रोग के अनुसार योग आसन – Rog ke Anusar Yogasan

Last Updated on August 23, 2020 by admin

रोग के अनुसार योग

रोगी को अपनी व्याधि तथा अपनी शारीरिक स्थितियों के अनुसार ही योग का अभ्यास करने के लिए कहा जाता है । ज्यादातर स्थितियों में केवल कुछ आसनों के नियमित अभ्यास से ही रोग निवृत हो जाता है। कुछ व्याधियों में आसनों के साथ प्राणायाम का अभ्यास भी अच्छे परिणामों के लिए अनिवार्य है । कुछ विशेष स्थितियों में इच्छित परिणाम के लिए कुछ विशेष क्रियाओं का जैसे – बन्ध, मुद्रा, धारणा तथा ध्यान का भी अभ्यास आवश्यक होता है।

अनुसंधान में पाया गया है कि अधिकांश रोग दो महीनों के योगाभ्यास से ही दूर हो जातें हैं, जबकी कुछ स्थितियों में चार महीने या उससे अधिक का समय भी लगता है।
ज्यादा समय लेनेवाले रोगों में – बच्चों की मधुमेह, पोलियो, लकवा, हाथ-पैरों में कम्पन रोग, मोटापा, अल्सर, मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी रोग इत्यादि हैं।

रोग के अनुसार आसन (विभिन्न प्रकार के योगासन)

गर्दन दर्द के लिए आसन :

तखत पर लेटकर सिर नीचे कर लटकाना।
बैठकर आसन:- 1. उष्ट्रासन 2. अर्द्ध चन्द्रासन 3. मकरासन-2 प्रकार

थाईराइड के लिए आसन :

  1. सर्वांगासन 2. हलासन 3. मत्स्यासन 4. उष्ट्रासन 5. सिंहासन

कमर दर्द, सर्वाइकल, स्पोण्डालाइटिस, स्लिपडिस्क, सियाटिका आदि में मेरुदण्ड से सम्बन्धित रोगों के लिए आसन :

  • बैठकर आसन:- 1. उष्ट्रासन 2. अर्द्ध चन्द्रासन
  • पेट के बल लेटकर आसन:- 1. मकरासन-2 प्रकार 2. भुजंगासन-3 प्रकार 3. शलभासन-4 प्रकार 4. तिर्यक भुजंगासन
  • पीठ के बल लेटकर आसन:- 1. मर्कटासन-3 प्रकार 2. कटि उत्तानासन 3. कंधरासन/सेतुबन्धासन 4.अर्द्ध पवनमुक्तासन 5. एक पादउत्तासन

मोटापा के लिए आसन :

  • खड़े होकर:- 1. तिर्यक ताडासन 2. त्रिकोणासन 3. कोणासन 4. पादहस्तासन
  • बैठकरः- 1. चक्की आसन 2. स्थितकोणासन 3. पश्चिमोतानासन
  • पेट के बल लेटकर:- 1. भुजंगासन-2 2. शलभासन-2
  • पीठ के बल लेटकर:- 1. अर्द्ध हलासन 2. पादवृत्तासन 3. द्विचक्रिकासन 4. मर्कटासन-3 5. शवासन

दैनिक योगाभ्यास के 12 आसन :

  • बैठकर आसन:- 1. मण्डूकासन 2. शशकासन 3. गोमुखासन 4. वक्रासन
  • पेट के बल लेटकर आसन:- 1. मकरासन 2. भुजंगासन 3. शलभासन
  • पीठ के बल लेटकर आसन:- 1. मर्कटासन 2. पवनमुक्तासन 3. अर्द्ध हलासन 4. पादवृतासन 5. द्विचक्रिकासन

सम्पूर्ण उदर रोगों, मधुमेह (डायबिटीज), गैस कब्ज, अम्लपित्त नाभि आदि के लिए आसन :

  • 1.मण्डूकासन 2. शशकासन 3.योगमुद्रासन 4. वक्रासन 5. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन 6.गोमुखासन
  • नाभि के लिए :- 1. पवनमुक्तासन 2. उत्तानपादासन 3. नौकासन 4. कंधरासन/सेतुबन्धासन 5. पादांगुष्ठनासास्पर्शासन

बच्चों के लिए आसन :

