दोष मुक्त वायव्य कोण के दस फायदे | Vayavya Disha aur Vastu Upay

Last Updated on August 19, 2019 by admin

वास्तु शास्त्र में सभी दिशाओं का अपना अलग महत्त्व है। गृह-निर्माण के समय सभी दिशाओं का ख्याल रखा जाता है। अगर बनाए जाने वाले मकान में अथवा भूखड में सभी दिशाएं संतुलित व उर्वर हों, तो गृह स्वामी आजीवन सुख भोगता है। ऐसे घर में निवास करने पर सफलता आपकी दास बन जाती हैं। ऋद्धि-सिद्धि, धन प्राप्ति, महत्त्वा कांक्षा की पूर्ति, सफल प्रयास, कीर्ति, सामाजिक व व्यवसायिक उत्थान, सम्मान, गर्व, आदि सब प्रकार की खुशियां व सुख प्राप्त होते है।

इस लेख में मैं सिर्फ वायव्य कोण के शुद्ध, संतुलित, पवित्र रखने के लाभ बता रहा हुँ। जिन्हें ध्यान में रखकर अथवा इसका ज्ञान करके आप अपने जीवन में नए रंगों की सरचना कर सकते हैं। आप हमेशा उत्साह व ऊर्जा से ओत-प्रोत रहेंगे। आइये जाने वायव्य कोण क्या होता है –

वायव्य कोण किसे कहते है ? और उसका प्रभाव :

वायव्य कोण (vayavya disha) उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य के कोणीय स्थान को वायव्य दिशा का नाम दिया गया है। इस दिशा का मुख्य तत्व वायु है। इस स्थान का प्रभाव मित्रों ,पड़ोसियों, और संबंधियों से अच्छे या बुरे संबंधों का कारण बनता है। वास्तु शास्त्र के सही उपयोग से इसे सदोपयोगी बनाया जा सकता है। आइये जाने वायव्य कोण में क्या होना चाहिए –

वायव्य कोण और वास्तु शास्त्र के उपाय :

1- वायु का आंतरिक स्वभाव है बहना। वायु एक स्थान पर स्थिर नहीं रह सकती। वायु को बांधकर अथवा कैद करके नहीं रखा जा सकता है। वायु के प्रभावाधीन व्यक्ति में चंचलता आ जाती है। उसमें नई स्फुर्ति व ताजगी का आगाज होगा। घर आए मेहमान वायु के असर के कारण घर में ज्यादा देर तक नहीं ठहरते। यही कारण है कि वायव्य क्षेत्र में अतिथि का कमरा रखा जाता है।

2- वास्तु शास्त्र में नौकरों का कमरा भी वायव्य क्षेत्र में रखने का विधान है। दरअसल वायु में बहुत ऊर्जा होती है। यह यहां रहने वाले नौकरों को हमेशा सक्रिय रखती है। आमतौर पर परिवार का मूखिय नैऋत्य भाग में सोता है। इसका सिर दक्षिण की ओर तथा पैर उत्तर की ओर होने चाहिए। नौकर का स्थान स्वामी के पैरों में होता है। इस तरह से यह स्थान नौकरों के लिए काफी उपयुक्त है। क्योंकि वायव्य दिशा नैर्ऋत्य दिशा में सो रहे स्वामी के चरणों का अंतिम छोर है। वायव्य में रहने वाले नौकर-चाकर अपने स्वामी की आज्ञा मानने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

3- अन्न भंडार के लिए भी वायव्य दिशा उपयुक्त है। इस दिशा में रखें अनाज कभी
खराब नहीं होते। क्योंकि यहां मौजूद हवा अन्न को शुद्ध करके रखती है। अन्न में कीड़े नहीं लगते। ऑक्सीजन युक्त वायु तथा अग्नि, ये पृथ्वी पर शुद्ध करने वाले दो मुख्य तत्त्व हैं।

4- वायव्य दिशा में दूल्हा-दुल्हन का कमरा हो, तो उनमें प्रेम बना रहता है। वे दाम्पत्य जीवन का पूर्ण आनंद उठाते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार वायु तत्त्व की राशियों; मिथुन, तुला और कुंभ काम राशियां कहलाती हैं।

