रक्त प्रदर क्या है ? : Metrorrhagia in Hindi
स्त्री का मासिक रजःस्राव ठीक समय पर, सामान्य मात्रा में, बिना किसी कष्ट के हो और तीन या चार दिन में बन्द हो जाए तो यह इस बात का प्रमाण होगा कि उस स्त्री का गर्भाशय और योनिप्रदेश स्वस्थ और विकार रहित है। ऋतुकाल के दिनों में अत्यधिक मात्रा में रजःस्राव होना, ज्यादा अवधि तक होते रहना रक्तप्रदर रोग कहा जाता है। इसे अंग्रेज़ी में मेनोरेजिया (Metrorrhagia) कहते हैं। अतिरिक्त दिनों में चाहे जब रजःस्राव होने लगना भी रक्तप्रदर रोग का लक्षण है। इसे मेट्रोरेजिया Metrorrhagia) कहते हैं। आयुर्वेद ने इन दोनों अवस्थाओं के लिए ‘असृग्दर’ शब्द का प्रयोग किया है क्योंकि इन दोनों अवस्थाओं में परस्पर सम्बन्ध होता है।
रक्त प्रदर रोग क्यों होता है ? इसके कारण : Rakta pradar ke Karan in Hindi
इस रोग के उत्पन्न होने के प्रमुख कारणों में –
- गर्भाशय का अपने स्थान से हट जाना ।
- गर्भाशय का उलट जाना, उसका प्रदाह ।
- गर्भपात ।
- अत्यधिक मैथुन करने से ।
- घोड़ा, ऊंट, साइकिल, मोटर साइकिल, स्कूटर, आदि की सवारी अधिक करना ।
- काम, क्रोध, भय, शोक, चिंता, ईर्ष्या, द्वेष से उत्पन्न मानसिक संताप ।
- ज्यादा परिश्रम करना ।
- अधिक व्यायाम जैसे नृत्य, रस्सी कूदना, दौड़ना ।
- मिथ्या आहार-विहार ।
- खाए हुए भोजन के पचने से पहले पुनः भोजन करना ।
- विरुद्ध भोजन, मांस, मछली, अंडे, शराब, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू का अधिक सेवन करना ।
- बार-बार गर्भपात होना।
- जल्दी-जल्दी बच्चा पैदा करना ।
- अश्लील साहित्य पढ़ना, उत्तेजक फिल्में देखना ।
- दिन में सोना और देर रात तक जागरण करना।
- संभोग से उत्पन्न बीमारियां यथा उपदंश, सूज़ाक ।
- गर्भाशय में ट्यूमर, घाव, रक्ताधिक्य ।
- यकृत और किडनी के रोग आदि ।
रक्त प्रदर रोग के लक्षण : Rakta pradar ke Lakshan in Hindi
रक्त प्रदर के लक्षणों में –
- उष्ण एवं तीव्र वेग से रक्तवर्ण, कालापन लिए मटमैला स्राव होना।
- स्राव कभी पतला कभी गाढ़ा और कभी थक्केदार निकलता है।
- शरीर के अंगों का टूटना ।
- हाथ-पैर के तलवों में दाह व जलन होना ।
- कमर में दर्द होना ।
- पेडू में दर्द ।
- शरीर में दाह, भ्रम होना ।
- अधिक प्यास लगना ।
- शरीर में खून की कमी से एनीमिया का होना ।
- शारीरिक दुर्बलता ।
- आंखों के आगे अंधेरा छा जाना ।
- सिर में चक्कर महसूस होना ।
आदि लक्षण देखने को मिलते हैं। सबसे बड़ा लक्षण तो अधिक दिनों तक, भारी मात्रा में और वेग के साथ रक्त-स्राव होना ही है। आयुर्वेद ने अति भोगविलास करना और वात एवं पित्त कुपित करने वाले आहार को रक्तप्रदर रोग का प्रमुख कारण माना है।
यहां इस रोग को नष्ट करने वाले कुछ अनुभूत घरेलू नुस्खे प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