  1. शीर्षासन 2. सर्वांगासन 3. ध्रुवासन 4. गरुड़ासन 5. तिर्यक ताड़ासन 6. हलासन 7. चक्रासन 8. पश्चिमोत्तानासन

विद्यार्थियों के लिए आसन :

  1. शीर्षासन 2. सर्वांगासन 3. ताड़ासन 4. वृक्षासन 5. गरुड़ासन 6. पादहस्तासन 7. हलासन 8. पश्चिमोत्तानासन 9. चक्रासन 10. पद्मासन

अन्य कठिन आसन (बच्चों व विद्यार्थियों) के लिए:

  1. गोरक्षासन 2. गर्भासन 3. स्कन्धपादासन 4. तोलांगुलासन 5. हस्पादांगुष्ठासन 6. भूनमनासन
  2. अकर्णधनुष्टंकारासन 8. मयूरासन

इन्फर्टिलीटी के लिए आसनः

  1. पश्चिमोत्तानासन 2. ब्रह्मचर्यासन 3. शीर्षासन 4. सर्वांगासन 5. हलासन

महिलाओं के लिए आसन:

  1. भुजंगासन 2. मकरासन 3. शलभासन 4. अर्द्ध हलासन 5. पादवृत्तासन 6. द्विचक्रिकासन 7. मर्कटासन 8. कंधरासन 9. अर्द्ध चक्रासन 10. उष्ट्रासन

शंखप्रक्षालन आसन :

  1. ताड़ासन 2. तिर्यक ताड़ासन 3. कटि चक्रासन 4. तिर्यक भुजंगासन 5. शंखासन।

कौन सा योग आसन किस रोग में कारगर (Kaunsa Yoga Asana Kis Rog Mein Karen)

1). पद्मासन – मन की शांति,मन को एकाग्र करने के लिए, यौन रोग हर्निया, वीर्यदोष, आँख, आमवात जठराग्नि, वातव्याधि, अजीर्ण, आँतों के रोग, ब्रह्मचर्य, बवासीर आदि ।

2). शवासन – उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अनिद्रा, सिरदर्द, शारीरिक थकावट, तनाव, तुतलाहट, मानसिक थकान,आदि।

3). अश्वासन – मोटापा, बवासीर, कमर दर्द, कब्ज, नाभि टलना, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, तनाव, शारीरिक थकावट आदि।

4). उत्तानपादासन – मोटापा, बवासीर, नाभि टलना, गर्भाशय दोष, घुटने का दर्द, सायटिका, हार्निया, पेटदर्द, श्वास रोग, आँत उतरना, गैस, कमर दर्द, टाँगों की दुर्बलता, कब्ज, और मोटापा कम करने के लिए हृदय, श्वास रोग, अतिसार ,दस्त आदि।

5). पवनमुक्तासन – मोटापा, गैस, यकृत, गठिया, शुगर, हल्का पेट दर्द, तनाव आँतों के रोग, अम्लपित्त, सियाटिका, चर्बी कम करना, तिल्ली, प्लीहा, पर प्रभाव स्लिप डिस्क, हृदय, गर्भाशय, कटि पीडा, स्त्रीरोग, आदि ।

6). पश्चिमोत्तानासन – अजीर्ण, मोटापा, कब्ज, मदाग्नि, मधुमेह, आमवात, कृमि, दोष, हार्निया, पौरूष शक्ति, वीर्य दोष, बौनापन, बवासीर, गठिया, जठराग्नि, कद, पृष्ठभाग की मांसपेशिया आदि ।

7). चक्रासन – मोटापा, कमर दर्द, कब्ज, मधुमेह, नाभि टलना, आमवात, कृमि दोष, गर्भाशय रोग, बौनापन, कटिपीडा, श्वास रोग, सिरदर्द, नेत्र रोग, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, रीड की हड्डी, गर्भाशय, जठर, आँत आदि।

8). सर्वांगासन – अनिद्रा, बवासीर, गैस, नेत्ररोग, वीर्यदोष, सूजन, गला, यकृत, खाँसी, मोटापा, दुर्बलता, कृमि गर्भाशय दोष, फेफडे, कद वृद्धि, दमा, उदर, हर्निया, हल्का पेट दर्द, बाल सफेद, पिट्यूटरी ग्रंथि, अजीर्ण-बदहजमी, जुकाम, तिल्ली-प्लीहा, पांडु रोग, तनाव, मंदाग्नि, कब्ज, कुष्ठ, शुक्रग्रंथि, एड्रिनल ग्रंथि, थायरायड आदि।

