Last Updated on October 31, 2019 by admin
श्रृंग भस्म क्या है ? : Shringa Bhasma in Hindi
श्रृंग भस्म, एक आयुर्वेदिक दवा है जिसे हिरण के सींग से तैयार किया जाता है। श्रृंग का मतलब हिरण का सींग होता है और इसे श्वसन संबंधी विकारों के उपचार में टॉनिक के रूप में गिना जाता है। श्रृंग भस्म एक सफेद गंधहीन पाउडर के रूप में दिखाई देता है।
यह योग इसी नाम से विभिन्न आयुर्वेदिक औषधि निर्माता कम्पनियों द्वारा बनाया हुआ बाज़ार में मिलता है।
जो नुस्खे को स्वयं बनाने में सक्षम हों एवं रुचि रखते हों उनकी जानकारी एवं उपयोग के लिए इस योग के घटक-द्रव्यों एवं निर्माण विधि का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
श्रृंग भस्म के घटक द्रव्य : Shringa Bhasma Ingredients in Hindi
✥ हिरण का सींग
✥ आक
श्रृंग भस्म बनाने की विधि :
बारहसिंगे के सीगों के शुद्ध सूखे टुकड़ों के वजन से ४ गुने आक के पत्तों को कूटकर लुगदी बनावें। इसमें से आधी लुगदी कपड़े पर बिछा ऊपर बारहसिंगे के सीगों के टुकड़े रख, शेष आधी लुगदी को ऊपर रख पोटली बाँधकर मजबूत, कपड़मिट्टी करें। पोटली के सीगों के टुकड़े एक दूसरे से न मिल जायँ यह सम्हालें। कपड़मिट्टी सूखने पर गजपुट देने से सफेद रंग की मुलायम भस्म हो जाती है। कदाचित् भस्म में से कोई टुकड़ा काला या कच्चा रह जाय तो उसे आक के रस में ३ घण्टे खरलकर टिकिया बना संपुट करें दूसरी बार गजपुट देने से उत्तम भस्म बन जाती है। – (ब्र. स्वा. सदानन्दगिरिजी)
उपर्युक्त विधि से घीकुंवार (एलोवेरा) के गर्भ को बिछा उसमें सींगों के टुकड़े रख कर भी भस्म बनाई जाती है किन्तु यह भस्म अपेक्षाकृत न्यून गुण वाली होती है।
सूचना- शुष्क कास में श्रृंग भस्म नहीं देनी चाहिये। आक के पत्तों की लुगदी की अपेक्षा घीकुंवार के गर्भ में संपुट करके बनाई हुई भस्म सौम्य होती है। यद्यपि तीक्ष्ण रोगों में उग्र भस्म लाभदायक है तथापि कोमल प्रकृति वालों के लिये सौम्य भस्म हितकर है।
मात्रा और सेवन विधि :
☛ १ से ३ रत्ती ।
(1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
☛ १ दिन में २ समय कफ को बाहर निकालने के लिये मिश्री के साथ।
☛ पतले कफ के शोषण के लिये शहद या नागरबेल के पान के साथ
☛ शूल पर पीपल के चूर्ण और शहद के साथ।
☛ क्षय के ताप में प्रवालपिष्टी और गिलोयसत्व के साथ।
☛ मृद्वस्थि (हड्डियों की कमजोरी) रोग में प्रवालपिष्टी या गोदन्ती के साथ।
☛ श्वसनक ज्वर (न्यूमोनिया) पर श्रृंगभस्म, मोर की चन्द्रिका की भस्म और १-१ तोला अष्टांगावलेह के साथ देकर ऊपर सोंठ मिली हुई चाय पिलावें।
श्रृंग भस्म के उपयोग :
इस आयुर्वेदिक दवा का उपयोग श्वास, खांसी, पार्श्वशूल, फुफ्फुस सन्निपात निमोनिया (Pneumonia fever), बालकों का पसली रोग (Broncho pneumonia) नया फुफ्फुसावरण शोथ (उरस्तोय Pleurssy), वातश्लेष्मज्वर (Influenza), जीर्णज्वर, निद्रानाश, सेन्द्रियविष जनित, अस्थिविकार, राजयक्ष्मा में ज्वर, जुकाम, हृदयशूल, मन्दाग्नि, वृक्कव्रण, दाँत में से पूय निकलना (Pyorrhoea) और बालकों के अस्थिवक्रता रोग (Rickets) आदि के उपचार में किया जाता है।
श्रृंग भस्म के फायदे : Shringa Bhasma Benefits in Hindi
1- कफ को निकाल फेफड़ों को शक्तिशाली बनाने वाला –
