सत्यानाशी के अनोखे फायदे ,उपयोग और नुकसान | Satyanashi Benefits in Hindi

Last Updated on November 19, 2019 by admin

इस वनस्पति के नाम पर मत जाइए। यह हम नहीं जानते कि इसको सत्यानाशी क्यों कहा जाता है जबकि आयुर्वेदिक ग्रन्थ ‘भाव प्रकाश निघण्टु’ में इस वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी जैसे सुन्दर नामों से सम्बोधित किया गया है। सत्यानाशी जैसा एक नाम और है इसका- भड़भांड। सुन कर ऐसा लगता है कि जैसे भडाभड़ करती कोई चीज़ लुढ़क रही हो पर जैसा कि अभी हमने बताया की इसके नाम पर मत जाइए, इसके काम पर ध्यान दीजिए। यह सत्यानाशी एक मामले में तो बड़ी ही गजब की चीज़ साबित हुई है। इसकी चर्चा बाद में करेंगे पहले इस वनस्पति का परिचय प्रस्तुत करते हैं।

सत्यानाशी क्या है ? : Satyanashi in Hindi

यह कांटों से भरा हुआ, लगभग 12-3 फिट ऊंचा और वर्षाकाल तथा शीतकाल में पोखरों, तलैयों और खाइयों के किनारे लगा पाया जाने वाला पौधा होता है। इसके झुण्ड के झुण्ड पैदा हो जाते हैं। इसका फूल पीला और पांच-सात पंखुड़ी वाला होता है। इसके बीज राई जैसे और संख्या में अनेक होते हैं। फूल की पत्तियां झड़ जाने पर फूल में से ही फल का आकार बन जाता है। इसके पत्तों व फूलों से पीले रंग का दूध निकलता है इसलिए इसे ‘स्वर्णक्षीरी’ यानी सुनहरे रंग के दूध वाली कहते हैं। इसका मूल उत्पत्ति स्थान तो अमेरिका है पर अब यह वनस्पति सारे भारत में पाई जाती है। यह वनस्पति पापावेरासे (Papaveraceae) यानी अहिफेन-कुल की है। इसकी जड़ को ‘चोक’ कहते हैं।

सत्यानाशी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Satyanashi in Different Languages

Satyanashi in –

संस्कृत (Sanskrit) – स्वर्णक्षीरी, कटुपी
हिन्दी (Hindi) – सत्यानाशी, भड़भांड, चोक
मराठी (Marathi) – कांटेधोत्रा
गुजराती (Gujarati) – दारुड़ी
बंगला (Bengali) -चोक, शियालकांटा
तेलगु (Telugu) – इटूरि ।
तामिल (Tamil) – कुडियोट्टि
कन्नड़ (Kannada) – दत्तूरि
मलयालम (Malayalam) – पोत्रुम्माट्टम
इंगलिश (English) – मेक्सिकन पॉपी (Mexican Poppy)
लैटिन (Latin) – आर्जिमोन मेक्सिकाना (Argemone mexicana)

सत्यानाशी के औषधीय गुण :

☛ यह दस्तावर, कड़वी, भेदक, स्लानिकारक तथा कृमि, खुजली, विष, अफारा, कफ, पित्त, रुधिर और कोढ़ को दूर करती है।
☛ इसकी जड, बीज, दूध और तेल को उपयोग में लिया जाता है।

सत्यानाशी के उपयोग और फायदे : Satyanashi Benefits and Uses in Hindi

दमा और खांसी में सत्यानाशी से फायदा (Benefits of Yellow Thistle in Asthma and cough Treatment in Hindi )

दमा तथा खांसी में सत्यानाशी की जड़ के चूर्ण को आधा से 1 ग्राम गर्म दूध या पानी के साथ शुबह-शाम मरीज को पिलाने से कफ बाहर निकल जाता है, अथवा सत्यानाशी के पीले दूध की 4-5 बूंद मात्रा बतासे में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।

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सूजाक के रोग में सत्यानाशी से फायदा (Benefits of Prickly Poppy in Syphilis Disease in Hindi)

सत्यानाशी के 5 मिलीलीटर दूध में कटुपर्णी के पंचांग (जड़, तना, पत्ते, फल, फूल) का रस निकालकर दिन में 3 बार मरीज को पिलाने से तथा इसके छालों पर दूध लगाने से सूजाक के रोग मे आराम मिलता है।

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व्रण (जख्म) में सत्यानाशी का प्रयोग लाभदायक (Benefits of Satyanashi Plant in Cure Wound in Hindi)

जो घाव न भर रहा हो उस पर सत्यानाशी का दूध लगाने से पुराने और बिगड़े हुए घाव भी ठीक हो जाते हैं।

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दाद में सत्यानाशी के प्रयोग से लाभ (Argemone oil Benefits in Cure Ringworm Disease in Hindi)

सत्यानाशी के तेल या पत्ते के रस को लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

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मूत्रविकार में सत्यानाशी से लाभ (Prickly Poppy Benefits to Treat urine problem in Hindi)