9). हलासन – मोटापा, अनिद्रा, कब्ज, दमा, मधुमेह, गला, यकृत, तनाव, गर्भाशय दोष, पांडु, बौनापन, दुर्बलता, पौरूष शक्ति, बौनापन, जुकाम, कंठमाला, अजीर्ण, मंदाग्नि, खांसी, गुल्म, वात, कब्ज, बुढापा, जुकाम, तिल्ली-प्लीहा, मानसिक रोग, हृदय रोग, थायरायड, डायबिटीज, स्त्रीरोग, मेंरूदण्ड, अग्नाशय, रीढ, अग्नाशय, रीड की हड्डी, आदि ।
सावधानी- बढी तिल्ली, यकृत, उच्च रक्तचाप, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, मेंरूदण्ड में टीवी वाले न करे।

10). मत्स्यासन – बवासीर, अजीर्ण-बदहजमी, जुकाम, पैर, दमा, गला, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क, मंदाग्नि, यकृत, फेफडे, गठिया, तनाव, मासिकधर्म, बाल सफेद, नाभिटलना, कब्ज, गठिया, मंदाग्नि, हार्निया, आँतों के रोग,थायरॉयड, पैराथायरॉयड, एड्रिनल ग्रंथि विकार आदि ।

11). मयूरासन – मोटापा, अजीर्ण-बदहजमी, कृमि, पांडु, मंदाग्नि, कब्ज, गैस, आमवात, जठराग्नि, बवासीर, तिल्ली, यकृत, गुर्दे, अमाशय, अग्नाशय, मधुमेह आदि ।

12). उष्ट्रासन – कमरदर्द, मोटापा, गैस मंदाग्नि, दमा, गला, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क, फेफडे, गठिया, नेत्र रोग, पांडु, बौनापन, सियाटिका, श्वसन तंत्र, थायरॉयड आदि ।

13). वज्रासन – गैस, मंदाग्नि, मधुमेह, फेफडे, पांडु(पीलिया), साईटिका, वीर्य दोष, अपचन, अम्लपित्त, कब्ज आदि।

14). सुप्त वज्रासन – गला, सर्वाइकल, स्लिप डिस्क, गठिया, मासिकधर्म, कमर दर्द, कब्ज, थायराइड, गले के रोग
दमा, तनाव, पौरूष-शक्ति, खाँसी, पेट, बड़ी आँत, नाभि, गुर्दो के रोग बवासीर, फेफड़े, आदि।

15). अर्द्धमत्स्येन्द्रासन – कमरदर्द, अजीर्ण-बदहजमी, मधुमेह, आमवात, कृमि, फेफडे, पौरूष शक्ति, कब्ज,सायाटिका, वृक्कविकार, सर्वाइकल व स्लिप-डिस्क, रक्त संचरण, उदरविकार, आँत, पृष्ठदेश आदि।

16). गौमुखासन – दमा, फेफडे, कमरदर्द, हृदय दुर्बलता, गठिया, सर्वाइकल व स्लिप-डिस्क, सन्धिवात, मधुमेह, यकृत, हृदय रोग, अनिद्रा, रीढ का टेढापन, गुर्दे, स्वप्नदोष, गर्दन तोड बुखार, बहुमूत्र अंडकोष वृद्धि, आंत्र वृद्धि, बहुमूत्र, धातुरोग तथा स्त्री रोग आदि।

17). भुजंगासन – अजीर्ण, बदहजमी, मंदाग्नि, मधुमेह, नाभि टलना, सर्वाइकल, व स्लिपडिस्क, गला, यकृत, गर्भाशय दोष, पांडु, तिल्ली-प्लीहा, खाँसी, बौनापन, कमरदर्द, दमा, कटिवात, जांघों का दर्द मासिक धर्म, कुबडापन आदि।

18). शलभासन – कब्ज, मंदाग्नि, यकृत, रीढ तथा कमर का दर्द, अजीर्ण, दुर्बलता, मेरूदण्ड के निचले भाग, सियाटिका का दर्द आदि।

