सहजन खाने के 44 दिव्य फायदे, औषधीय गुण, उपयोग और नुकसान

Last Updated on January 12, 2024 by admin

सहजन का का सामान्य परिचय :

सहजन एक उपेक्षित वृक्ष है जिसका उपयोग बहुत कम होता है। इसकी फली दाल शाक में डाल कर पकाई जाती है और चूस कर खाई जाती है। चिकित्सा में इसके पांचों अंग उपयोग में लिए जा सकते हैं।

सफ़ेद, लाल और नीले फूलों वाला-यह वृक्ष तीन प्रकार का है। इनमें सफ़ेद फूल वाला वृक्ष सर्वत्र उपलब्ध होता है। लाल फूल वाला कहीं कहीं और नीले फूल वाला वृक्ष बहुत दुर्लभ होता है। इसका वृक्ष 20-25 फुट ऊंचा होता है जिसमें लम्बी लम्बी फलियां लटकती दिखाई देती हैं।

अलग-अलग भाषाओं में इसके नाम :

  • संस्कृत – शोभांजन, शिग्रु ।
  • हिन्दी – सहजन, सहजन, मुनगा।
  • मराठी – शेवगा ।
  • गुजराती – सरगवो, सेकटो ।
  • बंगला – सजिना ।
  • तैलुगु – साजना, मुनंगा ।
  • तामिल – मुरुंगई ।
  • कन्नड़ – वालीवनुगी।
  • उर्दू – सहजना ।
  • पंजाबी – सेजना ।
  • इंगलिश – ड्रमस्टिक प्लाण्ट (Drumstick plant) ।
  • लैटिन – मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa oleifera) ।

आयुर्वेदिक के मतानुसार सहजन के औषधीय गुण :

  • यह स्वाद और पाक में चरपरा तीक्ष्ण होता है ।
  • यह गरम, मधुर, हलका, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक, वीर्यवर्द्धक, हृदय को हितकारी और कफवात, विद्रधि, शोथ, कृमि, मद, अपच, विष, प्लीहा, गुल्म, गण्डमाला और घाव आदि व्याधियों को दूर करने वाला है।
  • पुष्प भेद से यह तीन प्रकार का होता है और इन तीनों प्रकार केसहजने में ये सभी गुण पाये जाते हैं।

सहजन के उपयोग :

  • सहजन का आम तौर पर किया जाने वाला उपयोग दाल या शाक में किया जाता है।
  • सहजन की फलियों को, 2-3 इंच के टुकड़े करके, दाल या शाक बनाते समय डाल देते हैं | जिससे दाल शाक के साथ ये टुकड़े भी पक जाते हैं और नरम हो जाते हैं। इन टुकड़ों को चूस कर खाते हैं।
  • इसके सेवन से वात विकार, पेट में कृमि और वातजन्य शूल नष्ट होते हैं।

सहजन के घरेलू नुस्खे और परीक्षित प्रयोग : sahjan ke fayde in hindi

1. त्वचा रोग सहजन के लाभ – सहजन की जड़ की छाल को कूट पीस कर सरसों के तेल में डाल कर पका लें।
इस तैल को खाज-खुजली, घाव और सूजन पर लगाने से आराम होता है।

2. छाले – मुंह में छाले होने पर इसकी जड़ के छोटे छोटे 2-3 टुकड़े करके चार कप पानी में डाल कर उबालें। जब पानी दो कप बचे तब उतार कर छान लें व कुनकुना गर्म रहे तब इससे गरारे करें। इससे मुंह के छाले, गले की खराश और स्वर भंग में आराम होता है।

3. गठिया – इसके बीजों का तेल पुरानी गठिया, जोड़ों के दर्द व शोथ के लिए बहुत लाभकारी है। इस तैल से मालिश करने से आराम होता है। इसकी ताज़ी जड़, अदरक और सरसों के दाने-तीनों समान मात्रा में लेकर पीस लें और लेप बना कर गठिया से पीड़ित जोड़ों पर लेप लगाएं। इससे दर्द दूर होता है। इसके गोंद का लेप या बीजों को पीस कर लेप लगाने से भी दर्द दूर होता है।

