Last Updated on January 18, 2021 by admin
रसराज रस क्या है ? (What is Rasraj Ras in Hindi)
रसराज रस टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग वात असंतुलन के कारण से होने वाले लकवा (पक्षाघात), खून की कमी (रक्तक्षीणता), बंद जबड़े, चेहरे का लकवा (अर्दित), श्रवण दोष, चक्कर आना जैसी बीमारियों के उपचार में किया जाता है। रसराज रस नसों, मांसपेशियों और मस्तिष्क संबंधी विकारों को दूर करने में मदद करता है।
घटक द्रव्य एवं उनकी मात्रा :
- शुद्ध पारद – 20 ग्राम,
- लोह भस्म 100 पुटी – 20 ग्राम,
- शुद्ध गन्धक – 20 ग्राम,
- अभ्रक भस्म शत पुटी – 40 ग्राम,
- शुद्ध गुग्गुलु – 320 ग्राम,
- सोंठ, काली मिर्च सम्मिलित – 10 ग्राम,
- हरड़ बहेड़ा आमला सम्मिलित – 10 ग्राम,
- दन्तीमूल – 10 ग्राम,
- गडूची – 10 ग्राम,
- इन्द्रायण की जड़ – 10 ग्राम,
- विडंग – 10 ग्राम,
- नागकेसर – 10 ग्राम,
- त्रिवृत्त – 10 ग्राम,
क्वाथार्थ :
- गिलोय – 1.500 ग्राम,
- त्रिफला – 1.500 ग्राम
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- कजली : जन्तुघ्न, योगवाही, रसायन।
- लोह भस्म : रक्त वर्धक, बल्य, रसायन।
- स्वर्ण भस्म : ओजोवर्धक, विषघ्न, बल्य, वृष्य (वीर्य और बल वर्धक), रसायन।
- लोह भस्म : रक्त वर्धक, बल्य, वृष्य, रसायन ।
- रजत भस्म : शुक्र वर्धक, बल्य, वृष्य, अण्डकोष वीज कोष बल्य ।
- वंग भस्म : शुक्र वर्धक, बल्य, वृष्य, अण्डकोष, बीजकोष बल्य।
- असगंध : वात कफ शामक, बृष्य, बल्य, रसायन।
- लवंग : दीपक, पाचक, वृष्य, कफ पित्तशामक।
- जायवत्री : वात कफ शामक, शोथन, वेदनास्थापक (दर्दनाशक), आक्षेपहर।
- क्षीरकाकोली : रसायन, बल्य, वृष्य।
- काकमाची : दीपन, आमनाशक, रक्तशोधक, यकृतोतेजक।
रसराज रस बनाने की विधि :
सर्व प्रथम रस सिन्दूर को इतना खरल करवाएं जिससे उसमें चमक न रहे। तत्पश्चात् स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म मिलाकर काकमाची स्वरस से एक दिन खरल करवाऐं। काकमाची स्वरस इतना डालना चाहिए जिसमें तीनों औषधियाँ डूब जाएँ। रस सूख जाने पर अन्य सभी औषधियां मिलाकर काकमाची के स्वरस से खरल करवा कर 100 मि.ग्रा. की वटिकाएं बनवा कर छाया शुष्क करवा कर सुरक्षित कर लें।
रसराज रस की खुराक (Dosage of Rasraj Ras)
एक वटिका प्रातः, सायं, भोजन से पूर्व ।
अनुपान : दूध, मिश्री, जल, मधु, रोगानुसार ।
रसराज रस के फायदे और उपयोग (Benefits & Uses of Rasraj Ras in Hindi)
रसराज रस के कुछ स्वास्थ्य लाभ –
1). लकवा (पक्षाघात) में रसराज रस के इस्तेमाल से लाभ
पक्षाघात का कारण चाहे मस्तिष्कगत सूक्ष्म रक्त वाहिनियों का अवरोध हो या रक्त वाहिनि विदीर्ण होकर रक्त स्राव दोनों स्थितियों में रस राज रस अमोध औषधि है। औषधि को सूक्ष्म पीस कर मधु में मिलाकर रोगी की जिह्वा पर लगा दें। यदि मुख द्वारा औषधि सेवन सम्भव न हो तो उपरोक्त मिश्रण 20 मि.लि. दूध में घोलकर फीडिंग ट्यूव में डाल दें ऊपर से 20 मि.लि. दूध और डालें, ताकि औषधि आमाशय में चली जाए ।
मात्रा वस्ति के रूप में – 200 मि.ग्रा. रसराज रस, मधु 10 मि.लि. एरण्ड तैल 20 मि.लि., सोया का सूक्ष्म चूर्ण 5 ग्राम, सैन्धव नमक 2 ग्राम मिलाकर मात्रा वस्ति दिलवाने से अवश्य लाभ होता है।
