संगीत चिकित्सा से रोगों का उपचार – Sangit Chikitsa

Last Updated on February 25, 2022 by admin

संगीत चिकित्सा में सामर्थ्य :

संगीत की सुर लहरियों ने मानवीय जीवन को अंत तक प्रभावित किया है। न केवल मनुष्य बल्कि पशु-पक्षी भी संगीत की तान पर डोलते और प्रकृति झूमती नजर आती है। सांसें संगीत के आरोह-अवरोह की तरह अपना कर्म करती हैं। संगीत और मानव जीवन के ये कुछ लक्षण इस बात को रेखांकित करते हैं कि मानव जीवन, संगीतमय जीवन है। वह जीवन का सहारा तो है ही, मानवीय उद्भावनाओं को उद्दीप्त करने का बड़ा साधन है। संगीत और जीवन नैसर्गिक संबंध रखते हैं। जीवन जितना ही व्यापक है संगीत।

आजकल संगीत से रोगोपचार की चर्चा है। कुछ समय पहले तक इसे मानवीय सनक कहा जाता रहा। बाद में इसे भावनाओं से भरी कल्पना से नवाजा गया। लोगों ने सहसा विश्वास नहीं किया पर कालांतर में कुछ प्रयोगों और घटनाओं ने इसके विरोधियों को अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया। आज लोग, चिकित्सा विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि संगीत रोगों की चिकित्सा करने का सामर्थ्य रखता है।

संगीत सर्वोत्तम चिकित्सक है :

संगीत मानसिक रोग ही नहीं, शारीरिक रोगों का भी सर्वोत्तम चिकित्सक है। ऐसा कहने में गुरेज नहीं होना चाहिए। प्राचीन काल में तानसेन द्वारा गाये गये ‘दीपक राग’ के प्रभाव की बात तो विख्यात है। ‘मेघ’ जैसे और भी राग थे, जिन्होंने प्रकृति को वशीभूत कर लिया था। आज भी भारतीय संगीत के साधक, रोगों का निदान राग के गायन से करने में समर्थ हैं। ओंकारनाथ ठाकुर ने भी अपने गायन से पीड़ित शरीर को रोगमुक्त कर दिखाया था।

वस्तुतः हृदय में संगीत और शरीर में व्यायाम जीवन की धारा बहाती है। वस्तुतः संगीत से रोगोपचार स्वास्थ्य और बीमारी के बारे में सोचने की एक नई प्रक्रिया है। यह संगीत उपचार विचार, ध्वनि, ऊर्जा के आधार पर मनुष्य के क्रियान्वयन का परीक्षण करता है। इसमें वर्तमान औषधि विडम्बनाओं से परे जाकर बीमारियों को गहराई से समझने का रूझान है। हमारी शारीरिक क्रियाएँ भावनाओं और विचारों को प्रभावित करती हैं। औषधि विज्ञान ने बीमारी के पीछे की प्रक्रिया का पता लगाने में मदद की है।

संगीत प्रकृति से सम्बद्ध है :

यह सर्वविदित है कि संगीत प्रकृति से सम्बद्ध है। वह शान्ति भावनाओं की विचारशीलता से जुड़ा है। उसमें एकाग्रचित्त करने का सामर्थ्य है। मनोविज्ञान कहता है कि जब मन एकाग्र है, तो शरीर का रक्त संचार संतुलित रहता है। इसके साथ ही संगीत प्रति भावना नियंत्रण, यकृत कार्यान्वयन और रक्तचाप को नियंत्रित करने का एक श्रेष्ठ और कारगर उपाय है।

संगीत शरीर और मस्तिष्क की औषधि है :

राग और उसकी आवाज और आकृतियां मनोविज्ञान को धारण करने में सक्षम है। राग असंतुलन को मिटाने का भी एक बेहतरीन साधन है। संगीत के सात स्वर की अपनी खुद की बनावट होती है। यह स्वर व्यक्तिगत गुण भी रखते हैं, जो मनोविज्ञान पर आधारित हैं।

