Last Updated on April 26, 2023 by admin
सोनापाठा (Sonapatha in Hindi)
सोनापाठा के पेड़ भारत के पश्चिमी सूखे प्रदेशों को छोड़कर अक्सर सभी जगह पाये जाते हैं। सोनापाठा की जड़ की छाल का इस्तेमाल बृहत पंचमूल में किया जाता हैं। यह पंसारियों के यहां मिलती है। सोनापाठा के पेड़ 15-25 फुट तक ऊंचे होते हैं, यदि परिस्थितियां अनुकूल और उपयुक्त हो तो बकायन की तरह 50 फुट तक के पेड़ भी देखे जाते हैं। कुछ प्रदेशों में एलेनटस एक्सलसा घोड़ानिम्ब का इस्तेमाल अरलू या श्योना की जगह करते हैं, परन्तु वास्तव में घोड़ानिम्ब दूसरी जाति का पौधा है। यहां पर जो विवरण दिया जा रहा है जिसे लैटिन में ओरोजाइलम इनडीकम कहते हैं।
सोनापाठा का पेड़ कैसा होता है ? :
सोनापाठा का पेड़ पर्णपाती तथा मीडियम ऊंचाई के होते हैं। सोनापाठा की पत्तियां 3-5 इंच लम्बी, 2 से साढे 3 इंच चौड़ी, लट्वाकार, लम्ब्राग और चिकनी तथा पत्रनाल और पत्रदंड पर दाने पड़े होते हैं। इसकी पत्तियां अक्सर त्रिपक्षाकार या 1 पक्षाकार होती है। सोनापाठा का फूल वाहक दंड बहुत लम्बा, फूल बहुत बड़े मांसल बैंगनी रंग के तथा बदबू युक्त होते हैं। सोनापाठा फली तलवार जैसी टेढ़ी चिकनी कठोर ढाई इंच से 1 फीट लम्बी तथा 2 इंच से साढे़ 3 इंच तक चौड़ी होती हैं। बसंत में पेड़ निश्पत्र (बिना पत्तों) का हो जाता है। जिसमें तलवार जैसी फलियां लटकी रहती है। सोनापाठा के पेड़ में गर्मी और बारिश के मौसम में फूल तथा सर्दियों में फल लगते हैं।
सोनापाठा का विभिन्न भाषाओं मे नाम :
हिंदी में | सोनापाठा |
संस्कृत में | टुण्टुक, श्योनाक, शुकनास |
गुजराती में | अरडूसो |
मराठी में | टेंटू |
बंगाली में | सोनालू, शोणा |
देहरादून में | तारलू |
तैलगु में | पैद्दामानु |
पंजाबी में | मुलिन |
वैज्ञानिक नाम | ओरोक्सीलम इनडीकम (एल) वेन्ट |
सोनापाठा के गुण (Sonapatha ke Gun in Hindi)
- सोनापाठा गर्म होने से कफ (बलगम) तथा वात शामक है।
- इसकी छाल बाहर से लगाने पर सूजन, फोड़े-फुंसिया एवं वेदनाहर है।
- यह रस में तीखा व गर्म होने के कारण जलन, पाचन, रोचन, भूख को बढ़ाता है तथा कीड़ों को खत्म करता है।
- सोनापाठा सूजन को दूर करने वाला है।
- यह मूत्रल, कफ (बलगम) को बाहर निकालने वाला है।
- सोनापाठा बुखार दूर करने वाला व कटुपौष्टिक है।
- यह खासकर कफ व वात से अथवा आंव से होने वाले रोगों में प्रयोग होता है।
- सामान्य कमजोरी में पेट की गड़बड़ी से होने वाली कमजोरी में इसका उपयोग बहुत गुणकारी है।
- रासायनिक संघटन : सोनापाठा की जड़ व तने की छाल में 3 फ्रलेवोन रंजक द्रव्य ओरोक्सीलिन `ए´ बैकेलिन और क्राइसिन होते हैं। इसके अलावा इसमें एक क्षाराभ, टैनिक एसिड, सिटास्टेरोल और ग्लेक्टोज पाये जाते हैं। औषधीय गुणयुक्त पत्ते और बीज, छाल। इसके बीजों में 20 प्रतिशत तक पीले रंग का तेल मिलता है।
विभिन्न रोगो में उपचार में सोनापाठा के फायदे (Sonapatha ke Fayde aur Upyog)