यदि मूत्रनली में जलन हो तो 20 ग्राम की मात्रा में सत्यानाशी के पंचांग को 250 मिलीलीटर पानी में भिगोकर इसका शर्बत या काढ़ा तैयार कर लें । रोगी को यह काढ़ा पिलाने से पेशाब खुलकर आती है और पेशाब करने की नली की होने वाली जलन मिट जाती है।

पीलिया के लिए सत्यानाशी का प्रयोग (Benefits of Satyanashi Plant in jaundice in Hindi)

सत्यानाशी के तेल की 8 से 10 बूंद में 10 मिलीलीटर गिलोय के रस मिलाकर सुबह-शाम पीलिया के मरीज को पिलाने से रोग ठीक हो जाता है।

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नपुंसकता के इलाज में सत्यानाशी का उपयोग (Benefits of Satyanashi Plant in Impotence Disease Treatment in Hindi)

बरगद का दूध तथा 1 ग्राम कटुपर्णी की छाल लेकर दोनों को गर्म कर चने के बराबर गोलियां बना ले , इस दवा को 14 दिन तक नियमित पानी के साथ शुबह-शाम लेने से नपुंसकता दूर होती है।

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पेट के दर्द से राहत दिलाती है सत्यानाशी (Benefits of Satyanashi Plant to Treat Stomach ache in Hindi)

10 ग्राम घी के साथ सत्यानाशी के 3 से 5 मिलीलीटर पीले दूध को रोगी को पिलाने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।

कुष्ठ रोग में सत्यानाशी का प्रयोग लाभदायक (Benefits of Satyanashi Plant in Cure Leprosy in Hindi)

रक्त पित्त और कुष्ठ रोग में सत्यानाशी के बीजों का तेल शरीर पर मलने से और इसके पत्तों का रस 6 से 12 ग्राम 250 मिलीलीटर दूध में मिलाकर शुबह-शाम पीने से रोग में लाभ मिलता हैं।

पेट के कीड़ों में सत्यानाशी से फायदा (Benefits of Satyanashi Plant in Cure Stomach Worms in Hindi)

सत्यानाशी की जड़ की छाल का बारिक चूर्ण बना लें अब इसकी लगभग आधा से 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से आंतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

सत्यानाशी से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (योग) :

1) स्वर्णक्षीरी तेल –

सत्यानाशी का प्रमुख योग ‘स्वर्णक्षीरी तेल ‘ के नाम से बनाया जाता है। इसका उपयोग बाह्य-प्रयोग हेतु किया जाता है।

2) व्रणकुटार तेल –

सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थ- रस तन्त्रसार व सिद्ध प्रयोग संग्रह’ (द्वितीय भाग) में एक योग प्रस्तुत किया गया है “व्रणकुटार तेल” यह तेल सत्यानाशी के पंचांग (सम्पूर्ण पौधा) से ही बनाया जाता है। इस तेल की यह विशेषता है कि यह किसी भी प्रकार के व्रण (घाव) को भर कर ठीक कर देता है। इस ग्रन्थ में इसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है- ‘इस तेल के प्रयोग से साधारण एवं गम्भीर व्रण, नाड़ी व्रण (नासूर), क्षय जन्य तथा अस्थि पर्यन्त व्रण नाश होते हैं। यह हमारा शतशोऽनुभूत (सैकड़ों बार आजमाया हुआ) है।’ यह बना बनाया बाज़ार में तो मिलता ही है पर इसका बनाना कठिन नहीं है इसलिए जो इसे बनाना चाहे वह बना भी सकता है। हम यहां इस ‘व्रणकुठार तेल ‘ की निर्माण और प्रयोग विधि प्रस्तुत कर रहे हैं।

व्रणकुटार तेल बनाने की विधि :

इसका पौधा, सावधानीपूर्वक कांटों से बचाव करते हुए, जड़ समेत उखाड़ लाएं। इसे पानी से धोकर साफ़ कर लें और पूरे पौधे को कूट कूट कर इसका रस निकाल लें। जितना रस हो उससे चौथाई भाग अच्छा शुद्ध सरसों का तेल मिला लें और मन्दी आंच पर रख कर पकाएं। जब रस जल जाए, सिर्फ़ तेल बचे तब उतार कर ठण्डा कर लें और शीशी में भर लें। यह व्रण कुठार तेल है।

व्रणकुटार तेल की प्रयोग विधि –

जख्म (घाव) को नीम के पानी से (पानी में नीम की पत्तियां उबाल कर यह पानी लें) धो कर साफ़ कर लें। अब साफ़ रुई को तेल में डुबो कर तेल घाव पर लगाएं। यदि घाव बड़ा हो, बहुत पुराना हो तो रूई को घाव पर रख कर पट्टी बांध दें। कुछ दिनों में घाव भर कर ठीक हो जाएगा।

डॉ. चौहान लिखते हैं कि उन्होंने पुराने से पुराने घाव और नासूर इस तेल से ठीक किये हैं और उन्हें गेंगरीन नहीं बनने दिया है। यह इस वनस्पति की गुणवत्ता का प्रबल प्रमाण है।

सत्यानाशी से नुकसान : Side Effect of Satyanashi in Hindi

  • सत्यानाशी के उपयोग से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • सत्यानााशी के बीज अत्यधिक विषैले होते हैं । शरीर के बाहरी अंगों पर ही इनका प्रयोग करना चाहिये ।
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