भगवन्नाम की महिमा (बोध कथा) | Motivational Story in Hindi

Last Updated on July 22, 2019 by admin

प्रेरक हिंदी कहानी : Hindi Storie with Moral

★ उिडया बाबा, हरि बाबा, हाथी बाबा और आनंदमयी माँ परस्पर मित्र संत थे । एक बार कोई आदमी उनके पास आया और बोला :
‘‘बाबाजी । भगवान का नाम लेने से क्या फायदा होता है ?

★ तब हाथी बाबा ने उिडया बाबा से कहा :
‘‘यह तो कोई बनिया लगता है, बडा स्वार्थी आदमी है भगवान का नाम लेने से क्या फायदा ? बस, फायदा ही फायदा सोचते हो । भगवन्नाम जब स्नेह से लिया जाता है तब ‘क्या फायदा ? कितना फायदा ? इसका बयान करने वाला कोई वक्ता ही पैदा नहीं हुआ । भगवन्नाम से क्या लाभ होता है, उसका बयान कोई नहीं कर सकता । सब बयान करते-करते छोड गये लेकिन बयान पूरा नहीं हुआ ।

★ भगवन्नाम-महिमा का बयान नहीं किया जा सकता । तभी तो कहते हैं :
राम न सके नाम गुन गाई ।
स्वयं राम भी राम नाम की महिमा का बयान नहीं कर सकते तो औरों की तो बात ही क्या है ?

★ नाम की महिमा क्या है ? मंत्रजाप की महिमा क्या है ? भगवान जब खुद ही इसकी महिमा नहीं गा सकते तो दूसरों की बात ही क्या है ? ‘मंत्र जाप मम दृढ विश्वासा । पंचम भक्ति यह वेद प्रकाशा । ऐसा तो कह दिया, लेकिन मंत्रजाप की महिमा का वर्णन पूरा नहीं हो सकता ।

कमाल की एक कथा है :
★  एक बार रामनाम के प्रभाव से कबीर-पुत्र कमाल द्वारा एक कोढी का कोढ दूर हो गया । कमाल समझते हैं कि रामनाम की महिमा मैं जानता हूँ, किंतु कबीरजी प्रसन्न नहीं हुये । उन्होंने कमाल को तुलसीदासजी के पास भेजा ।
तुलसीदासजी ने एक तुलसी के पत्र पर रामनाम लिखकर वह जल में डाला और उस जल से पाँच सौ कोिढयों को ठीक कर दिया । कमाल समझ गये कि एक बार रामनाम लिखकर उस तुलसीपत्र के जल से पाँच सौ कोिढयों को ठीक किया जा सकता है, रामनाम की इतना महिमा है । किंतु कबीरजी इससे भी संतुष्ट न हुये और उन्होंने कमाल को भेजा सुरदासजी के पास ।

★ सुरदासजी ने गंगा में बहते हुये एक शव के कान में ‘राम” शब्द का केवल ‘र” कार कहा और शव जीवित हो गया । तब कमाल ने सोचा कि ‘राम” शब्द के ‘र” कार से मुर्दा जीवित हो सकता है यह ‘राम” शब्द की महिमा है ।
तब कबीरजी ने कहा :
‘‘यह भी नहीं । इतनी-सी महिमा नहीं है ‘राम” शब्द की । भृकुटि विलास सृष्टि लय होवई ।
जिसके भृकुटिविलास मात्र से सृष्टि का प्रलय हो सकता है, उसके नाम की महिमा का वर्णन तुम क्या कर सकोगे ?

★ अजब राज है मुहब्बत के फसाने का । जिसको जितना आता है, गाये चला जाता है ।
पूरा बयान कोई नहीं कर सकता । भगवन्नाम की महिमा का बयान नहीं किया जा सकता । जितना करते हैं उतना थोडा ही पडता है ।
भगवन्नाम एवं सत्संग के प्रभाव से वालिया लुटेरा वाल्मीकि ऋषि बन गया । वालिया को देवर्षि नारद का सत्संग मिला और भगवन्नाम, वह भी उल्टा ‘मरा” का जप किया जिसने उसे महाकवि, आदिकवि वाल्मीकि बना दिया । लेकिन सत्संग एवं भगवन्नाम का इतना ही लाभ नहीं है ।

★ नारदजी दासीपुत्र थे, विद्याहीन, जातिहीन और बलहीन । दासी भी ऐसी साधारण दासी कि चाहे कहीं भी काम में लगा दो, किसी घर पर काम में रख दो ।
एक बार उस दासी को साधुओं की सेवा में लगा दिया गया । वहाँ वह अपने पुत्र को साथ ले जाती थी और वही पुत्र साधुसंग एवं भगवन्नाम के जप के प्रभाव से आगे चलकर देवर्षि नारद बन गये । यह सत्संग की महिमा है, भगवन्नाम की महिमा है । लेकिन इतनी ही महिमा नहीं है ।
सत्संग की महिमा, दासीपुत्र देवर्षि नारद बने इतनी ही नहीं, कीडे में से मैत्रेय ऋषि बन गये इतनी ही नहीं, वालिया लुटेरा वाल्मीकि ऋषि बन गये इतनी ही नहीं, अरे ! जीव से ब्रह्म बन जाये इतनी भी नहीं भगवन्नाम ,सत्संग की महिमा तो लाबयान है ।

श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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