Last Updated on August 1, 2019 by admin
एक वैद्य ने अनूठे ढंग से राजा को नीरोग बनाया :
एक रियासत के राजा अचानक गम्भीर रूप से अस्वस्थ हो गये। भूख-प्यास पूरी तरह समाप्त हो जाने से उनका शरीर पीला पड़ता गया और जर्जर होने लगा। जान । राजकुमार तथा अन्य परिवारजनों ने बड़े-बड़े चिकित्सकों से उनकी जाँच करायी। अन्त में उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि इनके शरीर की ग्रन्थियों से निकलकर मुँह में आनेवाला विक्षेप द्रव्य, जिसे लार कहते हैं, बनना बंद हो गया है। लार ही पाचनक्रिया का प्रमुख साधन है। उसका बनना बंद होने से उन्हें भूख-प्यास से वंचित होना पड़ा है।
ऐलोपैथी पद्धति के बड़े-बड़े चिकित्सकों को बम्बई-कलकत्तातक से बुलाया गया, कई विदेशी डॉक्टर भी बुलाये गये। सभीने अपनी-अपनी दवाएँ दीं, किंतु राजा साहब को रोगमुक्त नहीं किया जा सका। अब तो राज्य के तमाम लोग यही समझने लगे कि राजा साहब की मृत्यु संनिकट है।
एक दिन अचानक किसी गाँव के वयोवृद्ध आयुर्वेदाचार्य वैद्य जी नगर में आये। उन्हें बताया गया कि हमारे राजा साहब एक भयंकर. बीमारी से ग्रस्त हैं। यह बीमारी असाध्य घोषित की जा चुकी है। कलकत्ता-बम्बईतक के डॉक्टर उनका इलाज करने में असमर्थ रहे हैं।
वैद्य जी राजा के प्रधानमन्त्री के पास पहुँचे और बोले-‘मैं भी आपके राज्य का एक नागरिक हूँ, राजा साहब की बीमारी के बारे में सुना तो अपना कर्तव्य समझकर राजमहल तक आया हूँ।’ क्या मैं राजा साहब को देख सकता हूँ? पहले तो प्रधानमन्त्री ने उस धोती-कुर्ता पहने, माथे पर तिलक लगाये, सादे वेश-भूषावाले ग्रामीण वैद्य को देखकर उपेक्षाभाव दर्शाया, परंतु अन्त में सोचा कि राजा को इन्हें दिखा देने में क्या हर्ज है। उन्हें राजा के कमरे में ले जाया गया।
वैद्यजी ने राजाकी नब्ज़ देखी। उनकी आँखों तथा जीभ का जायजा लिया। अचानक वैद्यजी के मुखपर मुसकराहट दौड़ गयी। राजकुमार तथा प्रधानमन्त्री से बोले-‘मैं रोग को समझ गया हूँ। अब यह बताओ कि इन्हें दवा खिलाकर स्वस्थ करूँ या दवा दिखाकर ?
कुछ देर चुप रहनेके बाद वैद्यजी ने कहा-‘आप १० युवक, १० चाकू तथा १० नीबू मँगाइ ये। मैं अभी इन्हें रोगमुक्त करके पूर्ण स्वस्थ बनाता हूँ।’ यह सुनकर सभी आश्चर्य में पड़ गये कि वैद्यजी का यह अनूठा नुसखा आखिर किस तरह राजा साहब को स्वस्थ कर सकेगा। सबने कहा- लगता है वैद्य कोई सनकी है।’
विचार-विमर्श के बाद युवकों, चाकुओं तथा नीबुओं की व्यवस्था कर दी गयी। वैद्यजी ने दसों युवकों को लाइन में खड़ा कर दिया। हरेक के हाथमें एक नीबू तथा चाकू थमा दिया। उन्हें बताया कि मैं जैसे ही संकेत करूँ एक युवक राजा साहबकी शय्या के पास पहुँचे, उनके मुख के पास नीबू ले जाय-नीबू को चाकू से काटे तथा उसके दोनों हिस्से वहाँ रखे बर्तन में निचोड़ दे। इसके बाद दूसरा युवक भी ऐसा ही करे।
राजा साहब के कमरे में रानी, राजकुमार, प्रधानमन्त्री आदि बैठे इस अनूठी चिकित्सा के प्रयोग को देख रहे थे। वैद्यजी के संकेत पर एक युवक कमरे में आया- उसने राजा साहब को प्रणाम किया, नीबू मुँह के पास ले जाकर चाकू से काटा तथा उसके दोनों हिस्सों को पास में रखे बर्तन में निचोड़ दिया।
तीन युवकों के इस प्रयोग के बाद राजा साहब ने जीभ चलायी। चौथे युवकने जैसे ही नीबू काटकर रस निचोड़ा कि राजा साहबकी आँखों में चमक आने लगी। नीबू के रस की धार को देखकर नीबू का चिन्तन करके राजा साहबके मुँहमें पानी (लार) आने लगा था। उनकी ग्रन्थियों ने लार बनानी शुरू कर दी थी।
देखते-ही-देखते राजा साहब का मुँह लार से भरने लगा। वैद्यजी ने उन्हें नीबू के रसमें तुलसीपत्र तथा काली मिर्च डलवाकर पिलवायी। कुछ ही देर में राजा साहब उठ बैठे। उनके शरीरकी लार बनानेवाली ग्रन्थियाँ अपना कार्य करने लगीं।
अब तो राजा साहब का पूरा परिवार उन ग्रामीण वैद्यजी के प्रति नतमस्तक हो उठा। जहाँ अंग्रेजी पद्धति के बड़े-बड़े डॉक्टर राजा साहबको नीरोगी नहीं बना पाये थे, वहीं एक साधारण वैद्यजी ने अपने एक देशी नुसखे से राजा साहब को रोगमुक्त कर दिखाया था।
राजपरिवारके लोगोंने वैद्यजी को स्वर्णमुद्राएँ इनाम में देनी चाहीं, पर उन्होंने कहा- ‘मैं इस राज्यका नागरिक हूँ- क्या मेरा यह कर्तव्य नहीं है कि मैं अपने राजा के स्वास्थ्य के लिये कुछ करूँ।’ यह कहकर उन्होंने इनाम लेने से इनकार कर दिया।
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