Last Updated on April 28, 2023 by admin
सोआ (शतपुष्पा) :
यह एक लघु चिरस्थायी क्षुप है, जो लगभग 1-8 फुट ऊंचा होता है । पत्र संयुक्त अतिविभाजित, पुष्प पीतवर्णी जो छत्र में होते हैं। फल अण्डाकार किनारे पर सपक्ष, चपटे उन्नतोदर होते हैं।
सोआ के औषधीय गुण :
- सोआ हल्की, तेज, पित्त को खत्म करने वाली, जलन को शांत करती है,
- यह पाचन शक्ति को बढ़ाती है।
- यह गर्म-चटपटी होती है और बुखार में लाभ करती है।
- सोआ (शतपुष्पा) पेट की गैस को कम करती है।
- यह बलगम के लिए लाभकारी है।
- यह जख्म के उपचार में भी काम आती है।
- यह दर्द और आंखों के रोग को समाप्त करती है।
- सौंफ तथा सोया के एक ही गुण हैं।
- सोया खासतौर पर योनि के दर्द और जलन को कम करती है।
- यह कीड़ों तथा वीर्य को हरने वाली है।
- यह मल बांधने वाली, सूखा, गर्म, पाचक, खांसी, उल्टी, कफ तथा गैस को खत्म करता हैं।
सोआ के फायदे और उपयोग :
1. सन्तानोत्पत्ति हेतु सोआ का सेवन – सोआ के बीज लेकर उसका चूर्ण बनाकर किसी कांच के बर्तन में रख लें। इसमें से 5-10 ग्राम लेकर प्रतिदिन प्रातः काल जल से या अपने शक्ति के अनुसार गाय का घी मिलाकर सेवन करना चाहिए। चूर्ण के पच जाने पर केवल दूध-भात का ही सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से संतानहीन स्त्री संतान प्राप्त करती है।
2. वाजीकरण – यदि वृद्ध व्यक्ति सोआ के बीजों का चूर्ण 5-20 ग्राम तक लेकर घी के साथ खाता है, तो उसकी बल-वर्ण की वृद्धि होती है और दीर्घायु को प्राप्त करता है।
3. विष चिकित्सा – सोआ और सेंधानमक दोनों को एक साथ पीसकर घी के साथ मिलाकर दंश स्थान पर लेप करने से मधुमक्खी के डंक का विष शीघ्र नष्ट हो जाता है।
4. अनार्तव – सोआ के क्वाथ का प्रयोग प्रसूता के वमन, अजीर्ण तथा दुग्ध वृद्धि, अनार्तव (रजोधर्म का अवरोध) के लिए किया जाता है ।
5. गुल्म रोग – गुल्म वाले रोगी को एरण्ड तेल के साथ सोआ सेवन करने से लाभ होता है ।
6. बवासीर – सोआ दाह, उदरशूल, वमन, अतिसार, तृषा, यक्ष्मा, अर्श तथा खांसी में लाभकारी है ।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)