होलिस्टिक एप्रोच :

होलिस्टिक एप्रोच के मुताबिक मानव मांस, रक्त, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और अम्लों से परे है और यह सिर्फ जीवन शक्ति है, जो मांसपेशीय प्रतिस्थापन को लोगों में श्वास लेना, विचार करना, सोच-समझ कर व्यवस्थित बनाए रखने में लाभप्रद होती है। यह जीवन शक्ति आत्मा की एक सबल शक्ति है। आध्यात्मिक बनावट मनुष्य प्रकृति का एक पहलू है, जो किसी चिकित्सा स्कूल में पढ़ाया नहीं जाता। लेकिन आध्यात्मिक तत्व मनुष्य अस्तित्व का एक भाग है। मेडिकल कॉलेजों में इसके लिए एक स्वतंत्र विभाग होना चाहिए जिससे हमें स्वास्थ्य और बीमारी को सही प्रकार से समझने में मदद मिले।

राग का निर्धारण :

संगीत चिकित्सा विषय पर देश में क्या कुछ हो रहा है, इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। वास्तविकता तो यह है कि भारतीय संगीत चिकित्सा ही संगीत चिकित्सा विषय की जनक है। सन् 1993 से प्रारंभ हुई भारतीय संगीत चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद’ में संगीत चिकित्सा विभिन्न वैज्ञानिक दृष्टिकोणों को ध्यान में रखकर संगीत के माध्यम से विभिन्न रोगों के मरीजों पर जो प्रयोग किए जा रहे हैं, वे बहुत ही चमत्कारी और संभावना से परिपूर्ण है।

संगीत चिकित्सा के विषय में कुछ मुख्य बातों का उल्लेख करना यहां सामयिक होगा। भारतीय शास्त्रीय संगीत में अनेक प्रकार के राग हैं। प्रत्येक राग की अपनी अलग प्रकृति और प्रवृत्ति होती है। किसी भी एक रोग के लिए किसी एक ही राग को निर्धारित नहीं किया जा सकता। चिकित्सकीय राग या संगीत का निर्धारण सिर्फ व्यक्ति परीक्षण के बाद ही निश्चित किया जा सकता है। इस चिकित्सा पद्धति में रोगी को विशेष निर्देशों के मुताबिक संगीत श्रवण आवश्यक है। इसके साथ ही संगीत चिकित्सा का प्रयोग करते समय व्यक्तिगत परीक्षण पर भी खास जोर दिया जाता है।

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि संगीत चिकित्सा उपचार में प्रायोगिक ठोसता है। इसके लिए यह जरूरी नहीं कि रोगी को शास्त्रीय संगीत आता हो। जिन्हें इस संगीत की समझ नहीं है, उनकी भी इस पद्धति से सफल चिकित्सा संभव है।

सहारा देता है संगीत :

मानव जीवन संगीत से पूरित है। जीवन तंत्र का शायद ही कोई ऐसा कार्य हो, जिससे मानव अप्रभावित रहा हो। यह न केवल मानवीय भावनाओं को उद्दीप्त करने का माध्यम है, बल्कि जीवन का एक बहुत बड़ा सहारा है। संगीत और जीवन का संबंध नैसर्गिक है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जितना व्यापक जीवन है, उतना ही विस्तृत संगीत। कह सकते हैं कि जीवन की हर घड़ी में संगीत का अलार्म भरा हुआ है।

संगीत ने न केवल मनुष्य वरन पशु-पक्षियों को भी आनंदित किया है। प्रकृति भी उसकी तानों पर डोलती है। उसके आलाप पर अंगड़ाई लेती है। उसके आरोह-अवरोह पर हवाओं की गति चलती है। ऋतुएं भी संगीत पर आसक्त हैं तभी तो चैत्र-वैशाख में चैती के बोल फिजाओं में गूंजने लगते हैं, तो होली के आते ही होरी की नटखटी मिठास मौसम के रंग में अपनी रंगत घोलने लगती है, तो सावन आने तक सावनी और कजरी प्रकृति की हरियाली में झूलों से राग ‘हिंडोला’ गाने लगती है।