19). नौकासन – मोटापा अजीर्ण-बदहजमी, मधुमेह, नाभि टलना, हृदय, फेफडे, आमाशय, अग्नाशय आँत, यकृत आदि।

20). धनुरासन – मोटापा, कमरदर्द, वीर्यदोष, गठिया, नाभि टलना, बौनापन, शारीरिक थकावट, तनाव, अजीर्ण-बदहजमी, सायटिका, गैस, गुर्दे, सर्वाइकल, स्पॉण्डलाइटिस, उदर, आदि।

21). गरूडासन – गठिया, घुटने का दर्द, हर्निया, सायटिका, अण्डकोष वृद्धि, पौरूष ग्रंथि, मूत्ररोग, गुर्दे, मोटापा, गुप्त रोगों में, हाइड्रोसिल, बवासीर, हाथ पैर की अन्य विकृति आदि । ( सूरज निकलने के बाद, सूरज डूबने से पहले, समय-15-60 मि0)

22). योगमुद्रासन (1,2) – मोटापा, अनिद्रा, बवासीर, गैस अजीर्ण-बदहजमी, वीर्य दोष, यकृत, गठिया, हल्का पेट दर्द, पौरूष शक्ति, कब्ज, फेफडे संबधी रोग, प्लीहा उदर, डायबिटीज, जठराग्नि, माईग्रेन आदि।

23). शीर्षासन – अनिद्रा, वीर्यदोष, जुकाम, मधुमेह, सूजन, खाँसी, कृमि, बाल-सफेद, तनाव, गर्भाशय दोष, शिरपीडा,कान, आँख, नेत्र रोग, मोटापा, सिर के बाल उडना, झुर्रियां पडना, वीर्यपात, पिट्युटरी एवं पीनियल ग्रंथि,मेधा-स्मृति, प्रमेह, नपुंसकता, थायरॉयड, अमाशय, आँत, वेरिकोज वेन्स, कब्ज, हार्निया, यकृत, आदि।

24). ताडासन – बौनापन, सर्वाइकल, स्लिप डिस्क,कद आदि।

25). उत्कटासन – कमरदर्द, सूजन, कब्ज, गठिया, हार्निया, पथरी, घुटने का दर्द, सायाटिका, बेरी-बेरी, ब्रह्मचर्य,बवासीर आदि।

26). अर्धकूर्मासन – अजीर्ण, कमरदर्द, उदररोग, आँव, अग्न्याशय, आदि।

27). शशकासन – कमरदर्द, तिल्ली, प्लीहा, पाचन शक्ति, थायरॉयड, स्त्रीरोग, हृदयरोग, तनाव, मानसिक रोग, गर्भाशय आँत, यकृत अग्न्याशय, गुर्दो, मोटापा आदि।

28). जानुशिरासन (महामुद्रा) – अजीर्ण, आँतों के रोग, कटिवात, मधुमेह, जांघो के रोग, तिल्ली, प्लीहा, पांडुरोग, नाभि पश्चिमोत्तासन के समान लाभ आदि।

29). पाद-हस्तासन – कमर दर्द, कटिवात, जांघों का दर्द, तिल्ली, प्लीहा, मानसिक रोग, कदवृद्धि, पेट आदि।

30). अर्धचंद्रासन – आँतों के रोग, कुबडापन, यकृत, प्लीहा, श्वसन तंत्र, दमा, थायरॉयड, सर्वाइकल, स्पाण्डलाइटिस,सियाटिका आदि।

31). मण्डूकासन (1,2) – डायबिटीज, उदर व हृदयरोग, अग्न्याशय आदि।

32). मर्कटासन (1,2,3) – सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, स्लिप डिस्क, सियाटिक, कमर दर्द, पेटदर्द, कब्ज, दस्त, गैस, नितम्ब, जोडो के दर्द आदि ।

33). सिंहासन – थायरॉयड, टॉसिल, कान का रोग, गला रोग, हकलाना, तुतलाना आदि ।

34). वक्रासन – डायबिटीज, कमर की चर्बी कम करने, यकृत व तिल्ली आदि।

35). बद्धपदासन – स्त्री व पुरूष की छाती विकास, हाथ, कंधे व सम्पूर्ण पृष्ठभाग, जठराग्नि, वातव्याधि, आदि ।

