Last Updated on August 9, 2020 by admin
रोगानुसार होम्योपैथिक औषधियों का संक्षिप्त परिचय :
विभिन्न रोगों से छुटकारा पाने के लिए योगासनों, भोजन चिकित्सा आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं होम्योपैथिक औषधियों का सुविधानुसार सेवन कर शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है । होम्योपैथिक औषधियाँ मनुष्य की प्रकृति से स्वाभाविक मेल खाती हैं । अतः इनके प्रयोग से निश्चित, शीघ्र तथा स्थायी लाभ प्राप्त होता है और फिर यह मूल्य के दृष्टिकोण से भी सस्ती होती हैं।
यहाँ पर विभिन्न रोगों पर प्रभावकारी होम्योपैथिक औषधियों का संक्षिप्त में ही उल्लेख किया जा रहा है। इनका सेवन करने से पूर्व किसी सुयोग्य होम्योचिकित्सक से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए क्योंकि होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति-लाक्षणिक चिकित्सा पद्धति है। जब लक्षणों में अन्तर आते हैं तब औषधि का चयन भी बदल जाता है। अतः इस विषय में सतर्कता की आवश्यकता है। बिना डॉक्टर की सलाह से दवाई लेने से आपकी सेहत को गंभीर नुक्सान हो सकता है। औषधि सेवन का समय मात्रा आदि की जानकारी एवं पथ्य आदि के विषय में चिकित्सक के परामर्शनुसार ही चलना चाहिए।
किस रोग में कौनसी होम्योपैथिक दवा लाभप्रद : Rog Anusar Homeopathic Medicines Name List in Hindi
अग्निमांद्य – ‘नक्सवोमिका’ 3 यह पेट के रोगों की सुप्रसिद्ध औषधि है। दिन में 3 बार 1-1 खुराक सेवन करें।
‘कैरिकोपपेया 30 तथा होमेरस 3 भी इस रोग में लाभप्रद है।
अम्लता (एसिडिटी) – अम्लरोग में कार्बोबेज 30, सल्फ्यूरिकएसिड 30, नेट्रम-फास 6x, फास्फोरस 30, सल्फर 30 व ऐसाफिटिडा 2 (प्रत्येक दिन में 3 बार) तथा केल्केरिया कार्ब 200 दिन में 1 बार (लक्षणानुसार) सेवनीय है।
अनिद्रा – इस रोग की मुख्य औषधि ‘काफिया’ 6, 30 है । इसके अतिरिक्त (लक्षणानुसार) कैल्केरियाकार्ब 30, इग्नेशिया 30, एकोनाइट 30, जेल्सीमियम 30 (प्रत्येक दिन में 3 बार) और पैसीफ्लोरा 3 से 6 बूंद तक दिन में कई बार गर्म पानी से देते हैं।
अर्श (बबासीर) – खूनी बबासीर में एकोनाइट 30, हैमामैलिस फ.7, डोलिकोस या फिसक रिलीजिओसाफ का लक्षणानुसार प्रयोग करें।
बादी बवासीर में – एस्क्यूलस 3, रसटास्क 30, म्यूरियेटिक एसिड 3 तथा इग्नेशिया 200 का लक्षणानुसार प्रयोग लाभकारी है।
आमवात – इस रोग को जुलपित्ती के नाम से भी जाना जाता है। नए रोग में एपिस, आर्टिकायूरेन्स, तथ क्लोरेलम और पुराने रोग में किनिनम सल्फ, आर्स, एवं सल्फ का प्रयोग लक्षणानुसार हितकारी है।
आमाशयिक विकार – आमाशय में जख्म हो जाने पर लक्षणानुसार यूरोनियम नाइट्रिकम 3x वि. (6 घण्टे के अन्तराल से 2 ग्रेन की मात्रा में) देने से लाभ होता है। (माप : 1 ग्रेन = 0.060 ग्राम (आधी रत्ती))
