Last Updated on October 2, 2022 by admin
सहदेवी क्या है ? : What is Sahadevi in Hindi
सहदेवी का पौधा 6 इंच से तीन फुट तक ऊंचा होता है।
सहदेवी का पौधा की पहचान – सहदेवी का काण्ड (तना) पतला, रेखायुक्त, रोमश होता है। इसकी शाखायें श्वेताभ, रोमश होती हैं। पत्र भालाकार या अण्डाकार अनेक आकार के होते है। ये रोमश अवृन्त या सूक्ष्मवृन्त के एक दो इंच लम्बे चौड़े, मंजरियों के अग्रभाग में होते हैं।
सहदेवी का फूल – हल्के जामुनी रंग के या गुलाबी रंग के सूक्ष्म मुण्डकों में होते हैं।
सहदेवी का बीज – कालीजीरी से मिलते-जुलते किन्तु छोटे-छोटे होते हैं।
कुल – भुंगराज कुल (कम्पोजिटी Cmpositae)
अभिधान रत्नमाला तथा निघण्टुशेष में सहदेवा का पाठान्तर सहदेवी है। दण्डोत्पला वही द्रव्य है जिसे आजकल सहदेवी (सहदेई) नाम से जानते हैं। इसका वानस्पतिक नाम ‘वर्नोनिया साइनेरिया’ है। पुष्पदण्ड सुस्पष्ट होने के कारण इसका नाम दण्डोत्पला है।
सहदेवी का पौधा कहाँ मिलता है ? :
इस वनौषधि के पौधा भारत में चार हजार फुट की ऊंचाई तक स्वयंजात (अपने आप उत्पन्न होनेवाला) पाये जाते हैं। वर्षा ऋतु में ज्वार-मक्का के खेतों में ये विपुलता से उगे हुये मिल जाते हैं।
सहदेवी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Sahadevi in Different Languages
Sahadevi in –
✦ संस्कृत (Sanskrit) – सहदेवी
✦ हिन्दी (Hindi) – सहदेई
✦ गुजराती (Gujarati) – सदोरी
✦ मराठी (Marathi) – सदोडी
✦ बंगाली (Bangali) – कुकसिम
✦ तामिल (Tamil) – सिरासंगलामीर
✦ तेलगु (Telugu) – गरिटी कम्मा
✦ मलयालम (Malayalam) – पुवनकोडन्तेल
✦ इंगलिश (English) – पर्पल फ्लीबेन Purple Fleabane
✦ लैटिन (Latin) – वर्मोनिया साइनेरिया (Vernonia Cineria)
सहदेवी का रासायनिक विश्लेषण : Sahadevi Chemical Constituents-
- सहदेवी में क्षाराभों की उपस्थिति पायी जाती है।
- इसके बीजों में 38 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है।
सहदेवी के औषधीय गुण : Sahadevi ke Gun in Hindi
- सहदेवी कफवात शामक है ।
- यह शोथहर, वेदनास्थापन, ज्वरघ्न, अनुलोमन, कृमिघ्न, रक्तशोधक, रक्तस्तम्भक, मूत्रल, कुष्ठघ्न, स्वेदजनन तथा अश्मरीभेदन (पथरी) में लाभप्रद है ।
- यूनानी मतानुसार यह यह सर्द एवं तर है।
- रस – कटु
- वीर्य – उष्ण
- गुण – लघु, रुक्ष
- विपाक – कटु।
- प्रभाव – ज्वरघ्न
सहदेवी के उपयोगी अंग :
पंचांग – जड़, छाल, पत्ती, फूल एवं फल (मुख्यतः मूल)
सेवन की मात्रा :
स्वरस – 10 से 20 मिली.
क्वाथ (काढ़ा) – 50 से 100 मिली.