5- वायव्य दिशा में टेलीविजन रखने का लाभ ये होता है कि व्यक्ति ज्यादा देर तक टेलीविजन
से चिपका नहीं रह पाता है। वह जल्दी ही ऊब जाता है। क्योंकि वायु की गति अस्थिर हैं। अतः वायु के प्रभाव के कारण व्यक्ति ज्यादा देर तक यहां नहीं ठहरता है। टेलीविजन से चिपके रहने की आदत अत्यंत खराब है तथा यह कई रोगों को जन्म देती है। इससे व्यक्ति का तनाव भी बढ़ता है। और जीवन निष्क्रिय व आलसी हो जाता है। टेलीविजन देखने के चक्कर में व्यक्ति महत्त्वपूर्ण काम को दरकिनार कर देता है। इसके अलावा लगातार टी०वी० देखने से आंखों की रोशनी कमजोर पड़ जाती है। अतः वायव्य दिशा देर रात तक टी०वी० देखते रहने वाले लोगों की आदत छुडाने के लिए अत्यंत लाभ दायक हैं

6- वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि विवाह योग्य कुंवारी कन्याओं को वायव्य कक्ष में रखने से उनके विवाह के अवसर बढ़ जाते है। विवाह योग्य अथवा जवान लड़कियां इस दिशा में रहने पर सक्रिय हो जाती हैं। इसका फल जल्दी से जल्दी विवाहित होकर उस घर से बाहर निकालने के रूप मे मिलता है। इसी तरह से जो लोग काम चोर हैं, अर्थोपार्जन के लिए घर से बाहर निकलने को हिचकते हैं, लाख यत्न करने के बावयूद भी वे घर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं, उन्हें इस दिशा में बने कक्ष में सुलाना चाहिए। वायु की गति ऐसे लोगों की मानसिकता बदल देती है तथा वायु की ऊर्जा घर से बाहर जाकर कमाने के लिए मजबूर करती हैं।

7- वायव्य दिशा में पशुशाला रखने के विधान के पीछे वायु की गति व ऊर्जा ही मुख्य रूप से जिम्मेवार है। वायु की तीव्र गति वायव्य में रखे पालतू पशुओं को सक्रिय करके रखती है। यह भी कहा जाता हैं कि यहां पशु रखने से पशु रोग मुक्त रहते हैं। उनमें बल की कमी नहीं होती। यातायात के लिए प्रयुक्त पशुओं, जैसे घोड़ा अथवा ऊंट आदि को वायव्य में रखने से वे हमेशा चुस्त व तेज भागते हैं।

8- वायव्य दिशा में वाहन आदि के लिए गैराज रखने का विधान है। दिनभर सड़कों पर भागने वाले वाहन जब शाम या रात को वापस घर लौटते हैं, तब वाहन का इंजन ज्यादा गर्म हो चुका होता हैं। अगर तपतें इंजन को वायु का संसर्ग न मिले, तो इंजन ठंड़ा नहीं होगा। यही कारण है कि वायव्य दिशा में गैराज रखने का प्रावधान है। यहां गैराज रहने से वाहन जल्दी खराब नहीं होंगे।

9- तनाव व मानसिक व्यथा से पीड़ित व्यक्ति को वायव्य कक्ष में ठहराने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। व्यक्ति का तनाव दूर होता है। उसे मानसिक शांति मिलती है। वायव्य कोण में रोगी की मनः चिकित्सा करने पर मनोचिकित्सक को अधिक सफलता मिलती है। कुछ समय के पश्चात् ही रोगी चंगा हो जाता है तथा उसे मानसिक तनावों से मुक्ति मिल जाती है।

10- मनोरजन कक्ष व टेबल टेनिस कक्ष के लिए भी वायव्य दिशा अधिक उपयुक्त है। वायव्य कोण में धन रखा जा सकता है। धन का अर्थ केवल रूपया-पैसा या ज्वैलरी ही नहीं है, बल्कि अच्छा खाना भी एक धन है। जन्मपत्री के द्धितीय भाव को धन भाव कहा जाता है। इसका खाने-पीने से सीधा संबंध है। अतः वायव्य दिशा में किचन भी रखा जा सकता है। यहां किचन होने से पका खाना कभी खराब नहीं होता। वायु उसे शुद्ध किए रहती है।

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