श्रृंग भस्म का मुख्य गुण ज्वरघ्न, शक्तिवर्द्धक, कफस्राव का नियमन करना, फुफ्फुसों (फेफड़े) में रहे हुए कफ दोष की साम्यावस्था स्थापित करके फुफ्फुस कोषों को शक्ति देना, हृदय को शक्ति देना, क्षय की प्रथमावस्था में क्षय के कीटाणुओं का नियमन कर क्षय को बढ़ने न देना इत्यादि है। इसमें से अन्तिम कार्य श्रृंग भस्म के योग से फुफ्फुस के अथवा अन्य स्थान के शारिरिक घटक सुदृढ़ होकर क्षय के कीटाणु या क्षयजन्य विष नष्ट होने पर होता है।
( और पढ़े – कफ दूर करने के 35 घरेलू उपचार )
2- क्षय रोग में श्रृंग भस्म के लाभ –
श्रृंग भस्म से क्षय का विष बिल्कुल नष्ट हो जाता है, ऐसा नहीं। क्षयजन्य विष को निर्विष करने वाली अथवा क्षयज कीटाणुओं को मारने वाली कीटाणुनाशक औषधि सुवर्णभस्म है। परन्तु श्रृंगभस्म का उपयोग ऊपर लिखे अनुसार (कीटाणुओं की वृद्धि को रोक देना) होने से क्षय हो जाने का सन्देह होने पर तुरन्त श्रृंगभस्म और प्रवाल भस्म को मिलाकर देते रहने से क्षय नहीं होता और क्षय रोग से बच जाता है। ऐसे समय पर इस भस्म को १ रत्ती से प्रारम्भ कर क्रमशः ६ रत्ती तक बढ़ानी चाहिये।
3- श्वासनलिका में जमा कफ को निकालने वाला –
श्वासनलिका में से कफ का परिणाम से अधिक स्राव होता हो तो उसे श्रृंग भस्म नियमित कर कफविकार को दूर करती है। वासा (अडूसा) श्वासवाहिनियों में कफस्राव ज्यादा कराने वाला है। मुलहठी श्वासवाहिनियों के उपताप का शमन करती है अर्थात् यह मधुर चिपचिपा, पतला और कोमल रस उत्पन्न करने वाली होने से उपताप कम हो जाता है। जब कण्ठदाह, कण्ठशोथ, फुन्सियां और उपजिह्वा आदि के दोष से खाँसी आती है तब बहेड़े में स्तम्भक के गुण होने से यह उपयोगी होता है। इस रीति से खांसी के पृथक्-पृथक् कारणों के अनुरोध से भिन्न-भिन्न औषधि उपयोग में ली जाती है।
4- काली खांसी में श्रृंग भस्म के फायदे –
बालकों की काली खांसी (Whooping cough) और उसके समान संक्रामक कास में श्रृंगभस्म का अच्छा उपयोग होता है।
( और पढ़े – कुक्कुर खाँसी के कारण ,लक्षण और इलाज )
5- जलन युक्त खाँसी में श्रृंग भस्म का उपयोग –
फुफ्फुसों (फेफड़े) या श्वासवाहिनियों के प्रदाह (जलन) के पश्चात् उत्पन्न होने वाली खांसी में एवं कफ संचयजनित कास में श्रृंगभस्म उत्तम लाभदायक है।
साँभर के सींगों की अपेक्षा छोटे बच्चों के लिये हिरण के सींगों की भस्म विशेष उपयोगी है। हिरण के सींगों की भस्म साँभर सींगों के समान की जाती है।
6- दूषित कफ की उत्पत्ति रोकने में श्रृंग भस्म के फायदे –
फुफ्फुस सन्निपात (निमोनिया Pneumonia) के पश्चात् प्रायः उरस्थ कफ संचय ज्यादा होता है। यह संचय अनेक समय कई दिनों तक त्रास पहुँचाता है। कफ दुर्गन्धयुक्त चिपचिपा, पीले रंग का निकलता है। ऐसे कफ को सत्वर निकाल देना चाहिये, तथा फिर से नयी दूषित कफ की उत्पत्ति को रोकने के लिये भीतर के अवयवों को निर्दोष और बलवान बनाना चाहिये। इन सब कार्यों के लिये उत्तम औषध की योजना करें, तो श्रृंगभस्म और रससिन्दूर को मिला अडूसा, मुलहठी, बहेड़ा और मिश्री के क्वाथ के साथ दिन में ३ बार देना चाहिये तथा पञ्चगुण तैल और नारायण तैल को मिला गुनगुना कर; छाती पर मालिश करने और गरम जल से सेक करने पर सत्वर लाभ होता है।
7- बुखार में श्रृंग भस्म के फायदे –