सहदेवी के फायदे और उपयोग : Uses & Benefits of Sahadevi in Hindi
1. बुखार में सहदेवी के इस्तेमाल से लाभ (Sahadevi Uses to Cure Fever in Hindi)
- ज्वर में इसके मूल को शिखा में बांधना चाहिये। ज्वर उतरते ही इस मूल को हटा देना चाहिये।
- दाहिने हाथ पर सहदेवी का कोमल मूल, जिस पर बालिका ने सफेद धागा बांधा हो, बांधने से ज्वर और भूत-प्रेत, ग्रहबाधा दूर होती है। स्वरस को शरीर पर मलना भी चाहिये।
- ज्वर विशेषतः विषमज्वर में इसका स्वरस या क्वाथ पिलाने से ज्वर उतर जाता है। डा. श्री कोमान का कहना है कि मलेरिया में जब कुनैन से काम न चले तो कुनैन को कम मात्रा में सहदेवी का रस मिलाकर दिया जाय तो अच्छा लाभ होता है। ( और पढ़े – बुखार के घरेलू उपचार )
2. सुखपूर्वक प्रसव में सहदेवी के प्रयोग से लाभ : काकचण्डीश्वरतंत्र में वर्णित है कि सहदेवी चतुर्दशी या कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन उखाड़कर सूत्र में बांधकर गर्भिणी की कमर में बाधने से सुखपूर्वक प्रसव हो जाता है। ( और पढ़े – नॉर्मल डिलीवरी मुश्किल नहीं जानिये इसके सरल उपाय और टिप्स )
3. अजीर्ण मिटाए सहदेवी का उपयोग : इसके क्वाथ (काढ़ा) में धृत मिलाकर सेवन कराने से अजीर्ण दूर होता है और अग्नि दीप्ति होती है।
4. अनिद्रा में सहदेवी का उपयोग फायदेमंद : इसकी जड़ को शिर पर बांधने से नींद अच्छी आती है। ( और पढ़े – गहरी नींद के लिए 17 आसान उपाय )
5. आंख आना रोग में सहदेवी से फायदा : इसके पत्तों का कल्क (चटनी) बनाकर आंखों पर बांधने से आंखों का आना ठीक होता है। यह कल्क स्नायुक कृमि से आक्रान्त स्थान पर बांधना भी हितकर है। यह कल्क विस्फोट(फफोला) को भी बांधने से ठीक करता है। ( और पढ़े – आंख आना रोग के 41 घरेलू उपचार )
6. घाव ठीक करे सहदेवी का प्रयोग (Benefit of Sahadevi in Injury Treatment in Hindi) : सहदेवी का स्वरस उत्तम व्रणरोपक हैं अतः इसे लगाने से घाव शीघ्र भरता है। सहदेवी के स्वरस में सहदेवी का कल्क और दूध मिलाकर तैल सिद्ध कर इस तैल को प्रयोग में लाया जावे तो यह घाव भरने में अधिक प्रभावी होता है।
7. पथरी में फायदेमंद सहदेवी के औषधीय गुण : यह मूत्रल और अश्मरी(पथरी) भेदक होने से लाभदायक है। इसके पत्र स्वरस में थोड़ा तुलसी स्वरस मिलाकर अश्मरी विशेषतः वृक्काश्मरी के रोगी को अनुपान के रूप में पिलाना चाहिये। ( और पढ़े – पथरी के 34 सबसे असरकारक घरेलू उपचार )
8. मुंह के छाले में लाभकारी सहदेवी : सहदेवी की जड़ का क्वाथ बनाकर उससे कुल्ला करने से मुखपाक (मुंह में छाले) में परम लाभ होता है।
9. गण्डमाला रोग में सहदेवी से फायदा : चमत्कारी वनस्पतियां (निरोगसुख प्रकाशन) के लेखक श्री उमेश पाण्डेय लिखते हैं कि गण्डमाला (कण्ठमाला) रोग से पीड़ित व्यक्ति शुभ मुर्हत में उखाड़ी गई सहदेवी की जड़ को यदि गले में बांधे तो निश्चय ही उसे लाभ होता है। इसकी जड़ को कान में किसी डोरे की सहायता से लटकाने पर भी कण्ठमाला रोग में तथा नाक में होने वाली फुँसी में आराम होता है।
10. त्वचा रोग दूर करने में सहदेवी फायदेमंद : इसके स्वरस एवं कल्क से सिद्ध घृत को 10-10 ग्राम की मात्रा में एक मास तक सेवन करने से सभी प्रकार के त्वचा के रोगों में लाभ मिलता है।
सहदेवी के दुष्प्रभाव : Side Effects of Sahadevi in Hindi
शीतप्रकृति वाले लोगों को इसका सेवन सावधानीपूर्वक करना चाहिये ।
निवारण – कालीमिर्च, शहद
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)