36). बह्मचर्यासन – धातुरोग, स्वप्नदोष व प्रमेह, मधुमेह, ब्रह्मचर्य आदि।

37). वृक्षासन – मन की चंचलता स्नायुमंडल, वीर्य, नेत्र रोग, धातुरोग, कफ रोग, हृदय, फेफडे आदि।

38). तिर्यक ताडासन – कटि प्रदेश लचीला,पार्श्वभाग की चर्बी को कम करना आदि।

39). कटि चक्रासन – कब्ज, आँत, गुर्दे, तिल्ली, अग्न्याशय, मासिक धर्म, कमर गर्दन, शरीर में जकडन आदि।

40). कोणासन – कमर माँस पेशियों के दर्द, फेफडों की कमजोरी, स्त्री के लिए उपयोगी आदि।

41). त्रिकोणासन – कटि प्रदेश लचीला, पार्श्व भाग की चर्बी को कम करना, पृष्ठांश की मांस पेशियों को बल, छाती का विकास आदि।

42). चलितपाद हस्तासन – मोटापा, कद, कमर एवं पेट की चर्बी को कम करना आदि ।

43). मकरासन (1,2) – स्लिप डिस्क, सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस, सियाटिका, अस्थमा, घुटनों का दर्द, फेफडो के रोग आदि।

44). अर्धहलासन – मोटापा, नाभि टलना, गर्भाशय, आँत, टाँग, उत्तानपादासन के समान लाभ आदि।

45). कटि उत्तानपादासन – स्लिप डिस्क, सियाटिका, कमर दर्द आदि ।

46). पादवृत्तासन – जंघा, नितम्ब एवं कमर दर्द, पेट सुडौल, आँत, मोटापा, उदर रोग आदि ।

47). द्विचक्रिकासन – मोटापा,कमर दर्द, पेट, आँत, कब्ज, मंदाग्नि, अम्लपित्त, उदर रोग आदि।

48). कन्धरासन – सूर्य केन्द्र (नाभि), बन्ध्यत्व, मासिक विकृति, श्वेत-प्रदर, रक्त प्रदर व धातुरोग, गर्भाशय, पेटदर्द, कमर दर्द, आदि।

49). पादागुष्ठनासास्पर्शासन – नाभि, कब्ज, गैस, अतिसार, आलस्य, पेट-दर्द, आमाशय, अग्न्याशय, आँत आदि।

50). कर्ण-पीडासन – कर्ण रोग, लाभ हलासन के समान आदि।

51). दीर्घनौकासन – पेट, पीठ, हृदय, स्त्रियोंकी देह सुडौल, लाभ-नौकासन के समान, (गर्भावस्था मे न कर) आदि।

52). पृष्ठतानासन – पृष्ठभाग की सम्पूर्ण नस-नाडियों के लिए आदि। 53 कूर्मासन- अग्न्याशय, उदर, हृदय आदि ।

54). पूर्णमत्स्येन्द्रासन – मधुमेह, कमर दर्द, मेरूदण्ड, उदर आदि ।

55). पशुविश्रामासन – मधुमेह, कमर के पाश्रों में बढी हुयी चर्बी को कम करता आदि।

56). बालासन (विश्रामासन) – मानसिक तनाव (डिप्रेशन), अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, थकान, नकारात्मक चिन्तन, स्नायु दुर्बलता, शरीर, मन, मस्तिष्क, आत्मा को विश्राम, शक्ति, उत्साह, आनन्द आदि ।

57). सेतुबन्ध आसन – स्लिप डिस्क, कमर,ग्रीवा-पीडा, उदर में विशेष आदि।

58). पूर्ण या विस्तृत भुजंगासन – सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, स्लिप डिस्क, भुजंगासन के समान लाभ आदि ।

59). पूर्ण धनुराशन – मेरूदण्ड लचीला, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, कमर दर्द, उदर,नाभि टलना, मासिक धर्म, गुर्दो के रोग आदि।

60). विपरीत नौकासन (नाभि आसन) – मेरूदण्ड रोग, नाभि गैस, यौन रोग, पेट, कमर व मोटापा आदि। (स्त्री न करे)

61). अर्धचन्द्रासन – श्वसन तंत्र, फेफडा, सर्वाइकल स्पाण्डलाइटिस, सियाटिका थायरॉयड आदि।

