श्री रामचन्द्रजी का वैराग्य (बोध कथा) | Motivational Story in Hindi

Last Updated on July 22, 2019 by admin

प्रेरक हिंदी कहानी : Hindi Storie with Moral

★ सोलह वर्ष की वय में भगवान श्रीरामचन्द्रजी अपने पिता से आज्ञा लेकर तीर्थयात्रा करने निकले और सभी तीर्थों के दर्शन एवं दान, तप, ध्यान आदि करते हुये एक वर्ष बाद पुनः अयोध्या लौटे । तब एकान्त में श्रीराम विचार करते हैं :
‘‘जितने भी बडे-बडे राजा, महाराजा, धनाढ्य और श्रीमंत थे उनके अवशेषों को गंगा किनारे लाकर लोग आँसू गिराकर चले जाते हैं । इस प्रकार इस जगत की वस्तुओं में खेलने वाले जीवों के सारे अवशेष भी गंगा नदी में बह जाते हैं ।

★ श्रीरामचन्द्रजी विवेक वैराग्य के उपरोक्त विचारों में निमग्न थे विश्वामित्र मुनि श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ ले जाने के लिए राजा दशरथ के यहाँ आये । दशरथ की नजरें जैसे ही विश्वामित्र पर पडी उन्होंने सिंहासन से उतरकर दंडवत् प्रणाम करके महर्षि विश्वामित्र का आदरपूर्वक सत्कार किया तथा आगमन का कारण पूछा ।

★ तब विश्वामित्र ने अपने यज्ञ की रक्षार्थ दशरथ से राम और लक्ष्मण को अपने साथ भेजने को कहा । विश्वामित्र के वचन सुनकर दशरथजी मूर्छित जैसे होने लगे । तब वशिष्ठजी ने उनसे कहा :
‘‘राजन् ! आप चिन्ता न करें । विश्वामित्र सुयोग्य सामर्थवान  हैं । ये परम तपस्वी हैं । इनसे बडा वीर पुरुष तो देवताओं में भी नहीं है । आप निर्भय होकर राम लक्ष्मण को विश्वामित्रजी के साथ भेज दीजिए ।

★ महर्षि वशिष्ठ के वचन सुनकर राजा दशरथ सहमत हो गये । उन्होंने राम को बुलाने के लिए सेवक भेजा । लौटकर सेवक कहता है :
‘‘रामचंद्रजी तो एकान्त कक्ष में बैठे हैं । हास्य विनोद की वस्तुएँ देने पर वे कहते हैं – ये नश्वर वस्तुएँ लेकर मुझे क्या करना है ? तुम तो एक मृग की भाँति हो जो हरे-भरे घास के आकर्षण में बह जाता है और शिकारी उसे मार डालता है । उसी प्रकार तुम भी इन भोग-पदार्थों में फँस जाते हो और असमय काल के गाल में समा जाते हो । ऐसे भोग-पदार्थों में मुझे समय बरबाद नहीं करना है अपितु मुझे आत्मतत्त्व का अनुसंधान करना है ।

★ तब समस्त साधुगण, ऋषि-मुनि और सभासद कहने लगे : ‘‘सचमुच कितने विवेकपूर्ण वचन हैं श्रीरामचन्द्रजी के !
वशिष्ठजी ने विश्वामित्रजी से कहा : ‘‘मुनिवर ! श्रीरामचन्द्रजी को आत्मज्ञान का उपदेश दीजिये ताकि उन्हें अभीष्ट पद प्राप्त हो ।

★ तत्पश्चात् रामचन्द्रजी सभा में बुलाये गये । उन्होंने जगत की नश्वरता का जो वर्णन किया वह श्री योगवाशिष्ठ महारामायण के वैराग्य प्रकरण में वर्णित है ।
दूसरा कोई पूरा ग्रन्थ आप न पढ सकें तो ‘योगवाशिष्ठ का वैराग्य प्रकरण ही पढ लेना ताकि पुनरावृत्ति किस तरह से होती है यह समझ में आ जायेगा । आपके हृदय के द्वार खुलने लगेंगे । यह विचार उदित होगा कि हम क्या कर रहे हैं ?