आन्त्र-रोग (आँतो की बीमारी) – आँतों के सड़ जाने का उपक्रम होने पर ‘लैकेसिस 30, देने से लाभ होता है। एकोनाइट 3x, आर्सेनिक 3, बेलाडोना 3 का भी लक्षणानुसार प्रयोग लाभकर है।
आन्त्रवृद्धि – बाँयी ओर की बीमारी में नक्सवोमिका 2x दें। दाँयी ओर तक दर्द फैला हो तो इस्क्यूलस 2x तथा लाइकोपोडियम 30 देने से भी लाभ होता है।
उदराध्मान (अफारा) – इस रोग में कार्बोवेज 3x वि., 6, 30 या नक्सवोमिका, लाइकोपोडियम, कार्बोलिक एसिड, कैमोमिला व लैकेसिस (लक्षणानुसार) दी जाती है।
उदर विकार – नक्सवोमिका, 30 समस्त प्रकार के पेट के विकारों में लाभकारी है । इसके अतिरिक्त लक्षणानुसार कार्बोवेज, लाइकोपोडियम, पल्सेटिला, इग्नेशिया, नेट्रमकार्ब तथा नेट्रमम्यूर भी दी जाती है।
कब्ज – ‘नक्स वोमिका’ 200 की 1-1 मात्रा 15-15 मिनट के अन्तराल से सोते समय सेवन करें। यह 3 दिन के लिए पर्याप्त है। इस प्रकार सप्ताह में इसे 2 बार सेवन करें। इसके अतिरिक्त इग्नेशिया एवं लाइकोपोडियम का लक्षणानुसार प्रयोग भी लाभप्रद है।
कार्ट-विकार – इसमें कैल्केरिया फ्लोर 6x, रसटाक्स 30, 200 जिंकममेट 3, 6 आर्जनाई 3, 30 पल्सेटिला 30, एस्क्यूलस 3, कोबाल्ट 6, 30 एवं सल्फर 30 का भी प्रयोग लक्षणानुसार लाभकारी सिद्ध होता है।
कमर दर्द – इस रोग में लक्षणानुसार रसटाक्स 6, 30, बर्बेरिस, बल्गेरिस 2, 3 एकोनाइट 3x, आर्निका 3,30, एण्टिमटार्ट 1x, वि. 6, फाइटोलैक्का 6x एवं सिमिसिफ्यूगा 1x व 3 का प्रयोग लाभकारी है।
कष्टार्तव – इस रोग में लक्षणानुसार-कैमोमिला, काफिया, सिमिसिफ्यूगा, जैल्सीमियम, काक्युलस, जैन्थाक्जाइलम, पोडोफाइलम, बौरेक्स, हैलोनियस आदि का प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है।
कामेन्द्रियों का अल्प विकास – इग्नेशिया 30, एग्नस कैक्ट्स 6, लाइकोपोडियम 30 एवं नूफरलूटिया 3, 6 आदि औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग लाभप्रद रहता है।
कामशक्ति की निर्बलता – इसके लिए लक्षणानुसार फास्फोरस 30, स्टैफिसेग्रिया, लैकेसिस, योहिम्बनम, केना, ब्यूफो एवं नक्स बोमिका आदि का प्रयोग गुणकारी है।
कृमि ( पेट के कीड़े) – सिना 2x, 3, 30, 200 यह समस्त प्रकार के कृमि रोगों की औषधि है। इससे लाभ न होने पर ‘स्टेनम 30’ का प्रयोग करें। गोल कृमियों पर सेण्टोनियम 2x का प्रयोग हितकर है।
कुष्ठ – यह असाध्य रोग है। इसमें लक्षणानुसार हाइड्रोकोटइल Q, आर्सआयोड 3x विचूर्ण, बेलाडोना 3x, सीपिया 6, लैकेसिस 6, 30, कोमोक्लेडिया 2x एवं क्रोटेलस 3 आदि का लक्षणानुसार प्रयोग किया जाता है।
खट्टी डकारें आना – कार्बोवेज 3x, 30 इस रोग की मुख्य दवा है । लाइकोपोडियम, सल्फर तथा नक्सवोमिका के प्रयोग से भी लाभ होता है।
