शारीरिक श्रम के अभाव में होने वाली बीमारियां

वर्तमान में आराम की जिंदगी को अच्छा समझने की प्रवत्ति चल पडी है और इसी कारण हमारे देश के बड़े ही नहीं, जवान भी परिश्रम करने से कतराने लगे है। हम कोई काम ही न करें और यह सोचकर आलसी जीवन बिताए कि ईश्वर खाने, पहनने को देगा ही, गलत धारणा है। इसलिए कार्य करने से जहां शारीरिक विकारों से मुक्ति मिलती है, वहीं व्यक्ति का स्वास्थ्य भी मजबूत होता है। इससे कुछ करने का हुनर पनपता है, जो सदैव विकास का द्योतक माना जाता हैं।

श्रम न करने से होने वाले रोग :

शारीरिक श्रम से बचने के नुकसान –

  • धनवान और बद्धिजीवी प्राय: शारीरिक श्रम नहीं करते हैं इससे उन्हें कब्ज रहने लगती है। कब्ज से पेट में जमा हआ मल आंतों की गर्मी व नमी की कमी के कारण सड़ता है और गंदी वायु बनती है।
  • एकत्रित मल के गंदे रस को आंतों द्वारा सोखने एवं खून में मिला देने से वह अशुद्ध होकर त्वचा के रोग उत्पन्न कर सकता है।
  • आंतों में पड़ा मल अपनी सड़न और बदबू से शरीर की प्रफुल्लता, उत्साह को खत्म कर देता है।
  • मन में आलस्य भाव, ग्लानि, मुह से दुर्गंध आना, बुखार महसूस होना, अरुचि, सिर दर्द, सिर में भारीपन जैसे लक्षण पैदा होने लगते है।
  • लगातार कब्ज की शिकायत बनी रहने पर बवासीर,साइटिका रोग हो जाता है। इस प्रकार कोई न कोई बीमारी जकड़े रहती है।
  • हाथ-पैर व शरीर कमजोर रहना,
  • चुस्ती और फुर्ती का अभाव,
  • पाचन शक्ति का ठीक न रहना,
  • समय पर भूख न लगना,
  • चित्त में प्रसन्नता का अभाव,
  • काम करने की इच्छा न होना,
  • काया बेडौल होना,
  • मांस-पेशियों के उभार का ठीक विभाजन न होना चेहरे पर रौनक की कमी,
  • साहस और शक्ति का अभाव जैसे लक्षण भी शरीरिक श्रम न करने वालों में मिलते हैं।

शारीरिक श्रम करने से लाभ :

शारीरिक श्रम के फायदे –

  1. जहां परिश्रम करने से व्यक्ति में नई स्फूर्ति और नई चेतना का उदय होता है, वहीं रक्त की गति, स्नायुओं की गति के प्रभाव से चेहरा दमक जाता है।
  2. इससे वह सदैव प्रसन्न व चिंतामुक्त नज़र आता है, जबकि अकर्मण्य व्यक्ति आलसी, चिड़चिड़े और क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं।
  3. श्रम करने से हाथ-पैर और शरीर के पट्टे बलिष्ठ बनते है।
  4. पाचन-शक्ति ठीक रहती है और खुलकर भूख लगती है।
  5. चित्त की प्रसन्नता से काम करने की इच्छा होती है।
  6. शरीर में रक्त का निर्माण होता है और काया सुडौल बन जाती है।
  7. शरीर से आलस्य दूर हो जाता है।
  8. शरीर के विकार मल-मूत्र, पसीना आदि नियमित रूप से बाहर निकलते हैं।
  9. सभी इंद्रियां ठीक प्रकार से कार्य करती है।
  10. मांस पेशियां सुदृढ़ होती है।
  11. खुन का दौरा ठीक प्रकार से होता है, जिससे रोग नाशक शक्ति का विकास होता है।
  12. इसके अलावा परिश्रम से उत्पन्न आत्मविश्वास और आत्म-निर्भरता जीवन की सफलत्ता का रहस्य है, विपत्तियों पर विजय का प्रतीक है।
  13. परिश्रमी को कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता, आत्मनिर्भर होने के कारण उसे हर काम के के लिए दूसरों का मुह नहीं ताकना पड़ता।

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