★ वैसे तो ‘योगवाशिष्ठ में छः प्रकरण हैं – वैराग्य प्रकरण, मुमुक्षु प्रकरण, उत्पत्ति प्रकरण, स्थिति प्रकरण, उपशम प्रकरण और निर्वाण प्रकरण । इन प्रकरणों में आप जीवन्मुक्त स्थिति तक पहुँच सको, ऐसा सुंदर वर्णन है ।

★ जो मनुष्य एक बार ‘योगवाशिष्ठ” का पाठ करता है, उसका चित्त शान्त होने लगता है । फिर चित्त किधर जाता है इसे देखा जाय तो तुम्हारे संकल्प विकल्पों में सहजता से कमी होने लगती है । तुम्हारी आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होकर तुम्हारे ऐहिक और सांसारिक कार्य तो आसानी से होने लगेंगे ही, परंतु जगत के कार्यों में तुम्हें जो सफलता मिलेगी उसका तुम्हें अहम् न होगा और न ही उसमें आसक्ति होगी तथा न कभी वस्तुओं का चिन्तन करते-करते मृत्यु होगी बल्कि तुम्हारे स्वरूप का चिन्तन करते-करते देह की मृत्यु होगी और तुम देह की मृत्यु के दृष्टा बनोगे ।

★ सुकरात को जहर देने का आदेश दिया गया । जहर बनाने वाला जहर पीस रहा है, लेकिन सुकरात निश्चिंत होकर अपने मित्रों के साथ बातचीत कर रहे हैं । पाँच बजते ही जहर पीना है और सुकरात दो मिनट पहले ही जहर देनेवाले से कहते हैं : ‘‘भाई ! समय पूरा हो गया है, तुम क्यों देर कर रहे हो ? तब मित्रगण और उपस्थित लोग कहते हैं : ‘‘आप भी अजीब इन्सान हैं ! हम तो चाहते हैं कि आप जैसे महापुरुष दो साँस और ले लें । इसलिए हम जानबुझकर थोडी देर कर रहे हैं ।

★ सुकरात कहते हैं : ‘‘तुम जानबूझकर देर करते हो लेकिन दो मिनट अधिक मैं जी भी लिया तो कौन-सी बडी बात हो गयी ? मैंने तो जीवन जी कर देख लिया, अब मृत्यु को देखना है । मैं मरने वाला नहीं हूँ ।

★ जहर का प्याला आया… मित्र और साथी रोने लगे ।
तो वे महापुुरुष समझाते हैं : ‘‘अब रोने का समय नहीं, समझने का समय है । यह जहर शरीर पर प्रभाव करेगा लेकिन मुझ पर इसका कुछ भी प्रभाव नहीं पडेगा ।
सुकरात पानी की तरह जहर पी गये । तत्पश्चात् वे लेटकर अपने मित्रों से कहते हैं :
‘‘जहर का असर अब पैरों से शुरू हुआ है… अब जांघ तक आ चुका है… अब कमर तक उसका असर आ रहा है… रक्तवाहिनियों ने काम करना बन्द कर दिया है… अब हृदय तक आ पहुँचा है… अब मृत्यु यहाँ तक आ गयी है लेकिन मृत्यु इस शरीर को मारती है… मृत्यु जिसको मारती है उसे मैं ठीक तरह से देख रहा हूँ ।

★ जो अपनी मृत्यु को देखता है उसकी मृत्यु होती ही नहीं, यह पाठ तुम्हें पढाने के लिये मैं तुम्हें सावधान कर रहा हूँ ।
इसी प्रकार अपने जीवन में भी एक दिन ऐसा आयेगा । मौत से घबराने की जरूरत नहीं है… डरने की जरूरत नहीं है । मौत किसकी होती है ? किस तरह होती है ? उस समय सावधान होकर जो यह अमर आत्मा को जानकर मुक्त हो जाता है ।

★ बिल्ली को देखकर दाने चुगता कबूतर आँखें बन्द कर लेता है, लेकिन ऐसा करने से बिल्ली छोड नहीं देती । ऐसे ही जो दुःख, विघ्न या मौत से लापरवाही बरतेगा उसे मौत छोडेगी नहीं । मौत का साक्षी होकर मौत से परे अपने अमर आत्मा में जो जाग जाता है वह धन्य हो जाता है ।

श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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