Last Updated on March 25, 2020 by admin
त्रिभुवन कीर्ति रस क्या है ? : What is Tribhuvan Kirti Ras in Hindi
त्रिभुवन कीर्ति रस टैबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक औषधि है । इस औषधि का विशेष उपयोग निमोनिया, इन्फ्लूएंजा ,तेज बुखार, सूजन सहित कई अन्य व्याधियों के उपचार के लिए किया जाता है।
घटक एवं उनकी मात्रा :
- शुद्ध हिंगुल – 10 ग्राम,
- वच्छनाग – 10 ग्राम,
- त्रिकटु – 10 ग्राम,
- पिप्पली मूल – 10 ग्राम,
- टंकण शुद्ध – 10 ग्राम।
भावना के लिए तुलसी स्वरस, अदरक स्वरस, धतूरा पत्र स्वरस आवश्यकतानुसार।
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- शुद्ध हिंगुल : योगवाही, कफ वात नाशक, शोथहर, कृमिघ्न, आम पाचक,सहायक औषधियों को स्थायित्व प्रदायक।
- बच्छनाग : वात कफ नाशक, शोथ हर, आमपाचक, विकाशी, ज्वर हर, तीव्र विष, शोधनोपरान्त अमृत तुल्य।
- टंकण : लेखन, सारक, वछनाग विष नाशक।
- त्रिकटु : उष्ण, तीक्ष्ण, वात कफनाशक, आमपाचक, अग्निदीपक, ज्वरघ्न ,कासघ्न।
- पिप्पली मूल : कफ नाशक, वात शामक, आम पाचक, तीक्ष्ण, उष्ण, सूक्ष्म स्रोतोगामी।
- तुलसी : वात कफ शामक, तीक्ष्ण, उष्ण, ज्वर हर।
- अदरक : कफ तरल कारक, तीक्ष्ण, उष्ण, कासघ्न ।
- धतूरा : कफन, वातशामक, वेदनाशामक ज्वरहर, कफघ्न
त्रिभुवन कीर्ति रस बनाने की विधि :
सर्व प्रथम शुद्ध हिंगुल को निश्चन्द्र होने तक खरल करवायें तदन्तर उस में शुद्ध वछनाग डालकर एक जीव होने तक खरल करवायें तत्पश्चात् टंकण मिलाकर खरल करवायें जब सभी एक रूप हो जाएँ तो त्रिकटु और पिप्पली मूल भी मिलाकर खरल करवाएँ अन्त में क्रमशः तुलसी, अदरक और धतूरा पत्र की तीन-तीन भावनाएँ दिलवा कर, 100 मि.ग्रा. की गोलियां बनवा लें।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
त्रिभुवन कीर्ति रस की खुराक : Dosage of Tribhuvan Kirti Ras
एक-दो गोली दिन में दो तीन बार
अनुपान :
अदरक स्वरस और मधु , केवल मधु (शहद) अथवा उष्णोदक
त्रिभुवन कीर्ति रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Tribhuvan Kirti Ras in Hindi
वात कफज ज्वर में त्रिभुवन कीर्ति रस का उपयोग फायदेमंद
ज्वर रोगियों में सबसे अधिक संख्या वात कफज ज्वरों की ही होती है, प्रतिश्याय, शीत लग जाने, उर्ध्व जत्रु (धड़ के ऊपरी भाग में गले के नीचे और छाती के ऊपर दोनों ओर की अर्द्ध-चंद्राकार हड्डियाँ) के रोगों के कारण होने वाले ज्वर, वात कफज ही होते हैं, इन सभी प्रकार के ज्वरों में त्रिभुवन कीर्ती रस एक अव्यर्थ औषधि है। इस महौषधि की एक गोली मधु तुलसी स्वरस, मधु अदरक स्वरस. मधु या उष्णोदक से देने से एक घण्टे के भीतर ही ज्वर उतरने लगता है, वेदनाएँ शान्त हो जाती हैं, स्वेद आने लगता है।तीन से चार घण्टे में औषधि का पुन: सेवन करवा देने से दो से तीन दिन में ज्वर से मुक्ति मिल जाती है।
