Last Updated on March 14, 2021 by admin
वरुणादि लौह क्या है ? (What is Varunadi Loh in Hindi)
वरुणादि लौह टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग गुर्दे की पथरी, मूत्र मार्ग का संक्रमण तथा जलन, मूत्र की रुकावट के कारण पीड़ा, किडनी फेल्युअयर, बहुमूत्रता आदी रोगों के उपचार में किया जाता है ।
यह आयुर्वेदिक औषधि गुर्दे की पथरी तथा मूत्र मार्ग के संक्रमण पर अद्भुत काम करती है।
घटक और उनकी मात्रा :
- वरुणत्वक (वरुण की छाल) – 80 ग्राम,
- आमला – 40 ग्राम,
- घातकी फूल – 40 ग्राम,
- हरड़ – 20 ग्राम,
- पृश्णि पर्णी – 10 ग्राम,
- लोह भस्म शतपुटी – 10 ग्राम
- अभ्रक भस्म शतपुटी – 10 ग्राम।
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- वरुणत्वक (वरुण की छाल) : मूत्र कृच्छ्रनाशक, अश्मरी (पथरी) नाशक, कृमिघ्न (कृमिनाशक), वातकफ नाशक।
- आमला : चक्षुष्य (नेत्रों के लिए हितकर), त्रिदोष शामक, बृष्य (पुरुषत्व बढ़ाने वाला), वयःस्थापक, रसायन।
- धातकी पुष्प : प्रवाहिकाहर (पेचिश नाशक) , विर्सप नाशक, व्रणनाशक (जख्म ठीक करने वाला), कटु-शीत
- हरीतकी : आयुष्य, पौष्टिक, सारक, त्रिदोष शामक, रसायन
- पृष्णि पर्णी : त्रिदोष शामक, शोथहर, बृष्य, अतिसारन ।
- लोह भस्म : रक्त वर्धक, बृष्य, बल्य (बल वर्धक), रसायन ।
- अभ्रक भस्म : बल्य , बृष्य, मज्जाप्रसादक, रसायन।
वरुणादि लौह बनाने की विधि :
सभी काष्टौषधियों का वस्त्र पूत चूर्ण और भस्में मिलाकर एक दिन तक खरल करवा कर सुरक्षित कर लें। यदि वटिकाएं बनानी हो तो वरुण क्वाथ से एक दिन मर्दन करके 250 मि.ग्रा. की वटिकाएं बनवा कर छाया शुष्क कर लें।
वरुणादि लौह की खुराक (Dosage of Varunadi Loh)
एक-से दो वटिकाएं प्रातः सायं भोजन के पूर्व ।
अनुपान : वरुणादि क्वाथ, पुनर्नवाष्टक क्वाथ, नारियल का पानी।
वरुणादि लौह के फायदे और उपयोग (Benefits & Uses of Varunadi Loh in Hindi)
वरुणादि लौह के कुछ स्वास्थ्य लाभ –
1). पथरी में लाभकारी है वरुणादि लौह का प्रयोग
वरुणादि लौह किडनी की पथरी की प्रसिद्ध औषधि है। इस औषधि की 2 गोलियां (500 मि.ग्रा.) प्रातः साय नारियल पानी से देने से दो सप्ताह में ही पथरी के छोटे छोटे टुकड़े या सिकता बनकर मूत्र में उत्सर्जित होने लगते हैं। वरुणादि क्वाथ का अनुपान भी लाभप्रद रहता है।
सहायक औषधियों में त्रिकण्टक कवच (स्वानुभूत), त्रिविक्रम रस, मूत्र दाहान्तक चूर्ण, इत्यादि में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
2). मूत्र कृच्छ्र में वरुणादि लौह के इस्तेमाल से फायदा
मूत्र कृच्छ्र (पेशाब बहुत कष्ट से रुक रुककर थोड़ा थोड़ा होता है) में भी वरुणादि लौह एक सफल औषधि है विशेष रूप से पौरुष ग्रंथि वृद्धि जन्य मूत्र कृच्छ्र में अन्य मूत्र रोगों में जहाँ मूत्र की रुकावट के कारण पीड़ा दाह इत्यादि की अनुभूति होती है, वरुणादि लौह के सेवन से लाभ होता है। यह औषधि मूत्र मार्ग के शोथ (सूजन) को दूर करके मूत्रपथ को विसंक्रमित कर देती है । अतः संक्रमण जन्य मूत्र कृच्छ्र में भी इसका सेवन करवाना लाभदायक है।