कतिपय समय इस प्रकार का कफस्राव-न्यून होने पर या कफ की दुर्गन्ध न्यून होने पर भी अन्तर में कोई एकाध भाग दुष्ट बना हुआ शेष रह जाता है; जिससे कुछ काल के पश्चात् उस भाग में दोष संचय की वृद्धि होती है और दोष बढ़कर ज्वर आने लगता है। इस प्रकार के ज्वर में त्रास ज्यादा नहीं होता, तथापि रोगी की शक्ति क्षीण होती जाती है। ऐसी परिस्थिति में अन्य ज्वरघ्न औषधि की अपेक्षा श्रृंगभस्म विशेष हितकर है। उसके साथ रस सिन्दूर स्वल्प परिमाण में मिलाकर देने से फुफ्फुसों में से मलद्रव्य और दोष-दुष्टी नष्ट होने से अच्छी सहायता मिल जाती है। यह दुष्टी दूर होने पर सूक्ष्म ज्वर स्वयमेव शमन हो जाता है।
8- हृदय को बलवान बनाने वाला –
श्रृंगभस्म हृदयपौष्टिक है। हृदय के शूल का विकार जीर्ण होने पर हृदय में विशेष विकृति न हो, हृदयेन्द्रिय मात्र की सामान्य निर्बलता ही कारण हो और स्नायु निर्बल हुए हों तो ऐसी स्थिति में श्रृंगभस्म को घी के साथ अवश्य देनी चाहिये।
( और पढ़े – हृदय रोग के कारण और बचाव के उपाय )
9- श्रम जन्य कमजोरी दूर करने में श्रृंग भस्म के लाभ –
अनेक दिवसों के उपवासों या मार्ग चलने के कारण या मस्तिष्क का श्रम अतिशय होने से हृदय में निर्बलता आई हो तो भी श्रृंगभस्म हितकर है। ऐसी अशक्ति के समय थोड़ा-सा कारण मिलने पर उत्पन्न होने वाली घबराहट, हृदय के वेग की वृद्धि, कान में आवाज और नाड़ियाँ उड़ती हों, ऐसा रोगी को भास होता हो, तो श्रृंगभस्म और सुवर्णमाक्षिक भस्म का मिश्रण देना लाभदायक है।
10- सूजन दूर करने में श्रृंग भस्म का उपयोग –
हृदय की निर्बलता से उत्पन्न कास, रक्त में आई हुई निर्बलता, मुँह और सारे शरीर पर आया हुआ कफजन्य शोथ(सूजन) अथवा शोथ समान मुँह फूला हुआ-सा भासना आदि विकृति में यह हितकारक है।
( और पढ़े – मोच एवं सूजन के 28 घरेलू इलाज )
11- कीटाणुओं की वृद्धि रोकने में श्रृंग भस्म के लाभ –
श्रृंगभस्म का उपयोग करके निर्जन्तुक क्षय एंव जन्तुजन्य क्षय दोनों पर अनेक समय अनुभव किया है। इसके योग से क्षय रोग के ज्वर और कास दोनों जल्दी दूर होते हैं। इतना ही नहीं, क्षय के कीटाणुओं का नियमन, वृद्धि न होने देना, ऐसा राजयक्ष्मा के कीटाणुओं पर भी परिणाम होता है। इस भस्म का सेवन आरम्भ होने पर उसी समय से क्षय के कीटाणुओं का आगे बढ़ने वाला पैर पीछे पड़ता है। राजयक्ष्मा में रोगी बिल्कुल घबरा न गया हो, बलमांस विहीनत्व न हुई हो, तो श्रृंगभस्म का बहुत अच्छा उपयोग होता है। क्षय की बिल्कुल प्रथमावस्था में इस भस्म का उपयोग करने लगे तो रोगी बहुत करके अच्छा हो ही जाता है। इस कारण से क्षय रोग में श्रृंगभस्म अनेक औषधियों में से एक उत्तम औषधि है, ऐसा कहने में अतिशयोक्ति नहीं है।
क्षय रोग मे अभ्रकभस्म, सुवर्णभस्म और श्रृंगभस्म तीनों एकत्र करके देने से सत्वर लाभ पहुँचता है। तद्वत् शरीर में रहे हुए सूक्ष्म ज्वर पर भी इसका उपयोग अच्छा होता है।
12- बच्चो के सूखा रोग में श्रृंग भस्म के फायदे –
बालकों की बालशोष व्याधि जिससे बहुत कमजोर, हाथ-पैर शुष्क और पेट घड़े के समान हो जाता है; इस पर श्रृंगभस्म और प्रवालपिष्टी के मिश्रण का अच्छा उपयोग होता है।
13- पेशाब के रोगों में श्रृंग भस्म के लाभ –
मूत्रपिण्ड के विकार पूयवृक्क और वृक्कव्रण में वंगभस्म या अन्य औषधि के साथ श्रृंग देने से पूय (पीब) सत्वर सूखने लगता है। रोगी को अधिक त्रास होता हो, तो वह कम होकर रोग शीघ्र काबू में आ जाता है। श्रृंग भस्म विशेषतः कफदोष; रस, रक्त, अस्थि, मज्जा इन दूष्यों और श्वसनेन्द्रिय, हृदय, वृक्क (मूत्रपिण्ड) इन स्थानों पर लाभ पहुँचाती (औ.गु.ध.शा.)