सहायक औषधीयों में सितोपलादि चूर्ण, प्रवाल भस्म ,मुंगशृङ्ग भस्म इत्यादि का प्रयोग करवाना ठीक रहता है। पित्तज ज्वर, मलेरिया ज्वर, एवं आंत्रिक ज्वर में इस रस का उपयोग नहीं होता।
सन्निपात में त्रिभुवन कीर्ति रस से फायदा
(सन्निपातज = वैद्यक मे ज्वर की एक अवस्था जिसमें कफ, पित्त और वात एक साथ कुपित होकर बहुत उग्र रूप धारण कर लेते हैं)
सन्निपातज-तन्द्रा, कफाधिक्य, ज्वर, ज्वर की अनियमितता (कभी कम, कभी अधिक) स्वेदाभाव इत्यादि, वात कफ प्रधान अवस्थाओं में त्रिभुवन कीर्ती रस आर्द्रक स्वरस-मधु, तुलसी स्वरस-मधु से देने से रोगी की तन्द्रा भंग हो जाती है, ज्वर स्थिर हो जाता है, परन्तु सन्निपात में किसी एक ही औषधि पर निर्भर करना बुद्धिमानी नहीं होती, कस्तूरी भैरव, कल्पतरुरस, जीवनान्दाभ्र इत्यादि औषधियों की सहायता अवश्य लेनी चाहिये। बिल्वादि पंच मूल क्वाथ, दशमूल क्वाथ, कटफलादि क्वाथ का भी प्रयोग करना चाहिये, वैसे भी सन्निपात की चिकित्सा प्रत्येक वैद्य के वश की बात नहीं, प्रबुद्ध एवं निष्नात वैद्य जिन्होंने शास्त्र का विधिवत् अध्ययन किया है और जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से सन्निपात की चिकित्सा का अनुभव हो को ही सन्निपात के रोगी को चिकित्सा में लेना चाहिये।
पोलियो मायलायटिस में लाभकारी त्रिभुवन कीर्ति रस
पोलियो मायलायटिस एवं पक्षाघात या अर्धाग घात दोनों रोगों के लक्षण समान होते हैं । शरीर के एक भाग अथवा एक अंग, जंघा, बाहू नेत्र, जिह्वा, अथवा मेरुदण्ड का घात (क्रिया शक्ति नष्ट) हो जाता है, अन्तर केवल इतना होता है कि पक्षाघात प्रौढ़ लोगों को होता है, और पोलियों शिशुओं को, क्वचिद् 15 वर्ष तक के किशोरों को भी। आयुर्वेद की दृष्टि से एक अन्तर और भी है। पक्षाघात में वात विकृति मुख्य होती है और कफ-विकृति गौण और पोलियो मायलायटिस में कफ विकृति मुख्य होती है और वात विकृति गौण ।
प्रौढ़वस्था और वृद्धावस्था में स्वभाविक वात वृद्धि होती है, उस समय यदि कफ की वृद्धि हो तो वह रोगोत्पत्ती न करके वात का शमन करेंगी अतः कफ की वृद्धि से वृद्धावस्था में केवल उर्ध्वजत्रु रोगों की सम्भावना हो सकती है, पक्षाघात जैसे रोग की नहीं। वृद्धावस्था में वात कफोत्थ उर्ध्व जत्रुरोगों में ‘त्रिभुवन कीर्तिरस’ एक सफल औषधि प्रमाणित होती है । परन्तु पक्षाघात, अर्धाङ्ग घात एवं अर्दित जैसे वात वृद्धि जन्य रोगों में इसका प्रयोग नहीं होता। इसके विरुद्ध वाल्यकाल में जब शरीर में स्वभाविक रूप से कफ की वृद्धि होती है, उस समय कफ की और अधिक वृद्धि होती है तो वह कफ शिशु/किशोर के संज्ञा वाही स्रोतों का अवरोध करके पक्षाघात जैसी स्थिति का निर्माण कर देती है, उस समय वात-कफ नाशक, आम नाशक, स्रोतोविशोधक, उष्ण तीक्ष्ण रुक्ष गुण युक्त, ‘त्रिभुवन कीर्ती रस’ तुलसी स्वरस मधु, अदरक स्वरस मधु, अथवा केवल मधु के साथ सेवन करवाने से आशातीत लाभप्रद सिद्ध होता है।
