Last Updated on August 2, 2019 by admin
प्रसिद्ध संत श्री तपसीबाबा जी महाराज उच्च कोटि के तपस्वी संत थे। उन्हें जो भी रूखा-सूखा मिल जाता, उसीसे पेट भर लेते और निरन्तर भजन-ध्यान में लगे रहते। सब कुछ त्याग होनेपर भी आपने देखा कि मुझसे और सब तो छूट गया, पर दूध पीने की इच्छा बनी रहती है, दूध पिये बिना चैन नहीं पड़ता और इससे भजन में बड़ा विघ्न पड़ता है। अतः आपने एक दिन अपने मन को कड़ी लताड़ देते हुए कहा- मैं आज प्रतिज्ञा करता हूँ, जीवन भर कभी दूध नहीं पीऊँगा। इसी के साथ अन्न-फल फूल आदि खाना भी छोड़ दिया और सारे शरीर के वस्त्र भी उतारकर फेंक दिये। वस्त्रों की जगह आप मूँज की लँगोटी बाँधा करते थे और शरीर पर भस्म लगाया करते थे। भोजन में वृक्षोंके पत्ते धूनीमें उबालकर उनका गोला बनाकर खा लिया करते थे।
इस प्रकारके कड़े नियमों का लगातार पैंतालीस वर्षांतक पालन होता रहा। हजारों दर्शनार्थी आते रहते, पर आप न तो किसी से कुछ लेते और न किसी से बातें ही करते। हर समय तपस्या में संलग्न रहते। पैंतालीस वर्ष पश्चात् एक दिन आपका मन दूध की ओर चला और दर्शन करने आयी हुई एक माई से आपने कहाआज रात्रि को हम दूध पीयेंगे। वह माई धनी घराने की थी और बड़ी ही बुद्धिमती भी थी। उसे यह पता लग चुका था कि महाराज जी ने जीवनभर दूध न पीने की प्रतिज्ञा की है।
माई ने कहा कि ‘अच्छा महाराज ! रात्रि को दूध आ जायगा।’ उसने पंद्रह-बीस घड़े भरकर दूध मँगवाया और उनमें मीठा मिलाकर बाबा की कुटिया के बाहर लाकर रखवा दिया। जब बाबा कुटिया में से तपस्या करके बाहर निकले, तब माई ने हाथ जोड़कर कहा–’महाराज ! मैं लोभी नहीं हूँ। आपके लिये दूध के अनेक घड़े भरकर लायी हूँ। चाहे जितना दूध आप पीयें। दूध की कमी नहीं है, पर प्रभो ! एक बात याद रखिये। आज आप शेर से गीदड़ बनने क्यों जा रहे हैं ? पैंतालीस वर्ष तक जिस प्रतिज्ञा को आपने निभाया, अब अन्तिम समय उसे भंग करके कायरताका परिचय क्यों दे रहे हैं?’ बाबा की आँखें खुल गयीं। अरे, मन कितना धोखेबाज है, कितना चालाक है। मैं समझ गया। बाबा माई के चरणों में झुक गये। ‘देवी ! तुमने इस पापी मनके जाल से मुझे बचा लिया। नहीं तो, मैं आज मारा जाता। इस मनीरामका कभी विश्वास नहीं करना चाहिये। यह न जाने कब धोखा दे दे।’
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