Last Updated on July 23, 2021 by admin
मोतीझरा अथवा मियादी बुखार (टाइफाइड) या इन्टेरिक फीवर (Enteric Fever) से प्राय: सभी लोग परिचित हैं। यह एक लम्बे समय तक परेशान करनेवाला ऐसा बुखार है जो व्यक्ति को कमजोर और चिड़चिड़ा बना देता है। यह रोग एस. टायफी या पेराटायफी नामक रोगाणुओं द्वारा फैलता है, जो मल-मूत्र द्वारा दूषित भोजन या पानी द्वारा मनुष्यों में पहुँच जाते हैं। और इसके कारण बनते हैं स्वयं के गन्दे हाथ या मक्खियाँ। लोग इस बुखार से आसानी से बच सकते हैं। अत: इस रोग की जानकारी होना अत्यन्त जरूरी है।
मोतीझरा (टाइफाइड) रोग की विश्व में स्थिति :
यह रोग विश्व के उन देशों में पाया जाता है जहाँ मल-मूत्र और गन्दगी के सही निष्कासन की व्यवस्था नहीं है अथवा पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं होता है। जबकि विकसित देशों में जैसे ब्रिटेन में प्रति दस लाख की आबादी पर मात्र 1 रोगी पाया गया है। पूरे विश्व में लगभग 60 लाख व्यक्ति रोग से ग्रसित होते हैं, 6 लाख के ऊपर रोगी मर जाते हैं। एक और गम्भीर बात यह है कि आजकल 50 प्रतिशत रोगियों में जीवाणु प्रतिरोधक दवाइयाँ असर नहीं कर रही हैं क्योंकि जीवाणुओं ने इन दवाइयों के प्रति, प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है।
भारत में रोग की स्थिति –
देश में प्रतिवर्ष लगभग 4 लाख लोग इस रोग से प्रभावित होते हैं। वर्ष 1995 में टाइफाइड से ग्रसित 329499 रोगियों का पता लगा जिनमें से 672 रोगियों की मृत्यु हो गई। भारत के शहरी क्षेत्रों में अध्ययन के दौरान 17 वर्ष के नीचे के लगभग 1 प्रतिशत बच्चे रोग से प्रभावित पाए गए। इस तरह हमारे देश में भी टाइफाइड या मियादी बुखार के रोगियों की संख्या कम नहीं कही जा सकती है।
मोतीझरा (टाइफाइड) के कारण (Typhoid Fever Causes in Hindi)
कैसे होता है टाइफाइड बुखार ? :
1). रोग के कारक – जैसा कि बतलाया गया है इस रोग का प्रमुख कारक होता है – एस. टायफी नामक जीवाणु लेकिन इसके साथ ही सालमोनेला पैराटायफी ‘ए’ और ‘बी’ से भी पैराटाइफाइड बुखार आ सकता है। रोग के ये जीवाणु उबालने से या जीवाणुनाशक घोल से नष्ट हो जाते हैं।
सभी तरह के रोगाणुओं दवारा उत्पन्न बुखारों को (Enteric Fever) इन्टेरिक फीवर कहते हैं।
2). रोग का संग्राहक एवं वाहक – इस रोग का संग्राहक (Reservoir) एवं वाहक स्वयं मनुष्य ही होता है। उसके मल तथा मूत्र में भी रोग के जीवाणु मौजूद रहते हैं। और ये जीवाणु सावधानी एवं साफ-सफाई के अभाव में सम्पर्क में आनेवाले अन्य स्वस्थ व्यक्तियों को भी लम्बे समय तक रोग का शिकार बना सकते हैं। टाइफाइड से या पैराटाइफाइड रोग का शिकार रोगी बुखार आने के बाद 6 से 8 सप्ताह तक रोग के जीवाणु उत्सर्जित करता है। जबकि कुछ रोगी कुछमहीनों से लेकर कई वर्षों तक ये रोगाणु उत्सर्जित करते रहते हैं और लोगों को यह रोग बाँटते रहते हैं। इतिहास के पन्नों में एक ऐसा मामला भी पाया गया है जिसने अपने जीवन काल में 1300 स्वस्थ लोगों का टाइफाइड का शिकार बनाया। कुछ लोग तो इस रोगाणु के वाहक 50 वर्ष तक बने रहे।
3). बीमारी का स्रोत – प्राथमिक स्रोत बीमार या वाहक व्यक्ति का मल एवं मूत्र होते हैं। लेकिन
इसके अलावा दूषित जल, मक्खियाँ या मनुष्य की उँगलियों द्वारा भी रोग के जीवाणु एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं। रोग के जीवाणु दूषित दूध या अन्य खाद्य वस्तुओं में भी हो सकते हैं। यहाँ तक कि बर्फ और आइसक्रीम में भी ये जीवित रहते हैं।
टाइफाइड बुखार (मोतीझरा) किनको होता है ? :
यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है परन्तु 5 से 19 वर्ष की उम्र में अधिकतर होता है तथा स्त्रियों के बजाय पुरुष वर्ग में रोग ज्यादा पाया जाता है। शारीरिक रोग प्रतिरोधक शक्ति भी रोग के होने या न होने में भूमिका निभाती है। वैसे रोग पूरे वर्ष होता है लेकिन जुलाई से लेकर सितम्बर के महीनों, विशेषकर बरसात में टाइफाइड के अधिक रोगी पाए जाते हैं। इन दिनों मक्खियों की संख्या भी बढ़ जाती है।
अन्य स्थितियाँ –
देश में खुले मैदानों या खेतों में शौच जाने की प्रथा तथा पीने के पाइप गन्दी गलियों में से होकर जाने के कारण रोग अधिकतर फैलता है। हमारे यहाँ साग-भाजियों की गन्दगी ठीक से साफ न करने के कारण भी रोग होता है। सीधी सी बात है कि उचित साफ-सफाई (चाहे वह घरों की हो या व्यक्तिगत) के अभाव में रोग ज्यादा होता है। जब मक्खियाँ मल पर बैठकर पानी के बर्तनों या खाद्य पदार्थों पर बैठती हैं और ऐसे खादयों को लोग खाते हैं तो रोग हो जाता है। नाखूनों में मल पदार्थ लगा रह जाए तो भी रोग हो सकता है। आजकल गन्दे नालों के पानी से सब्जियाँ उगाई और धोई जाती हैं जो इस रोग का बड़ा कारण है।
रोग का उद्भव काल :
सामान्यत: शरीर में रोगाणुओं के प्रवेश के 10 से 14 दिन के भीतर रोग के लक्षण मिलने लगते हैं। कुछ स्थितियों में यह समय 2-3 दिन कम भी हो सकता है।
टाइफाइड बुखार (मोतीझरा) के लक्षण (Typhoid Fever Symptoms in Hindi)
टाइफाइड बुखार के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?
कुछ लक्षणों से मोतीझरा (टाइफाइड) का अंदाजा लगाया जा सकता है। जैसे –
- रोगी को तेज बुखार आता है, कँपकँपी या ठंड भी लग सकती है।
- साथ में हाथ-पैर दर्द, सिर दर्द, खाँसी जैसे लक्षण मिलते हैं। गले में दर्द या सूजन हो सकती है। 3. पेट में दर्द और कब्ज की शिकायत होती है। बाद में दस्त भी लग सकते हैं।
- 7 से 10 दिन में बुखार कम हो जाता है लेकिन रोगी काफी कमजोर हो जाता है। इस समय विडाल जाँच में टाइफाइड की पुष्टि हो जाती है।
- कभी-कभी दो सप्ताह पश्चात् टाइफाइड बुखार पुन: आ सकता है। यह तब होता है जब इलाज
सही न लिया जाए। - सीने और पेट पर गुलाबी दाने सरीखे दिखते हैं।
टाइफाइड बुखार की जटिलताएँ (Typhoid Fever Risk Factors in Hindi)
- लगभग 30 प्रतिशत मामलों में जब इलाज लगातार और पर्याप्त नहीं लिया जाता तो मोतीझरा या टाइफाइड रोग जटिल अवस्था में पहुँच जाता है। इस स्थिति में आँतों में छेद हो सकता है और मलद्वार से खून आ सकता है। ऐसी स्थिति में रोगी की मृत्यु सदमे (Shock) में जाने के कारण हो सकती है।
- अन्य जटिलताओं में निमोनिया, हृदय झिल्ली की सूजन एवं गुर्दो की सूजन इत्यादि है।
- रोगी अत्यन्त चिड़चिड़ा या पागल तक हो सकता है। अत: रोग का इलाज योग्य चिकित्सक से शीघ्र करवाना चाहिए। टाइफाइड को साधारण रोग समझकर इसके इलाज के प्रति लापरवाही नहीं बरतना चाहिए।
टाइफाइड बुखार की जाँच (Diagnosis of Typhoid Fever in Hindi)
टाइफाइड बुखार का परीक्षण कैसे किया जाता है ?
रोग की जाँच आसानी से हो जाती है। लेकिन प्राय: जाँच के परिणाम सात दिन के पश्चात् ही धनात्मक मिलते हैं। टाइफाइड के लिए विडाल नामक जाँच की जाती है। साथ ही इस रोग में रक्त के श्वेत रक्ताणु की संख्या कम हो जाती है। इसलिए इनकी संख्या भी पैथोलॉजिस्ट अपनी जाँच में देखते हैं। फिर चिकित्सक रिपोर्ट देखकर इलाज लिखते हैं।
बुखार को अच्छे थर्मामीटर द्वारा दिन में कई बार नापकर भी, एक सीमा तक टाइफाइड बुखार की सम्भावना का पता चिकित्सक लगा लेते हैं।
कल्चर (Culture) अच्छी पैथोलॉजी में मल एवं रक्त के कल्चर द्वारा भी चिकित्सक रोग की पहचान निश्चित करते हैं।
( और पढ़े – टाइफाइड का आयुर्वेदिक घरेलू इलाज )
टाइफाइड बुखार पर नियंत्रण (Control of Typhoid Feve in Hindi)
टाइफाइड बुखार का रोकथाम कैसे करें ?
