Last Updated on March 4, 2020 by admin
वाराही कंद क्या है ? : What is Varahi Kand in Hindi
आयुर्वेद की प्राचीन संहिता ग्रन्थों में ‘आलुक’ का उल्लेख मिलता है। यह आलुक आज के प्रसिद्ध शाक द्रव्य आलू से भिन्न हैं। परन्तु इस आलू के समान ही कन्द विशेष है। सुश्रुत संहिता में इस आलुक के कई भेदों का वर्णन मिलता है। ये आलुक के भेद वानस्पतिक दृष्टि से ही वाराही कुल की प्रजातियां (Dioscorea Species) हैं।
सुश्रुत संहिता में वर्णित आलुक के अनेक भेदों में एक भेद है- रक्तालुक’।इसकी लता होती है जिसका कन्द वाराही कंद नाम से जाना जाता है। इस कंद को बाराह (सूअर) बड़े चाव से खाते हैं। इसका आकार वाराह के सिर जैसा होता है और इस पर बाराह जैसे कठोर बाल (रोम) पाये जाते हैं। इसलिये इसे वाराही कन्द कहते हैं। इस वाराही कन्द को वैद्य लोग मुख्यत: बल्य रूप में व्यवहृत करते हैं।
वाराही कंद का पौधा (बेल) कैसा होता है ?:
वाराही कंद की आरोहिणी वामावर्त लता होती है।
वाराही कंद का काण्ड – काण्ड चिकने होते हैं जिनके पत्रकोषों में लगभग एक इंच व्यास के कन्द समान उभार होते हैं।
वाराही कंद का पत्ता (पत्र) – पत्र कल्क के दोनों ओर ताम्बूल पत्र जैसे लगते हैं। ये पत्र नवीन (कोमल) होने पर लाल रंग के होते हैं जो बाद में कुछ पीले रंग के हो जाते हैं। पत्र प्रायः 2-6 इंच लम्बे, पतले, तीक्ष्णाग्र, लट्वाकार-हृदयाकार होते हैं। पत्राधार पर 9 सिरायें होती हैं।
वाराही कंद का फूल (पुष्प) – नर पुष्प की मंजरी 4-10 इंच लम्बी होती है। इनमें नरपुष्पों की मंजरियां नीचे की ओर झुकी रहती हैं। इन मंजरियों में पुष्प छोटे-छोटे पीतवर्ण या श्वेतवर्ण के लगते हैं। ये शरद ऋतु के अन्त तक विकसित होते हैं। कहीं-कहीं जेष्ठ मांस में भी पुष्प आते हैं। इन पुष्पों से रात्रि में अधिक सुगन्ध आती है।
वाराही कंद का फल – इसके कंद छोटे आकार के व भूरे रंग के होते हैं। ये कंद एक ओर से मोटे तथा दूसरी ओर से पतले होते हैं। इन पर सूअर के बालों जैसे दृढ़, सघन लम्बे लोम होते हैं। इसे काटने पर भीतर पीताभ श्वेत होता है। यह तिक्त जाति का कन्द है। इसका छिलका खुरदरा और मोटा होता है।
वाराही कंद के प्रकार :
वाराही कन्द की अनेक जातियां हैं। ये प्रजातियां 160 प्रकार की निर्दिष्ट हैं किन्तु उनमें 10 प्रजातियां भारत में ही होती हैं। उनमें भी मुख्यतः 4-5 प्रजातियां ही उगायी जाती हैं। जो सर्वाधिक जाति उपलब्ध होती है और प्रयोग में लायी जाती हैं उसका ही यहां पर अपेक्षित वर्णन किया जा रहा है।
वाराही कंद का पौधा (बेल) कहाँ पाया जाता है ? :
वाराही कंद की लता हिमालय प्रदेश में 6 हजार फुट की ऊंचाई तक पायी जाती है। देहरादून और सहारनपुर के जंगलों में भी यह लता पायी जाती है। क्वचित म.प्र. के जंगलों में भी यह मिल जाती है।
वाराही कंद का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Varahi Kand in Different Languages
Varahi Kand in –
- संस्कृत (Sanskrit) – वाराही कन्द, वराह कन्द।
- हिन्दी (Hindi) – बराही कन्द, कड़वा कन्द ।
- गुजराती (Gujarati) – डुक्कर कंद।,
- मराठी (Marathi) – कुकर कन्द ।
- लैटिन (Latin) – डायस्कोरिया बल्विफेरा, (Dioscorea Bulbifera Linn)