खाँसी – इसमें लक्षणानुसार एकोनाइट 3x, इपिकाक 3x, सिना 3x, सीपिया 30, केल्केकार्ब 6, लैकेसिस 6, बेलाडोना 3x, एण्टिमटार्ट 30, ब्रायोनिया 30, ड्रोसेरा 200 आदि औषधियों का सेवन किया जाता है।
गठिया (वात) – इस रोग में एकोनाइट 6, 30, सल्फर 30, ब्रायोनियां 6, 3, 30, रस टाक्स 6, 30 मर्कसोल 30, कैल्केरिया कार्ब 30, सिमिसिफ्यूगा 3 एवं लीडम 6 का लक्षणानुसार प्रयोग हितकर है।
गण्डमाला – इस रोग में लक्षणानुसार बेलाडोना 3, सल्फर 30, लेपिसएल्बम 6, मर्क आयोड 3 वि., सिलिका 6 एवं एथियोप्स एण्टीमोनिएलिस 2x, 6x, वि. का प्रयोग लाभकारी है।
गर्दन एवं पीठ के विकार – इस रोग में लक्षणानुसार स्टैल्लेरिया मीडिया 1x, कैल्मिया 3, 6, पल्सेटिला 3, 6, लैक्नेन्थिस 3, बेलाडोना 3x एवं कोलचिकम 6 का प्रयोग हितकर है।
गर्भशय सम्बन्धी रोग – इसमें लक्षणानुसार सिमिसिफ्यूगा, आर्निका, कैमोमिला, मयुरियस, पल्सेटिला तथा नक्सवोमिका आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
गले के रोग – इस रोग में लक्षणानुसार बेलाडोना, मर्क, एकोनाइट, लैकेसिस, कैलिम्यूर, बैराइटा-कार्ब आर्निका, एल्यूमिना, फाइटोलैक्का, सल्फर व रसटाक्स आदि औषधियाँ लाभकारी हैं।
गुर्दे के रोग – इसमें लक्षणानुसार आर्सेनिक, कैन्थरिस, कोपेवा, कार्बोलिक एसिड, एकोनाइट, टेरिबिन्थना, बेलाडोला, एपिसमेल आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
गैस की बीमारी – कार्बोवेज 30 को दिन रात में 4-4 घण्टे के अन्तराल से सेवन करें। यदि कब्ज भी हो तो आरम्भ में नक्सवोमिका 200 की 1 मात्रा लेकर पेट साफ कर लें तथा तीसरे दिन से कार्बोवेज लें।
घुटनों के रोग – घुटनों की मुख्य बीमारी गठिया का दर्द है । इस रोग में आर्टिकायूरेन्स Q को 5 बूंदे खूब गरम पानी के साथ 4-4 घण्टे के अन्तर से लेना हितकर है।
चर्म रोग – चर्मरोग अनेकों प्रकार के होते हैं। उसमें लक्षणानुसार-बेलिसपेरेनिस, आर्निका, डल्कामारा, हाईपेरिकम, कार्बोलिक एसिड, मेजेरियम, स्पन्जिया, हिपर सल्फर, सीपिया, ग्रेफाइटिस, पेट्रोलियम आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
जीभ की बीमारियाँ – जीभ के प्रदाह में मर्क-वाइवस 3x, 6x, वि., एपिस 3x, 30 एवं जीभ के जख्म में मर्कबिन 2x वि., आर्सेनिक 6 या हाइड्रैस्टिस 3x का लक्षणानुसार प्रयोग करें।
जीर्ण ज्वर – पुराने मलेरिया बुखार में कार्बोवेज 6, 30 लाभकारी सिद्ध होता है। लक्षणानुसार-एकोनाइट, सल्फर, सिड्रान, फेरमफास, एण्टिमक्रूड आदि का प्रयोग भी लाभकारी है।
जुकाम – इसमें लक्षणानुसार-एकोनाइट 3x, कैम्फर, एलियम सीपा, आर्सेनिक, पल्सेटिला, नक्सवोमिका, कैलिबाई और कैल्केकार्ड आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