सावधानी – अत्यन्त गुणकारी होने के साथ ही यह दाह कारी भी होता है अतः इसकी मात्रा 6 ग्राम से कम रखें और साथ में तैल या पानी की मात्रा ज्यादा रखें ताकि लेप पतला रहे। इसका लेप ज्यादा देर तक लगा हुआ न रहने दें। पित्त प्रकृति के या पित्त प्रकोप से पीड़ित व्यक्ति इसका प्रयोग न करें। इसे प्रयोग करने से उत्पन्न दोष के निवारण के लिए शुद्ध घी और दूध का सेवन करना चाहिए।

4. बार-बार भूख लगना –

  • 10 से 15 ml सहजन के पतों का रस, शुद्ध शहद में मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से बार-बार भूख लगने का रोग ठीक हो जाता है।
  • अगर सहजन के पत्तों का रस शहद के साथ मिला कर रोजाना 2 बार पीये तो लीवर और प्लीहा (तिल्ली) से पैदा हुए रोग जैसे बार-बार भूख का लगना आदि रोग दूर हो जाते हैं।

5. कब्ज – सहजन के नये कोमल पतों का सब्जी बना कर खाने से कब्ज दूर होकर शौच खुलकर आती है।

6. नपुंसकता – सहजन के फूलों को दूध में उबाल कर प्रत्येक रात को मिश्री मिलाकर पीने से नपुंसकता दूर होती है।

7. कान मे दर्द –

  • सरसों के तेल में सहजन की जड़ की छाल का रस डालकर थोड़ा सा गर्म करके बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।
  • सहजन की हरि ताजि पत्तियों का रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

8. कान का बहना – सहजन की जरा सी गोंद को पीसकर कान में डालने से कान मे से मवाद बहना बंद हो जाता है।

9. कमजोरी – सहजन की जड़ की छाल, जायफल की मद्यसारायी रस और संतरे के छिलके की 10-15 बूंद सुबह-शाम सेवन करने से स्नायु की कमजोरी मिट जाती है।

10. पक्षाघात – संतरे के छिलके, सहजन की जड़ की छाल तथा जायफल की मद्यसारीय रस की लगभग 10 से 15 बूंद रोजाना देने से पक्षाघात (लकवे) में बहुत लाभ मिलता है।

11. घाव में –

  • सहजने की थोड़ी-सी पत्तियों को पीसकर घाव के ऊपर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।
  • घाव की सूजन दूर करने के लिये सहजन की छाल पीसकर लेप करे और 5 ग्राम से 10 ग्राम छाल पीसकर सुबह शाम पीते रहे इस्से घाव जल्दी ठीक हो जाता है।

12. भगन्दर – हींग और सेंधा नमक डालकर सहजने का काढ़ा बनाकर पीने से भगन्दर के रोग मे लाभ होता है। सहजन के पेड़ की छाल का काढ़ा भी पीना भी भगन्दर रोग में लाभकारी होता है।

13. गुर्दे की पथरी –

  • सहजन की जड़ का काढ़ा बनाकर गुनगुना करके पीने से पथरी रोग ठीक होता है।
  • सहजने की सब्जी बनाकर खाने से गुर्दे व मूत्राशय की पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।

14. चोट-मोच – सहजन की छाल को पीसकर चोट-मोच पर गर्म-गर्म लेप करने से दर्द कम होता है।

15. यकृत का बढ़ना – 5 से 9 मिलीलीटर सहजन के नये पेड़ की जड़ की छाल के काढ़े में सुबह-शाम हींग और सेंधा नमक के साथ मिलाकर सेवन करने से यकृत (जिगर) का बढ़ना रुक जाता है।

16. जलोदर (पेट में पानी का भरना) –

  • 4 से 8 मिलीलीटर सहजन के नए पेड़ की छाल के काढ़े में सैंधव और हींग मिलाकर पीने से जलोदर (पेट मे पानी भरना) के रोग में लाभ होता है।
  • सहजन के पेड़ की छाल को गौ मूत्र में पीसकर पेट पर लेप करने से पेट साफ हो जाता हैं।

17. मोटापा होने पर – सहजन के पेड़ की पत्तियों का 2 से 3 चम्मच रस रोजाना सेवन करने से मोटापा धीरे-धीरे घटने लगता है।