1. बवासीर : इन्द्रजौं, करंज की छाल, सोनापाठा की छाल, चित्र कमूल, सौंठ, सेंधा नमक इन सब औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर और छानकर बारीक चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को डेढ़ से तीन ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3 बार छाछ के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।
2. प्रसूति-जन्य दुर्बलता : मासिक स्राव में जिन स्त्रियों को 4-6 दिन तक भयंकर दर्द हो, उनको सोनापाठा की छाल का लगभग आधा ग्राम चूर्ण इतनी ही शुंठी चूर्ण व इतनी ही मात्रा में गुड़ लेकर तीनों को मिलाकर 3 गोलियां बना लें। इन गोलियों को सुबह दोपहर और शाम दशमूल काढ़े के साथ लेने से चमत्कारिक तरीके से सब कष्ट दूर हो जायेंगे। 10-15 दिन तक लगातार देते रहने से स्त्रियों के सब कष्ट व कमजोरी खत्म हो जाती है।
3. मंदाग्नि : सोनापाठा की 20-30 ग्राम छाल को ठंडे या 200 मिलीलीटर गर्म पानी मे 4 घंटे भिगोकर रख दें, बाद में उसे छानकर पी लें, इसको दिन में 2 बार सेवन करने से मंदाग्नि (भूख कम लगना) खत्म हो जाती है।
4. कर्णशूल : सोनापाठा की छाल को पानी के साथ बारीक पीसकर तिलों के तेल में रख लें और तेल में दुगुना पानी मिलाकर मंद (धीमी) आग पर पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब इसको छानकर बोतल में भरकर रख लें, इस तेल की 2-3 बूंदे कान में टपकाने से वात-कफ पित्त से पैदा होने वाला दर्द खत्म हो जाता है।
5. उपदंश : सोनापाठा की बारीक पिसी हुई सूखी छाल के 40 से 50 ग्राम चूर्ण को पानी में 4 घंटे भिगो दे, इसके बाद इसकी छाल को पीस लें तथा छानकर पानी में मिश्री मिलाकर 7 दिन तक सुबह-शाम सेवन करें। पथ्य में गेहूं की रोटी, घी चीनी का सेवन करें। 7 दिन तक नहायें। आठवें दिन नीम के पत्तों के काढ़ें से स्नान करें व परहेज छोड़ दें।
6. मुंह के छाले ठीक हो जाते है : श्योनाक की जड़ की छाल का क्वाथ बनाकर कुल्ले करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते है।
7. श्वास-खांसी
- 1 ग्राम सोनापाठा की छाल के चूर्ण को अदरक के रस व शहद के साथ चटाने से खांसी में आराम मिलता है।
- सोनपाठा की गोंद के 2 ग्राम चूर्ण को थोड़ा-थोड़ा दूध के साथ सेवन करने से खांसी और दमा रोग खत्म होता है।
9. अतिसार :
- सोनापाठा की छाल और कुटज की छाल का 2 चम्मच रस रोगी को पिलाने से अतिसार (दस्त) बंद हो जाता है।
- सोनापाठा के जड़ की छाल और इन्द्रजौ के पत्तों को पीसकर प्राप्त रस में मोच का रस मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में रोगी को चटाने से अतिसार (दस्त) और आमातिसार (साधारण दस्त) खत्म हो जाते हैं।
- सोनापाठा की छाल व पत्तों को बारीक पीसकर गोली बनाकर उसके ऊपर बरगद के पत्ते लपेट कर मिट्टी के बर्तन डाल दें जब मिट्टी पककर लाल हो जाये तब इसको निकाल कर ठंडा होने पर दबाकर रस निकाल लें। इस रस में से 20 मिलीलीटर रस सुबह-शाम पीने से ज्यादा दिनों का खूनी दस्त आदि में आराम आता है।