शिशु की आयु के अनुसार मात्रा निर्धारित करके इस महौषधि का तत्काल प्रयोग एक सप्ताह के भीतर शिशु को रोग मुक्त कर देता है। लाभ होने पर भी तीन से छ: सप्ताह तक चिकित्सा देते रहना और एक वर्ष तक पथ्य पालन आवश्यक है ।
सहायक औषधियों में कल्प तरु रस (भ्रा.प्र.) श्वासकास चिन्तामणि रस,श्वास कुठार रस, वहद्वात चिन्तामणि रस, योगेन्द्र रस प्रभृति की योजना, आवश्यकता पड़ने पर की जा सकती है।
टांसिल की सूजन दूर करने में त्रिभुवन कीर्ति रस फायदेमंद
गिलायु शोथ (टांसिल की सूजन) भी सामान्यत: बाल रोग ही है, व्यस्कों में क्वचिद ही मिलता है। इस रोग का कारण भी श्लेष्म (बलगम) वृद्धि ही होती है। बार-बार शोथ (सूजन) होना, कास (खाँसी), ज्वर, श्वास, प्रभृति लक्षण होते हैं, गले में वेदना, मुँह खुलवा कर टार्च की रोशनी में देखने से गले के दोनों ओर शोथ युक्त गिलायु प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होते हैं। वैसी परिस्थिति में आयु के अनुसार मात्रा निर्धारित करके, ‘त्रिभुवन कीर्ती रस’ का मधु, मधु अदरक स्वरस अथवा मधु तुलसी स्वरस के प्रयोग करवाने से दो दिन में गिलायु (tonsil) का शोथ उतरने लगता है। और पाँच से सात दिन के भीतर गिलायु सामान्य स्थिति में आ जाते हैं।
गिलायु शोथ के जीर्ण प्रकार में जिसमें गिलायुओं शोथ स्थाई हो जाता है, में त्रिभुवन कीर्ती रस को बीच-बीच में विराम देकर सेवन करवाना और सहायक औषधि के रूप में काँचनार गुग्गुलु या गण्डमाला कण्डण रस का प्रयोग पूर्ण लाभ देता है।
स्वच्छ जल में भिगोई तर्जनी पर सिद्धामृत योग लगाकर धीरे-धीरे थोड़ा सा जोर देकर गिलायुओं का विम्लापन करने से अतीव लाभ मिलता है। व्यस्कों एवं किशोरों को कण्टकारी क्वाथ का पान एवं गण्डूष धारण, करवाने से रोग निवृत्ति अतिशीघ्र होती है।
सहायक औषधियों में कल्पतरु रस, चन्द्रशेखर रस, कांचनार गुग्गुलु, गण्डमाला कण्डण रस, किशोर गुग्गुलु, सिद्धामृत योग की सहायता अवश्य लेनी चाहिये । 100 मि.ग्रा. से 500 मि.ग्रा. तक आयु के अनुसार सिद्धामृत योग को एक चम्मच चीनी में मिलाकर रोगी को चूसने दें। अथवा मधु में मिलाकर चटाने से भी लाभ होता है।
( और पढ़े – टॉन्सिल बढ़ने का घरेलू इलाज )
सोम रोग मिटाए त्रिभुवन कीर्ति रस का उपयोग
यह रोग प्रजननाङ्गों के जीर्ण शोथ का परिणाम है, अंगमर्द (हड्डियों में दर्द होना), शिरो गौरव ( सिर भारी जैसा महसूस होना) , क्वचिद् कटिग्रह (कमरदर्द) एवं योनी से जलवत् स्राव इसका लक्षण है। यह स्राव पिच्छिल (चिकना) नहीं होता न ही इसमें दुर्गन्ध होती है, स्त्री को इससे कोई कष्ट भी नहीं होता, परन्तु अधो अन्तः वस्त्र का गीलापन स्त्री को अस्वस्थ्य होने की अनुभूती करवाता रहता है ।