18. पित्त की पथरी में – सहजन की जड़ की छाल का काढ़ा और हींग को सेंधा नमक में मिलाकर सुबह-शाम खाने से पित्त की पथरी में फायदा होता है।

19. अधिक नींद और ऊंघ आना – सहजन के बीज, कूठ, सरसों और सेंधा नमक को 3-3 ग्राम की मात्रा में बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को बकरी के मूत्र में घोंटकर(पीसकर) रोगी को सूंघाने से नींद अधिक आने की बीमारी ठीक हो जाती है।

20. पेट के कीड़ों के लिए – सहजन के फलों की सब्जी को खाने से भूख बढ़ती हैं तथा यह प्लीहा (तिल्ली) और कीड़ों को समाप्त करता है।

21. प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) – सहजन की जड़ को पीसकर उसमें काली मिर्च और जौ के खार को शहद में मिलाकर खिलाने से तिल्ली, जिगर तथा पेट का दर्द आदि ठीक हो जाता है।

22. आक्षेप कंपकंपाना – नाक में सहजन के बीजों से बने चूर्ण को डालने से आक्षेप से बेहोश व्यक्ति जल्दी होश में आ जाता है।

23. अन्दरुनी फोड़ा होने पर – 14 से 28 मिलीलीटर सहजन की छाल के काढ़े में लगभग 0.25 ग्राम असली हींग और 1 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में 2 बार लेने से अन्दरुनी फोड़ा ठीक हो जाता है।

24. उच्च रक्तचाप – 15 ग्राम सहजन का रस सुबह और इतना ही रस शाम को पीने से उच्च रक्तचाप में बहुत लाभ होता है।

25. हाथ-पैरों की ऐंठन – हाथ-पैरों की ऐंठन में सहजने की जड़ का काढ़ा बनाकर पिलाने से रोगी को आराम मिलता है।

26. दांतों में कीडे़ और दर्द – अगर दांतों में कीड़े लग जाने से तेज दर्द हो रहा हो तो सहजन की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में 3 या 4 बार कुल्ला करने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में आराम रहता है।

27. पोथकी, रोहे – कांच की शीशी में 30 मिलीलीटर सहजन का रस और 30 ग्राम शुद्ध शहद को मिलाकर रखें। रोजाना इस मिश्रण को सलाई से आंखों मे लगाने से अनेक प्रकार के आंखों के रोग समाप्त हो जाते हैं।

28. शक्तिवर्धक – सहजन के फूल की सब्जी का सेवन करने से शरीर की शक्ति बढ़ती है।

29. रक्तरोग –

  • सहजन के पत्ते खाने के फायदे- सहजन के मुलायम पत्ते रक्त रोग में दिये जाते हैं। इसके पत्तों का रस बच्चों के दस्त एवं उल्टियां रोकने में व पेट के कीड़ों को भी निकालने के काम आता है।
  • सहजन के तने की छाल उत्तेजक एवं रक्तातिसार अवरोधक है। खांसी, दमा, रोगों में भी इनका इस्तेमाल किया जाता है।

30. कमरदर्द – सहजन की फलियों की सब्जी खाने से कमर दर्द(back ache) में लाभ होता है।

31. बेहोशी:

  • सहजन और त्रिकटु के बीजों को अगस्त की जड़ के रस में घोट कर सूंघने से बेहोशी दूर हो जाती है।
  • सहजन के बीजों के चूर्ण को नाक में डालने से बेहोशी खत्म हो जाती है।

32. चेरे के लकवे में : सहजन के जड़ की छाल, संतरे का छिलका और जायफल का मद्यसारीय रस (एल्कोहोलिक टिनचर) 10 से 15 बूंद पानी में मिलाकर रोजाना 2 से 3 बार पीने से चेहरे के लकवे मे लाभ होता है।

33. मिर्गी (अपस्मार) :

  • लगभग 3.73 लीटर सहजन का रस, 930 मिलीलीटर नीम का रस, 3.73 लीटर गाय का पेशाब और 930 मिलीलीटर तेल को मिला लें। इस तेल की मालिश करने और सूंघने से मिर्गी के दौरे दूर हो जाते हैं।
  • सहजन की छाल और पिसी हुई सरसों को गाय के पेशाब में मिलाकर शरीर पर लेप करने से मिर्गी रोग ठीक हो जाता है।
  • लगभग 4-8 ग्राम सहजन की जड़ को सेंधा नमक और हींग के साथ पीने से मिर्गी के दौरे पड़ना बंद हो जाते हैं।   