झटके आना – जिस प्रकार मिरगी रोग से ग्रसित रोगी कँपकँपी का शिकार होकर बेहोशी आती है । उसी प्रकार इस रोग में कम्पन होती है, परन्तु बेहोशी नहीं आती। एगैरिकस 3 एवं इग्नैशिया 3 इसकी लाभकारी उत्तम औषधियाँ है ।
ताण्डव (नर्तन रोग) – इस रोग में लक्षणानुसार एकोनाइट, इग्नैशिया, स्ट्रैमोनियम आदि औषधियाँ लाभप्रद हैं।
ताप-तिल्ली – चिनिनम सल्फ 1x, 3x, वि. समस्त प्रकार के विषम ज्वर के मुख्य औषधि मानी जाती है । लक्षणानुसार चायना 3x, 30, इपिपाक 3x, 30, एकोनाइट 30, आर्सेनिक एल्ब 3, 6 एवं नेट्रमम्यूर 30 का प्रयोग भी गुणकारी है।
थकान – सीपिया 200 की एक मात्रा सेवन करना हितकर रहता है। लक्षणानुसार लाइकोपोडियम 30, साईलीशिया 30 तथा जिंकममेट का प्रयोग भी किया जाता है।
दन्त रोग – हैक्लालावा 30 समस्त प्रकार के दन्त रोगों की श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। दन्तशूल में प्लैण्टगो Q, दाँतों के सड़ जाने के कारण होने वाले दाँत दर्द में थूजा 30 तथा हवा लगने पर दाँत में दर्द बढ़ने के लक्षणों में सल्फर 6 का प्रयोग लाभप्रद है।
दमा – रोग के आक्रमण के समय एकोनाइट, अथवा एकोनरेडिक्स, इपिकाक,क्युप्रम, लोवेलिया, हाइड्रोएसिड, सेनेगाफ, नैट्रमसल्फ आदि औषधियों का सेवन लाभकारी रहता है।
ध्वज भंग – लाइकोपोडियम 200, फास्फोरस 30, एग्नसकैक्टस 30, कोनायम 30, 200, नूफरल्यूटियम 30 का प्रयोग लक्षणानुसार करना हितकर है।
धारणा विकास – ऐनाकार्डियम 30, नक्सवोमिका 30, नैट्रमम्यूर 30, नैट्रम-कार्ब, बैलेरियाना 30 आदि का लक्षणानुसार प्रयोग करना हितकारी है।
नाक, कान तथा गले के रोग – कान के प्रदाह में एकोनाइट 2x, कान के दर्द में, फेरमफॉस तथा मर्कसोल, नाक के प्रदाह में बेला 3, 30, नाक से दुर्गन्धित स्राव निकलने में आरममेट 30 तथा गला दुखने में कैलिवाइक्रोम 30, अमोनिया-म्यूर 30 आदि का लक्षणानुसार प्रयोग करें।
नाक में घाव – पेट्रोलियम 3, कैलिबाई 2x वि., फार्मिका रूफा 1x, 2, लेम्नामाइनर 1x, 3, एवं कैल्केरिया फास 6x, 3 आदि औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग करें।
नाड़ी दौर्बल्य – आर्सेनिक, आरमकैक्टस, कैम्फर Q, डिजीटेलिस, एसिड-हाइड्रो, फास्फोरस, लैकेसिस, फास-एसिड, विरेट्रम विरिड तथा फेरममेट आदि का लक्षणानुसार प्रयोग हितकर है।
नासूर – पुराना घाव जो हर समय रिसता रहे ‘नासूर’ कहलाता है । इसमें लक्षणानुसार आर्सेनिक 30, ग्रेफाइटिस 6, लैकेसिस 6 एवं मैजेरियम 30 आदि का प्रयोग लाभप्रद है।
नेत्र-रोग – आँखों के विभिन्न उपसर्गों में लक्षणानुसार-जैल्सीमियम, बेलाडोना, सल्फर, एपिस, रसटाक्स, एगेरिक्स, पल्सेटिला, यूफ्रेशिया, ब्रायोनिया, आर्सेनिक, हिपर सल्फर और स्पाईजिलिया आदि औषधियों का प्रयोग हितकर है।
पतले दस्त – ‘स्प्रिट कैम्फर Q, की कुछ बूंदें शक्कर में डालकर 15-15 मिनट के अन्तराल से सेवन करना लाभकारी है । कोलोसिन्थ, चायना, विरेट्र-एल्ब एवं फास्फेरिक आदि औषधियाँ भी लक्षणानुसार लाभकारी है।