मात्रावस्ति के पूर्व मलनिश्काशन और आन्त्र शोधन के लिए दशमूल क्वाथ 150 मि.लि., एरण्ड तैल 20 मि.लि., सैन्धव लवण 5 ग्राम, सोया चूर्ण 10 ग्राम मिलाकर अस्थापन वस्ति अवश्य दिलवाएँ।
उपरोक्त चिकित्सा से आत्यायिक (हानिकारक) स्थिति टल जाती है। रोगी को होश आ जाता है। होश आ जाने पर रोगी को रसराज रस के साथ कृष्ण चतुर्मुख रस, अर्धाङ्ग वातारि रस की योजना करनी चाहिए । रोगी को भ्रम इत्यादि लक्षण हो तो योगेन्द्र रस का प्रयोग करवाऐं । योगेन्द्र रस का प्रभाव संज्ञावाहिनियों पर होता है और रसराज रस का प्रभाव चेष्टा वाहिनियों पर अतः उपरोक्त दोनों रसों के प्रयोग में यह सूक्ष्म भेद अवश्य दृष्टि गोचर रहना चाहिए।
सहायक औषधियों में वृहद्वात चिन्तामणि रस, एक महत्त्वपूर्ण औषधि है। जीर्ण रोगियों में ताप्यादि लोह, महा योग राज गुग्गुलु, खंजनकारी रस, एकांग वीर रस इत्यादि का प्रयोग लाभदायक होता है।
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2). अर्दित (मुह का लकवा) में रसराज रस के इस्तेमाल से फायदा
पक्षाघात एवं अर्दित दोनों व्यधियों के निदान और सम्प्राप्ति एक जैसी होती है। पक्षाघात में अत्यायिक (हानिकारक) स्थिति होती है परन्तु अर्दित में नहीं। अतः अर्दित की चिकित्सा में भी रसराज रस एक सफल औषधि है । एक गोली प्रात: सायं मधु से चटाकर अनुपान में आत्मगुप्तादि क्वाथ पिलाने से शीघ्र लाभ होता है। स्थानीय स्नेहन (मालिश) स्वेदन (पसीना निकलना) भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
सहायक औषधियों में वृहद्वातचिन्तामणि रस, समीर पन्नग रस, एकांग वीर रस में से किसी एक औषधि का प्रयोग भी अवश्य करवाएं।
जीर्ण (पुराने) रोगियों में अर्धांग वातारि रस, कृष्ण चतुर्मुख रस, ताप्यादि लोह, महायोग राज गुग्गुलु इत्यादि औषधियों का प्रयोग करवाएं ।
चिकित्सावधि दो सप्ताह से तीन मास तक रोग की अवस्था के अनुसार।
( और पढ़े – चेहरे का लकवा दूर करने वाले दस अनुभूत प्रयोग )
3). रोगों के उपद्रव जन्य अत्यायिक अवस्थाएँओं में लाभकारी है रसराज रस का प्रयोग
जब रोगी को भ्रम (सिर का घूमना चक्कर आना) हो रहे हो, ठण्डे स्वेद (पसीना) आ रहे हों, हाथ पैर शीतल हो जायें रोगी का मानसिक सन्तुलन ठीक न हो, उसका शरीर काँप रहा हो, नेत्र टेढ़े हो गए हों। इस महौषधि की 200 मि.ग्रा. की मात्रा मधु और दूध में आलोडित करके पिला देने से स्थिति सुधरने लगती है ऐसी अवस्था में एक घण्टे के अन्तराल से इस महौषधि को सेवन करवाने से रोगी की प्राण रक्षा की जा सकती है ।
सहायक औषधियों में वृहद् कस्तूरी भैरव रस, समीर पन्नग रस, की सहायता लेनी चाहिए।
4). अंगों के संचालन में होने वाले कष्ट में रसराज रस के सेवन से लाभ
अंगों के स्तब्ध हो जाने पर उनके संचालन में वेदना होने पर अंग संचालन में व्यवधान के कारण शरीर के एक ओर झुक जाने पर रसराज रस एक उत्तम औषधि है । एक गोली प्रातः सायं मधु के अनुपान से देने से तीन दिन में ही लाभ दृष्टि गोचर होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए चालीस दिन तक अवश्य सेवन करवाएँ ।
