Last Updated on December 2, 2019 by admin
शास्त्रीय रुद्राक्ष धारण की विधि : Rudraksha Dharan Karne ki Vidhi in Hindi
पदम् पुराण के आधार पर रुद्राक्ष धारण की विधि यह है की इसको पहनने के लिये रुद्राक्ष को पंचगव्य (गोमूत्र, गाय का गोबर, गाय का दही, गाय का दूध, तथा गाय का घी) तथा पंचामृत (गाय का दूध, गाय का दही, गाय का घी, शहद तथा शक्कर) से स्नान कराना चाहिये, किंतु अगर पंचगव्य का हिसाब न बैठ पाये तो पंचामृत अनिवार्य है। उसके बाद प्राण प्रतिष्ठा मंत्र को पढ़ें। एक माला फेरें तो सर्वोत्तम अन्यथा नौ बार तो जरूर ही बोलें।
रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठा का मन्त्र :
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
ॐ हौं अघोरे घोरे हुँ घोरतरे हुँ।
ॐ हीं श्री सर्वतः सवड़िग नमस्ते रुद्ररूपे हुम।।
उसके बाद रुद्राक्ष के अभीष्ट मन्त्र अर्थात् हरेक रुद्राक्ष का जो अपना स्व-मन्त्र है, उसकी एक माला फेरकर रुद्राक्ष को पहनना चाहिए। रुद्राक्ष पहनने का दिन, नक्षत्र शुभ हो ऐसा पंचांग में देख लेना चाहिये। साधारणतया जो भी दिन पंचांग में शुभ त्यौहार दिखा रखे हों उस दिन पहन लें तो सबसे अच्छा ..नहीं तो सोमवार तो निश्चित है।
प्रत्येक रुद्राक्ष का “स्व-मन्त्र” शिव पुराण व पद्म पुराण के अनुसार है। दोनों में से किसी एक का जाप करें।
शिव पुराण के अनुसार रुद्राक्ष धारण का मंत्र : Rudraksh Dharan Karne ka Mantra
एक मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं नमः
दो मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ नम:
तीन मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ क्लीं नम:
चार मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं नमः
पाँच मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं नम:
छ: मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं हुँ नमः
सात मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ हुँ नमः
आठ मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ हुँ नमः
नौ मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं हुँ नम:
दस मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं नम: नमः
ग्यारह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं हुँ नम:
बारह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ क्रों क्षौं रौं नमः
तेरह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं नम:
चौदह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ नमः
पद्म पुराण के अनुसार रुद्राक्ष धारण का मंत्र :
एक मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ॐ दृशं नम:
दो मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ॐ नमः
तीन मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ॐ नमः
चारमुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं नमः
पाँच मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ हूं नमः
छ: मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ हूं नमः
सात मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ हुँ नमः
आठ मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ स: हूँ नमः
नौ मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ हं नमः
दस मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ ह्रीं नमः
ग्यारह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ श्रीं नम:
बारह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ हूं ह्रीं नमः
तेरह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ क्षां चौं नमः
चौदह मुख वाला रुद्राक्ष – ॐ नमो नमः
पन्द्रह मुख वाला रुद्राक्ष से इक्कीस मुख वाला रुद्राक्ष तक के स्व-मन्त्र के लिये निम्न मन्त्र की एक माला फेरनी चाहिये –
“ॐ नमः रुद्र देवाय नमः ” या “ॐ आं ह्रीं क्रौं”
रुद्राक्ष धारण करने के राशि अनुसार मंत्र :
(1) मेष – ॐ ह्रीं श्री लक्ष्मी नारायण नमः
(2) वृष – ॐ गोपालय उत्तरध्वजाय: नमः
(3) मिथुन – ॐ कलीं कृष्णाय नमः
(4) कर्क – ॐ हिरण्यगर्भाय अव्यक्त रूपिणे नमः
(5) सिंह – ॐ क्लीं ब्रह्मणे जगदाधाराय नमः
(6) कन्या – ॐ नमो प्रीं पिताम्बराय नमः
(7) तुला – ॐ तत्वनिरन्जनाय तारकरामाय नमः
(8) वृश्चिक – ॐ नारायण सुरसिंहाय नमः
(9) धनु – ॐ श्रीं देवकृष्णाय उर्ध्वषताय नमः
(10) मकर – ॐ श्रीं वत्सलाय नमः
(11) कुम्भ – ॐ श्रीं उपेन्द्राय अच्चुताय: नमः
(12) मीन – ॐ क्लीं उद्धृताय उद्धरिणे नमः
रुद्राक्ष धारण करने का शुभ समय : Rudraksh Dharan Karne ka Samay in Hindi