यह रोग प्रायशः प्रौदा एवं सौभाग्य वती स्त्रीयों का है। परन्तु कभी-कभी उपरोक्त अवस्था अविवाहित कन्याओं में भी दृष्टिगोचर होती है, इनकी आयु दस से सोलह वर्ष गौर वर्ण एवं स्वभाव कोमल होता है। ऐसी कन्याओं को ‘त्रिभुवन कीर्ती रस’ एक दो गोली प्रातः सायं मधु या उष्णोदक से सेवन करवाने पर एक सप्ताह में उक्त लक्षण समाप्त हो जाते हैं, सोलह से तीस वर्ष की आयु की सौभाग्यवती महिलाओं में उपरोक्त लक्षण हों और श्वेत प्रदर की चिकित्सा से लाभ न हो रहा तो ‘त्रिभुवन कीर्ती रस’ का प्रयोग अवश्य करवाएँ आपके यश में वृद्धि होगी। उपरोक्त आयु की महिलाओं में जो स्थूल, सुन्दर गौरवर्ण की एवं कोमल हों में किसी भी स्राव: स्तन्य, मूत्र, योनी स्राव, लालास्राव ( मुँह से लार बहना) हो तो त्रिभुवन कीर्ती रस का प्रयोग अवश्य कीजिए।
अंग विशेष का संज्ञा अल्पत्व दूर करने में त्रिभुवन कीर्ति रस फायदेमंद
अत्यन्त कम संख्या में महिलाओं में जाँघ अथवा बाहों में संज्ञा का अभाव हो जाता है, रुग्णा चलने में लंगड़ाती है। उसके हाथ से वर्तन गिर जाते हैं हाथ की ग्रहण शक्ति कम हो जाती है, मंदाग्नि, लाला स्राव, निद्राधिक्य, अरुचि इत्यादि लक्षण भी मिलते हैं। ऐसी महिलाओं में विकृत कफ के कारण स्रोतों वरोध होकर संज्ञाल्पत्व होता है। ऐसी अवस्था में त्रिभुवन कीर्तीरस, दो दो गोली प्रातः सायं उष्णोदक से देने से एक सप्ताह में अंग पुनः सक्रिय हो जाता है, कफकृत अवरोध समाप्त हो जाता है।
स्रावाधिक्य मिटाता है त्रिभुवन कीर्ति रस
स्तन्य (माता का दूध), मूत्र, लाला स्राव (लार) , एवं योनी पथ से होने वाले स्राव भी श्लेष्मा (बलगम) का ही परिवर्तित रूप होते हैं, अत: तीक्ष्ण, उष्ण, रुक्ष गुणों के कारण त्रिभुवन कीर्तो रस श्लेष्मा को सुखा कर स्रावों को सुखा देता है, जिससे रोग भी समाप्त हो जाते हैं।
त्रिभुवन कीर्ति रस के प्रयोग से दूर करे मोटापा
कफ प्रकृति की महिलाओं में मोटापा (स्थौल्य) की चिकित्सा में कठिनाई आती है, कारण, चिकित्सक अपना ध्यान केवल मेद धातु पर केंद्रित रखते हैं परन्तु कफोत्पत्ती को रोकने का कोई उपाय नहीं करते। प्रायशः समझ लिया जाता है कि मेदनाशक औषधियाँ कफ नाशक भी होती है, प्रतिफल ऐसा आता है, कि मेदनाशक औषधि मेदो वह स्रोतस पर कार्य करके संचित मेद का नाश तो करती है, परन्तु कफ प्रकृति के कारण रोगी के द्वारा ग्रहण किए अन्न से श्लेष्म निर्माण सतत् होता रहता है। मेदनाशक औषधियों का कार्य क्षेत्र आमाशय नहीं होता। आमाशय द्वारा कफोत्पत्ती को वाधित करने के लिए त्रिभुवन कीर्तो रस एक गोली प्रात: दोपहर सायं प्रत्येक भोजन के आधे घण्टे बाद उष्ण जल से देने से कफ की उत्पत्ती रुक जाने के कारण सम्प्राप्ति भंग हो जाने से मेदोत्पत्ती का स्रोत बन्द हो जाता है और स्थौल्य की चिकित्सा में प्रगति होती है।
सहायक औषधियों में अग्निकुमार रस, चन्द्र शेखर रस एवं आरोग्यवर्धिनी वटी का प्रयोग भी करवायें।
दाढ़ की सूजन (पाषाण गर्दभ) सूजन मिटाता है त्रिभुवन कीर्ति रस