पाचन क्रिया सम्बन्धी विकार – हाइड्रोस्टिस 2x वि. 30 इस रोग में परम लाभकारी दवा है । अन्य सेवनीय औषधियों में लक्षणानुसार-एकोनाइट, इपिकाक, कैलिबाई क्रोम, एण्टिमक्रूड, क्रियाजोट, फास्फोरस, प्लम्बम, एल्यूमिना, लाइकोपोडियम, नेट्रमम्यूर एवं सल्फर का प्रयोग भी हितकर है।
पाण्डु रोग – नवीन बीमारी में हाइड्रैस्टिस Q की 5-5 बूंद की 1-1 मात्रा अथवा लक्षणानुसार नक्सवोमिका, एकोन, कैमोमिला एवं मर्कसोल भी सेवनीय है। पुराने पाण्डु रोग में चायना एवं एसिड नाइट्रिक लाभकारी है।
पैरों के रोग – पैरों की मुख्य बीमारी ‘श्लीपद’ फीलपाँव (फाइलेलिया) हैं। इसमें पैर बहुत मोटा हो जाता है। इसमें हाइड्रोक्रोटाइल Q 3x, का सेवन लाभकारी सिद्ध होता है।
पीठ का दर्द – पीठ के निम्न भाग में दर्द होने पर एरक्युलस 3, टेल्यूरियम 6, 30, बर्वेरिस Q, 6, एगैरिकस 30, 300, एलो 3 एवं सीपिया 30 का लक्षणानुसार प्रयोग हितकर है।
पीनस – इस रोग में लक्षणानुसार-फार्मिका रूफा 1x, ट्यूक्रियम 6, लेम्नामाइनर 1x, 3, सोरिनम 200 कैल्केरियाफास 6x, 30, आरममेट 30, कैलिबाईक्रोम 30 एवं साईलीशिया 30 आदि सेवनीय हैं।
पेट का दर्द – अधिक दिनों तक अजीर्ण रहने से पेट (आमाशय) में घाव हो जाते हैं । इस रोग में बैप्टीशिया 3x, एसिडसल्फ 3x, फास्फोरस 6, मर्ककोर 3 एवं हाइड्रस्टिस 30 लक्षणानुसार उपयोगी हैं।
पेट में गैस बनना – कोलोसिन्थ 6, 30 इस रोग की सर्वोत्तम दवा मानी जाती है। लाइकोपोडियम 30 के साथ पर्यायक्रम से कोलोसिन्थ का प्रयोग करने पर शीघ्र लाभ होता है।
पेट की नाड़ियों तथा माँसपेशी की निर्बलता – नक्सवोमिका 1x, 3, 30, इस रोग की श्रेष्ठ औषधि है। भोजनोपरान्त डाइल्यूट हाइड्रोक्लोरिक एसिड की 10-15 बूंदे थोड़े-से पानी में मिलाकर सेवन करने से भी अच्छा लाभ प्राप्त होता है।
पेट के विकार – पेट के सभी विकारों में नक्सवोमिका 30, हितकारी है । लक्षणानुसार लाइकोपोडियम, चायना, कार्बोवेज, पल्सेटिला तथा सीपिया का भी प्रयोग लाभकारी है।
प्रदर – इस रोग में लक्षणानुसार-कैल्केरिया कार्ब 30, पल्सेटिला 6, सीपिया 6, 200 एसिड नाइट्रिक 6, क्रियाजोट 6, बोविस्टा 12, एल्यूमिना 30, फेरम 30 आदि का प्रयोग भी हितकर है।
प्रमेह – इस रोग में कैन्थरिस, कोपेवा, कैनाविस, सैटाइवा, कैप्सिकम, नैट्रमम्यूर, हिपर सल्फर, थूजा, पेट्रोसेलिनस, एवं कार्बोवेज का लक्षणानुसार प्रयोग करते हैं।
प्लीहाविकार – सियोनोथस Q, 1 इस रोग की मुख्य औषधि है। लक्षणानुसार एकोनाइट 3x, आर्निका 6, 30, चायना 6, 30, ऐरेनिया डायेडेमा Q, 30, ब्रायोनियाँ 30, नेट्रमम्यूर 30, इग्नेशिया 30 तथा रेननक्यूलस वल्बोसस 3, 30 का भी लक्षणानुसार प्रयोग हितकारी है।