ग्रहण, संक्रान्ति, पूरनमासी, अमावस्थ्या, वैशाखी, तीर्थाटन, दीपावली गंगातट, महाशिवरात्रि, पूज्य इष्ट देव के निकट, पूज्य गुरुदेव के दर्शन के पश्चात् ,कुम्भ पर्व, गंगा पर्व अथवा कोई महान नदी पर्व पर, दूसरा कोई प्रभु उत्सव के समय, नवरात्रों के दौरान, दूसरा कोई शुभ दिन।
( और पढ़े – रुदाक्ष धारण करने के 5 जबरदस्त फायदे )
रुद्राक्ष धारण के नियम : Rudraksh Dharan Karne ke Niyam in Hindi
1- रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसके नकली न होने की जांच अवस्य कर लें ।
2- कीड़ा लगा हुआ रुद्राक्ष धारण ना करें।
3- जाप के लिए छोटे रुद्राक्ष का ही चयन करें । अगर रुद्राक्ष धारण करना है तो बड़े रुद्राक्ष उत्तम है ।
4- मनोकामना पूर्ति ,शांति और स्वास्थ्य के लिए 108 दानों की माला का प्रयोग करना चाहिए।
5- जप मे उपयोग ली जा रही रुद्राक्ष माला को धारण न करें ।
6- पुराणों में रुद्राक्ष धारक के विषय में कोई भी विशेष परहेज नहीं बताया गया है किन्तु फिर भी रुद्राक्ष पहनने वाले को मास, मछली,अण्डा इत्यादि वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिये।
7- शुद्ध विचार, मनुष्य के कल्याण तथा मानसिक शान्ति के हेतु बहुत जरूरी है। इसलिये रुद्राक्ष पहने वाले को अपने विचार शुद्ध, तन-स्वच्छ तथा भोजन सात्विक करना चाहिये।
8- रुद्राक्ष पहनकर अगर धार्मिक निष्ठा का पालन किया जाये तो इनका असर भी जल्दी से होता है।
9- रुद्राक्ष धारण की विधि अनुसार किसी शुभ मुहूर्त में रुद्राक्ष की प्राण प्रतिष्ठा करवाएं और उसके बाद ही इसे धारण करें।
10- रुद्राक्ष को यथा संभव नाभि के ऊपरी हिस्सों पर ही धारण करना चाहिये ।
( और पढ़े – रोग उपचार में रुद्राक्ष के उपयोग )
रुद्राक्ष के विषय में शंका समाधान : FAQ (Frequently Asked Questions)
यहाँ कुछ उपयोगी और युक्ति संगत जिज्ञासाओं का समाधान प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रश्न – रुद्राक्ष की क्या पहचान है ? असली नकली में कैसे अन्तर किया जा सकता है ?
उत्तर – असली रुद्राक्ष पानी में डूब जाता है, नकली नहीं डूबता। असली आग में नहीं जलता न उसका रंग निकलता है, नकली जल जाता है और पानी में डालने पर रंग छोड़ने लगता है।
प्रश्न- रुद्राक्ष शरीर के किस-किस अंग में धारण करना चाहिए ?
उत्तर – गले (कण्ठ) में 32, सिर पर 40, भुजाओं में 16-16, हाथों में 12-12, शिखा में 1, वक्षस्थल में 108 रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। सामान्य एवं गृहस्थ व्यक्ति एक, सत्ताइस, 54 या 108 रुद्राक्ष, काले रेशमी मोटे धागे में या चांदी अथवा तांबे के तार में गठवा कर धारण करें।
प्रश्न – रुद्राक्ष कहां से मिल सकता है ?
उत्तर – रुद्राक्ष सामान्यतः धार्मिक एवं तीर्थ स्थानों ,हरिद्वार, देहरादून, गढ़वाल मण्डल और नेपाल में शासकीय एम्पोरियम से मिल सकता है।
प्रश्न- रुद्राक्ष धारण करने की शास्त्रीय विधि क्या है।
उत्तर – किसी पवित्र स्वच्छ पात्र में चन्दन व अष्टगन्ध से स्वस्तिक व ॐ बना कर उस पर रुद्राक्ष रख कर अगरबत्ती व घृत का दीप जलाएं। श्रद्धा भक्तिपूर्वक एकाग्र चित्त हो ‘ओम नमः शिवाय‘ का 108 बार जप करके पंचोपचार विधि से पूजा करके रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
प्रश्न – रुद्राक्ष धारण करने का शुभ मुहूर्त बताएं।
उत्तर – शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, चतुदर्शी, पूर्णिमा, शिव रात्रि, नवरात्र, गुरुपुष्यामृत योग, पर्व के दिन, अक्षय तृतीया, वर्ष प्रतिप्रदा, विजया दशमी, दीपावली एवं मास शिव रात्रि आदि में से किसी भी दिन रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
प्रश्न – रुद्राक्ष, स्फटिक व चांदी में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर- रुद्राक्ष ऊर्जा और आत्मिक चेतना प्रदान करने वाला शिव स्वरूप है, स्फटिक सुख वैभव का प्रतीक है, चांदी चन्द्रमा की प्रतीक है और चन्द्रमा मन का कारक है। चांदी के तार में रुद्राक्ष की माला बनवा कर धारण करने से मानसिक व आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है तनाव दूर होता है तथा उच्च रक्तचाप व निम्न रक्तचाप नियन्त्रण में रहता है।
प्रश्न – रुद्राक्ष का रोग और इलाज से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर – रुद्राक्ष कई रोगों की राम बाण औषधि है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति पैदा कर रोगों से बचने और रोगों का मुक़ाबला करने की क्षमता प्रदान करता है। ‘रुद्राक्ष माल या जातो मन्त्रः सर्व फलप्रदः’ के अनुसार रुद्राक्ष की माला से जप करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जिस माला को गले में पहनें उस माला से जप नहीं करना जाहिए।
प्रश्न – हृदयरोग या रक्तचाप में कौन सा रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ?