- सोनापाठा की गोंद के 2 से 5 ग्राम चूर्ण को थोड़ा दूध के साथ रोगी को खिलाने से आमअतिसार (साधारण दस्त) खत्म हो जाते हैं।
10. सन्धिवात (गठिया या जोड़ो का दर्द) :
- आमवात (जोड़ों के दर्द) तथा वात प्रधान रोगों में सोनापाठा की जड़ व सौंठ का फांट बनाकर दिन में 3 बार 50 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से लाभ होता है।
- सोनापाठा की छाल के चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक की मात्रा में दिन में 3 बार रोज सेवन करने से तथा सोनापाठा के पत्तों को गर्म करके सन्धियों (जोड़ो) पर बांधने से संधिवात (जोड़ों के दर्द) में बहुत लाभ होता है।
11. मलेरिया बुखार :
- सोनापाठा की लकड़ी का छोटा सा प्याला बना लें, रात को इसमें पानी रख लें और सुबह के समय उठकर उस पानी को पी लें। इस प्रयोग से नियतकालिक बुखार, एकान्तरा, तिजारी, चौथियां इत्यादि सब तरह के बुखारों का नाश होता है।
- सोनापाठा, शुंठी, बेल के फल की गिरी, अनारदाना, अतीस इन सब द्रव्यों को बराबर मात्रा में लेकर यवकूट कर लें। इसमें से 10 ग्राम औषधि, आधा किलोग्राम पानी में उबालें, 125 मिलीलीटर पानी जब बच जाये तब इसे छानकर सुबह, दोपहर तथा शाम रोगी को पिलाने से सब तरह के बुखार व अतिसार (दस्त) नष्ट हो जाते हैं।
12. सोनापाठा से पीलिया का विशेष उपचार : 150-200 ग्राम सोनापाठा का ताजा छिलका उतारकर, पीसकर, रात को 1 गिलास पानी में भिगोकर रख लें। सुबह खाली पेट, कपूर की 2 टिक्की का चूर्ण बना कर सेवन कर लें। इसके 15 मिनट बाद सोनापाठा की छाल वाला पानी छान कर पी लें। इसके 2 घंटे बाद नाश्ता या भोजन लें। रोगी की स्थिति के अनुसार 3 दिन तक इसका सेवन करें।
13. आयु अवस्था के अनुसार प्रयोग विधि : पहले कपूर का चूर्ण पानी में मिला लें। इसके 15 मिनट बाद सोनापाठा का पानी लें। नाश्ता या भोजन इसको लेने के 2 घंटे बाद करें।
14. दस्त के लिए : सोनापाठा के पेड़ की छाल का कल्क (मिश्रण) को पद्मकेसर को गंभारी और कमल के पत्तों को लपेटकर पुटपाक करके निकला हुआ रस, ठंडा करके शहद के साथ सुबह और शाम पीने से लूज मोशन (दस्त का लगना) बंद हो जाता है।
15. कान का बहना : सोनपत्ता के पेड़ की छाल को पका कर बने हुये तेल को कान साफ करके बूंद-बूंद करकें कान में डालने से कान से मवाद बहना ठीक हो जाती है।
16. कर्णमूल प्रदाह : इरिमेद और सोनापाठा के बीज को एक साथ पीसकर कान की सूजन पर लगाने से कान में आराम आता है।
17. जलने पर : फूल प्रियंगु, खस, पठानी लोध, सुगंधबाला, सनाय और सोनापाठा का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर दारुहल्दी के रस में मिलाकर शरीर पर मलने से जलन बिल्कुल मिट जाती है।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)