फुफ्फुस विकार – फेफड़ों के प्रदाह में एकोनाइट, फास्फोरस, ब्रायोनियां, एण्टिम टार्ट, लाइकोपोडियम, हिपरसल्फर तथा हायोसायस आदि औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग हितकर है।
बहरापन – इसमें लक्षणानुसार पल्सेटिला 3, कैलिहाइड्रो 3x वि., एवं डल्कामारा 6, ब्रायोनियाँ आदि औषधियाँ उपयोगी हैं।
बाँझपन – कोनायम 3, बाँझपन की उत्तम औषधि मानी जाती है । इसके अतिरिक्त लक्षणानुसार आरमम्यूर 3x, कैल्केरिया कार्ब 30, बैराइटाकार्ब 30, सीपिया 30 आदि का प्रयोग भी लाभप्रद हैं।
बाघी – सूजाक अथवा उपदंश रोग के कारण उत्पन्न गाँठे जब प्रदाहित, सूजनयुक्त, गरम और कड़ी हो जाती हैं, तब उन्हें बाघी कहा जाता है। इस रोग की औषधि मर्कसोल 3 है। इसके अतिरिक्त कार्बो एनिमेलिस 6 इस रोग की मुख्य औषधि है।
बुद्धि विकृति – ऐनाकार्डियम 6 इस रोग की मुख्य औषधि है। इसके अतिरिक्त लक्षणानुसार एसिडफास 2x, 6, हेलिबोरेस 3x, जिंकम 6 तथा लिलियटिग का प्रयोग भी लाभकारी है।
वृद्धावस्था – लाइकोपोडियम 200 की 1 मात्रा सप्ताह में 2 बार लेते रहना हितकारी सिद्ध होता है।
बिबाई फटना – यह रोग प्रायः जाड़े के दिनों में बच्चों को अधिक होता है तथा कभी-कभी बड़ों को भी हो जाता है। इसमें आर्सेनिक 6, हिपर सल्फर 6, कैलिकार्ब 30, नैट्रमम्यूर 12x वि. आदि औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग लाभकारी है।
मधुमेह (डायबिटीज) – सिजिजियम जैम्बोलिनम Q इस रोग की समस्त अवस्थाओं की लाभकारी औषधि है। सेफेलेण्ड्रा इण्डिका Q, यूरेनियम नाइट्रिकम 2x, फास्फोरिक एसिड Q, लैक्टिकएसिड तथा नैट्रमसल्फ 12x और नैट्रम-फास 6x भी लक्षणानुसार उपयोगी है।
मानसिक तनाव – मैग्नेशिया कार्ब 30 इस रोग की मुख्य औषधि है। प्रत्येक 4-4 घण्टे के अन्तराल से इसकी 3 मात्राएँ सेवन कराएँ। फिर दूसरे दिन 1 मात्रा 200 शक्ति की दें। इसके अतिरिक्त एकोनाइट का प्रयोग भी लाभकारी है।
मानसिक निराशा – ‘इग्नेशिया 3, 30 पुरुषों के लिए तथा प्लैटिनम 6 स्त्रियों के सेवनार्थ उत्तम औषधि है ।
आत्महत्या की प्रबल इच्छा में – आरम 6, 200 विशेष लाभप्रद है।
मासिकधर्म सम्बन्धी विकार – रजः स्राव अनियमित होने पर कोनायम 1,301 , जल्दी-जल्दी ऋतुस्राव होने पर इग्नेशिया कैल्के-कार्ब, नैट्रमम्यूर एवं इपिकाक । देर से ऋतुस्राव होने पर-कैलि-कार्ब, लैकेसिस, पल्सेटिला अथवा सल्फर कई दिनों तक ऋतुस्राव जारी रहने पर इग्नेशिया, नक्सवोमिका एवं प्लैटिना आदि का लक्षणानुसार प्रयोग करना चाहिए।
मासिकधर्म बन्द हो जाने पर – ‘पल्सेटिला’ तथा फेरम पर्यायक्रम से सेवन कराना लाभकारी रहता है । एकोनाइट सल्फर, कैल्केरिया कार्ब आदि का प्रयोग भी लक्षणानुसार उपयोगी है।
मुँहासे – इसके लिए बोरेक्स 3x वि. का सेवन लाभकारी रहता है। स्त्रियों के लिए एसिड-नाई 6 हितकर है।