उत्तर – हृदयरोग व रक्तचाप के रोगी को साक्षात शिव के प्रतीक माने जाने वाले एक मुखी रुद्राक्ष को स्फटिक की माला अथवा चांदी में मढ़वा कर धारण करना चाहिए और विपत्ति या दुर्घटना से बचने के लिए हनुमानजी (रुद्र) के प्रतीक माने जाने वाले चौदह मुखी रुद्राक्ष को गले में धारण करना चाहिए।
प्रश्न- गले में धारण करने व जप के लिए प्रयोग की जाने वाली माला क्या अलग-अलग होना चाहिए ? क्या पवित्रता-अपवित्रता का विचार भी ज़रूरी है ?
उत्तर- दोनों मालाएं अलग होना चाहिए और पूजा व जपवाली माला को कभी भी गले में धारण नहीं करना चाहिए। शौचालय में जाते समय गले से माला उतार कर जाना चाहिए।
प्रश्न- क्या महिलाएं रुद्राक्ष धारण कर सकती है ?
उत्तर – कर सकती हैं। मासिक ऋतु स्राव के दिनों में उतार कर पूजास्थल में रख दें।
प्रश्न – बालक पढ़ने में कमज़ोर है, स्मरणशक्ति कमज़ोर है। क्या रुद्राक्ष धारण करने से लाभ हो सकता है ?
उत्तर- अष्टमुखी रुद्राक्ष बुद्धिदाता श्री गणेश का प्रतीक है। अष्टमुखी रुद्राक्ष चांदी में धारण कराएं।
प्रश्न- रुद्राक्ष की माला किस धातु में धारण करना चाहिए?
उत्तर- सामान्यतः काले रेशमी धागे में या तांबा, चांदी व सोने के तार में धारण करें। लोहे या पीतल के तार में कदापि न करें।
प्रश्न – दुर्घटना या शल्य क्रिया के समय होने वाली मानसिक यन्त्रणा से बचने में क्या रुद्राक्ष धारण करने से मदद मिल सकती है ?
उत्तर – चौदह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
प्रश्न – शिवशक्ति एवं गणेश रुद्राक्ष क्या हैं ?
उत्तर-किसी किसी रुद्राक्ष पर प्राकृतिक रूप से सर्प, शिवलिंग या अन्य कोई आकृति बन जाती है। किसी रुद्राक्ष पर हाथी की सूण्ड जैसी आकृति होती है तो वह गणेश रुद्राक्ष कहलाता है। प्राकृतिक रूप से दो रुद्राक्ष जुड़ जाते हैं तो वे शिवशक्ति रुद्राक्ष और गौरीशंकर रुद्राक्ष कहलाते हैं। ये दुर्लभ हैं। कुछ लोग दो रुद्राक्ष जोड़ कर या नकली आकृति बना कर बनावटी रुद्राक्ष बना लेते हैं। इनसे सावधान रहें।
प्रश्न- रोग से लड़ने की शक्ति क्षीण हो रही हो और दवा असर न कर रही हो ऐसी स्थिति में कौन सा रुद्राक्ष धारण करना उपयोगी होगा ?
उत्तर- ऐसी स्थिति में बारह मुखी रुद्राक्ष स्वर्ण में धारण करें। हमें सूर्य से जीवनी शक्ति और रोग प्रतिरोधक शक्ति प्राप्त होती है और बारह मुखी रुद्राक्ष के देवता सूर्य हैं।
प्रश्न- क्या रुद्राक्ष धारण करते समय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशिया लग्न का भी विचार करना चाहिए ?
उत्तर- ऐसा विचार आवश्यक नहीं। यदि साढ़े साती, काल सर्प योग या शनि में मंगल की अन्तर दशा का समय हो तो पंचमुखी रुद्राक्ष की माला धारण करना चाहिए।