रक्त प्रदर रोकने के घरेलू उपाय और नुस्खे : Rakta pradar ka Ilaj in Hindi
कुशा – रक्त प्रदर ठीक करे कुशा का प्रयोग
कुशा की जड़ को चावल के धोवन (माँड़) में पीस कर छान लें। इसे थोड़ी मिश्री मिला कर सुबह शाम पीने से लाभ होता है।
गूलर – रक्त प्रदर मिटाए गूलर का उपयोग
गूलर फल 20 ग्राम (जिनमें कीड़े न हों) को कूट पीस कर 10 ग्राम शहद में मिला कर प्रातः चाट कर खाने से रक्त प्रदर ठीक होता है।
आंवला – रक्त प्रदर में फायदेमंद आंवला
आंवले के बीजों की मींगी को जल में पीस कर आधा कप पानी में घोल लें व थोड़ी सी शक्कर मिला कर 2-3 दिन पीने से उग्र रक्तप्रदर का भी नाश होता है।
गिलोय – रक्त प्रदर में गिलोय का उपयोग लाभदायक
गिलोय के रस में शक्कर मिला कर सुबह शाम पीने से रक्तप्रदर रोग शान्त होता है।
दूब – रक्त प्रदर में लाभकारी दूब
ताज़ी हरी दूब लाकर पानी से धोकर साफ़ कर लें। इसे थोड़ी सी शक्कर के साथ सिल पर पीस कर पानी के साथ घोंट छान लें और बराबर भाग पानी मिला लें। इसे 1-1 कप सुबह शाम पीने से रक्तप्रदर में शीघ्र लाभ होता है।
रक्त प्रदर की आयुर्वेदिक दवा – पुष्यानुग चूर्ण नं. 1
शुद्ध रसौत, अतीस, कुड़ा छाल, इन्द्रजौ, सोंठ, धाय के फूल- सबको समान मात्रा में लेकर कूट पीस कर अच्छी तरह मिला लें और एक जान कर लें। इसे आधा चम्मच (लगभग 3-4 ग्राम) मात्रा में साथ में “पुष्यानुग चूर्ण नं. 1” तीन ग्राम मात्रा में, थोड़े से शहद में मिला करचाट लें ऊपर से चावल का पानी पी लें। रक्तप्रदर रोग नष्ट करने में यह नुस्खा बहुत अधिक सफल सिद्ध हुआ है।
रक्त प्रदर रोग में खान-पान और सावधानियाँ :
क्या खाएं –
- सादा, सुपाच्य, पौष्टिक, संतुलित भोजन करें।
- चोकर सहित बनी रोटी, चावल, मूंग, मसूर की दाल, मूंग की खिचड़ी सेवन करें।
- सब्जी में परवल, पालक, तुरई, कद्दू, टिंडा, कुलफा खाएं।
- फलों में अंगूर, केला, नाशपाती का सेवन करें।
- एक पका केला खाकर ऊपर से एक गिलास ठंडा दूध एक चम्मच शुद्ध घी मिलाकर पिएं या एक गिलास ठंडे दूध में इच्छानुसार मिस्री और केले मसलकर सेवन करें।
- कच्चे या सिके चने अल्प मात्रा में सुबह-शाम खाएं।
क्या न खाएं –
- भारी, गरिष्ठ, तली-भुनी, मिर्च-मसालेदार चीजें न खाएं।
- मांस, मछली, अंडा, लाल-मिर्च, गुड़ का सेवन न करें।
- गर्मा-गरम चाय, दूध, शराब, तंबाकू से परहेज करें।
रोग निवारण में सहायक उपाय :
क्या करें –
- अत्यधिक मानसिक व शारीरिक परिश्रम करने से बचें।
- कमर के नीचे तकिया लगाकर नितम्ब को ऊंचा रखकर आराम करें।
- सुबह-शाम घूमने जाएं।
- कब्ज की शिकायत रहे, तो एनिमा लगाएं।
क्या न करें –
- अति मैथुन न करें।
- देर रात्रि तक जागरण न करें।
- घोड़ा, ऊंट, साइकिल, मोटरसाइकिल न चलाएं।
- मानसिक संताप उत्पन्न करने वाले विचार मन में न लाएं।
- नृत्य, रस्सी कूदना, दौड़ना जैसे व्यायाम न करें।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)