मोटापा – ग्रैफाइटिस 3x का 2 सप्ताह तक सेवन करने से लाभ प्रकट होता है। इसके अतिरिक्त-फ्यूकस वेसिक्यूलोसस Q की नित्य 5-5 बूंदे भोजन से पूर्व सेवन करना हितकर रहता है।
यकृत विकार – यकृत के प्रदाह में चेलिजेनियम Q, 6, 30 हितकर है । कार्युअस मेरियेनस Q सब प्रकार के यकृत विकार में लाभकर है। इनके अतिरिक्त मैग्नेशिया म्यूर Q, 30, भी लक्षणानुसार देते हैं।
यौन विकार – अधिक कामेच्छा में पिकरिड एसिड 6, हायोसायमस 30, कैन्थरिस 30 तथा अल्प कामेच्छा में एसिडफास 6 एवं जेल्सीमियम 3 का लक्षणानुसार प्रयोग गुणकारी है।
रक्तचाप में कमी – कोनायम 200 वृद्ध मनुष्यों के लिए हितकर है । अन्य आयु के लोगों के लिए ‘डिजिटेलिस 3’ कैल्मिया 6, जैल्सीमियम 30 तथा ऐबिसनाइग्रा 30, 200 लक्षणानुसार सेवन करना चाहिए।
रक्तचाप में वृद्धि – प्लम्बम 3, 30 इस रोग की श्रेष्ठ औषधि है । इसे उच्चशक्ति (हाईपोटेन्सी) में देते हैं । इसके अतिरिक्त बैराइटाम्यूर 6, सल्फर 30 या हाईपरिकम 3 का लक्षणानुसार प्रयोग किया जाता है।
रक्ताल्पता – रक्ताल्पता में चायना 30 फेरममेट 30, कार्बोवेज 30, एसिडफास 30, कैल्केरिया-फास 6x, फेरम-म्यूर 3x आदि औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग लाभकारी है।
रक्तविकार – यह रोग भी अनेक रूपों में प्रकट होता है। इसमें लक्षणानुसार-सल्फर, रेडियम ब्रोम, कैलि-ब्रोम, रसटाक्स, एण्टिम टार्ट, आर्सेनिक आदि औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग किया जाता है।
रतौन्धी – इस रोग में-‘फाइजोििटगमा 3’ के प्रयोग से लाभ होता है।
वात रोग – इसमें लक्षणानुसार-हिपर सल्फर, थूजा, एकोनाइट, फास्फोरस, रसटाक्स, ब्रायोनिया, विरेट्रम-एल्ब, बेलाडोना, कोलचिकम, सिमिसिफ्यूगा उपयोगी औषधियाँ हैं।
वायु विकार – रसटाक्स, लाइकोपोडियम, सल्फर, आर्सेनिक, मैग्नेशिया-फास, मर्क, कोलोसिन्थ, थूजा, लीडम, पल्स आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
वीर्यरोग – लक्षणानुसार-एसिडफास 3, डिजिटेलिस 3x, सेलेनियम 30, ऐग्नस कैक्टस Q, स्टैफिसेनिया 30, कोनायम 3, एवं चायना 30 का प्रयोग गुणकारी है।
विषैला घाव – यह रोग एक प्रकार के कीटाणु द्वारा उत्पन्न होता है। इसमें लक्षणानुसार सिकेलि 3, हाइपेरिकम 100, एन्थासिनम 30, लैकेसिस 6 आदि का प्रयोग करना चाहिए।
शराब पीने की आदत – शराब पीना छोड़ देने के बाद यदि शराब पीने की पुनः इच्छा हो तो उसे दबाने के लिए-चायना Q, ऐवेना Q, स्ट्रैफैन्थस Q को दिन में 3 बार 5-5 बूंद की मात्रा में देना लाभकारी है।
स्वरयन्त्र का प्रदाह – इस रोग में लक्षणानुसार-एकोनाइट 3x, बेलाडोना 3, ब्रोमियम 1x, कैलिबाई-क्रोम 3x, फास्फोरस 3, कास्ट्रिकम 3x, आदि का प्रयोग लाभकारक है।