थोड़ी सी सावधानियाँ रखकर इस बुखार पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि परिवार के किसी सदस्य को यह बीमारी होती है तो हमें प्रयास यह करना चाहिए कि घर-परिवार के अन्य सदस्यों या साथ उठने-बैठने वालों में न फैले। रोग के नियंत्रण अथवा रोकथाम के लिए तीन तरीके अपनाते हैं –
1). संग्राहक (Reservoir) पर नियंत्रण – इसके लिए शीघ्र रोग की पहचान जरूरी है ताकि रोग के संवाहक रोगी से सावधानियाँ बरती जा सकें। रोगी को अस्पताल में भर्ती करवाकर इलाज देना बेहतर रहता है। यदि यह सम्भव न हो तो घर पर ही उसे अलग रखने का प्रयास करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि उसे पूरी मात्रा में पर्याप्त समय तक दवाइयाँ खिलाई जाएँ। रोगी के मल-मूत्र के सम्पर्क से बचने के लिए विशेष सावधानियाँ रखी जाएँ।
इलाज : आजकल इस रोग पर नियंत्रण के लिए अच्छे एंटीबायोटिक्स उपलब्ध हैं। पूर्व में प्रचलित क्लोरेमफेनीकाल तो रोग में असरकारक है ही अब सिप्रोफ्ला-क्सेसिन, एमाक्सीसिलिन, कोट्राइमेक्साजोल इत्यादि दवाइयाँ भी उपलब्ध हैं। इलाज बहुत महँगा भी नहीं है। लेकिन अब शरीर पर कुप्रभाव के कारण क्लोरेमफेनीकाल दवा नहीं दी जाती है।
2). संवाहक पर नियंत्रण – रोग के संवाहक (Carriers) के मल-मूत्र या रक्त की जाँच कर उसकी पहचान की जाती है फिर उसे पर्याप्त मात्रा में एम्पीसिलिन अथवा अन्य रोग प्रतिरोधी दवाएँ खिलाते हैं ताकि रोग के जीवाणु खत्म हो जाएँ और वह टाइफाइड रोग को दूसरे व्यक्तियों में न फैला सके।
व्यक्तिगत साफ-सफाई सम्बन्धित शिक्षा भी उसे दी जाती है। उदाहरणार्थ-नाखून काटना, खाने के पूर्व अच्छे से हाथ साफ करना, खुले स्थानों में शौच न जाना। सम्भव हो तो प्रत्येक घर में सेप्टिक टैंक वाला पक्का शौचालय बनवाना चाहिए। टंकी नालियों द्वारा गन्दगी के निष्कासन की व्यवस्था भी होना चाहिए। पेयजल और भोजन की शुद्धता पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। क्योंकि यदि भोजन-पानी आदि टाइफाइड के जीवाणुओं युक्त होगा तो ऐसी स्थिति में रोग को फैलने से रोकना असम्भव है।
3). टीकाकरण (Immunisation) – यह कुछ सन्तोष की बात है कि आज रोग से बचाव के लिए उसके टीके उपलब्ध हैं। लेकिन टीकाकरण रोग से 100 प्रतिशत सुरक्षा नहीं देता है। तब भी जिन क्षेत्रों में रोग फैल रहा हो या रोगी के परिवारवालों को ये टीके लगवा लेना चाहिए।
टाइफाइड बुखार के लिए टीके (Vaccines for Typhoid Fever in Hindi)
आजकल तीन प्रकार के टीके उपलब्ध हैं। ये टीके हमारे देश में भी प्राप्त हो सकते हैं –
- मोनोवेलेंट टीका,
- बाइवेलेंट टीका,
- टी.ए.बी. (T.A.B.) टीका
आजकल यह वैक्सीन विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगाने की सलाह नहीं दी जाती है।
मात्रा: वैक्सीन की दो खुराक त्वचा में इंजेक्शन द्वारा दी जाती हैं। दो मात्राओं के मध्य 4 से 6 सप्ताह का अन्तर रखा जाता है। बच्चों (1 से 10 साल तक) को 0.5 मि.ली. की बजाय 0.25 मि.ली. अर्थात् आधी खुराक देते हैं।
टीका तीन वर्ष तक रोग से रक्षा करता है, तीन वर्ष बाद इसे पुन: लगवाना होता है। इसे टीके की प्रभावी मात्रा या बूस्टर डोज कहते हैं।
आजकल पोलियो वैक्सीन की तरह मुँह द्वारा ली जानेवाली टाइफाइड वैक्सीन भी विकसित की गई है। विश्व के पहचान देशों में कैप्सूल के रूप में भी एक विशेष वैक्सीन आई है।
टीकाकरण के मामले में अपने डॉक्टर की सलाह लेना उचित होता है। आजकल ये टीके निजी चिकित्सालयों में भी लगाए जाते हैं।