वाराही कंद का रासायनिक विश्लेषण : Varahi Kand Chemical Constituents
वाराही कंद के कन्द में स्टॉर्च प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा लता में एक विषैला ग्लुकोसाइड होता है।
वाराही कंद का उपयोगी भाग : Useful Parts of Varahi Kand in Hindi
कन्द
सेवन की मात्रा :
चूर्ण – 3 से 6 ग्राम
वाराही कंद के औषधीय गुण : Varahi Kand ke Gun in Hindi
रस – कटु, तिक्त, मधुर,
गुण – लघु, स्निग्ध।
वीर्य – उष्ण।
विपाक – कटु।
दोषकर्म – त्रिदोषहर
अन्य कर्म – बल्य, रसायन, दीपन, अनुलोमन, कृमिघ्न, वृष्य, कुष्ठघ्न, रक्तशोधक, प्रमेहघ्न और व्रणरोपण।
वाराही कंद के फायदे और उपयोग : Uses and Benefits of Varahi Kand in Hindi
- व्रणरोपणार्थ इस कंद से सिद्ध तैल को उपयोग में लाया जाता है। यह सिद्ध तैल नाड़ी व्रण में विशेष उपयोगी है।
- अग्निमांद्य, उदरशूल, कृमिरोग, कुष्ठ, उपदंश, रक्तविकार, गण्डमाला आदि में इसे उचित अनुपान के साथ देना चाहिये।
- वाराही कंद को अधिकतर बल वीर्य वृद्धि एवं रसायन के लिये उपयोग में लाया जाता है।
- कन्द चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर 6-6 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से वीर्यदोष दूर होकर वीर्य वृद्धि होती है। अधिक लाभ के लिये वाराहीकन्द और भृगराज चूर्ण को समान मात्रा में लेकर उसे पहले घी में थोड़ा-थोड़ा भूनकर फिर बराबर मिश्री मिलाकर 5-10 ग्राम सेवन कर ऊपर दूध पीना चाहिये। बाजीकरण हेतु इसका पाक बनाकर सेवन किया जा सकता है। इन दोनों के चूर्ण घी में सेक कर दूध शक्कर मिलकर हलवा बनाकर भी खाया जा सकता है।
- गदनिग्रहकार ने इसके रसायन प्रयोगों का उल्लेख किया है – कन्द का बारीक चूर्ण तैयार कर उसमें दूध मिलाकर पकावें तथा उसका दही जमाकर घी निकाल लें, यह घृत 10 ग्राम और शहद 20 ग्राम मिलाकर सेवन करें। एक माह तक इसे इस प्रकार सेवन करना चाहिये। इससे बलवीर्य की वृद्धि होकर चेहरे पर निखार आता है। यह उत्तम रसायन प्रयोग है।
- वाराही कंद के चूर्ण को मधु से मिलाकर सेवन करने के पश्चात दूध पीने से भी उत्तम लाभ होता है। रसायन हेतु इसका 1-2 माह तक विधि पूर्वक सेवन करना चाहिये। आहार में दूध, भात, घी का सेवन करना चाहिये।
वाराही कंद के विशिष्ट योग :
बाजीकरण पाक (बनाने की विधि और फायदे) –
वाराही कंद, सूखा सिंघाड़ा और कसेरु प्रत्येक का चूर्ण 500 – 500 ग्राम लेकर सबको दो किलो घृत में मिला मंद अग्नि पर चढावें । जब चूर्ण कुछ लाल हो जाये तब नीचे उतार उसमें नागकेशर, वंशलोचन, पीपल, तज और लोंग का चूर्ण 50 – 50 ग्राम लेकर घृत में भून लें, फिर उसमें 2 लीटर दूध मिलाकर पकावें (अथवा – बाराहीकंद और सिंघाड़े के चूर्ण को प्रथम दूध में खोया बनाकर उसे घृत में भून लें, जब खाया सा हो जाय तब उसमें लौग, जायफल, पीपल और नागकेशर का चूर्ण 12 – 12 ग्राम अच्छी तरह मिला दें। फिर एक किलो ग्राम मिश्री की चाशनी में मिला पाक जमा दें।
इस पाक को 10-10 ग्राम की मात्रा में प्रातः सेवन करने से बल-वीर्य की वृद्धि होकर कामोत्तेजना बढ़ती हैं । (- रस प्रकाश सुधाकर)
रति विनोद पाक (बनाने की विधि और फायदे)-
