Last Updated on July 30, 2022 by admin
वात ज्वर (बुखार) के कारण ? :
- रात को जागने,
- अधिक स्त्री सहवास (स्त्री प्रंसग),
- ठंड़े, सूखे (रूक्ष) और हल्के पदार्थो को खाने,
- मल-मूत्र का वेग रोकने,
- अधिक पसीना आने,
- उपश्वास आने पर शरीर को आड़ा टेढ़ा करते रहने,
- वमन (उल्टी)-विरेचन का अधिक आना,
- शोक,
- घबराहट,
- रक्तस्राव और शस्त्रादि की चोट लगने के कारण वायु कुपित होकर वात के बुखार को पैदा करती हैं।
वात ज्वर (बुखार) के लक्षण :
- सिर में दर्द,
- हृदय में दर्द,
- पूरे शरीर में दर्द,
- कब्ज,
- उदर वायु,
- अधिक जंभाई आना,
- छींक का रुक जाना,
- अनिद्रा,
- जीभ, होंठ और गले का सूखना और
- त्वचा का सूखा हो जाना आदि।
भोजन और परहेज :
चावल, अरहर व उड़द की दाल, दही, ठंड़ी सब्जियां, मैदा, मिठाई और पेड़े आदि का सेवन करने से वात-कफ का बुखार चढ़ता है क्योंकि यह पदार्थ वायु और कफ को बढ़ाने वाले होते हैं।
वात ज्वर (बुखार) का आयुर्वेदिक उपचार : Vat Jwar ka Ilaj
1. धनिया :
- धनिया, देवदारू, कटेली और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर प्रयोग करने से वात का बुखार समाप्त हो जाता हैं। इससे भोजन जल्दी पचता है और भूख तेज लगने लगती है।
- धनिया, लाल चंदन, नीम की छाल, गिलोय और पद्याख को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर लगभग 350 मिलीलीटर पानी में डालकर अच्छी तरह से पकाकर काढ़ा बना लें। जब काढ़ा आधा बच जाये, तब उसे उतार कर छान लें। फिर इस काढ़े में शहद को मिलाकर 1 दिन में सुबह और शाम खुराक के रूप में पीने से वात और पित्त के बुखारों में लाभ मिलता है।
2. सोंठ :
- सोंठ, पीपरा मूल और गिलोय को मिलाकर काढ़ा बनाकर वात के बुखार से पीड़ित रोगी को पिलाने से बुखार समाप्त हो जाता है।
- सोंठ, देवदारू, नीम की छाल, गिलोय, कायफल, कुटकी और बच को मिलाकर पकाकर काढ़ा बनाकर वात-कफ के ज्वर से पीड़ित रोगी को पिलाने से बुखार, जोड़ों का दर्द, सिर में दर्द और अरूचि, खांसी आदि रोग समाप्त होते हैं।
3. जवासा : जवासा, कुटकी, सोंठ, कचूर, पाठा, अडूसा और एरण्ड की जड़ को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर रख लें। यह काढ़ा श्वास (दमा), कास (खांसी), दर्द और वात के ज्वर (बुखार) को समाप्त करता है।
4. धमासा : धमासा, सोंठ, कचूर, पाढ़र, अडूसा, नीम की छाल, एरण्ड की जड़ और पोहकर मूल (जड़) को बराबर मात्रा में लेकर जौकुट या पीसकर काढ़ा बनाकर रख लें। इस काढ़े को पीने से वात बुखार दूर होता है।
5. परिजात : परिजात के ताजे पत्तों का रस 14 मिलीलीटर से लेकर 28 मिलीलीटर की मात्रा में 5 से 10 ग्राम शहद के साथ एक दिन में 3 बार वात-कफ के बुखार में सेवन करने से लाभ होता है।
6. कटेरी : कटेरी, गिलोय, पोहकरमूल और सोंठ को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से वात-कफ के बुखार, दर्द, अफारा, श्वास (दमा), कास (खांसी) और अरूचि यानी इच्छा न करना आदि रोग समाप्त होते हैं।
7. गिलोय :
- गिलोय, पीपरामूल, सोंठ और इन्द्रजौ को मिलाकर काढ़ा बनाकर वात के बुखार में 7 वें दिन पीने से लाभ मिलता हैं।
- गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर 1 दिन में सुबह और शाम सेवन करने से वात ज्वर समाप्त होता है।
- गिलोय, कटेरी, सोंठ, गिलोय और एरण्ड की जड़ को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात ज्वर में लाभ पहुंचता है।
8. अनन्तमूल : अनन्तमूल, छोटी पीपल, दाख, खिरेंटी और शालिपर्णी (सरिवन) को मिलाकर काढ़ा बनाकर गर्म-गर्म ही पीने से वात ज्वर समाप्त होता है।
9. खिरेंटी : खिरेंटी, रास्ना, गिलोय, सरिवन और पिठवन को मिलाकर काढ़ा बनाकर वात के बुखार से पीड़ित रोगी को पिलाने से वात बुखार मिट जाता है।
10. चिरायता :
- चिरायता, नागरमोथा, नेत्रबाला, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, गोखुरू, गिलोय, सोंठ, सरिवन, पिठवन और पोहकरमूल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात बुखार में लाभ मिलता है।