सहायक औषधियों में मूत्र कृच्छ्रान्तक रस, चन्द्र प्रभावटी, मूत्र दाहान्तक चूर्ण का प्रयोग भी करवाएं।
3). प्रमेह में वरुणादि लौह का उपयोग फायदेमंद
वरुणादि लौह मूत्र को स्वच्छता प्रदान करता है, एवं मूत्राधिक्य को भी नियंत्रित करता है। अतः प्रमेह में इसके प्रयोग से लाभ होता है। लोह और अभ्रक की भस्में बल्य और वृष्य होने के कारण उत्पन्न हुए कार्य को दूर करके बल और वीर्य को बढ़ाती है आमला और हरीतकी (हरड) प्रमेहर और रसायन होने के कारण रोगों की पुनरोत्पत्ती को बाधित करते हैं ।
अतः प्रमेह में प्रमेहघ्न कल्पों यथा न्यग्रोधादि चूर्ण, शुद्ध शिलाजीत, चन्द्रप्रभा वटी, शुक्रमातृका वटी, बृहदंगेश्वर रस में से किसी एक का प्रयोग भी अवश्य करवाना चाहिए।
4). किडनी फेल्युअयर (वृक्क कार्य हीनता) में वरुणादि लौह के इस्तेमाल से फायदा
मन्द ज्वर, बेचैनी (उत्कलेश), पैरों में सूजन (पादशोथ), मूत्र में अलव्यूमिन की उपस्थिति, रक्त में यूरिया और क्रेटेनीन का सामान्य से अधिक होना, हीमोग्लोबिन कम होना इत्यादि वृक्क कार्य हीनता के लक्षणों में वरुणादि लौह एक उत्तम औषधि है ।
इसकी 500 मि. ग्रा. की मात्रा प्रात: सायं, वरुणादि क्वाथ, पुनर्नवाष्टक क्वाथ या पंचतृण क्वाथ के साथ देने से एक सप्ताह में लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है।
सहायक औषधियों में सर्वेश्वर रस, सर्वतोभद्रा वटी, योगोतमा वटी, क्षार वटी, मण्डूर वज्र वटक, इत्यादि में से किसी एक या दो औषधियों की सहायता लेना आवश्यक है।
5). बहुमूत्रता में लाभकारी वरुणादि लौह :
बृद्धों को पौरुष ग्रंथि शोथ के कारण बार-बार मूत्र त्याग करना पड़ता है, कुछ बृद्धों को बिना किसी कारण के भी मूत्राधिक्य होता है। ऐसे लोगों को वरुणाद्य लोह 500 मि.ग्रा. प्रात: सायं निशामलकी क्वाथ के साथ देने से एक दो दिन में ही लाभ मिलने लगता है।
वहां वहमूत्रांतक रस, चन्द्रप्रभावटी, विषतिन्दुक वटी, तारकेश्वर रस इत्यादि को सहायक औषधियों के रूप में प्रयुक्त करना श्रेयस्कर होता है।
आयुर्वेद ग्रंथ में वरुणादि लौह के बारे में उल्लेख (Varunadi Loh in Ayurveda Book)
द्विपलं वरुणं धात्र्या स्तर्द्ध धातकी समम्।
हरीतक्या: पलार्द्धच पृषि पर्णं तदर्धकम्॥
कर्षमानञ्च लोहाभ्रं चूर्णमेकत्र कारयेत्।
भक्षयेत् प्रातरुत्थाय माषकोद्वौ विधानवित्॥
मूत्राघात तथा घोरं मूत्र कृच्छञ्च दारुणम्।
अश्मरी विनिहन्त्याशु प्रमेहं विषमं ज्वरम्॥
वल पुष्टि करञ्चैव बृष्य मायुष्य मेव च।
वरुणाद्यमिदं लोहं चरकेण विनिर्मितम्॥
-भैषज्यरत्नावली (मूत्रघाताधिकार 64-67 )
वरुणादि लौह के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ (Varunadi Loh Side Effects in Hindi)
- वरुणादि लौह लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
- वरुणादि लौह को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- वरुणादि लौह के घटकों में लोह और अभ्रक भस्म खनिज धातुयें हैं अत: धातुओं की भस्मों के सेवन में लिए जाने वाले पूर्वोपाय इसमें भी लिए जाने चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)