बाराहीकंद, सूखा सिंघाड़ा और कसेरु प्रत्येक का चूर्ण 500 – 500 ग्राम लेकर सबको दो किलो घृत मिला मंद अग्नि पर चढ़ावें। जब चूर्ण कुछ लाल हो जाय तब नीचे उतारकर उसमें नागकेशर, वंशलोचन, पीपल, तज और लोंग का चूर्ण 50 – 50 ग्राम चूर्ण अच्छी तरह मिला दें। फिर 3 किलो 500 ग्राम शक्कर की चाशनी में सबको मिलाकर पाक जमा दें। यह पाक 15 ग्राम से 30 ग्राम तक सेवन कर ऊपर से दुग्ध पान करें। इससे बल-वीर्य बढ़ता है। नपुंसकता दूर होती है। स्तम्भन शक्ति बढ़ती है तथा शुक्रमेह, बहुमूत्र, सोमरोग, रक्तप्रदर आदि दूर होते हैं। (-वृ. पाक संग्रह)
विशेष – यह पहले लिखा जा चुका है कि – वाराहीकन्द की अनेक उपजातियां होती हैं।
बलवन्तसिंह जी ने बाराहीकंद के प्रसंग में लिखा है कि – बाराहीकंद लताजाति की कई उपजातियां उत्तराखण्ड में मिलती हैं। इनमें कुछ की पत्तियां साधारण और कुछ की करतलाकार संयुक्त होती हैं। Belophylla Voigt के कंद का तुरार के नाम से देहरादून में शाकार्थ (रसोई में) उपयोग होता है। इसकी लता दक्षिणावर्त और पत्तियां साधारण होती हैं। कालसी (देहरादून से लगभग 56 किलोमीटर दूर) में यह बहुत पाई जाती है।
भावमिश्र और कैयदेव आदि ने वाराही कंद और गृष्टि को एक मानते हुये (वाराही गृष्टि रुच्यते) कहा है कि पश्चिमी देश में बाराहीकंद को गृष्टि कहा जाता है। वस्तुतः वाराही कंद और गृष्टि दोनों पृथक हैं। वनौषधि विशेषांक (धन्वन्तरि) में आचार्य श्री कृष्ण प्रसाद त्रिवेदी ने इस पर विस्तृत चर्चा प्रस्तुत की है। गृष्टि को गेंठी, आरेठाशाक, ऋषिभोजन, गिठी, क्रिस आदि नामों से लोक में जाना जाता है। इसका लैटिन नाम Dioscorea Deltoidea Wall है।
सुश्रुतोक्त महातिक्त घृत में गृष्टि का उल्लेख मिलता है। प्राचीन काल में ऋषिगण इसे खाकर ही पूर्ण भोजन का काम लेते थे। इसमें स्टॉर्च अधिक होता है अत: प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इसका स्टॉर्च चावल तथा मक्का के स्टॉर्च से पर्याप्त मिलता जुलता है। कई स्थानों पर इस कन्द को शाक की जगह उपयोग करते हैं। भगवान बुद्ध भी इस कन्द को पथ्य रूप में सेवन करते थे। भोजन के रूप में इसे सेवन करने से पहले रातभर इसे राख या पानी में भिगोकर रखा जाता है।
इस कन्द पर वाराही कंद की तरह रोम नहीं ‘होते, गृष्टिका कन्द वृक्काकार गोल व चिपटा होता है जबकि वाराहीकन्द की आकृति सूअर के मस्तक जैसी ऊपर सख्त लोम युक्त होती है। गृष्टिका कन्द अन्दर से पीला और वाराहीकन्द अन्दर से सफेद, लाल निकलता है। वाराही कंद स्वाद में कड़वा होता है जबकि गृष्टिकन्द मधुर होता है। अतः इसका शाक स्वादिष्ट बनता है।
वाराही कंद के दुष्प्रभाव : Varahi Kand ke Nuksan in Hindi
- वाराही कंद लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- वाराही कंद उन व्यक्तियों के लिए सुरक्षित है जो इसका सेवन चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार करते हैं।
वाराही कंद का मूल्य : Varahi Kand Price
- Naturmed’s Varahikand/Yam Powder Jar (200 g) – Rs 247
- Varahikand -Dioscorea Bulbifera – Air Potato-Varahi-kand (Sanskrit: वराहीकन्द)- Bitter Yam – Cheekyyam – Potato Yam (1 Kg) – Rs 430
कहां से खरीदें :