34. फोड़े-फुंसियों के लिए : फोड़ा चाहे जैसा भी हो वह न पकता हो और ना ही फूटता हो तो सहजने की सब्जी खाने को दें और इसके पत्तों का रस और जड़ की छाल का लेप बनाकर फोड़े पर बांध दें। इसकों बांधने से फोड़ा बैठ जाता है।

35. शरीर का सुन्न पड़ जाना : सहजने की छाल, करंज, दारूहल्दी तथा अमलतास की जड़ बराबर मात्रा में लेकर गाय के पेशाब में पीसकर लेप करने से शरीर का सुन्न होना सही हो जाता है।

36. बच्चो का पेट बड़ा होना :

  • 1 चम्मच सहजन की छाल का रस और 1 चम्मच गाय के घी को एक साथ मिलाकर रोजाना एक बार बच्चों को पिलाने से सिर्फ 3 दिन में ही बच्चों का बढ़ा हुआ पेट ठीक हो जाता है।
  • चम्मच सहजन की पत्ती का रस सिर्फ 3 दिन तक पिलाने से ही बच्चों का बढ़ा हुआ पेट ठीक हो जाता है।

37. खून की कमी :  सहजन की पत्तों को तोड़कर उसकी सब्जी बनाकर खाने से शरीर में लौह (आयरन) तत्व की कमी दूर होती है तथा शरीर में खून की कमी के कारण होने वाली बीमारी खत्म होती है।

38. सिर का दर्द :

  • सहजन के पत्तों को पानी में पीसकर गर्म करके सिर पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
  • सिर में दर्द होने पर सहजन के बीजों को पानी में घिसकर सूंघने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

39. शरीर में सूजन : लगभग 5-5 ग्राम की मात्रा में सहजन की छाल, अमलतास की जड़, करंज, आक और दारुहल्दी को लेकर गाय के पेशाब के साथ पीसकर शरीर या बदन पर लेप करने से शरीर की सूजन दूर हो जाती है।

40. पुराना गठिया : पुराना गठिया, पेट में वायु-संचय, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द आदि रोगों में सहजन की सब्जी खाना बहुत लाभदायक होता है।

41. शक्तिवर्धक : सहजन के फूल की सब्जी का सेवन करने से शरीर की शक्ति बढ़ती है।

42. रक्तरोग : सहजन के मुलायम पत्ते रक्त रोग में दिये जाते हैं। इसके पत्तों का रस बच्चों के दस्त एवं उल्टियां रोकने में व पेट के कीड़ों को भी निकालने के काम आता है। सहजन के तने की छाल उत्तेजक एवं रक्तातिसार अवरोधक है। खांसी, दमा, रोगों में भी इनका इस्तेमाल किया जाता है।

43. कमरदर्द :

  • सहजन की फलियों की सब्जी खाने से कमर दर्द में लाभ होता है।
  • 1-1 ग्राम सहजन का गोंद, अश्वगंधा, पीपल के फल, को लेकर उसमें 3 ग्राम सोंठ डालकर गाय के दूध में उबालकर सुबह-शाम पीने से ठण्डी हवा के कारण हुआ कमर के दर्द से राहत मिलता है।

44. ऊरूस्तम्भ : सहजन के बीजों के तेल की मालिश शरीर के पीड़ित भाग पर करने से पुराने से पुराना ऊरुस्तम्भ के अलावा गठिया (घुटनों का दर्द) और वातरोग भी ठीक हो जाते हैं।

सहजन के नुकसान : sahjan ke nuksan in hindi

सहजन के बीजों का तेल दाह कारी होता है अतः पित्त प्रकृति के या पित्त प्रकोप से पीड़ित व्यक्ति इसका प्रयोग न करें। इसे प्रयोग करने से उत्पन्न दोष के निवारण के लिए शुद्ध घी और दूध का सेवन करना चाहिए।

अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।

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