शरीर में जलन – शरीर में ऊपरी जलन हो तो आर्सेनिक, ब्रायोनिया, कार्बोवेज, कास्टिकम, आदि औषधियों का तथा यदि शरीर में भीतरी जलन हो तो एकोनाइट, नक्स वोमिका, बेलाडोना आदि औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग लाभप्रद है।
शिरोरोग (सिर में चक्कर आना) – सिर में चक्कर आते हों तो लक्षणानुसार बौरेक्स 6, कोनायम 3, नैट्रम-म्यूर 6 या लेकेसिस 6 का सेवन लाभकारी सिद्ध होता है। काफिया, नक्स-मस्केटा 1x, 3, इग्नेशिया 3, जिकंम 30 एवं थिरिडियन 30 देने की भी आवश्यकता पड़ सकती है।
शियाटिका पेन (गृधसी वात) – इस रोग में लक्षणानुसार कोलोसिन्थ 30, 200 लाइकोपोडियम 200, रसटाक्स 30, नैफैलियम 30, एमोन-म्यूर 3x, 6, आर्सेनिक 30, मैग्नेशियाफास 3x, कार्बो-सल्फ 6 एवं बेलाडोना 200 आदि का भी प्रयोग किया जाता है।
शुक्रतारल्य (वीर्यका पतला होना) – इस रोग में लक्षणानुसार एसिडफास 2x, चायना 3, कैल्केरिया-फास 3x, नक्सवोमिका 30, स्ट्रैफिसेनिया 30, एवं कैलिब्रोम 30 वि. आदि का प्रयोग किया जाता है।
शोथ (सूजन) – सर्वांगीण शोथ में एपिस, आर्सेनिक, नैट्रमसल्फ 6x, ऐपोसाइनम Q एवं डिजि 3x का सेवन कराना सिद्ध होता है। सब प्रकार के शोथ में आर्सेनिक 3x 6 या 30 देने से लाभ होता है। ऐपिसमेल, ब्रायोनिया आदि भी दिया जाता है।
सुस्ती – चायना 6 फास्फोरिक एसिड 6 लक्षणानुसार सेवन कराएँ । प्रसवोपरान्त की सुस्ती में ये औषधियाँ विशेष रूप से लाभप्रद हैं।
सन्धि पीड़ा – ब्रायोनियाँ 30 कैल्मिया Q, 6, एकोनाइट 30, आरमेन्ट 30, स्पाइजीलिया 6, 30, बेलाडोना 30, पल्सेटिला 30, कोनायम 30 आदि का लक्षणानुसार प्रयोग लाभकारी है।
स्वप्नदोष – लाइकोपोडियम 200, बैराइटाकार्ब 6, बेलिसपेरेनिस Q, एसिडफास 3x, 30, कैलि-ब्रोम 30, कैलेडियम 30, कोनायम 30 एवं हेमामैलिस 30 लक्षणानुसार सेवन कराएँ।
स्नायविक तनाव – प्लम्बमफास 3x, 30 ,बेलाडोना 30, लैकेसिस 6, एकोनाइट 3x, आर्जनाई 30, नैट्रम-म्यूर 30 एवं मैग्नैशिया-कार्ब 30 का प्रयोग लक्षणानुसार करना चाहिए।
स्मृतिह्रास – एनाकार्डियम 6, 30, 200 इस रोग की सर्वश्रेष्ठ औषधि है । इसकी 1 मात्रा दूसरे दिन भी देनी चाहिए।
बच्चों एवं वृद्धजनों के लिए – बैराइटा कार्ब 30 गणकारी है।
स्लिस-डिस्कस – इस रोग नक्सवोमिका कार्ब 30, एवं कैमोमिला 30 का प्रयोग लक्षणानुसार करना लाभकारी है।
हकलाना – इस रोग की मुख्य औषध स्ट्रैमोनियम 30 है। इसके अतिरिक्त लक्षणानुसार हायोसायमस 30, साइक्यूटा 6, 30, कैनाविस सैटाइवा 30 एवं कैलिब्रोम 3 का प्रयोग लाभकारी है।
हिचकी आना – यह रोग अनेक कारणों से होता है। जिन्सेंगफ, के प्रयोग से लाभ न होने पर नक्सवोमिका, साइक्लामेन, क्युप्रम-मेट 6, क्यूप्रम आर्स 6 आदि का प्रयोग लक्षणानुसार करना लाभप्रद है।
(दवा को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)