पाषाण गर्दभ रोग (दाढ़ सूजने का रोग) भी प्रायशः बालरोग है, 5 से दस वर्ष के स्कूल जाने वाले बच्चों में और क्वचिद् 25 वर्ष के किशोरों में भी पाया जाता है। कर्णमूल के नीचे हनुसन्धि पर पाषाणवत् कठिन शोथ, मन्द ज्वर, निगरण कष्ट, कभीकभी कास भी हो जाती है, प्रायश: बच्चों को चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती रोग सात दिनों के भीतर स्वतः समाप्त हो जाता है। इस रोग को आधुनिक चिकित्सा शास्त्री विषाणजन्य रोग मानते हैं। रोग का सात दिनों के भीतर स्वतः समाप्त हो जाना उनके कथन की पुष्टि भी करता है। कुछ एक बच्चों को जिनको ज्वर अधिक हो जाता है। चिकित्सा की आवश्यकता पड़ती है उन्हें त्रिभुवनकीर्ती रस मधु से दिन में तीन बार देने से ज्वर उतर जाता है। हनुसन्धि एवं सर्वाङ्ग वेदनाएँ समाप्त हो जाती हैं, शोथ भी धीरे-धीरे उतर जाता है।
सहायक औषधियों में नारदीय लक्ष्मीविलास रस, कल्पतरुरस, किशोर गुग्गुल एवं दशाङ्ग लेप का प्रयोग भी आवश्यकतानुसार अवश्य करना चाहिए।
त्रिभुवन कीर्ति रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Tribhuvan Kirti Ras Side Effects in Hindi
- त्रिभुवन कीर्ति रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- कुछ लोगों को (.01%) को ‘त्रिभुवन कीर्ती रस’ के सेवन से घबराहट, शीत स्वेद (पसीना) आने लगते हैं रक्त चाप सहसा गिर जाता है, सिर घूमने लगता है, हृदय की गति मन्द हो जाती है। अत: इस रस का प्रयोग करते समय प्रथम दो तीन मात्राएँ 50 मि.ग्रा. की देनी चाहिये, औषधि की ग्राहकता सुनिश्चित होने पर ही पूर्ण मात्रा दें।
- जिन रोगियों में पित्त विकृति के लक्षण, ओष (जलन), चोष (एक प्रकार का रोग जिसमें रोगी को बगल में ऐसी जलन मालूम होती है कि मानो उसके आसपास आग जलती हो) , दाह, नेत्र, मूत्र पीतता अथवा रक्तता एवं तीव्र ज्वर हो वहाँ भी इसे अत्यन्त सावधानी पूर्वक देना चाहिये, अन्यथा पित्त वृद्धि होकर आत्यायिकता उत्पन्न हो जाती है ।
- त्रिभुवन कीर्ती की कुछ लोगों में एक और प्रतिक्रिया होती है, अम्ल पित्त, पित्त प्रकृति के रोगियों में इस रस के सेवन से ‘अम्ल पित्त’ हो जाता है अत: इस के प्रयोग से पूर्व अम्लपित्त का इतिहास तो नहीं है इसकी जानकारी अवश्य ले लेनी चाहिए। अम्ल पित्त की अवस्था में इसका प्रयोग नहीं होता। अत्यावश्यक हो तो साथ में प्रवालपिष्टि मिला देनी चाहिए।
दोषों को दूर करने के लिए :
वृहत् कस्तूरी भैरव रस 100 मि.ग्रा. मधु से चटा दें और मृत सञ्जीवनी सुरा 10-15 मि.लि. पिला दें। अथवा हिंगु कर्पूर वटी 100 मि.ग्रा. की दो चार मात्राएँ देने से हृदय सबल हो जाता है, पसीने आने बन्द हो जाते हैं । रक्त चाप सामान्य हो जाता है। अम्ल पित्त की अवस्था में प्रवालपिष्टि, कामदुधा रस, अविपत्तिकर चूर्ण का प्रयोग करना चाहिये।
त्रिभुवन कीर्ति रस का मूल्य : Tribhuvan Kirti Ras Price
- Baidyanath TRIBHUVANKIRTI RAS, (80 Tab) – Rs 96
- Patanjali TRIBHUVANKIRTI RAS (40 Tab) – Rs 40
- Zandu Tribhuvan Kirti Ras (40 Tab) – Rs 50
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