( और पढ़े – मूत्र रोग के 15 सरल घरेलू उपचार )
14- सिरदर्द में श्रृंग भस्म के लाभ –
श्रृंग भस्म १ रत्ती और शुद्ध नौसादर ४ रत्ती गुनगुने जल के साथ देने से नूतन प्रतिश्याय में कफस्राव जल्दी होकर थोड़े ही समय से प्रतिश्याय और सिरदर्द दूर हो जाता है।
(1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
15- श्वासरोग में श्रृंग भस्म के फायदे –
कास रोग के साथ कितनों ही को श्वासरोग भी होता है। रोग जीर्ण होने पर बार-बार कास चलती रहती है और १०-२० बार खांसने पर कफ गिरता है, कभी-कभी झागदार वान्ति हो जाती है; बोलने में श्वास भर जाता है; और शीतकाल में बैठे-बैठे रात्रि काटनी पड़ती है। गर्मी के दिनों में त्रास कम रहता है। इस विकार पर श्रृंगभस्म २ रत्ती के साथ रस सिंदूर १ रत्ती मिला तुलसी के रस और शहद के साथ दिन में २ बार देते रहने से शनै-शनैः छाती सबल होकर कास और श्वास दोनों रोग निवृत्त हो जाते हैं।
( और पढ़े – श्वास के 170 आयुर्वेदिक घरेलू उपचार )
16- कफ के विकारों को दूर करने वाला –
यदि श्वास रोग में कफ संगृहीत हो जाने से अति त्रास हो तो, तो श्रृंगभस्म के साथ मल्लसिंदूर (दूसरी विधि) और त्रिकटु मिलाकर ४-४ घण्टे शहद के साथ देते रहें और ऊपर चाय पिलाते रहें तो एक दिन में घबराहट दूर हो जाती है। किन्तु जितना कफ अधिक गाढ़ा हो उनको मल्लसिंदूर न देकर श्रृंग, अभ्रक; समीरपन्नग और सितोपलादि चूर्ण मिलाकर ४-४ घण्टे पर देना चाहिये। समीरपन्नग मिलाने से कफ सरलता से बाहर निकल आता है।
17- नाखून विकृति को दूर करने में सहायक –
सेन्द्रिय विष या कीटाणुओं के रक्त में प्रवेश होने पर नखों की रचना अव्यवस्थित और विकृत होने लगती है। बहुधा फिरङ्ग रोग के विष से ऐसा होता ही है एवं उदर मे सूक्ष्म कृमि दीर्घकाल पर्यन्त रह जाने पर भी नख बैठे हुए, विकृत और अनियमित मोटे-से बन जाते हैं। उस पर यह भस्म दोपहर के भोजन के समय अमृतासत्व, नागरमोथा और आँवले के चूर्ण के साथ सेवन करा ऊपर भृगराज तैल ६ माशे पिलाया जाता है। इस तरह सेवन करने पर १-२ मास में नखविकृति दूर हो जाती है।
18- अनिद्रा रोग में श्रृंग भस्म के फायदे –
निद्रानाश-उत्तेजक भोजन, चाय, कॉफी आदि उत्तेजक पेय, या अति उग्र औषधि सेवन पर निद्रा नहीं आती। कईयों को बिल्कुल शान्ति नहीं मिलती एवं कईयों को अशान्त निद्रा मिलती है। इस निद्रानाश पर श्रृंगभस्म ४-४ रत्ती दिन में २ बार शहद के साथ दी जाती है। यदि रोगी अम्ल पित्त, दाह आदि से पीड़ित भी हो, तो सूतशेखर और कामदुधा भी मिला लिया जाता है।
श्रृंग भस्म के नुकसान : Shringa Bhasma Side Effects in Hindi
1- श्रृंग भस्म लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
2- श्रृंग भस्म को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
3- श्रृंगभस्म वातजन्य शुष्क कास में नहीं देनी चाहिए अन्यथा श्वासवाहिनियाँ शुष्क होकर खांसी बढ़ जायेगी।
4- बच्चों की पहुच से दूर रखें ।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)