Last Updated on July 24, 2019 by admin
प्राचीन समय की बात है, जब भारत में यवन-शासन अपने पूरे प्रभुत्वमें था और प्रभुता के मदमें शासक अनेक प्रकार के अत्याचार करते थे। उस समय बहावलपुर राज्य में छिनकू नामक एक भगवद्भक्त रहते थे। वे सत्यवादी, ईमानदार तथा राम-नाम के नैष्ठिक जापक थे। वे आटा, दाल, घी, मसाला आदि गल्ले किराने की दूकान करते थे। उनकी दूकान अपने पदार्थो की शुद्धता के लिये प्रसिद्ध थी। वे केवल शामको दो घंटेके लिये ही दूकान खोलते थे एवं शेष समय श्रीराम-भजन में व्यतीत करते थे।
एक दिन सबेरे एक मुसलमान छिनकूजी के घर पहुँचा और उसने उसी समय दूकान खोलकर कुछ सामान देनेकी माँग की। उस समय भक्त छिनकू भजन में लगे थे। उन्होंने उसे शामको आनेके लिये कहा और तत्काल दूकान जाने में असमर्थता प्रकट की। मुसलमान चिढ़ गया। उसने छिनकूजी को ही नहीं, उनके आराध्यको भी बुरा-भला कहा। छिनकूजी बोले-‘अगर यही शब्द मैं तुम्हारे धर्मग्रन्थ और पैगम्बर को कहूँ तो कैसा लगेगा?’
मुसलमान-‘तुम्हारी इतनी जुर्रत है? मैं तुम्हें देख लूंगा।’
वह मुसलमान काजी के पास पहुँचा और उसने वहाँ अभियोग लगाया कि छिनकू ने पैगम्बर को गाली दी है। उस समय के नवाब बहावलपुर भले स्वभाव के थे। वे छिनकू भक्त को जानते थे और उनमें श्रद्धा रखते थे। उन्होंने छिनकू के पास संदेश भेजा-‘आप साफ कह दें कि मैंने कुछ नहीं कहा। लेकिन छिनकू भक्त ने झूठ बोलना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने काजी के सामने अपने शब्द दोहरा दिये। काजीने उनको ‘संगसार’ कर देने (पत्थर मार-मारकर मार देने) की सजा दी।
छिनकू भक्त को पकड़कर एक मैदान में ले जाकर एक । खम्भे से बाँध दिया गया। उधर से आने-जानेवाले मुसलमान उन्हें पत्थर मारने लगे। छिनकू जोर-जोरसे अखण्ड ‘श्रीराम-श्रीराम बोल रहे थे। पत्थरों की मारसे उनका पूरा शरीर घावों से भर गया। रक्तकी धारा शरीरसे चलने लगी। संध्याको एक मुसलमान सैनिक उधर से निकला। वह छिनकू से परिचित था। उससे भक्तकी यह असहनीय दशा देखी नहीं गयी। उसने तलवार से उनका सिर काटकर उन्हें इस अवस्था से छुट्टी दे दी। किंतु उसे तथा दूसरोंको भी यह देखकर आश्चर्य हुआ कि छिनकूका कटा सिर तो ‘श्रीराम’ बोलता ही था, उनके मस्तक हीन धड़से भी । देरतक ‘श्रीराम’ की ध्वनि निकलती रही।
श्रोत : सत्य एवं प्रेरक घटनाएँ (गीताप्रेस गोरखपुर)