- चिरायता, गिलोय, कटाई, कटेली, सुगन्धबाला, नागरमोथा, गोखरू, सरिवन, पिठवन और सोंठ को लेकर जौकुट करके काढ़ा बनाकर रख लें। इस काढ़े को रोगी को पिलाने से वात के बुखार में लाभ मिलता है।
- चिरायता, सोंठ, गिलोय, कटेरी, कटाई, पीपरामूल, लहसुन और सम्भालू को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात-कफ बुखार में आराम मिलता है।
- चिरायता, नागरमोथा, गिलोय और सोंठ को लेकर काढ़ा बनाकर पीने से वात-कफ के बुखार से छुटकारा मिल जाता है।
- 5 ग्राम चिरायता, 5 ग्राम नागरमोथा, 5 ग्राम गिलोय और 5 ग्राम सोंठ को लेकर लगभग 150 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें। जब पानी लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में बच जायें तब इस काढ़े को छानकर सुबह और शाम पीने से आराम होता है।
11. खस : खस, पिठवन, चिरायता, सोंठ, नागरमोथा, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, जवासा, गिलोय और बड़ा गोखरू को 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर अच्छी तरह जौकुट या पीसकर रख लें, फिर इसे पकाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को ठंड़ा होने पर इसमें 3 ग्राम शहद मिलाकर सुबह और शाम 3 से 4 दिन तक पीने से वात ज्वर मिट जाता हैं।
12. दाख : दाख (किसमिस) , गिलोय, कुंभेर, त्रायमाण और अनन्तमूल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर रख लें। इस काढ़े में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर पीने से वात और कफ के बुखार नष्ट हो जाते हैं।
13. पीपल : पीपल, गिलोय, सोंठ, लहसुन, छोटी कटेली, चिरायता, नागरमोथा और सेंधानमक को लेकर काढ़ा बनाकर पिलाने से वात के बुखार, कफ के ज्वर, कण्ठ के अवरोध (गले के रूकना), दिल की रुकावट (हृदय अवरोध), मोह, रोमांच, शीत और पसीना आदि के रोग समाप्त हो जाते हैं।
14. कुम्भेर : कुम्भेर, पाढ़ल, बेल, सोनापाठा, अरणी, कटेरली, कटाई, गोखुरू, सरिवन, पिठवन, पीपल, पीपरामूल, रास्ना, मीठा कूठ, सोंठ, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, सुगंधबाला, खिरेंटी, दाख, जवासा और शतावर आदि को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पकाकर काढ़ा बनाकर पीने से वात के बुखार के साथ-साथ सभी बीमारियां समाप्त हो जाती है।
15. इन्द्रजौ : 10 ग्राम इन्द्रजौ की छाल को बिल्कुल बारीक कूटकर और 50 मिलीलीटर पानी में डालकर तथा कपड़े मे छानकर पीने से वातज्वर में लाभ होता है।
16. अलसी : तवे पर भली-भांति भुनी हुई 50 ग्राम अलसी का चूर्ण बनाकर, उसमे 10 ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ घोंटकर 3 से 6 ग्राम तक की गोलियां बनाकर रख लें। बच्चों को यह 3 ग्राम की तथा बड़ों को 6 ग्राम की गोलियां सुबह सेवन कराने से वात कफजनय विकारों में लाभ होता है। इस गोली को लेने के कम से कम 1 घंटे बाद तक पानी नहीं लेना चाहिए।
17. बेल :
- 20-20 ग्राम बेल, अरणी, गंभारी, श्योनाक तथा पाढ़ल की जड़ की छाल, गिलोय, आंवला, धनिया आदि को मिलाकर लगभग एक ग्राम के चौथाई भाग से कम की मात्रा में सेवन करना वातज्वर में लाभकारी होता है।
- बेल की गिरी, कुम्भेर, श्योनाक, अरणी, पाढ़ल, खिरेंटी, कुलथी, पोहरमूल और रास्ना को एकसाथ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से वातज्वर (बुखार), जोड़ों का दर्द और सिर के कंपन में लाभ मिलता है।
- बेल, श्योनाक, कुंभेर, पाढ़र और अरणी को मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से वात बुखार दूर होता है।
- 10 ग्राम बेल के पत्ते, 10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम इन्द्रजौ और 10 ग्राम पीपल को लेकर 50 मिलीलीटर पानी में डालकर पकाएं। जब पानी आधा बच जाये तब इसमें खांड़ या मिश्री को थोड़ी-सी मात्रा में डालकर सेवन करने से वातज्वर दूर हो जाता है।
18. अमलतास : अमलतास का गूदा, कुटकी, हरड़, पीपलामूल और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर पीने से वात-कफ के बुखार से छुटकारा मिलता है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)