सहायक औषधियों में बृहद्वात चिन्तामणि रस, कृष्ण चतुर्मुख रस, पुष्पधन्वारस, त्र्योदशाङ्ग गुग्गुलु, महायोग राज गुग्गुलु, प्रसारिणी तैल इत्यादि में से किसी एक या दो का प्रयोग भी करवाएँ । परन्तु अस्थि विकृति जन्य अंग संचालन कष्ट में इसका प्रयोग नहीं होता है । न ही पतले पड़ गए या संकुचित अंगों पर इस औषधि का प्रभाव होता है।
5). ओस्टियोआर्थराइटिस में लाभकारी है रसराज रस का सेवन
ओस्टियोआर्थराइटिस जनित सन्धि शोथ एवं सन्धि वेदना में रसराज रस का सफलता पूर्वक प्रयोग होता है ।
सहायक औषधियों में पुनर्नवा गुग्गुलु, पुष्पधन्वा रस, रास्नादि गुग्गुलु का प्रयोग करवाऐं।
पूर्ण लाभ के लिए तीन से छ: मास चिकित्सा की आवश्यकता होती है। रोगी के शरीर का भार अधिक हो तो उसे कम करने के लिए नवक गुग्गुलु, आरोग्य वर्धिनी वटी, का प्रयोग भी करवाएं।
( और पढ़े – ऑस्टियो आर्थराइटिस (गठिया) का आयुर्वेदिक उपचार )
6). स्कोलियोसिस में रसराज रस के प्रयोग से लाभ
गृध्रसी (सायटिका) अथवा अन्य कारणों से रोगी वेदना वाले भाग को बचाकर चलने के प्रयास में एक ओर झुक कर चलने लगता है इस प्रयास में रोगी के मेरुदण्ड की प्राकृतिक करवेचर (घुमाव) में परिवर्तन आ जाता है। फल स्वरूप रोगी का शरीर टेढ़ा हो जाता है रोगी की कटि यदि दाई ओर को झुकती है तो कन्धा बांई ओर को झुक जाता है। ऐसी स्थिति में रसराज रस मधु से चटा कर अनुपान में दशमूल क्वाथ पिलाने से वेदना कम होकर मेरुदण्ड की स्थिति सुधरने लगती है। यदि चक्रिका भ्रंश हो तो रोगी को एक सप्ताह का पूर्ण विश्राम दें। चिरकालीन स्थितियों में अस्थि में विकृति आ जाती है और रोग शस्त्र चिकित्सा (सर्जरी) की परिधि में चला जाता है।
7). ट्रिगर फिंगर में रसराज रस का उपयोग फायदेमंद
वात नाड़ी में ग्रंथि (गांठ) पड़ जाने के कारण हाथ की एक या दो उंगलियाँ प्रभावित हो जाती है। मुट्ठी बन्द करने पर कोई कष्ट नहीं होता परन्तु मुट्ठी खोलने पर प्रभावित अंगुलियों के अतिरिक्त सभी उंगलियाँ सहज ही खुल जाती है, प्रभावित उंगलियों को दूसरे हाथ से खोलना पड़ता है । खोलते समय उनमें असह्य वेदना और ‘टक’ की ध्वनि के साथ झटके से उंगली सीधी हो जाती है। रसराज रस एक गोली प्रात: सायं दूध से सेवन कराने से एक सप्ताह में लाभ हो जाता है। स्थानीय स्नेहन, स्वेदन और उंगली संचालन से रोगी के शीघ्र स्वस्थ होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
रसराज रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ (Rasraj Ras Side Effects in Hindi)
- रसराज रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- रसराज रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- रसराज रस एक पूर्ण निरापद औषधि है, इसके सेवन से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया की कोई सम्भावना नहीं है। परन्तु यह महौषधि खनिज धातुओं का मिश्रण है। निःसन्देह सभी धातुयें शोधित एवं भस्मीकृत हैं, इनकी क्रिया भी अमृत तुल्य होती है फिर भी खनिज धातु सेवन के पूर्वोपाय रसराज रस के सेवन में करने चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
भाई जी आप क्या पुछना चाह रहें है यह समझ नहीं आ रहा है । कृपया पुनः समझाने की कृपया करें ।
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