूलर (कठूमर) की जड़ या फल दूध के साथ सुबह और शाम लेने से पुनरावर्तक में लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसके मात्रा में अधिक होने से उल्टी हो जाती है।
30. तुन : 20 से 25 मिलीलीटर तुन के पेड़ की छाल का फांट सुबह और शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ मिलता है। अनुपान के रूप में कालीमिर्च का ही प्रयोग करें।
31. सतौना (सतवन) : 4 से 8 ग्राम सतौना की छाल का चूर्ण या छाल का काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम देने से बुखार का ताप उतर जाता है। इससे बुखार में आने वाली कमजोरी दूर हो जाती है।
32. तेन्दू : तेन्दू की छाल का चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम लेने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
33. करोंदा : करोंदा के पत्तों का काढ़ा बनाकर 20 से लेकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से विषम बुखार में लाभ होता है।
34. लिसोड़ा : लिसोड़ा (लिसोरा) की छाल का काढ़ा बनाकर 20 से लेकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
35. सेब : 40 से 80 मिलीलीटर सेब के पेड़ की छाल के काढ़े को सुबह और शाम लेने से पुनरावर्तक बुखार में आराम होता है।
36. अफसन्तीन : अफसन्तीन के तेल की 10 से 15 बूंदों को दूध या बतासे पर डालकर सेवन करने से पुराने बुखार में राहत मिलती है।
37. गोरक्षी : 20 से 40 मिलीलीटर गोरक्षी के काढ़े को सुबह और शाम लेने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ मिलता है।
38. मकरध्वज : 1 ग्राम मकरध्वज और पीपल के पत्तों के चूर्ण को एक साथ मिलाकर शहद में सुबह और शाम पीने से मलेरिया के बुखार या अन्य बुखार में लाभ होता है।
39. चम्पा : चम्पा की जड़ की फांट को 40 से 80 मिलीलीटर तक की मात्रा में सेवन करने से पुनरावर्तक बुखार में लाभ होता है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)