शिशु के हास्य और रुदन में संगीत है। दुनिया में आंख खोलने के बाद हम संगीत की ध्वनियों में डोलने लगते हैं। शैशव में मां की लोरी सुनकर चैन की नींद का सुख मिलता है। गांवों में दही-मंथन करती स्त्री हो या पनघट पर पानी भरने जाती पनिहारन, उनके उस काम में भी संगीत का अनुभव होता है। वियोगिनी जब विरह वेदना में होती है, तो संगीत ही उसका सहारा होता है।

संगीत सुधा :

इस तरह मानव हृदय जब दुःख में व्याकुल होता है, मन में भावनाओं का आवेश वेदना और पीड़ा को उद्भत करता है। तब वह किसी न किसी प्रकार उनसे मुक्त होने को छटपटाने लगता है तब संगीत का ही उसे सहारा मिलता है। सुख में हर्षातिरेक होकर मन गाने को मचल उठता है, तो दुख में उसे दूर करने की सच्ची दवा भी संगीत है। मनुष्य का हृदय रूपी भ्रमर जब संगीत रूपी गुलाब का रसपान करता है, तब वह सब कुछ भूलकर उसी के ऊपर मंडराने लगता है।

मनुष्य ने अपनी आंतरिक इच्छाओं और भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए हमेशा संगीत को ही प्रधानता दी है, मानव जीवन स्वयं ही संगीत है। ‘संगीत सुधा’ में मानव आत्मा सदैव प्रवाहित होती रहती है। कहते हैं संगीत मानव को प्रकृति की देन है। सच ही तो है, तभी तो मानव प्रकृति के सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो जाता है और उसी संगीत से आत्मा का विकास करता है।

सफल चिकित्सा संभव है :

यही आधार संगीत से रोगों का उपचार ढूंढने का माध्यम बना और कुछ सफल प्रयोगों ने इसे सिद्ध भी कर दिया कि मानसिक रोग ही नहीं, शारीरिक रोगों का भी संगीत सर्वोत्तम चिकित्सक है। आज भी भारतीय संगीत के साधक, रोगों का निदान राग गायन से करने में समर्थ हैं। प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतज्ञ और आयुर्वेदाचार्य डॉ. विजया लेले के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने गायन से पीड़ित शरीर को रोगमुक्त कर दिखाया था।

जबलपुर, मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध संगीत उपचारक डॉ. भास्कर खांडेकर मेरे गुरुजी समान हैं। वे कहते हैं, ‘संगीत सुरों में वाकई बड़ी शक्ति होती है। इतना ही नहीं सुरों की संजीवनी से व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक व्याधियों को दूर किया जा सकता है। संगीत थेरेपी का उपयोग कर बिना दवाओं की सहायता से लोगों को स्वस्थ करने का काम किया जा सकता है।

आधुनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि संगीत से शारीरिक एवं मानसिक शांति तथा आनंद की प्राप्ति होती है। संगीत सुनते समय शरीर में ऑक्सीजन की कुल खपत में कमी आती है जो शांति प्राप्त करने में सहायक होती है। प्राकृतिक रूप से कोशिकाओं में ऑक्सीजन की आवश्यकता घट जाती है। शोध से यह स्पष्ट हुआ है कि औसत 20 प्रतिशत की गिरावट संगीत सुनने के 10 मिनट में ही नींद आ जाती है। गहन निद्रा की तुलना में और संगीत श्रवण के दौरान चयापचयी क्रिया में कमी आती है, उससे शरीर स्वस्थ एवं मन तनाव मुक्त रहता है।

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