62). एकपाद ग्रीवासन – स्कन्ध व वक्ष बलवान, उदर, मेद, पैर व टाँगे लचीली आदि। 63 सिद्धासन- ब्रह्मचर्य, कामवेग, बवासीर, यौन रोग, कुण्डिलिनी जागरण, हृदय रोग, दमा, शुगर, स्मरण शक्ति, एकाग्रता आदि।

64). कुक्कुटासन – हाथ एवं कन्धे आदि।

65). उत्तान कुक्कुटासन – हाथ एवं कन्धे आदि।

66). सुप्तगर्भासन – हाथ, पैर, कमर एवं पेट आदि ।

67 गर्भासन – जठराग्नि, पाचन तन्त्र आदि।

68 तोलांगुलासन – हाथ, पैर की सम्पूर्ण स्नायुओं को बल आदि।

69). शंखासन – समस्त रोग, उदर, कब्ज, मंदाग्नि, गैस, अम्लपित्त, बवासीर, मोटापा, मधुमेह, श्वास रोग, हृदय रोग, मासिक धर्म आदि।

70). पर्वतासन – मन की एकाग्रता आदि।

71). मार्जारासन – कटि-पीडा, गुदा भ्रंश, फेफडा, पेट की चर्बी, गर्भाशय बाहर निकलने के रोग में, आदि।

72). वृश्चिकासन – जठराग्नि, उदर, मूत्रविकार, मुखकान्ति आदि ।

73). प्रसृतहस्त वृश्चिकासन – जठराग्नि, उदर, मूत्रविकार, मुखकान्ति आदि।

74). पादांगुष्ठासन – ब्रह्मचर्य, वीर्य, ओज, तेज उदरविकार, नाभि डिगना, आदि।

75). गोरक्षासन – ब्रह्मचर्यासन का पूरक, इन्द्रियों की चंचलता, मन को शांति आदि।

76). आकर्णधुनष्टकारासन – हाथ-पैर के जोड़ों के दर्द, कम्पावत आदि ।

77). भूनमनासन – जंघा, टाँगे, कमर, पीठ, उदर वीर्य आदि।

78). स्कन्धपादासन – हाथ-पैर, ग्रीवा के स्नायु आदि ।

79). द्विपादग्रीवासन – हाथ पैर व ग्रीवा के स्नायु,स्कन्धपादासन के समान लाभ आदि।

80). बकासन – हाथों की स्नायुओं को बल, मुख कान्ति, मोटापा, पेट रोग आदि।

81). उपधानासन (तकियासन) – हाथ पैर गर्दन के स्नायु आदि ।

82). हस्तपादागुष्ठासन – हाथ-पैर के रोग आदि ।

83). ध्रुवासन – मन की चंचलता, स्नायु मण्डल का विकास आदि ।

84). पक्ष्यासन – मस्तिष्क विकार, जंघा की स्नायु शक्ति का विकास, शरीर में हल्कापन, व स्फूर्ति देने वाला आदि।

85). नटराजासन – हाथ पैर की स्नायु का विकास आदि।

86). वातायनासन – घुटने के विकार, जंघाओं में जलन की वृद्धि करना, हर्निया आदि ।

87). ऊर्ध्वताडासन – बौनापन, सर्वाइकल व स्लिप डिस्क आदि ।

88). तिर्यक भुजंगासन – मेरूदण्ड से सम्बन्धित रोगो में , कमर, सर्वाइकल, कमरदर्द, सियाटिका आदि ।

89). कटिआसन – स्लिप डिस्क, कमर, ग्रीवा-पीडा, गर्भावस्था के शुरूवाती माह में आदि।

90). कन्धरासन – मासिक विकार, थायराइड, गर्भावस्था के शुरूवाती माह में, स्लिप डिस्क, कमर, ग्रीवा-पीडा, उदर में विशेष आदि।

91). हनुमानासन – कूल्हे , जांघ, घुटने मजबूत व लचीली मांसपेशियां, नाभि के निचले भाग की हड्डी लचीली,सियाटिका, प्रजनन शक्ति, मासिक धर्म, कमर पतली आदि ।

92). बद्धकोणासन (तिल्ली आसन) – शरीर लचीला, थकान दूर, प्रसव का आसन, जांघो व घुटनों में खिंचवा लाता है।

नोट- योगाचार्य के परामर्श के अनुसार ही आसन करें।

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